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विषय | पृष्ठांक | विषय | पृष्ठांक |
२–भट्टनायक का मत | ६३ | स्थायी भाव | ८४ |
३–नवीन विद्वानों का मत | ६७ | रसों और स्थायी भावों का भेद | ८५ |
४–अन्य मत | ७३ | ये स्थायी क्यों कहलाते हैं? | ८५ |
५–एक दल (भट्ट लोल्लट इत्यादि) का मत | ७६ | स्थायी भावों के लक्षण | ८८ |
६–कुछ विद्वानों (श्री शंकुक प्रभृति) का मत है | ७७ | १ रति | ८८ |
७–कितने ही कहते हैं | ७७ | २ शोक | ८८ |
८–बहुतेरों का कथन है | ७७ | ३ निर्वेद | ८९ |
९–इनके अतिरिक्त कुछ लोग कहते हैं | ७७ | ४ क्रोध | ८९ |
१०–दूसरे कहते हैं | ७८ | ५ उत्साह | ९० |
११–तीसरे कहते हैं | ७८ | ६ विस्मय | ९० |
पूर्वोक्त मतों के अनुसार भरतसूत्र की व्याख्याएँ | ७८ | ७ हास | ९० |
विभावादिकों में से प्रत्येक को रस-व्यञ्जक क्यों नहीं माना जाता | ८० | ८ भय | ९० |
रस कौन-कौन कितने हैं | ८२ | ९ जुगुप्सा | ९१ |
विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव | ९१ | ||
विभावादि के कुछ उदाहरण | ९१ | ||
रसों के अवांतर भेद और उदाहरण आदि | ९३ |