प्रताप पीयूष/चार्ल्स ब्रैडला की मृत्यु पर ।

[ १८६ ]

यही बेहतर कि उसके हक में हम हरदम दुवा माँगैं।
यही बस फर्ज अपना है इसी में सब भलाई है।।
खुदाया खुश रहे वह फ़ख्ते आलम रौजे महशर तक।
कि जिसकी जाते बा बरकत को जेबा सब बड़ाई है।।
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चार्ल्स ब्रैडला की मृत्यु पर।
हाय आज काहू बिधि धीरज धरत बनै ना।
फूटि बह्यो रकत रुकतो रोकै नहिं नैना॥
हाय ! हाय ! हम कह सूझत सब जग अँधियारो।
बिछुरि गयो हा उर-पुर-आस प्रकासन हारो॥
हाय विधाता फाटि पर्यो यह बज्र कहां ते।
उमड़ि उठ्यो हा दैव ! सोक-सागर चहुंघाते॥
अरे काल-चंडाल ! तरस तोहिं नेक न आयो।
निरबल, बूढ़े, रोग-ग्रसित पर दाँत लगायो।।
हाय अभागी हिन्द ! भाग तेरे ऐसे ही।
बेगहि जात बिलाय हाय तव सहज सनेही॥
दयानन्द, हरिचंद अलखधारी केशव कर।
दुख भूल्यो ज्यों त्यों करि छाती धरि पाथर॥
तब लगि हा दुरदैव, और इक घाव लगायो।
रहो सह्यो अवलम्ब अंकुरहि काटि गिराओ॥
हाय हमारे दुख कहं निज दुख समझन हारे।

[ १८७ ]

प्यारे मिस्टर चार्ल्स ब्रैडला कहां सिधारे।।
हाय ब्रिटिश बाटिका कल्पतरु जग हितकारी।
कहं ढूढ़ै दुखिया भारत सुत छांह तिहारी॥
को अब तुम बिन इंग्लिशपुर की बड़ी सभा महं।
दृढ़ प्रण धरि लरि लरि पर चरिहै हमरे दुख कहं॥
को बिन स्वारथ दुखियन धीरज दान करन हित।
रुज सज्जा ते उठि ऐहै सागर लांघत इति॥
को हम हित अपने भाइन की सकुच न करिहै।
निहचल निहछल निडर नीति पथ को पग धरिहै।।
यों तो हमरे हितू बनहिं बहुधा बहुतेरे।
पै निज पापी पेट भरन विषयन के चेरे॥
तनिक विघ्न लखि होहिं और के औरहि छिन में।
कहा आस विश्वास करै धारन कोउ तिन में॥
पर उपकारक तुमहिं रहे सत वृत जग माहीं।
जिनहिं न्याय पथ चलत ईश्वरहु कर डर नाहीं॥
हाय हाय रे हाय दिखाय न कोउ अब ऐसो।
दीन हीन देशी न लखै निज कुटुम सरिस जो॥
हाय राम तुम अबहूं दयासागर कहवावत।
दया न आई नेक हमहिं वासों बिछुरावत॥
जाके इक इक सुगुन सुमिरि फाटति है छाती।
हाय ब्रैडला हाय हिन्द के सत्य सँघाती॥
भली आस दै भली रीति सों प्रीति निबाही।

[ १८८ ]

भयो अचानक दुसह दुःख दै हरि पुर राही॥
तेरे बिन हा हन्त कतहुं कछु नहिं सुहायरे।
हाय हायरे हाय हायरे हाय हायरे॥
कहां जायं का करैं कौन बिधि जिय समुझावैं।
हम कोउ ऋषि मुनि नाहिं क्यों न फिर ज्ञान गंवावै॥
जो जनम्यो सो अवसि मरैगो हमहूं जानैं।
पै ऐसो दुख देखि चित्त नहिं रहत ठिकानैं॥
कबहुं काहु बिन कछु जग कारज रहत न अटके।
पै ऐसे थल नहिं मानत मन बिन सिर पटके॥
याते रहि रहि कहि कहि आवत उर ते एही।
हाय ब्रैडला हाय सत्य के सहज सनेही॥
अमित पंचमी माघ की हरि शशि संवत् सात।
स्वर्ग सिधारे ब्रैडला तजि मित्रन बिलखात॥
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होली है अथवा होरी है।
बीती सीतकाल की सांसति ब्यार बसन्ती डोली है।
फूले फूल बिपिन बागन के जीह कोकिलन खोली है॥
बदली गति मति जड़ चेतन की सुखमा सुखद अतोली है।
भयो नयो सो जगत देखियत अहो आय गइ होली है॥१॥
यों तो माँह सुदी पाँचे ते उर उमङ्ग नहिं थोरी है।
राग रङ्ग रस चहल पहल की चरचा चारहुं ओरी है॥

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