तिलिस्माती मुँदरी
श्रीधर पाठक

इलाहाबाद: पंडित गिरिधर पाठक, पृष्ठ १४ से – २१ तक

 
अध्याय ३


जादू की अंगूठी हाथ आने से रानी बहुत खुश हुई। उसने छुटपन में इसका बहुत कुछ हाल सुना था। उसे मालूम था कि यह अंगूठी पेश्तर के ज़माने में गुरु गोरखनाथ के पास थी जिन्होंने कि इसकी ताक़त से तमाम चिड़ियों को ताबे कर उन पर अपनी हुकूमत कायम कर ली थी। गोरखनाथ जी के मरने पर चिड़ियों ने अंगूठी को कहीं छिपा दिया था ताकि कोई दूसरा शख़्स उसके ज़रिये से उन पर अमल- दारी न कर सके। रानी ने अपने कमरे की खिड़की से देखा कि दो कौए बाग़चे में एक दरख़ की टहनी पर ग़मगीन बैठे हुए है (यह कौए वही थे जिनका ज़िक्र इस कहानी में शुरू से है) रानी ने उन्हें अंगूठी दिखा कर पास बुला लिया और हुक्म दिया कि वह झील के पार जो जंगल है वहां जांय, उसके भीतर एक बड़ी भारी पत्थर की चट्टान मिलेगी जिसकी कि चारों बग़लें बिलकुल सीधी हैं। इस चट्टान की जड़ पर एक अनार का दरख़ उगा हुआ है जिसकी पीड़ में एक मैंडक बन्द है। रानी ने कौओं से कहा कि वह इस पेड़ का एक अनार उसके वास्ते लावें और वह भी एक एक दाना उस फल का निगल जावें क्योंकि उसके दाने ज़हर मुहरे की खासियत रखते हैं, यानी उनके खाने से किसी किस्म का ज़हर असर नहीं करता, और अगर कौए उसके दाने न खायेंगे तो इसके बाद जो काम उनसे लिया जायेगा उसमें वह मर जायेंगे। वह काम यह है कि वह दोनों उस चट्टान की चोटी पर जायें, वहां एक ज़हर का दरख़ है, उसका गोंद लावें। कौए हुक्म के मुताबिक़ वहां से जंगल को उड़े और थोड़े ही अर्से में उस अनार के पेड़ पर पहुंचे जो कि चट्टान की जड़ में

उगा हुआ था, उन्होंने अपनी चोंच से पेड़ की पीड़ में खोंटें मार कर उस पर कान लगाया तो उसके अन्दर मैंडक के बोलने की आवज़ सुनाई दी। तब उन्होंने उस अनार के चन्द दाने जो कि नीचे बिखरे हुए थे निगल लिये और एक २ फल साथ लेकर चट्टान की चोटी पर पहुंचे, जिसे उन्होंने सब्जी या जानवरों से बिलकुल खाली पाया और जिस पर कि उन चिड़ियों की ठटरियां और हड्डियां तमाम फैली हुई थीं जो कि चट्टान के ऊपर उड़ने में उस ज़हर के पेड़ की बू से मर गई थीं। चट्टान के सब से ऊंचे हिस्से पर कौओं ने देखा कि एक छोटा सा अधूरा उगा हुआ पेड़ है जिसकी छाल से एक स्याह रंग का गोंद टपक रहा है। एक कौए ने उसमें से थोड़ा सा गोंद ले लिया और मय अनारों के दोनों कौए महल की तरफ़ रवाना हुए। एक अनार उन्होंने महल के बाग़चे में एक झाड़ी के अन्दर गिरा दिया और दूसरा मय गोंद के जाकर रानी को दिया। रानी ने उसी दम अनार का एक दाना निगल लिया और एक दाना बब्बू को जो कि उसके पास था दिया, ताकि गोंद की बू से उसे ज़हर न चढ़ जाय। गोंद को रानी ने एक सोने की डिब्बी में बन्द करके रख लिया।

