भाव-विलास
देव, संपादक लक्ष्मीनिधि चतुर्वेदी

वाराणसी: तरुण भारत ग्रंथावली कार्यालय, पृष्ठ ३

 

 

वन्दना
दोहा

राधाकृष्ण किसोर जुग, पग बंदों जगबंद।
मूरति रति शृङ्गार की, शुद्ध सच्चिदानंद॥

शब्दार्थ—जुग-दोनों। पग-चरण। वंदों-वन्दना करता हूँ। जगबंद (जगवंद्य) जगत् के लिए वन्दनीय। मूरति-मूर्त्ति। रति-प्रेम। सच्चिदानन्द-परब्रह्म परमेश्वर।

भावार्थ—मैं, प्रेम और शृङ्गार की मूर्त्ति, शुद्ध सच्चिदानन्दस्वरूप, श्री राधाकृष्ण के संसार-पूज्य चरणों की वन्दना करता हूँ।