जायसी ग्रंथावली/पदमावत/५३. गोरा बादल युद्ध खंड

जायसी ग्रंथावली
मलिक मुहम्मद जायसी, संपादक रामचंद्र शुक्ल

वाराणसी: नागरीप्रचारिणी सभा, पृष्ठ २४७ से – २५३ तक

 

(५३) गोरा बादल युद्ध खंड

मतैं बैठि बादल औ गोरा। सो मत कीज परै नहिं भोरा॥
पुरुष न करहिं नारि मति काँची। जस नौशाबा कीन्ह न बाँची॥
परा हाथ इसकंदर बैरी। सो कित छोड़ि कै भई बँदेरी॥
सुबुधि सों ससा सिंघ कहँ मारा। कुबुधि सिंघ कूआँ परि हारा॥
देवहि छरा आइ अस आँटी। सज्जन कंचन, दुर्जन माटी॥
कंचन जुरै भए दस खंडा। फूटि न मिलै काँच कर भंडा॥
जस तुरकन्ह राजा छर साजा। तस हम साजि छोड़ावहिं राजा॥
पुरुष तहाँ पै करै छर जहँ बर किए न आँट॥
जहाँ फूल तहँ फूल है, जहाँ काँट तहँ काँट॥ १ ॥
सोरह सै चंडोल सँवारे। कुँवर सजोइल कै बैठारे॥
पदमावति कर सजा बिवानू। बैठ लोहार न जानै भानू॥
रचि बिवान सो साजि सँवारा। चहुँ दिसि चँवर करहिं सब ढारा॥
साजि सबै चंडोल चलाए। सुरँग ओहार, मोति बहु लाए॥
भए सँग गोरा बादल बली। कहत चले पदमावति चली॥
हीरा रतन पदारथ झूलहि। देखि बिवान देवता भूलहिं॥
सोरह सै सँग चलीं सहेली। कँवल न रहा, और को बेली? ॥
राजहि चलीं छोड़ावै तहँ, रानी होइ ओल।
तीस सहस तुरि खिंची सँग, सोरह सै चंडोल॥ २ ॥


(१) मतैं = सलाह करते हैं। कीज = कीजिए। नौशाबा = सिकंदरनामा के अनुसार एक रानी जिसके यहाँ सिकंदर पहले दूत बनकर गया था। उसने सिकंदर को पहचानकर भी छोड़ दिया। पीछे सिकंदर ने उसे अपना अधीन मित्र बनाया और उसने बड़ी धूमधाम से सिकंदर की दावत कीं। देवहि छरा = राजा को उसने (अलाउद्दीन ने) छला। आइ अस आँटी = इस प्रकार अंटी पर चढ़कर अर्थात् कब्जे में आकर भी। भंडा = भाँड़ा, बरतन। न आँट = नहीं पार पा सकते। (२) चंडोल = पालकी। कुँवर = राजपूत सरदार। सजोइल = हथियारों से तैयार। बैठ लोहार...भानू = पद्मावती के लिये जो पालकी बनी थी उसके भीतर एक लुहार बैठा; इस बात का सूर्य को भी पता न लगा। ओहार = पालकी ढाँकने का परदा। कँवल...बेली = जब पद्मावती ही नहीं रही तब और सखियों का क्या? ओल होइ = ओल होकर, इस शर्त पर बादशाह के यहाँ रहने जाकर कि राजा छोड़ दिए जायँ (कोई व्यक्ति जमानत के तौर पर यदि रख लिया जाता है तो उसे ओल कहते हैं) ।