रानी से जब छुट्टी पाई, कौए सीधे राजा की लड़की के कमरे की खिड़की का दौड़े, वहां उन्होंने तोते को पाया और उसे ज़हरीले, गोंद और अनारों का सब हाल सुना दिया। उन सभी को यकीन हो गया कि अब राजा की लड़की को दुबारा ज़हर देने की तदबीर की जावेगी और उस तदबीर को बेकाम करने के लिये उन्होंने भी तजवीज़ की। कौए उस अनार को जो कि वह जंगल से लौटती दफ़ा बाग़चे में एक झाड़ी में गिरा पाये थे, उठा लाये, तोते ने उस में एक छेद करके एक दाना आप खा लिया और फिर उस अनार को

राजा की लड़की के पास ले गया। लड़की एक कोने में बैठी हुई रो रही थी। तोते ने इशारे से ज़ाहिर किया कि वह एक दाना अनार का खा ले। राजा की लड़की का जी उसके खाने को न चाहा क्योंकि अनार का रंग ठीक मैंडक के चमड़े का सा था और देखने में बिलकुल अच्छा न था। लेकिन तोते ने इतने इशारे और इतनी खुशामद की कि अख़ीर को लड़की ने एक दाना निगल लिया। बाद इस के अनार को तोते ने लड़की के बिस्तर के तले छिपा दिया। लेकिन वह उसे मुशकिल से छिपाने पाया था कि दरवाज़े की कुन्दी खुलने की आवाज़ आने से उसे अपने तई भी छिपाना पड़ा। और बब्बू गुलाम एक रोटी और एक लोटे में पानी लिये हुए अन्दर आ पहुंचा। वह इन चीज़ों को लड़की के आगे रख कर चला गया। उसके जाते ही तोता चरपाई के नीचे से झट निकल आया। राजा की लड़की को इस वक्त बहुत ही भूख और पियास लग रही थी, पर वह खाने और पीने से डरती थी, हालां कि तोता यह जान कर कि अनार का दाना खाने के सबब से ज़हर कुछ असर नहीं कर सकेगा, इशारों से बहुत कुछ ज़ाहिर कर रहा था कि वह उस रोटी को शौक़ से खाले लेकिन जिस वक्त कि वह यह इशारे कर रहा था, यानी कभी रोटी में चोंच मारता था, कभी पानी आप चोंच से पीता था, कभी ज़ोर से चीख़ता था, और इसी किस्म के बीसों दूसरे इशारे कर रहा था, दोनों कौए जादू की अंगूठी चोंच में लिये हुए आ पहुंचे।

राजा की लड़की ने जो अंगूठी को छूआ, चिड़ियों की बोली फिर समझने लगी। उन्होंने अंगूठी फिर हाथ लगने का हाल बयान किया, कहा कि जिस वक्त बब्बू को उन्होंने रोटी लेकर कमरे के अन्दर आते देखा था खिड़की की राह

से बाहर उड़ गये थे और रानी की खिड़की के ऐन सामने एक पेड़ पर जा बैठे थे। रानी उस वक्त खिड़की के पास बैठी हुई अपने बच्चे से खेल रही थी कि बच्चे ने अंगूठी को उसकी उंगली से खींच लिया और खिड़की के दरवाज़े की तरफ़ लुढ़का दिया और वह बाहर की तरफ़ ज़मीन पर जा पड़ी। रानी यह देख वहां से फ़ौरन उठकर किसी गुलाम को उसके उठा लाने का हुक्म देने के लिए चली गई। इतने में कौओं ने झट अंगूठी को बगैर किसी को मालूम हुए ले लिया और राजा की लड़की के पास दाखिल किया। राजा की लड़की को बड़ी खुशी हुई कि अब वह फिर अपनी प्यारी चिड़ियों से बखूबी बात चीत कर सकती थी और जब उसने ज़हरीले गोंद और उसका असर रफ़ा करने वाले ज़हरमोहरे का हाल सुना, उस चपाती के खाने में कुछ भी खौफ़ न किया और खूब अच्छी तरह खा कर अपने विस्तर पर सो रही।

