चंद्रकांता संतति भाग 3
देवकीनंदन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १३७ से – १३९ तक

 
3

इस तालाब के बीच वाले तिलिस्मी मकान में कमलिनी दस लौंडियों के साथ रहती थी। नौकर और सिपाही भी उसके साथ बहुत थे मगर उनके रहने के लिए स्थान इस मकान में नहीं था, वे लोग काम-काज किया करते थे और समय पड़ने पर जान देने के लिए इकट्ठे हो जाते थे, मगर कमलिनी और तारा को छोड़ के कोई यह भी नहीं जानता था कि वे लोग कहाँ रहते हैं और क्या करते हैं। उन सिपाहियों में से कई तो मायारानी के कैदी हो गये थे और जो दस-बारह बचे थे सो इधर-उधर घूम-फिरकर कमलिनी का काम कर रहे थे। उन्हीं बचे हुए सिपाहियों में से चार-पांच सिपाही इस समय मकान में मौजूद थे जो किसी काम के सम्बन्ध में तारा के पास आये थे और दुश्मनों का हंगामा देखकर बाहर न जा सके थे। कमलिनी की लौंडियाँ जितनी थीं, वे सब जमानिया से कमलिनी के साथ उस समय आई थी जब मायारानी से लड़ कर कमलिनी अलग हो गई थी। इन लौंडियों में के एक लौंडी, जिसका नाम भगवानी था, बड़ी ही शैतान और दिल की खोटी थी। यद्यपि वह जाहिर में अपने को बहुत ही बनाये हुए रहती थी और बात-बात में खैरखाही जताती थी, मगर वास्तव में वह ऐसी काली नागिन थी जिसके काटे का कोई मन्त्र ही न था। उसे रुपये की लालच हद से ज्यादा थी। मगर इतने दोष पहने पर भी वह अपनी चालाकी से अपने मालिक तथा तारा को खुश रखती थी और उन दोनों के आगे अपने अवगुण जाहिर नहीं होने देती थी। यही लौंडी प्रायः कैदियों को खाना-पानी भी पहुँचाया करती थी।

कमलिनी के कैदखाने को पहले माधवी और शिवदत्त ने आबाद किया था और उसके बाद मनोरमा इस कैदखाने में आई थी। मायारानी की सखी होने के कारण मनोरमा भगवानी को बखूबी जानती थी और इसी तरह भगवानी भी उसे अच्छी तरह पहचानती थी। खाना-पानी पहुँचाने के लिए जब भगवानी कैदखाने में जाती थी तो मनोरमा उसे अपनी लच्छेदार बातों में घड़ियों उलझा कर भविष्य के लिए सब्जबाग दिखाती और तरह-तरह की उम्मीदों से ललचाया करती यहाँ तक कि उसे तीन लाख रुपये की लालच दिखाकर उसने अपनी, माधवी और शिवदत्त की मदद पर राजी कर लिया। माधवी दवा-इलाज की बदौलत यहाँ आकर तन्दुरुस्त हो गई थी।

भगवानी इस बात पर राजी हो गई कि मौका मिलने पर कैदियों की मदद करे और जिस तरह हो कैदियों को तहखाने के बाहर निकाल दे। भगवानी ने माधवी, शिवदत्त और मनोरमा से कहा कि तुम लोगों को छुड़ाने के लिए मुझे बहुत कुछ उद्योग करना पड़ेगा और तुम्हारे नौकरों तथा सिपाहियों से मिलने और उनसे कुछ काम लेने की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए उचित होगा कि तुम लोग मुझे एक परवाना लिख दो जिसमें तुम लोगों के आदमी मुझे तुम्हारा मददगार समझें और जो कुछ मैं कहूँ करें और खर्च के लिए आवश्यकतानुसार मुझे दिया भी करें। आखिर तीनों कैदियों ने भगवानी की बात मंजूर कर ली। भगवानी मौका पाकर कलम दवात और कागज छिपाकर तहखाने में ले गई और तीनों कैदियों से अपने मतलब की बातें लिखवा लीं।

कमलिनी के जाने के बाद केवल तारा की मौजूदगी में भगवानी को अपना काम करने का बहुत अच्छा मौका मिला। उसने गुप्त रीति से कई नौकर रखे और उनके जरिये से माधवी, मनोरमा और शिवदत्त के आदमियों को, जो छिति र-बितिर हो गये थे, इकट्ठा कराया, तथा इस बात से होशियार कर दिया कि तुम्हारे मालिक लोग यहाँ कैद हैं।

धीरे-धीरे बन्दोबस्त करके भगवानी ने सामान दुरुस्त कर लिया और एक दिन सुरंग की राह से तीनों कैदियों को निकाल बाहर किया। आज जो इतने दुश्मन इस मकान को घेरे हुए हैं या जो कुछ वे लोग कर रहे हैं सब भगवानी ही की करामात है। इस समय भगवानी ही ने किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द कर दिया है। वह चाहती है कि दुश्मन लोग इस मकान में घुस आवें और मनमानी चीजें लूट ले जायें, मगर कीमती चीजें जवाहिर इत्यादि मैं पहले ही से बटोर कर अलग रख दूँ, और जब दुश्मन लोग यहाँ घुस आबें तो उन्हें लेकर चल दूँ। शिवदत्त, माधवी और मनोरमा के हाथ का लिखा हुआ परवाना मौजूद ही है अस्तु कमलिनी के दुश्मनों में मुझे कोई भी नहीं रोक सकता। यह भगवानी का थोड़ा-सा हाल इस जगह हमने इसलिए लिख दिया कि बीती बहुत-सी बातें समझने में हमारे पाठकों को कठिनाई न पड़े।

किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द करके जब भगवानी कैदखाने के बाहर निकली तो कोठरी में ताला लगा दिया और ताली अपने कब्जे में रखी, इसके बाद हाथ में लालटेन लेकर मकान की छत पर चढ़ गई और लालटेन को घुमा-फिराकर दुश्मनों को इशारे ही इशारे में कुछ कहा। मालूम होता है कि पहले ही इस इशारे की बातचीत पक्की हो चुकी थी क्योंकि लालटेन का इशारा पाते ही दुश्मनों ने खुश होकर अपना काम तेजी से करना शुरू किया अर्थात् तालाब पाटने में बहुत फुर्ती दिखाने लगे। एक दफे तो भगवानी के दिल में यह बात पैदा हुई कि चारों पुतलियों को खड़ी करके घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दे, जिसमें दुश्मन लोग यहाँ शीघ्र ही आ जायें, मगर तुरन्त ही उसने अपना इरादा बदल दिया। उसे यह बात सूझ गयी कि यदि मैं घूमते हुए चारों चक्रों को रोक दूँगी तो कमलिनी के नौकरों को तुरत मुझ पर शक हो जायगा और फिर बना-बनाया मामला बिगड़ जायगा।

अब कम्बख्त भगवनिया (भगवानी) इस फिक्र में लगी कि दुश्मनों के घर में आने के पहले ही यहाँ से अच्छी-अच्छी कीमती चीजें बटोर ली जायें और जब दुश्मन इस मकान में घुस आवें, तो ले लपेट के चलती बनूं। शिवदत्त, माधवी और मनोरमा की चिट्ठियों की बदौलत, जो मेरे पास हैं, मुझे कोई भी न रोकेगा।

कमलिनी की लौंडियों और नौकरों को इस बात का गुमान भी न था कि नमकहराम भगवानी यहाँ वालों को चौपट कर रही है या उसने किशोरी, कामिनी और तारा को सुरंग में बन्द कर दिया है। वे लोग यही जानते थे कि किशोरी और कामिनी को किसी खास काम के लिए तारा अपने साथ लेती गई है।

रात बीत गई, दूसरा दिन समाप्त हो गया, बल्कि दूसरे दिन की रात भी गुजर गई और तीसरा दिन आ पहुँचा। आज दुश्मनों का मनोरथ पूरा हुआ अर्थात् उन्होंने तालाव को दो तरफ से बखूबी भर दिया और उस मकान में आ पहुँचे।

लौंडिया और नौकरों की इतनी हिम्मत कहां कि सैकड़ों दुश्मनों का मुकाबला करते। वे लोग चुपचाप अलग हो गये और अपनी तथा अपने मालिक की बदकिस्मती पर विचार करते रहे, जिस पर भी कई बेचारे दुश्मनों के हाथों से मारे गये। दुश्मनों ने मनमानी लूट मचाई और जिसने जो पाया अपने बाप दादे का माल समझ के हथिया लिया। कम कीमत की चीजें या ऐसी चीजें जो वे लोग अपने साथ ले जाना पसन्द नहीं करते थे तोड़ फोड़ बिगाड़ या जलाकर सत्यानाश कर दी गईं और घण्टे ही भर में ऐसी सफाई कर दी गई मानो उन मकान में कोई बसता ही न था या कोई चीज वहाँ थी ही नहीं। इस काम के बाद किशोरी, कामिनी और तारा की खोज शुरू हुई क्योंकि दुष्टों ने जब उस तीनों को वहाँ न पाया तो उन्हें आश्चर्य हुआ और वे इस फिक्र में हुए कि भगवानी से उन तीनों का हाल पूछना चाहिए मगर भगवानी वहाँ कहाँ, वह तो अपना काम करके निकल भागी और ऐसी गायब हुई कि किसी को कुछ गुमान तक न हुआ। हाय, बेचारी किशोरी, कामिनी और तारा का हाल किसीको भी मालूम नहीं, कोई भी नहीं जानता कि वे बेचारियाँ कहाँ और किस आफत में पड़ी हैं या कई दिनों तक दाना पानी न मिलने के कारण जीती भी हैं या मर गईं। उनकी लौंडियों और नौकरों को भी इसका पता नहीं, इसी से वे लोग अपनी जान लेकर जिस तरफ भाग सके भाग गये और इस तिलिस्मी मकान पर दुश्मनों को पूरा-पूरा कब्जा करने दिया, क्योंकि इतने आदमियों का मुकाबला करके जान देना दूसरे उद्योग का भी रास्ता रोकना था।