चन्द्रकांता सन्तति 3/11.2
किशोरी और कामिनी के गायब हो जाने का तारा को बड़ा रंज हुआ यहाँ तक कि उसने अपनी जान की कुछ भी परवाह न की और तिलिस्मी नेजा हाथ में लिए हुए बेधड़क उस सुरंग में घुस गई। यह वही तिलिस्मी नेजा था जो कमलिनी ने उसे दिया था और जिस पर तारा को बहुत भरोसा था।
आज के पहले तारा को इस सुरंग के अन्दर जाने का अवसर नहीं पड़ा था इसलिए वह नहीं जानती कि यह सुरंग कैसी है, अस्तु, उसने तिलिस्मी नेजे का कब्जा दबाया, उसमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई और उसी रोशनी में तारा ने दरवाजे के अन्दर कदम रक्खा। दो ही कदम जाने बाद नीचे उतरने के लिए कई सीढ़ियाँ दिखाई दीं और जब तारा नीचे उतर गई तो सीधी सुरंग मिली।
तारा बड़ी तेजी के साथ बल्कि यों कहना चाहिए कि दौड़ती हुई उस सुरंग में रवाना हुई और जब वह थोड़ी दूर चली गई तो उसे कई आदमी दिखाई पड़े जो आगे की तरफ जा रहे थे मगर अपने पीछे तिलिस्मी नेजे की अद्भुत चमक देखकर रुक गये थे और ताज्जुब भरी निगाहों से उस चमक को देख रहे थे जो पल भर में पास होकर उनकी आँखों में चकाचौंध पैदा कर रही थी।
ये लोग वे ही थे जो किशोरी और कामिनी को जबर्दस्ती पकड़ के ले गये थे। वे लोग बहुत दूर जाने न पाये थे जब तिलिस्मी नेजा लिए हुए तारा लौट आई थी, इस के अतिरिक्त किशोरी और कामिनी को जबर्दस्ती घसीटते लिए जा रहे थे इसलिए तेज भी नहीं चल सकते थे, यही सबब था कि तारा ने बहुत जल्द उन्हें जा पकड़ा। उन लोगों के साथ एक लालटेन थी मगर नेजे की चमक ने उसे बेकार कर दिया था। जब उन लोगों ने दूर से तारा को देखा तो एक दफे उनकी यह इच्छा हुई कि तारा को भी पकड़ लेना चाहिए परन्तु नेजे की अद्भुत करामात ने उनका दिल तोड़ दिया और चमक से उनकी आँखें ऐसी बेकार हुईं कि भागने का भी उद्योग न कर सके।
बात की बात में तारा उन लोगों के पास जा पहुँची जो गिनती में चार थे। यदि तारा के हाथ में तिलिस्मी नेजा न होता तो वे लोग उसे भी अवश्य पकड़ लेते मगर यहाँ तो मामला ही और था। नेजे की चमक से लाचार होकर वे स्वयं दोनों हाथों से अपनी-अपनी आँखें बन्द कर के बैठ गये थे तथा किशोरी और कामिनी की भी यही अवस्था थी।
तारा ने फुर्ती से तिलिस्मी नेजा चारों आदमियों के बदन से लगा दिया जिससे वे लोग काँप कर बात की बात में बेहोश हो गये। अब तारा ने नेजे का मुट्ठा ढीला किया, उसकी चमक बन्द हो गई और उस समय किशोरी और कामिनी ने आँखें खोल कर तारा को देखा।
किशोरी और कामिनी का हाथ रस्सी से बँधा हुआ था जिसे तारा ने तुरत खोल दिया। किशोरी और कामिनी बड़ी मुहब्बत के साथ तारा से लिपट गई और तीनों की आँखों से गर्म आँसू गिरने लगे। तारा ने किशोरी और कामिनी से कहा, "बहिन, तुम जरा यहाँ ठहरो, मैं थोड़ी दूर तक आगे बढ़ कर देखती हूँ कि क्या हाल है, अगर कोई दुश्मन न मिला तो भी सुरंग के दूसरे किनारे पर पहुँच कर दरवाजा बन्द कर देना आवश्यक है। मुझे निश्चय है कि बाहरी दुश्मन इस दरवाजे को नहीं खोल सकते, मगर ताज्जुब है कि कैदियों ने क्योंकर ये दरवाजे खोले।"
किशोरी-ठीक है मगर मेरी राय नहीं है कि तुम आगे बढ़ो। कहीं ऐसा न हो कि दुश्मनों का सामना हो जाय। इससे यही उचित होगा कि यहाँ से लौट चलो और सुरंग तथा तहखाने का मजबूत दरवाजा बन्द करके चुपचाप बैठो फिर जो ईश्वर करेगा देखा जायगा।
तारा-(कुछ सोचकर) बेहतर होगा कि तुम दोनों चली जाओ और सुरंग तथा तहखाने का दरवाजा बन्द करके चुपचाप बैठो और मुझे इस सुरंग की राह में इसी समय निकल जाने दो क्योंकि कैदियों का भाग जाना मामूली बात नहीं है, निःसन्देह वे लोग भारी उपद्रव मचावेंगे और मुझे कमलिनी के आगे शर्मिन्दगी उठानी पड़ेगी। यह तो कहो ईश्वर ने बड़ी कृपा की कि तुम दोनों बहिन शीघ्र ही मिल गई नहीं तो अनर्थ हो ही चुका था और मैं कमलिनी को मुँह दिखाने लायक नहीं रही थी। अब जब तक कैदियों का पता न लगा लूँगी मेरा जी ठिकाने न होगा।
कामिनी-बहिन, तुम यह क्या कह रही हो! जरा सोचो तो सही कि इतने दुश्मनों में तुम्हारा अकेले जाना उचित होगा? और क्या इस बात को हम लोग मान लेंगे?