तुरि = घोड़ियाँ।

राजा बँदि जेहि कै सौंपना। गा गोरा तेहि पहँ आगमना॥
टका लाख दस दीन्ह अँकोरा। बिनती कीन्हि पायँ गहि गोरा॥
बिनवा बादशाह सौं जाई। अब रानी पदमावति आई॥
बिनती करै, आइ हौं दिल्ली। चितउर के मोहि स्यों है किल्ली॥
बिनती करै, जहाँ है पूंजी। सब भँडार कै मोहि स्यो कूँजी॥
एक घरी जौ अज्ञा पावौं। राजहि सौंपि मँदिर महँ आवौं॥
तब रखवार गए सुलतानी। देखि अँकोर भए जस पानी॥
लीन्ह अँकोर हाथ जेहि, जीउ दीन्ह तेहि हाथ।
जहाँ चलावै तहँ चलै, फेरे फिरे न माथ॥ ३ ॥
लोभ पाप कै नदी अँकोरा। सत्त न रहै हाथ जौ बोरा॥
जहँ अँकोर तहँ नीक न राजू। ठाकुर केर बिनासै काजू॥
भा जिउ घिउ रखवारन्ह केरा। दरब लोभ चंडोल न हेरा॥
जाइ साह आगे सिर नावा। ए जगसूर! चाँद चलि आवा॥
जावत हैं सब नखत तराईं। सोरह सै चँडोल सो आईं॥
चितउर जेति राज कै पूँजी। लेइ सो आइ पदमावति कूँजी॥
बिनती करै जोरि कर खरी। लेइ सौंपौं राजा एक घरी॥
इहाँ उहाँ कर स्वामी! दुऔ जगत मोहिं आस।
पहिले दरस देखावहु, तौ पठवहु कबिलास॥ ४ ॥
आज्ञा भई, जाइ एक घरी। छूँछि जो घरी फेरि बिधि भरी॥
चलि बिवान राजा पहँ आवा। सँग चंडोल जगत सब छावा॥
पदमावति के भेस लोहारू। निकसि काटि वँदि कीन्ह जोहारू॥
उठा कोपि जस छूटा राजा। चढ़ा तुरंग, सिंघ अस गाजा॥
गोरा बादल खाँड़ै काढे। निकसि कुँवर चढ़ि चढ़ि भए ठाढ़े॥
तीख तुरंग गगन सिर लागा। केहुँ जुगुति करि टेकी बागा॥
जो जिउ ऊपर खड़ग सँभारा। मरनहार सो सहसन्ह मारा॥
भई पुकार साह सौं, ससि औ नखत सो नाहिं।
छरकै गहन गरासा, गहन गरासे जाहिं॥ ५ ॥


(३) सौंपना = देखरेख में, सुपुर्दगी में। अगमना = आगे, पहले। अँकोर = भेंट, घूस, रिश्वत। स्यो = साथ, पास। किल्ली = कुँजी। पानी भए = पिघल कर नरम हो गए। हाथ जेहि = जिसके हाथ से। (४) घिउभा = पिघल कर नरम हो गया। न हेरा = तलाशी नहीं ली, जाँच नहीं की। इहाँ उहाँ कर स्वामी = मेरा पति राजा। कबिलास = स्वर्ग, यहाँ शाही महल। (५)छूंछि...भरी = जो घड़ा खाली था ईश्वर ने फिर भरा, अर्थात् अच्छी घड़ी फिर पलटी। जस = जैसे ही। जिउ उपर = प्राण रक्षा के लिये। छर कै गहन..

