भ्रमरगीत-सार/११५-ऊधो! कोकिल कूजत कानन

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३१

 

ऊधो! कोकिल कूजत कानन।

तुम हमको उपदेस करत हौ भस्म लगावन आनन॥
औरों सब तजि, सिंगी लै लै टेरन, चढ़न पखानन।
पै नित आनि पपीहा के मिस मदन हनत निज बानन॥
हम तौ निपट अहीरि बावरी जोग दीजिए ज्ञानिन।
कहा कथत मामी के आगे जानत नानी नानन॥
सुन्दरस्याम मनोहर मूरति भावति नीके गानन।
सूर मुकुति कैसे पूजति[] है वा मुरली को तानन?॥११५॥

  1. पूजति है=बराबरी को पहुँचती है।