तारा-(तिलिस्मी नेजे की तरफ इशारा करके) यह एक ऐसी चीज मेरे पास है कि मैं हजार दुश्मनों के बीच में अकेली जाकर फतह के साथ लौट आ सकती हूँ। यद्यपि तुम दोनों ने इस समय इस नेजे की करामात देख ली मगर फिर भी मैं कहती हूँ कि इस नेजे का असल हाल तुम्हें मालूम नहीं है इसी से मुझे रोकती हो।
किशोरी--बेशक इस नेजे की करामात मैं देख चुकी हूँ और यह निःसन्देह एक एक अनूठी चीज है मगर फिर भी मैं तुमको अकेले न जाने दूँगी, अगर जिद करोगी तो हम दोनों भी तुम्हारे साथ चलेंगी।
तारा ने बहुत-कुछ समझाया और जोर मारा मगर किशोरी और कामिनी ने एक न मानी और तारा को मजबूर होकर उन दोनों की बात माननी पड़ी। अन्त में यह निश्चय हुआ कि सुरंग के किनारे पर चल कर उसका दरवाजा बन्द कर देना चाहिए और इन बदमाशों को भी घसीटकर ले चलना चाहिए और सुरंग के बाहर कर देना चाहिए, अपने आदमियों को कैद करने की आवश्यकता नहीं है-आखिर ऐसा ही किया गया।
किशोरी, कामिनी और तारा कैदियों को घसीटते हुए ले गईं और आधे घंटे में मुरंग के दूसरे मुहाने पर पहुंची। यह मुहाना पहाड़ी के एक खोह से संबन्ध रखता था और वहाँ लोहे का छोटा सा दरवाजा लगा हुआ था जो इस समय खुला था। तारा ने कैदियों को बाहर फेंक कर दरवाजा बन्द कर दिया और इसके बाद तीनों वहाँ से लौट
च० स०-3-8
N पड़ी। रास्ते में तारा ने तिलिस्मी नेजे और खंजर का पूरा-पूरा हाल किशोरी और कामिनी को समझाया।
तहखाने में पहुँचकर सुरंग का दूसरा दरवाजा बन्द किया गया और फिर ऊपर पहुँच कर तारा ने तहखाने का दरवाजा भी बन्द करके ताला लगा दिया। है।
इधर तालाब का जल तेजी के साथ सूख रहा था क्योंकि तालाब के ऊपरी हिस्से में लम्बाई-चौड़ाई ज्यादा होने के कारण जल भी ज्यादा अँटता है इसी तरह निचले हिस्से में लम्बाई-चौड़ाई कम होने के कारण जल कम रहता है, इसीलिए बनिस्बत ऊपरी हिस्से के तालाब के निचले हिस्से का जल क्रमशः तेजी के साथ कम होता गया, यहाँ तक कि जब तारा सुरंग और तहखाने से निकल कर मकान की छत पर पहुंची तो उस ने तालाब को सुखा हुआ पाया। मकान के चारों तरफ घूमने वाले लोहे के चक्र तेजी के साथ घूम रहे थे और दुश्मन लोग यह सोचकर कि उन चक्रों की बदौलत मकान तक पहुँचना बहुत कठिन बल्कि असम्भव है उन चक्रों को ताज्जुब के साथ देख और उनको रोकने की तरकीब सोच रहे थे। इधर किशोरी, कामिनी और तारा भी उनकी इस अवस्था को मकान की छत पर से दीवार के उन छेदों की राह देख रही थीं जो दुश्मनों पर तोप के गोले बरसाने के लिए बने हुए थे।
इस समय रात दो घण्टे से ज्यादा जा चुकी थी मगर पहर ही भर तक दर्शन देकर अस्त हो जाने वाले चन्द्रमा की रोशनी दुश्मनों की किसी कार्रवाई को अंधेरे के पर्दे में छिपी रहने नहीं देती थी।
