दीवान-ए-ग़ालिब/५ दिल मिरा, सोज़-ए-निहाँ से, बेमहाबा जल गया

दीवान-ए-ग़ालिब
द्वारा मिर्जा ग़ालिब, अनुवादक अली सरदार जाफ़री

दिल मिरा, सोज़-ए-निहाँ से, बेमहाबा जल गया
आतश-ए-खामोश की मानिन्द गोया जल गया

दिल में, जौक़-ए-वस्ल-ओ-याद-ए-यार तक, बाक़ी नहीं
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया

मैं ‘अदम से भी परे हूँ, वन: ग़ाफिल, बारहा
मेरी आह-ए-आतशीं से, बाल-ए-‘अंका जल गया

अर्ज़ कीजे, जौहर-ए-अन्देशः की गर्मी कहाँ
कुछ खयाल आया था वहशत का, कि सहरा जल गया

दिल नहीं, तुझको दिखाता वर्न:, दाग़ों की बहार
इस चराग़ाँ का, करूँ क्या, कारफरमा जल गया

मैं हूँ और अफ़सुर्दगी की आरज़, ग़ालिब, कि दिल
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहल-ए-दुनिया जल गया