चंद्रकांता संतति भाग 4
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १०१ से – १०३ तक

 

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इस जगह हमें भूतनाथ के सपूत लड़के तथा खुदगर्ज और मतलबी ऐयार नानक का हाल पुनः लिखना पड़ा।

हम ऊपर के किसी बयान में लिख आये हैं कि जिस समय नानक अपने मित्र की ज्याफत में तन, मन, धन और आधे शरीर से लौलीन हो रहा था, उसी समय उस पर वज्रपात हुआ, अर्थात् एक नकाबपोश उसके बाप की दुर्दशा का हाल बताकर उसे अंधे कुएँ में धकेल गया। लोग कहते हैं कि उसे अपने बाप से कुछ भी मुहब्बत न थी, हाँ अपनी माँ को कुछ-कुछ जरूर चाहता था, जिस पर उसकी नई-नवेली दुलहिन ने उसे कुछ ऐसा मुट्ठी में कर लिया था कि उसी को सब-कुछ तथा इष्टदेव समझ बैठा था और उसकी उपासना से विमुख होना हराम समझता था। यद्यपि वह अपने बाप की कुछ परवाह नहीं करता था और न उसको उससे कुछ प्रेम ही था, मगर वह अपने बाप से डरता उतना ही था, जितना लम्पट लोग काल से डरते हैं। जिस समय वह लौटकर घर आया, उसकी अनोखी स्त्री थकावट और सुस्ती के कारण चारपाई का सहारा ले चुकी थी ! उसने नानक से पूछा, "कहो क्या मामला है ? तुम कहाँ गये थे?"

नानक--(धीरे से) अपने नापाक बाप के आफत में फंसने की खबर सुनने गया था। अच्छा होता, जो मुझे उसके मौत की खबर सुनने में आती और मैं सदैव के लिए निश्चिन्त हो जाता।

स्त्री--(आश्चर्य से) अपने प्यारे ससुर के बारे में ऐसी बात तो आज तक तुम्हारी जबान से कभी सुनने में न आई थी!

नानक--क्योंकर सुनने में आती, जबकि अपने इस सच्चे भाव को मैं आज तक मंत्र की तरह छिपाए हुए था ! आज यकायक मेरे मुंह से ऐसी बात तुम्हारे सामने निकल गई, इसके बाद फिर कभी कोई शब्द ऐसा मेरे मुंह से न निकलेगा जिससे कोई समझ जाये कि मैं अपने बाप को नहीं चाहता। तुम्हें मैं अपनी जान समझता हूँ और आशा है कि इस बात की, जो यकायक मेरे मुंह से निकल गई है तुम भी जान ही की तरह हिफाजत करोगी जिसमें कोई सुनने न पावे। अगर कोई सुन लेगा तो मेरी बड़ी खराबी होगी क्योंकि मैं अपने बाप को यद्यपि मानता तो कुछ नहीं हूँ, मगर उससे डरता बहुत हूँ, क्या कि वह बड़ा ही शैतान और भयानक आदमी है। यदि वह जान जायेगा कि मैं उसके साथ खुदगर्जी का बरताव करता हूँ, तो वह मुझे जान से ही मार डालेगा।

स्त्री--नहीं-नहीं, मैं ऐसी बात कभी किसी के सामने नहीं कह सकती, जिससे तम पर मुसीबत आये। (हँसकर) हाँ, अगर तुम मुझे कभी रंज करोगे, तो जरूर प्रकट कर दूंगी।

नानक--उस समय मैं भी लोगों से कह दूंगा कि मेरी स्त्री व्यभिचारिणी हो गई है, मुझ पर तूफान जोड़ती है। भला दुनिया में कोई भी ऐसा आदमी है, जो अपने बाप को न चाहता हो ? यदि ऐसा होता तो क्या मैं चुपचाप बैठा रह जाता ! मगर नहीं, मैं अपने बाप को छुड़ाने के लिए इसी वक्त जाऊँगा और इस उद्योग में अपनी जान तक लड़ा दूंगा।

स्त्री--(मन में) ईश्वर करे, तुम किसी तरह इस शहर से बाहर तो निकलो या किसी दूसरी दुनिया में चले जाओ। (प्रकट) जब वह फँस ही चुका है तो चुपचाप बैठे रहो, समय पड़ने पर कह देना कि मुझे खबर ही नहीं थी!