जाहि = जिनपर छल से ग्रहण लगाया था वे ग्रहण लगाकर जाते हैं।

लेइ राजा चितउर कहँ चले। छूटेउ सिंघ मिरिग खलभले॥
चढ़ा साहि चढ़ि लागि गोहारी। कटक असूझ परी जग कारी॥
फिरि गोरा बादल सौं कहा। गहन छूटेि पुनि चाहै गहा॥
चहुँ दिसि आवै लोपत भानू। अब इहै गोइ, इहै मैदानू॥
तुइ अब राजहिं लेई चलु गोरा। हौं अब उलटि जुरौं भा जोरा॥
वह चौगान तुरुक कस खेला। होइ खेलार रन जुरौं अकेला॥
तौ पावौं बादल अस नाऊँ। जो मैदान गोइ लेइ जाऊँ॥
आजु खड़ग चौगान गहि, करौं सीस रिपु गोइ।
खेलों सौंह साह सौं, हाल जगत महँ होइ॥ ६ ॥
तब अगमन होइ गोरा मिला। तुइ राजहि लेइ चलु, बादला! ॥
पिता मरै जो सँकरे साथा। मीचु न देइ पूत कै माथा॥
मैं अब आउ भरी औ भूँजी। का पछिताव आउ जौ पूजी? ॥
बहुतन्ह मारि मरौं जौ जूझी। तुम जिनि रोएहु तौ मन बूझी॥
कुँवर सहस सँग गोरा लीन्हे। और बीर बादल सँग कीन्हे॥
गोरहिं समदि मेघ अस गाजा। चला लिए आगे करि राजा॥
गोरा उलटि खेत भा ठाढ़ा। पूरुष देखि चाव मन बाढ़ा॥
आव कटक सुलतानी, गगन छपा मसि माँझ।
परति आव जग कारी, होत आव दिन साँझ॥ ७ ॥
होइ मैदान परी अब गोई। खेल हार दहुँ काकरि होई॥
जोबन तुरी चढ़ी जो रानी। चली जीति यह खेल सयानी ॥
कटि चौगान, गोइ कुच साजी। हिय मैदान चली लेइ बाजी॥
हाल सो करै गोइ लेइ बाढ़ा। कूरी दुवौ पैज कै काढ़ा॥
भइँ पहार वै दूनौ कूरी। दिस्टि नियर, पहुँचत सुठि दूरी॥
ठाढ़ बान अस जानहु दोऊ। सालै हिये न काढ़ै कोऊ॥
सालहिं हिय, न जाहि सहि ठाढ़े। सालहिं मरै चहै अनकाढ़े॥
मुहमद खेल प्रेम कर, गहिर कठिन चौगान।
सीस न दीजै गोइ जिमि, हाल न होइ मैदान॥ ८ ॥


(६) कारी = कालिमा, अंधकार। फिरि = लौटकर, पीछे ताककर। गोइगो = य, गेंद। जोरा = खेल का जोड़ा या प्रतिद्वंद्वी। गोइ लेइ जाऊँ = बल्ले से गेंद निकाल ले जाऊँ। सीस रिपु = शत्रु के सिर पर। चौगान = गेंद मारने का डंडा। हाल = कंप,हलचल। (७) अगमन = आगे। सँकरे साथ = संकट की स्थिति में। समदि = विदा लेकर। पूरुष = योद्धा। मसि = अंधकार। (८) गोई = गेंद। खेल = खेल में। काकर = किसकी। हाल करै = हलचल मचावे, मैदान मारे। कूरी = धुस या टीला जिसे गेंद को

