भारतेंदु-नाटकावली/७–नीलदेवी (छठा दृश्य)

भारतेंदु-नाटकावली
भारतेन्दु हरिश्चंद्र, संपादक ब्रजरत्नदास

इलाहाबाद: रामनारायणलाल पब्लिशर एंड बुकसेलर, पृष्ठ ६१८ से – ६२० तक

 

छठा दृश्य
स्थान––अमीर का खेमा
(मसनद पर अमीर अबदुश्शरीफखाँ सूर बैठा है,
इधर-उधर मुसलमान लोग हथियार बाँधे मोछ
पर ताव देते बड़ी शान से बैठे हैं)

अमीर––अलहम्‌दुलिल्लाह! इस कम्बख्त काफिर को तो किसी तरह गिरफ्तार किया। अब बाकी फौज भी फतह हो जायगी।

एक सर्दार––ऐ हुजूर! जब राजा ही कैद हो गया तो फौज क्या चीज है। खुदा और रसूल के हुक्म से इसलाम की हर जगह फतह है। हिदू हैं क्या चीज। एक तो खुदा की मार दूसरे बेवकूफ आनन्-फानन् में सब जहन्नुम रसीद होंगे।

दू॰ सर्दार––खुदावंद! इसलाम के आफताब के आगे कुफ्र की तारीकी कभी ठहर सकती है? हुजूर अच्छी तरह से यकीन रक्खें कि एक दिन ऐसा आवेगा जब तमाम दुनिया में ईमान का जिल्वा होगा। कुफ्फार सब दाखिले-दोजख होंगे और पयगम्बरे आखिरुल् जमाँ सल्लल्लाह अल्लेहुसल्लम का दीन तमाम रूए जमीन पर फैल जायगा।

अमीर––आमीं आमीं।

काजी––मगर मेरी राय है कि और गु्फ्तगू के पेश्तर शुक्रिया अदा किया जाय, क्योंकि जिस हकतआला की मिहरबानी से यह फतह हासिल हुई है सबके पहले उस खुदा का शुक्र अदा करना जरूर है।

सब––बेशक, बेशक।

(काजी उठकर सबके आगे घुटने के बल झुकता है और फिर अमीर आदि भी उसके साथ झुकते हैं)

काजी––(हाथ उठाकर) काफिर प मुसल्माँ को फतहयाब बनाया।

सब––(हाथ उठाकर) अलहम्द् उलिल्लाह।

काजी––की मेह्र बड़ी तूने य बस मेरे खुदाया।

सब––अलहम्द् उलिल्लाह।

काजी––सदके में नबी सैयदे मक्की मदनी के, अतफाले अली के, असहाब के, लश्कर मेरा दुश्मन से बचाया।

सब––अलहम्द् उलिल्लाह।

काजी––खाली किया इक आन में दैरों को सनम से, शमशीर दिखाके, बुतखानः गिरा करके हरम तू ने बनाया।

सब––अलहम्द् उलिल्लाह।

काजी––इस हिंद से सब दूर हुई कुफ़्र की जुल्मत, की तूने व रहमत, नक्कारए ईमाँ को हरेक सिम्त बजाया।

सब––अलहम्द् उलिल्लाह।

काजी––गिरकर न उठे काफिरे बदकार जमीं से, ऐसे हुए गारत। आमीं कहो––।

सब––आमीं।

काजी––मेरे महबूब खुदाया।

सब––अलहम्द् उलिल्लाह।

(जवनिका गिरती है)