बिरजा/५
पञ्चमाध्याय।
भाद्र मास है, शरद की पूर्वीय पवन ने मेघराशि हटाय कर अनन्त आकाश निर्मल कर दिया है। घर घाट सब सरोवर के जल से परिपूर्ण हैं। भट्टाचार्य महाशय के घर की और खिरकी की दोनों पुष्करिणियों में बड़ा जल भर रहा है। आज पूर्णिमा की रात्रि है आहारान्त में बिरजा और नवीन दोनों जनों खाली हाथ में लेकर घाट पर गई है। पुष्करिणी के जल में असंख्य कुमुदिनी फूल रही हैं। सरोवर की गोद में तारकमण्डित पूर्णचन्द्र परिशोभित नील नभोमण्डल हँस रहा है। कुमुदपत्रगतवारिमध्य पर्यन्त में चन्द्ररश्मि खेल रही हैं। पुष्करिणी के चारो तोरस्थ वृक्षावली के पत्रों में चन्द्र किरणें छूट छूट कर गिर रही है। बिरजा ने जो थाली धोयकर खगड़ बँधे घाट की सिढ़ी पर रक्खी है, उस पर्यन्त में चन्द्र किरणें गिर २ कर हँस रही हैं। बिरजा घाट की सिढ़ी पर बैठी है, नवीन शरीर मलने को जल में उतरी है।
नवीन ने शरीर मलते २ एक दीर्घनिश्वास परित्याग की। विरजा ने वह लक्ष्य कर लिया कहा "नवीन! ऐसी लम्बी सांसें क्यों लेती हो?"।
नवीन— मन के दुःख से।
बिरजा—क्या दुःख है?
नवीन— वह क्या तुम नहीं जानती हो?
"जानती हूँ" कहकर कियत्क्षण नीरव हो, बिरजा ने फिर कहा कि 'ओ नवीन! यह क्या? तुम क्या रोती हो?
नवीन— हां रोती हैं।
बिरजा—इतने जल में खड़ी होकर क्यों रोती हो?
नवीन बिरजे! मेरा ऐसा कोई नहीं है तो रोने पर आंखों का जल पोंछ दे। इसी लिये जल में खही हो कर रोती हूँ कि आंखों का जल पुष्करिणी के जल में मिल जाय।
बिरजा— क्यों? मैं हूँ, मैंने क्या तुम्हारी आंखों का जल कभी नहीं पोंछ दिया।
नवीन—दिया है- किन्तु कितने काल दोगी?
बिरजा—जितने दिन जीती रहूँगी।
नवीन—तुम क्या मुझे इतना चाहती हो?
बिरजा—यह तो तुम्हों जानती होगी।
नवीन—अच्छा तो यदि मैं मर जाऊँ, तुम मेरे लिये रोओगी ?
