प्रेमसागर
लल्लूलाल जी, संपादक ब्रजरत्नदास

वाराणसी: काशी नागरी प्रचारिणी सभा, पृष्ठ २४ से – २५ तक

 

पांचवा अध्याय

बालक का जन्म सुनते ही कंस डरता काँपता उठ खड़ा हुआ और खडग हाथ में ले गिरता पड़ती दौड़ा, छुटे बाल पसीने में डूबा धुकुड़ पुकुड़ करता जी बहन के पास पहुँचा। जब विसके हाथ से लड़की छीन ली तब वह हाथ जोड़ बोली―ऐ भैया, यह कन्या है भानजी तेरी, इसे मत मार यह पेटपोछन है मेरी। मारे हैं बालक तिनका दुख मुझे अति सताता है, बिन काज कन्या को मार पाप बढ़ाता है। कंस बोला―जीती लड़की न दूँगा तुझे, जो ब्याहेगा इसे सो मारेगा मुझे। इतना कह बाहर आ जो ही चाहे कि फिराय कर पत्थर पर पटके, तो ही हाथ से छूट कन्या आकाश को गई और पुकार के यह कह गई―अरे कंस, मेरे पटकने से क्या हुआ, तेरा बैरी कहीं जन्म ले चुका, अब तू जीता न बचेगा।

यह सुन कंस अछता पछता वहाँ आया जहाँ बसुदेव देवकी थे, आते ही विन के हाथ पॉव की हथकड़ी बेड़ी काट दीं और बिनती कर कहने लगा कि मैने बड़ा पाप किया जो तुम्हारे पुत्र मारे, यह कलंक कैसे छूटेगा, किस जन्म में मेरी गति होगी, तुम्हारे देवता झूठे हुए, जिन्होंने कहा था कि देवकी के आठवे गर्भ में लड़का होगा, सो न हो लड़की हुई। वह भी हाथ से छूट स्वर्ग को गई। अब दया कर भेरा दोष जी में मत रक्खो, क्योकि कर्म का लिखा कोई मेट नहीं सकता। इस संसार में आये से जीना, मरना, संयोग, बियोग मनुष का नहीं छुटता। जो ज्ञानी हैं सो मरना जीना समान ही जानते है और अभिमानी मित्र शत्रु कर मानते हैं। तुम तो बड़े साध सतबादी हो जो हमारे हेतु अपने पुत्र ले आये।

ऐसे कह जब कंस बार बार हाथ जोड़ने लगा तब वसुदेवजी बोले― महाराज, तुम सच कहते हो, इसमें तुम्हारा कुछ दोष नहीं, बिधना ने यही हमारे कर्म में लिखा था। यो सुन कंस प्रसन्न हो अति हित से बसुदेव देवकी को अपने घर ले आया, भोजन करवाय बागे पहराय, बड़े अदर भाव से दोनो को फेर वहीं पहुँचाय दिया और मंत्री को बुलाके कहा कि देवी कह गई है कि तेरा बैरी जग में जन्मा, इससे अब देवता को जहाँ पावो तहाँ भारो, क्योकि विन्होई ने मुझसे झूठी बात कही थी कि आठवे गर्भ में तेरा शत्रु होगा। मंत्री बोला―महाराज विनका मारना क्या बड़ी बात है, वे तो जन्म के भिखारी है, जद आप कोर्पियेगा तधी वे भाग जायँगे। विनकी क्या सामर्थ है जो तुम्हारे सनमुख हो। ब्रह्मा तो आठ पहर ज्ञान ध्यान में रहता है, महादेव भाँग धतूरा खाय, इंद्र का कुछ तुमपर न बसाय। रहा नारायन सो संग्राम नहीं जाने, लक्ष्मी के साथ रहती है सुख माने। कंस बोला―नारायन को कहाँ पावे और किस बिधि जीते सो कहो। मंत्री ने कहा―महाराज, जो नारायन को जीता चाहते हो तो जिनके घर में आठ पहर है विनका वास, तिनही का अब करो बिनास। ब्राह्मन, बैष्णव, जोगी, जती, तपसी, सन्यासी, बैरागी आदि जितने हरि के भक्त है तिनमे लड़के से ले बूढ़े तक एक भी जीता न रहे। यह सुन कंस ने प्रधान से कहा― तुम सब को जा मारो। आज्ञा पाकर मंत्री अनेक राक्षस साथ ले बिदा हके नगर में जा, लगा गौ, ब्राह्मन, बालक, औ हरिभक्तो को छल बल कर ढूँँढ ढूँँढ़ मारने।