भारतवर्ष का इतिहास/८—कौरवों और पांडवों की लड़ाई

भारतवर्ष का इतिहास
ई॰ मार्सडेन

कलकत्ता, बंबई, मद्रास, लंदन: मैकमिलन एंड कंपनी लिमिटेड, पृष्ठ ३८ से – ४० तक

 

८—कौरवों और पांडवों की लड़ाई।

१—प्राचीन काल में आर्यों के दो बड़े कुल थे, जिन के नाम आज तक चले आये हैं, पहिला भरत या कुरुवंश जो गंगा नदी की ऊपरी तरेटी में रहता था और जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी; दूसरा पाञ्चाल वंश जो कुछ नीचे उतर कर गंगा के किनारे रहता था। इसकी राजधानी कामपिल्य अथवा कन्नौज़ थी।

२—भरतवंश के राजा धृतराष्ट्र जन्म के अंधे थे। उन्हों ने अपने छोटे भाई पांडु को राज दे दिया था। इन के सौ बेटे थे जिन में दुर्योधन सब से बड़ा था। यह लड़के अपने पुरखा कुरु के नाम से कौरव कहलाते थे। पांडु के भी पांच बेटे थे और पांडव कहलाते थे। इन में से बड़े और प्रसिद्ध युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन थे।

३—सब ने राज-मन्दिर में साथ ही साथ विद्या पढ़ी और गुण सीखे; पर सदा आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे। बात यह थी कि कौरव चाहते थे कि पांडु के पीछे हम राज पावें और पांडव चाहते थे कि हम राज करें। जब पांडु के मरने का समय आ पहुंचा धृतराष्ट्र अपने सौ पुत्रों की सहायता से हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठ गया। पांडव दुखी होकर बहुत दिनों तक इधर उधर फिरते रहे कि कोई अच्छी जगह मिल जाय जिसमें वह बस जायं।

४—इस समय के पाञ्चाल के राजा का नाम द्रुपद था। उसकी बेटी द्रौपदी बड़ी रूपवती थी। उन दिनों यह रिवाज था कि एक नियत दिन पर कन्या अपना बर आप चुन लेती थी। राजा द्रुपद ने भी एक ऐसा ही दिन ठीक किया कि द्रौपदी अपना बर चुन ले। जब सब राजकुमार सभा में आकर बैठ गये तो द्रौपदी की ओर से यह कहा गया कि जो कोई मेरे पिता के धनुष से निशाने पर तीर मार देगा वही मेरा पति होगा। बहुत से राजकुमारों ने अपने बल की परीक्षा ली पर सुफल-मनोरथ न हुए। कौरवों का भी यही हाल हुआ। पर अर्जुन जो अपने भाइयों के साथ वहीं उपस्थित था आगे बढ़ा और कमान पर तीर चढ़ा कर जो छोड़ा तो सीधा निशाने पर बैठा और उसी समय द्रौपदी का ब्याह हो गया।

५—जब कौरवों ने देखा कि अब पांडवों का सहायक उनका ससुर पाञ्चाल का राजा है तो उन्हों ने हस्तिनापुर का आधा राज बांट कर पांडवों को दे दिया। पांडवों ने वह पश्चिमीय भाग जिसमें यमुनाजी बहती हैं ले लिया और उसमें इन्द्रप्रस्थ की नेव डाली। जो घने बन और जङ्गल उस प्रान्त में थे वह कुछ तो काट डाले और कुछ जला दिये और उन असभ्य जातियों को जो यहां पर बसी हुई थीं निकाल कर अपना राज स्थिर कर लिया।

६—इसपर भी कौरवों से चुपचाप न बैठा गया। उन्हों ने पांडवों को बुलाकर उनके साथ पासों का खेल खेला और चालाकी से उनका राज पाट ही नहीं बरन उनकी स्त्री भी जीत ली। इन बेचारों को हस्तिनापुर छोड़ना और फिर १३ बरस तक बनवास भोगना पड़ा। तेरह बरस के पीछे उन्हों ने चाहा कि हमारा राज हमको मिल जाय। पर कौरव कब मानते थे, उन्हों ने न दिया।

७—निदान कौरवों पांडवों में बड़ा भारी युद्ध हुआ। दोनों के साथ बहुत से राजा उनके सहायक थे। श्रीकृष्ण जी पांडवों के साथ थे। यह द्वारका के राजा थे जिसे अब गुजरात कहते हैं और बड़े भारी योद्धा थे। अब हिन्दू इनको अवतार मानते हैं। दिल्ली से उत्तर-पश्चिम की दिशा में कुरुक्षेत्र के मैदान में जहां अब पानीपत बसा हुआ है अठारह दिन तक घमसान की लड़ाई हुई। कौरव हार गये और एक एक करके मारे गये और पांडव हस्तिनापुर के राज के मालिक हुए।