भ्रमरगीत-सार/११४-ऊधो! तुम अति चतुर सुजान

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३० से – १३१ तक

 

राग बिलावल
ऊधो! तुम अति चतुर सुजान।

जे पहिले रँग रंगी स्यामरँग तिन्हैं न चढ़ै रँग आन॥
द्वै लोचन जो विरद किए स्रुति गावत एक समान[]
भेद चकोर कियो तिनहू में बिधु प्रीतम, रिपु भान॥

बिरहिनि बिरह भजै पा लागों तुम हौ पूरन-ज्ञान।
दादुर जल बिनु जियै पवन भखि, मीन तजै हठि प्रान॥
बारिजबदन नयन मेरे पटपद कब करिहैं मधुपान?
सूरदास गोपीन प्रतिज्ञा, छुवत न जोग बिरान[]॥११४॥

  1. दुइ लोचन......समान=उपनिषद् आदि में सूर्य और चंद्रमा ईश्वर के दो नेत्र कहे गए हैं।
  2. बिरान=बिराना, पराया।