नानक--नहीं, मैं ऐसा कदापि नहीं कह सकता क्योंकि गोपीकृष्ण (नकाबपोश) जिससे इस बात की मुझे खबर मिली है बड़ा दुष्ट आदमी है, समय पड़ने पर वह अवश्य कह देगा कि मैंने इस बात की इत्तिला नानक को दे दी थी!

स्त्री--अच्छा, तुम खुलासा कह जाओ कि क्या-क्या खबर सुनने में आई है?

नानक ने नकाबपोश की जबानी जो कुछ सुना था, अपनी प्यारी स्त्री से कहा। इसके बाद उसे बहुत कुछ समझा-बुझाकर सफर की पूरी तैयारी करके अपने बाप को छुड़ाने की फिक्र में वहाँ से रवाना हो गया।

भूतनाथ के संगी-साथी लोग मामूली न थे, वल्कि बड़े ही बदमाश लड़ाके शैतान और फसादी लोग थे तथा चारों तरफ ऐसे ढंग से घूमा करते थे कि समय पड़ने पर जब भूतनाथ उन लोगों की खोज करता, तो विशेष परिश्रम किए बिना ही उनमें से कोई न कोई मिल ही जाता था, इसके अतिरिक्त भूतनाथ ने अपने लिए कई अड्डे भी मुकर्रर कर लिए थे, जहाँ उसके संग-साथियों में से कोई न कोई अवश्य रहा करता था और उन अड्डों में कई अड्डे ऐसे थे जिनका ठिकाना नानक को मालूम था। ऐसा ही एक अड्डा गयाजी से थोड़ी दूर पर बराबर की पहाड़ी के ऊपर था, जहाँ अपने बाप का पता लगाता हुआ नानक जा पहुँचा। उस समय भूतनाथ के साथियों में से तीन आदमी वहां मौजूद थे।

नानक ने उन लोगों से अपने बाप का हाल पूछा और जो कुछ उन लोगों को मालूम था उन्होंने कहा। इत्तिफाक से उसी समय मनोरमा को लिए हुए भूतनाथ भी वहाँ आ पहुंचा और अपने सपूत लड़के को देखकर बहुत खुश हुआ। भूतनाथ ने मनोरमा को तो अपने आदमियों के हवाले किया और नानक का हाथ पकड़ के एक किनारे ले जाने के बाद जो कुछ उस पर बीता था, सब ब्यौरेवार कह सुनाया।

नानक--(अफसोस के साथ मुंह बनाकर) अफसोस ! आपने इन बातों की मुझे कुछ भी खबर न दी ! अगर गोपीकृष्ण आपकी परेशानी का कुछ हाल मुझसे न कहते तो मुझे गुमान भी न होता।

भूतनाथ--खैर, जो कुछ होना था वह हो गया, अब तुम मनोरमा को लेकर वहाँ जाओ, जहाँ तुम्हारी माँ रहती है और जिस तरह हो सके, मनोरमा से पूछ कर बलभद्रसिंह का पता लगाओ, मगर एक आदमी को साथ जरूर लिए जाओ, क्योकि आज कल तुम्हारी माँ जिस ठिकाने रहती है यद्यपि वहाँ का हाल तुमसे हमने कह दिया मगर रास्ता इतना खराब है कि बिना आदमी साथ लिए तुम्हें कुछ भी पता न लगेगा।

नानक--जो आज्ञा, तो क्या इस समय आप सीधे रोहतासगढ़ जायेंगे?

भूतनाथ--हाँ जरूर जायेंगे, क्योंकि ऐसे समय में शेरअलीखाँ से मिलना आवश्यक है, मगर जब तक हम न आवें, तुम अपनी माँ के पास रहना और जिस तरह हो सके, बलभद्रसिंह का पता लगाना।

इसके बाद नानक को लिए हुए भूतनाथ फिर अपने आदमियों के पास चला आया और एक आदमी को धन्नू सिंह का पता बताकर (जिसे कैद करके कहीं रख आया था, कहा कि तुम धन्नूसिंह को यहाँ से लाकर हमारे घर पहुंचा दो और फिर इसी ठिकाने आकर रहो।

इन कामों से छुट्टी पाने के बाद भूतनाथ रोहतासगढ़ में शेरअलीखां के पास गया और वहाँ जो कुछ हुआ, सो हमारे प्रेमी पाठक पढ़ चुके हैं।