लघाना पड़ता है। पैज = प्रतिज्ञा। अनकाढ़े = बिना निकाले।

फिरि आगे गोरा तब हाँका। खेलौं, करौं आजु रन साका॥
हौं कहिए धौलागिरि गोरा। टारौं न टारे, अंग न मोरा॥
सोहिल जैस गगन उपराहीं। मेघ घटा मोहिं देखि बिलाहीं॥
सहसौ सीस सेस सम लेखौं। सहसौ नैन इंद्र सम देखौं॥
चारिउ भुजा चतुरभुज आजू। कंस न रहा और को साजू॥
हौं होइ भीम आजु रन गाजा। पाछे घाल डुंगवै राजा॥
होइ हनुवँत जमकातर ढाहौं। आजु स्वामि साँकरे निबाहीं॥
होइ नल नील आजू हौं, देहुँ समुद महँ मेंड़।
कटक साह कर टेकौं, होइ सुमरु रन बेंड़॥ ९ ॥
ओनई घटा चहुँ दिसि आई। छूटहिं बान मेघ झरि लाई॥
डोलै नाहिं देव अस आदी। पहुँचे आइ तुरुक सब बादी॥
हाथन्ह गहे खडग हरद्वानी। चमकहिं सेल बीजु कै बानी॥
सोझ बान जस आवहि गाजा। बासूकि डरै सीस जनु बाजा॥
नेजा उठे डरै मन इंदू, आइ न बाज जानि कै हिंदू॥
गोरै साथ लीन्ह सब साथी। जस मैमंत सूँड़ बिनु हाथी॥
सब मिलि पहिलि उठौनी कीन्हीं। आवत आइ हाँक रन दीन्हीं॥
रुंड मुंड अब टूटहिं, म्यों बखतर औ कूँड़।
तुरय होहिं बिनु काँधे, हस्ति होहि बिनु सूँड़॥ १० ॥
ओनवत आइ सेन सुलतानी। जानहुँ परलय आव तुलानी॥
लोहे सेन सूझ सब कारी। तिल एक कहूँ न सूझ उघारी॥
खड़ग फोलाद तुरुक सब काढ़े। रे बीजु अस चमकहिं ठाढे॥
पीलवान गज पेले बाँके। जानहुँ काल करहिं दुइ फाँके॥
जनु जमकात करसि सब भवाँ। जिउ लेइ चहहिं सरग अपसवाँ॥
सेल सरप जनु चाहहिं डसा। लेहिं काढ़ि जिउ मुख विष बसा॥


(९) हाँका = ललकारा। गोरा = (क) गोरा सामंत, (ख) श्वेत। सोहिल = सुहैल,अगस्तय, तारा। डुंगवै = टीला या धुस्स। पीछे घालि... राजा = रत्नसेन को पहाड़ या धुस्स के पीछे रखकर। साँकरे = संकट में। निबाही = निस्तार करुँ। बेंड़ = बेंड़ा, आड़ा। (१०) देव = दैत्य। आदी = बिल्कुल, पूरा। बादी = शत्रु। हरद्वानी = हरद्वान की तलवार प्रसिद्ध थी। बानी = कांति, चमक। गाजा = वज्र। इंदू = इंद्र। आइ न बाज...हिन्दू = कहीं हिंदू जानकार मुझ पर न पड़े। गोरै = गोरा ने। उठौनी = पहला धावा। स्यों = साथ। कूंड़ = लोहे की टोपी जो लड़ाई में पहनी जाती है। (११) ओनवत = झुकती और उमड़ती हई। लोह = लोहे से। सूझ = दिखाई पड़ती है। फोलाद = फौलाद। करहि दुइ फाँके = चीरना चाहते हैं। फाँके = टुकड़े। जमकात = यम का खाँड़ा, एक प्रकार का खाँड़ा। भवाँ करहिं =

