दीवान-ए-ग़ालिब/४ कहते हो, न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया

दीवान-ए-ग़ालिब
द्वारा मिर्जा ग़ालिब, अनुवादक अली सरदार जाफ़री

कहते हो, न देंगे हम, दिल अगर पड़ा पाया
दिल कहाँ, कि गुम कीजे, हमने मुद्द'आ पाया
'अिश्क़ से, तबी'अत ने, ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द-ए-बेदवा पाया
दोस्तदार-ए-दुश्मन है, ए'तिमाद-ए-दिल मा'लूम
आह बेअसर देखी, नालः नारसा पाया
सादगि-ओ-पुरकारी, बेख़ुदि-ओ-हुशियारी
हुस्न को तग़ाफ़ुल में, जुरअत आजमा पाया
ग़ुंचः फिर लगा खिलने, आज हमने अपना दिल
ख़ूँ किया हुआ देखा, गुम किया हुआ पाया
हाल-ए-दिल नहीं मा'लूम, लेकिन इस क़दर या'नी
हम ने बारहा ढूँढा, तुम ने बारहा पाया

शोर-ए-पन्द-ए-नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे, तुम ने क्या मज़ा पाया