बिरजा—हां रोऊँगी।
नवीन—केवल रोओगी मेरे मरने से मरोगो नहीं? नवीन ने बिरजा को चिन्ता में घेर दिया कहा "मरूँगी नहीं क्या?"।
नवीन—तुम मुझे इतना नहीं चाहती हो कि मेरे मरने से मेरे लिये मर सको। नहीं तो इतना सोच बिचार के न कहती कि "मरूँगी नहीं क्या"।
बिरजा ने बात उड़ाने के लिये कहा "अच्छा मैं तुम्हें नहीं चाहती। तुम्हें भी मरने से कुछ काम नहीं और मुझे भी इसी समय अपने सब प्यार दिखलाने से कुछ काम नहीं, अब तुम शरीर मल मलाकर ऊपर आओ"। इसी समय पुष्करिणी के तट पर एक पक्का ताल 'टप' करके गिरा। नवीन ने हँस करके कहा कि "मैं तब तुम्हारी प्रीति जानूं यदि मुझे यह ताल उठाय के लाय दो"।
बिरजा एक बात भी न कहकर ताल लेने चली गई। हमारे पल्ली ग्रामस्थ पाठक वा पाठिका जानते होंगे कि तालबारी में प्रायः ही छाटे २ अनेक वृक्ष लतादिक होते है इस तालबारी में भी वह थे। सुतराम् पूर्णमासी की रात्रि होने पर भी तालबारी में कुछ २ अन्धकार था। ताल का रङ्ग और अंधकार का रंग एकही होता है इस निमित्त जाते नाचही बिरजा को ताल नहीं मिला। वह वहाँ ढूंढ़ने लगी। ताल ढूंढने में बहुत विलम्ब लगा। अनेक क्षण पीछे ताल पाकर 'मिल गया' 'मिल गया' कहकर मस्तक पर धर कर घाट की ओर दृष्टि करके देखा तो जल से एक पुरुष निकलकर घर के भीतर घुस गया। यह देख कर बिरजा का शरीर थहराने लगा। परन्तु उसी समय साहस करके धीरे २ फिर घाट पर आई। घाट पर आय कर नवीन को नहीं देखा परन्तु पुष्करिणी का जल अत्यन्त गम्भीर बोध हुआ बिरजा का समस्त शरीर कम्पित होने लगा। हाथ का ताल अज्ञातावस्था में मिट्टी में गिर पड़ा। अन्त में बिरजा ने कम्पित हस्त से थाली उठाकर घर में प्रवेश किया। घर में आयकर जिस प्रकार और किसी को सन्देह न हो उस प्रकार नवीन का अन्वेषण करने लगी, पर उसे नहीं पाया। नवीन का शयन गृह देखा, बत्ती लाने का छल करके बड़ी बहु के शयनगृह में गई, महाभारत का छल करको गृहिणी के घर में गई, कहीं भी नवीन को नहीं देखा। अनन्तर और कोई सन्देह न करे इस भय से और कुछ न करके बिरजा अपने घर में जाय कर सो रही।
मन उत्कण्ठित रहने से निद्रा नहीं होती, रात्रि दोपहर व्यतीत हो गई, परन्तु बिरजा की आंखों में निद्रा नहीं आई। बिरजा के मन में अनेक चिन्ता की तरंगें थी, केवल पार्श्व परिवर्तन करने लगी। इस प्रकार एक पहर और भी बीत गया। बिरजा ने उस समय सोचा कि अब सब निद्रित हैं एकबार घाट पर जाकर देखूँ तो क्या हुआ है? बोध होता है नवीन को किसी ने जल में डुबाय कर मार डाला। यदि यही हो तो वह इतने काल में ऊपर उछल आई होगी। बिरजा साहस पर निर्भर होकर धीरे धीरे घाट के ऊपर गई। देखा कि जल में शव तैरता है। बिरजा शव को देखते मात्रही पीछे हटकर घर के भीतर आई। और पीछे अपनी कक्ष (कोठरी) में आयकर विचारा कि अब क्या करूँ? हम दोनों जने एक संग घाट पर गये थे वह सभी जानते हैं। नवीन यदि आपही जल में डूब कर मरी हो, किम्वां और किसी ने ही उसे मारा हो, दोष मेरेही ऊपर पड़ैगा सब जने मेरा सन्देह करेंगे। अनेक लोग अनेक बातें कहेंगे। थाना पुलिस होगा। अपमान लान्छना होगी। नवीन! तू मरी सो मरी, मुझे क्यों मार गई?।
बिरजा ने शेष में अनेक चिन्ता के पर दीर्घनिश्वास परित्याग करके कहा कि आज से मेरा अन्न जल इस घर से उठ गया। यदि नौका डूबने के समय मरती तो इतना दुःख न होता अब क्या करूं? अनेक भावना करके बिरजा ने स्थिर किया कि इस स्थान का परित्याग करनाही परामर्श है, यह स्थिर सङ्कल्प करके वह धीरे २ रात्रि रहते २ भट्टाचार्य का घर छोड़कर चल दी ।