घूमते हैं। अपसवाँ चहहिं = चल देना चाहते हैं। सेल = बरछे। सरप = सौंप।

तिन्ह सामुहँ गोरा रन कोपा। अंगद सरिस पाँव भुइँ रोपा॥
सुपुरुष भागि न जानै, भुइँ जौ फिरि फिर लेइ।
सूर गहे दोऊ कर, स्वामि काज जिउ देइ॥ ११ ॥
भइ बगमेल, सेल घनघोरा। औ गज पेल, अकेल सो गोरा॥
सहस कुँवर सहसौ सत बाँधा। भार पहार जूझ कर काँधा॥
लगे मरै गोरा के आगे। बाग न मोर घाव मुख लागे॥
जैस पतंग आगि धँसि लेई। एक मुवै, दूसर जिउ देई॥
टूटहिं सीस, अधर धर मारै। लोटहिं कंधहिं कंध निरारै॥
कोई परहिं रुहिर होइ राते। कोई घायल घूमहिं माते॥
कोइ खुरखेह गए भरि भोगी। भसम चढ़ाइ परे होइ जोगी॥
घरी एक भारत भा, भा असवारन्ह मेल।
जूझि कुँवर सब निबरे, गोरा रहा अकेल॥ १२ ॥
गोरै देख साथि सब जूझा। आपन काल नियर भा, बूझा॥
कोपि सिंघ सामुहँ रन मेला लाखन्ह सौं नहिं मरै अकेला॥
लेइ हाँकि हस्तिन्ह कै ठटा। जैसे पवन बिदारै घटा॥
जेहि सिर देइ कोपि करबारू। स्यों घोड़े टूटै असवारू॥
लोटहिं सीस कबंध निनारे। माठ मजीठ जनहु रन ढारे॥
खेलि फाग सेंदूर छिरकावा। चाँचरि खेलि आगि जनु लावा॥
हस्ती घोड़ धाइ जो धूका। ताहि कीन्ह सो रुहिर भभूका॥
भइ अज्ञा सुलतानी, 'बेगि करहु एहि हाथ।
रतन जात है आगे, लिए पदारथ साथ"॥ १३ ॥
सबै कटक मिलि गोरहि छेंका। गूँजत सिंघ जाइ नहिं टेका॥
जेहि दिस उठै सोइ जनु खावा। पलटि सिंघ तेहि ठावँ न आबा॥
तुरुक बोलावहिं, बोलै बाहाँ। गोरै मीचु धरी जिउ माहाँ॥


भुइँ लेइ = गिर पड़े। सूर = शूल, भाला। (१२) बगमेल = घोड़ों का बाग से बाग मिलाकर चलाना, सवारों की पंक्ति का धावा। अधर धर मारै = धड़ या कबंध अधर में बार करता है। कंध = धड़। निरारै = बिल्कुल, यहाँ से वहाँ तक (अवध)। भोगी = भोग-विलास करनेवाले सरदार थे। भारत = घोर युद्ध। कुँवर = गोरा के साथी राजपूत। निबरे = समाप्त हुए। (१३ ) गोरै = गोरा ने। करवारू = करवाल, तलवार। स्यो = साथ। टूटै = कट जाता है। निनारे = अलग। धूका = झुका। रुहिर = रुधिर से। भभूका = अंगारे सा लाल। एहि हाथ करहु = इसे पकड़ो। (१४) गूँजत = गरजता हुआ। टेका = पकड़ा। पलटि सिंह...आवा =जहाँ से आगे बढ़ता है वहाँ पीछे हटकर नहीं आता। बोलै बाहाँ = (वह मुंह से नहीं बोलता है) उसकी

बाहें खड़कती हैं। गोरै = गोरा ने।

मुए पुनि जूझि जाज, जगदेऊ। जियत न रहा जगत मह केऊ॥
जिनि जानहु गोरा सो अकेला। सिंघ के मोंछ हाथ को मेला॥ ?
सिंघ जियत नहिं आपु धरावा। मुए पाछ कोई घिसियावा॥
करै सिंघ मुख सौहहि दीठी। जौ लगि जियै देइ नहिं पीठी॥
रतनसेन जो बाँधा, मसि गोरा के गात।
जौ लगि रुधिर न धोवौं, तौ लगि होइ न रात॥ १४ ॥
सरजा बीर सिंघ चढ़ि गाजा। आइ सौंह गोरा सौं बाजा॥
पहलवान सो बखाना बली। मदद मीर हमजा औ अली॥
लंधउर धरा देव जस आदी। और को बर बाँधै, को बादी? ॥
मदद अयूब सीस चढ़ कोपे। महामाल जेइ नावँ अलोपे॥
औ ताया सालार सो आए। जेइ कौरव पंडव पिंड पाए॥
पहुँचा आइ सिंघ असवारू। जहाँ सिंघ गोरा बरियारू॥
मारेसि साँग पेट महँ धँसी। काढ़ेसि हुमुकि आँति भुइँ खसी॥
भाँट कहा, धनि गोरा! तू भा रावन राव।
आँति समेटि बाँधि कै, तुरय देत है पव॥ १५ ॥
कहेसि अंत अब भा मुइँ परना। अंत त खसे खेह सिर भरना॥
कहि कै गरजि सिंघ अस धावा। सरजा सारदूल पहँ आवा॥
सरजै लीन्ह साँग पर घाऊ। परा खड़ग जनु परा निहाऊ॥
बज्र क साँग, बज्र कै डाँड़ा। उठा आगि तस बाजा खाँड़ा॥
जानहु बज्र बज्र सौं बाजा। सब ही कहा परी अब गाजा॥
दूसर खड़ग कंध पर दीन्हा। सरजे ओहि ओड़न पर लीन्हा॥