सुबह को बब्बू देखने आया कि लड़की मरी या नहीं और उसे बड़ा तअज्जुब हुआ जब कि उसको ज़हर देने के बाद भी जीता पाया। वह वहां से चुपका ही लौट गया और रानी से जो कि उस वक्त बाग़ में अपनी खिड़की के नीचे अंगूठी की तलाश में लगी हुई थी हाल बयान किया। इधर तोते ने एक कौए को रानी और बब्बू की बात चीत सुनने को रवाना किया और कौआ चालाकी से रानी के पास एक झाड़ी में छुपकर उनकी गुत्फगू सुनने लगा। रानी को लड़की के ज़हर के असर से बच जाने पर बहुत ही तअज्जुब हुआ और बोली कि लड़की के पास ज़रूर कोई तिलिस्म या जादू होगा और बब्बू को हुक्म दिया कि “कुछ हो, तू आज रात को उसे महल के उत्त छज्जे पर ले जाकर जो कि ऐन झील के ऊपर है वहां से नीचे झील में ढकेल दे और गर्दन में एक पत्थर बांध


दीजो जिससे जल्द डूब जाय।। सुबह को मशहूर कर देंगे कि लड़की रात में मर गई और झूठ मूठ की लाश बना कर नदी में बहा देंगे।

कौए ने रानी का यह बुरा इरादा अपनी साथिन चिड़ियों को फ़ौरन सुना दिया और वह सब राजा की लड़की से कहने के पेश्तर ही ताकि वह ख़ौफ़ न खा जाय, आपस में सलाह करने लगीं। जब उन्होंने अपनी तजवीज़ों को पक्का कर लिया, तब उसको भी रानी का इरादा जाहिर किया। पर उसको पूरा इतमीनान करा दिया कि कुछ दहशत की बात नहीं है, वह उसकी जान बचाने की पूरी कोशिश करेगी।

महल की दीवार के बाहरी तरफ़ ठीक झील के किनारे पर एक झोपड़ी में एक गरीब माहीगीर यानी धींवर रहता था जो अपना जाल महल की दीवार के ऐन नीचे डाला करता था। राजा की लड़की जब कभी अपने साथियों के साथ महल के छज्जे पर बैठती थी उसके मछली पकड़ने का तमाशा देखा करती थी और अकसर उसकी मछलियां ख़रीद कर एक रस्सी से ऊपर खींच लेती थी और उसी तरकीब से उनकी कीमत भी पहुंचा देती थी। इस वजह से उस बूढ़े के साथ उसका गोया एक पूरा दोस्ती का रिश्ता हो गया था। तोता भी इस काम में राजा की लड़की के साथियों में शरीक हुआ करता था क्योंकि उसे मछली का बड़ा शौक था और उसकी और मछुए की खूब अच्छी तरह मुलाक़ात थी। पस इस बुड्ढे के पास तोता और दोनों कौए अंगूठी को लेकर पहुंचे और अंगूठी उसकी उंगली में पहना कर जिससे कि वह उनकी बोली समझ सके उससे बोले कि “ऐ नेक बुड्ढे, राजा की लड़की की जो कि तेरी इतनी बड़ी मुरब्बी है आज जान ख़तरे में है और उसके बचाने के लिये तेरी मदद

दरकार है"। उस नेक आदमी ने फ़ौरन वादा किया कि वह राजा की लड़की के बचाने के लिये जो काम होगा बड़ी खुशी से करेगा, बल्कि अपनी जान का भी कुछ ख़याल न करेगा। तब उसको सब हाल सुना दिया गया और उसने तोते के सब हुक्मों को बजा लाने का इकरार किया।

तोते और माहीगीर ने अब इस बात का मंसूबा किया कि राजा को लड़की को बचाने की सब से अच्छी क्या तरकीब होगी। बुड्ढे ने कहा कि "मैं अपना जाल ठीक छज्जे के नीचे डाल दूंगा ताकि जिस वक्त लड़की गिराई जाय, उसी में आ जाय" और उसे डूबने से बचाने के लिये जो तजवीज़ सोची गई वह यह थी कि माहीगीर ने एक पुराने जाल से बहुत से काग (यानी एक निहायत हल्की लकड़ी के छोटे २ टुकड़े जो कि अकसर जालों में लगाये जाते हैं) निकाले और तोते और कौओं से कहा कि "इन को एक एक करके राजा की लड़की के पास ले जाओ और उससे कहो कि इनके छोटे २ हिस्से कर के एक डोरी में पिरो लेवे और फिर उस डोरी को अपने बदन पर चारो तरफ़ इस तौर से लपेट ले कि उसकी एक जाकट बन जाय। इस जाकट के बाइस राजा की लड़की का बदन पानी के ऊपर तैरता रहेगा, बावजूद उस पत्थर के जो कि रानी और बब्बू को उसकी गर्दन से बांधने का मंसूबा करते हुए तुमने सुना है"। सिवा इसके माहीगीर ने एक और भी हिफाज़त का काम किया कि एक तेज़ चाकू तोते के ज़रिये से राजा की लड़की के पास पहुंचा दिया और कहला भेजा कि वह उसे अपनी आस्तीन के अन्दर छिपा रखे और अपनी गर्दन से पत्थर काटने के काम में लावे।

