भारतेंदु-नाटकावली/८–अंधेर नगरी (चौथा अंक)
चौथा अंक
स्थान––राजसभा
(राजा, मंत्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित है)
एक सेवक––(चिल्लाकर) पान खाइए, महाराज।
राजा––(पीनक से चौंक के घबड़ाकर उठता है) क्या कहा? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)।
मंत्री––(राजा का हाथ पकड़कर) नहीं नहीं, यह कहता है कि पान खाइए महाराज।
राजा––दुष्ट लुच्चा पाजी। नाहक हमको डरा दिया। मंत्री इसको सौ कोड़े लगें। मंत्री-महाराज! इसका क्या दोष है? न तमोली पान लगाकर देता, न यह पुकारता।
राजा––अच्छा, तमोली को दो सौ कोड़े लगें।
मंत्री––पर महाराज, आप पान खाइए सुनकर थोड़े ही डरे हैं, आप तो सुपनखा के नाम से डरे हैं, सुपनखा की सजा हो।
राजा––(घबड़ाकर) फिर वही नाम? मंत्री तुम बड़े खराब आदमी हो। हम रानी से कह देंगे कि मंत्री बेर-बेर तुमको सौत बुलाने चाहता है। नौकर! नौकर! शराब–– दूसरा नौकर––(एक सुराही में से एक गिलास में शराब उमलकर देता है) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।
राजा––(मुँह बना-बनाकर पीता है) और दे।
(नेपथ्य में––'दुहाई है दुहाई का शब्द होता है)
कौन चिल्लाता है-पकड़ लाभो।
(दो नौकर एक फर्यादी को पकड़ लाते हैं)
फ०––दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।
राजा––चुप रहो। तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा––बोलो क्या हुआ?
फ०––महाराज! कल्लू बनियाँ की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज, न्याव हो।
राजा––(नौकर से) कल्लू बनिये की दीवार को अभी पकड़ लाओ।
मंत्री––महाराज, दीवार नहीं लाई जा सकती।
राजा––अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्त, प्राशना जो हो उसको पकड़ लाओ।
मंत्री––महाराज! दीवार ईट-चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।
राजा––अच्छा, कल्लू बनिये को पकड़ लाभो। (नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिये को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिये! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यो दबकर मर गई?
मंत्री––बरकी नहीं महाराज, बकरी।
राजा––हॉ हॉ, बकरी क्यो मर गई––बोल, नहीं अभी फॉसी देता हूँ।
कल्लू––महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं। कारीगर ने ऐसी दीवार बनाई कि गिर पड़ी।
राजा––अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लायो। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़कर लाते है) क्यो बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई?
कारीगर––महाराज, मेरा कुछ कसूर नहीं, चूनेवाले ने ऐसा बोदा चूना बनाया कि दीवार गिर पड़ी।
राजा––अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलायो। (कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर-सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?
चूनेवाला––महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं; भिश्ती ने चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा। राजा––अच्छा, चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो (चूनेवाला निकाला जाता है, भिश्ती लाया जाता है) क्यों बे भिश्ती! गंगा-जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यो दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई?
भिश्ती––महाराज! गुलाम का कोई कसूर नहीं, कस्साई-मसक इतनी बड़ी बना दी कि उसमें पानी जादे आ गया।
राजा––अच्छा, कस्साई को लाआ, भिश्ती निकालो। (लोग भिश्ती को निकालते हैं कस्साई को लाते हैं) क्यो बे कस्साई, मशक ऐसी क्यो बनाई कि दीवार लगाई बकरी दबाई?
कस्साई––महाराज! गँड़ेरिया ने टके पर ऐसी बड़ी भेड़ मेरे हाथ बेची कि उसकी मशक बड़ी बन गई।
राजा––अच्छा कस्साई को निकालो, डँगेरिए को लाओ। (कस्साई निकाला जाता है, गड़ेरिया आता है) क्यों बे ऊख पौंड़े के गँड़ेरिये, ऐसी बड़ी भेड़ क्यों बेचा कि बकरी मर गई?
गो गॅडेरिया––महाराज! उधर से कोतवाल साहब की सवारी ॐ आई, सो उसके देखने में मैंने छोटी बड़ी भेड़ का खयाल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं।
.ना०-३६ राजा––अच्छा, इसको निकालो, कोतवाल को अभी सरब-मुहर पकड़ लायो। (गँड़ेरिया निकाला जाता है, कोत-वाल पकड़ा आता है) क्यो बे कोतवाल! तैने सवारी ऐसी धूम से क्यों निकाली कि गॅड़ेरिए ने घबड़ाकर बड़ी भेड़ बेची, जिससे बकरी गिरकर कल्लू बनियाँ दब गया?
तवाल––महाराज महाराज! मैंने तो कोई कसूर नहीं किया, मैं तो शहर के इंतजाम के वास्ते जाता था।
(आप ही आप) यह तो बड़ा गजब हुआ, ऐसा न हो कि यह बेवकूफ इस बात पर सारे नगर को फूँक दे या फॉसी दे। (कोतवाल से) यह नहीं, तुमने ऐसे धूम से सवारी क्यो निकाला?
राजा––हाँ हाँ, यह नहीं, तुमने ऐसे धूम से सवारी क्यों निकाला कि उसकी बकरी दबी?
कोतवाल––महाराज महाराज––
राजा––कुछ नहीं, महाराज महाराज ले जाओ, कोतवाल को अभी फॉसी दो। दरबार बरखास्त।
(लोग एक तरफ से कोतवाल को पकडकर ले जाते हैं, दूसरी ओर से मंत्री को पकडकर राजा जाते हैं)
(जवनिका गिरती है)