जाज, जगदेऊ = जाजा और जगदेव कोई ऐतहासिक वीर जान पड़ते हैं। घिसियावा = घिसियावे,घसीटे। रतनसेन जो...गात = रतनसेन जो बाँधे गए इसका कलंक गोरा के शरीर पर लगा हुआ है। रुहिर = रुधिर से। रात = लाल अर्थात् कलंकरहित।

(१५) मीर हमजा = मीर हमजा मुहम्मद साहब के चचा थे जिनकी वीरता की बहुत सी कल्पित कहानियाँ पीछे से जोड़ी गई। लँधउर = लंधौर देव नामक एक कल्पित हिंदू राजा जिसे मीर हमजा ने जीतकर अपना मित्र बनाया था; मीर हमजा के दास्तान में यह बड़े डील डौल का और बड़ा भारी वीर कहा गया है। मदद...अली = मानों इन सब वीरों की छाया उसके ऊपर थी। बर बाध = हठ या प्रतिज्ञा करके सामने आए। वादी = शत्रु। महामाल = कोई क्षत्रिय राजा वीर। जेइ = जिसने। सालार = शायद सालार मसऊद गाजी (गाजी मियाँ)। बरियारू = बलवान्। हुमुकि = जोर से। काढ़ेसि हुमुकि = सरजा ने जब भाला जोर से खींचा। खसी = गिरी। (१६) सरजै = सरजा ने। जनु परा निहाऊ = मानो निहाई पर पड़ा (अर्थात् साँग को न काट सका)। डाँड़ा = दंड या खंग। ओड़न = ढाल। कूँड़ = लोहे

का टोप। गुरुज = गर्ज, गदा।

तीसर खड़ग कूँड़ पर लावा। काँध गुरुज हुत, घाव न आवा॥
तस मारा हठि गोरे, उठी बज्र कै आगि।
कोइ नियरे नहिं आवै, सिंघ सदूरहि लागि॥ १६ ॥
तब सरजा कोपा बरिबंडा। जनहु सदूर केर भुजदंडा॥
कोपि गरजि मारेसि तस बाजा। जानहु परी टूटि सिर गाजा॥
ठाँठर टूट, फूट सिर तासू। स्यों सुमेरु जनु टूट अकासू॥
धमकि उठा सब सरग पतारू। फिरि गइ दीठि, फिरा संसारू॥
भइ परलय अस सबही जाना। काढ़ा खरग सरग नियराना॥
तस मारेसि स्यों घोड़े काटा। धरती फाटि, सेस फन फाटा॥
जो अति सिह बरी होइ आई। सारदूल सौ कौनि बड़ाई? ॥
गोरा परा खेत महँ, सुर पहुँचावा पान।
बादल लेइगा राजा, लेइ चितउर नियरान॥ १७ ॥














काँध गुरुज हुत = कंधे पर गुर्ज था (इससे)। लागि = मुठभेड़ या यद्ध में।

(१७) बरिबडा = बलवान। सदूर = शार्दूल। तस बाजा = ऐसा आघात पड़ा। ठाँठर = ठठरी। फिरा संसारू = आँखों के सामने संसार न रह गया। स्यों = सहित। सुर पहुँचावा पान = देवताओं ने पान का बीड़ा अर्थात् स्वर्ग का निमंत्रण दिया।