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- ग्रोपम ते ऊपम है विपम अपाद ऊधौ, . माधो जो न पाये मन भ्रमर ज्यों भवेंगे। यधिंधे को वृंदनि धियोगिनि को योनि वीनि, ___- श्राये वैरो चादर बिसासी यिस ववंगे ॥२१६॥

पेम नेम गहे नेह वात निरयहें जाते,

अय"उन्हें कहा ,परी महाराज भये हैं। कछुक सँदेसे ऊयो मुख के सुनाउ श्रानि, . हम सुख माने उन जेते दुख दये हैं। । इहां कयि 'आलम' पुरानो पहिचानि जानि, जोगी सुधि आये ते वियोगी भूलि गये हैं। - इहाँ यैरी विरह विहाल करै वार यार, सालत करेजें. - नटसाल! नित नये हैं ॥२२॥ । जब मुधि श्रायै तप तनबिनु-धि-होत, . चन सुधिआये मन होत पात पात है। • 'सेख ' कहै सरद सहेटर के ये गीत गुनि, __.. बाँसुरी की धुनि नटसाल गात गात है। - तुम कह्यो मानौ । उपदेश हम नाही कहो, । जैसी एक नाही 'तैसी नाही सौक सात है। पेम सो बिरूधौ जिनि हा हा हियो सँधौ जिनि, . ' 'ऊधौ लाख पातनि को सूधी एक.यात है ॥२३॥ रोहित साव27 (वार्ता) .... रोहित साव27 (वार्ता) १३:३४, १८ दिसम्बर २०१९ (UTC) १३:३४, १८ दिसम्बर २०१९ (UTC)~~......... । -नटसाल = केसक, पोड़ा। २--सहेट = मिलन स्थान। , .