जब यह तजवीज़ तै हो गई, तोता मय जादू की अंगूठी और काग के टुकड़े के राजा की लड़की के पास पहुँचा और

कौए भी जितने काग उनसे चल सके लेकर उसके पीछे हुए और वह तीनों वफ़ादार चिड़ियां लड़की के पास कागों के पहुंचाने में बराबर लगी रहीं जब तक कि उसके पास उतने काग हो गये जितने दरकार थे। राजा की लड़की ने कागों को काट २ कर एक मज़बूत डोरी में पिरो लिया और फिर माहीगीर ने जैसा कहला भेजा था वैसा ही किया, यानी उनको अपने बदन से खूब लपेट लिया और ऊपर से कुर्ती पहन ली। जब यह सब हो चुका शाम का अंधेरा चारों तरफ़ छा गया था और बब्बू ने आकर राजा की लड़की से कहा "मेरे साथ आओ"।

बब्बू राजा की लड़की को हाथ पकड़ कर बाग़ के रास्ते झील के ऊपर वाले छज्जे पर ले गया। बाग़ में होकर जब वह दोनों जा रहे थे उसने एक बड़ा पत्थर उठा कर एक रूमाल में लपेट लिया और जब वह छज्जे पर पहुंचे झट वह रूमाल राजा की लडकी की गर्दन में बांध दिया और साथ ही मुंह पर हाथ रख दिया ताकि लड़की चिल्ला न सके और बस उसे उठा कर झील में गिरा दिया। लेकिन वह इसके लिये पेश्तर ही से तैयार थी। जिस वक्त कि बब्बू ने उसे नीचे गिराने को उठाया उसने एक लमहे में चाकु से रूमाल को काट डाला और पत्थर और वह दोनों पानी में एक साथ ही गिरे। पत्थर तो झील की थाह में चला गया मगर राजा की लड़की अपनी ज़ाकट की बदौलत पानी की सतह पर तैरती रही। इस वक्त बिलकुल अंधेरा था। बब्बू ने जो उसके गिरने की आवाज़ सुनी और उसके बाद पूरी ख़ामोशी देखी समझा कि लड़की झील की तह में दाख़िल हुई और रानी को अपनी बदकारी का हाल सुनाने चला गया। उधर ऐन छज्जे के नीचे माहीगीर अपनी कश्ती लिये छुपा हुआ था
और उसका जाल ऐसे तौर से फैला हुआ था कि जो चीज़ छज्जे से गिरे उसी के अन्दर आ जावे। पर जो उसने पानी में आवाज़ सुनी आहिस्ता से जाल खींचना शुरू किया और थोड़े ही अर्से में तैरती हुई राजा की लड़की को कश्ती पर लाकर उसमें बैठा लिया और वहां से चुपके ही नाव को अपनी झोपड़ी तक ले जाकर लड़की को उसके अन्दर पहुंचा दिया। उसे वह एक छोटे से कोठे में ले गया जहाँ कि एक आराम का बिस्तर उसके लिए सजा हुआ था और जहाँ कि तोता और दोनों कौए पहले ही से पहुंच गये थे। यह वफ़ादार चिड़ियां अंधेरे में राजा की लड़की के साथ छज्जे तक आई थीं और जब उन्होंने देख लिया कि लड़की कश्ती में साफ़ पहुंच गई वह वहां से उड़ कर माहीगीर की झोपड़ी में आ गई थीं। राजा की लड़की फ़ौरन बिस्तर पर चली गई क्योंकि उसके कपड़े सब भीग गये थे और ज्यों ही वह विस्तर पर पहुंची माहीगीर उसके वास्ते एक रिकाबी में कुछ रोटी और मछली खाने को ले आया जिसमें से थोड़ी आप खा कर और थोड़ी सी अपनी तीनों चिड़ियों को दे कर राजा की लड़की सो रही।