दुश्मनों ने जब देखा कि चक्रों के सबब से मकान तक पहुँचना असम्भव है तो उन्होंने उद्योग का एक मजेदार ढंग निकला जिसे देख तारा, किशोरी और कामिनी के दिल में खौफ पैदा हुआ, अर्थात् दुश्मनों ने तालाब को मिट्टी से पाटना शुरू किया। बेशक यह तरकीब बहुत ही अच्छी थी क्योंकि तालाब पट जाने पर उन चक्रों का घूमना न घमना बराबर था और आश्चर्य नहीं कि मिट्टी के अन्दर दब जाने के कारण वे रुक भी जाते, मगर इस काम के लिए दुश्मनों को मामूली से बहुत ज्यादा समय नष्ट करना पड़ा क्योंकि उन लोगों के पास जमीन खोदने के लिए फावड़ा या कुदाली की किस्म का कोई औजार न था, खञ्जर, तलवार और नेजों ही से वे लोग जो कुछ कर सकते थे, करने लगे।
दुश्मनों के इस उद्योग को देखकर तारा का कलेजा दहल गया और उसने अफसोस के साथ किशोरी की तरफ देख के कहा
तारा-अहो अब इस उद्योग का क्या जवाब दिया जाय?
किशोरी–यद्यपि वे लोग एक दिन में तालाब नहीं पाट सकते मगर हम लोगों के बचाव के लिए अब कोई तरकीब सोचनी चाहिए क्योंकि तालाब पट जाने पर ये चारों चक्र जमीन के अन्दर हो जायेंगे और उस समय इस मकान में दुश्मनों का घुस आना कुछ कठिन न होगा।
कामिनी-उस सुरंग की राह भाग जाने के सिवाय हम लोग और कुछ भी नहीं कर सकेंगे।
तारा-क्या दुश्मन लोग सुरंग के उस मुहाने को सूना छोड़ देंगे जिसका पूरापूरा हाल उन लोगों को मालूम हो चुका है?
कामिनी-इसकी आशा भी नहीं हो सकती, वेशक भागना मुश्किल हो जायगा। खैर जो कुछ होगा देखा जायगा। इस समय तो मैं यही मुनासिब समझती हूँ कि तीर मार कर दुश्मनों की गिनती कम करनी चाहिए। वे लोग हम लोगों पर कोई हर्वा नहीं चला सकते।
तारा–हाँ, इस समय तो यही करना मुनासिब होगा इसके बाद जो राय होगी किया जायगा, मगर बहिन, मैं फिर भी कहती हूँ कि तुम मुझे तिलिस्मी नेजा हाथ में लेकर सुरंग की राह से निकल जाने दो, फिर देखो तो सही कि मैं अकेली इतने दुश्मनों को क्योंकर बात की बात में मार गिराती हूँ। तुम्हें इस नेजे का हाल पूरा-पूरा मालूम हो ही चुका है अतएव उस पर भरोसा करके तुम्हें उचित है कि मुझे न रोको, मैं नहीं चाहती कि यह तालाब पट जाय और फिर सफाई कराने के लिए तकलीफ उठानी पड़े।
कामिनी तुम्हारा कहना ठीक है, इस नेजे की जहाँ तक तारीफ की जाय कम है, और तुम उन सभी को जहन्नुम में पहुंचा सकोगी जो दुश्मनी की नीयत से तुम्हारे पास आयेंगे, मगर उनका तुम क्या बिगाड़ सकोगी जो दूर ही से तुम्हें तीर का निशाना बनावेंगे।
तारा-(कुछ सोचकर) बेशक, यह एक ऐसी बात तुमने कही जिस पर विचार करना चाहिए "अच्छा, खूब याद आया। इस मकान में फौलाद का एक ऐसा कवच है, जो बदन पर ठीक आ सकता है, मैं उसे पहनकर जाऊँगी और तीर की चोट से बेफिक्र रहूंगी। यद्यपि इस पर भी तुम कह सकती हो कि आँख, नाक, कान, मुँह इत्यादि किसकिस जगह की तुम हिफाजत कर सकती हो? मगर इसके साथ ही यह बात भी सोचना चाहिए कि अगर तालाब पाटकर दुश्मन यहाँ घुस आवेंगे और हम लोगों को पकड़ लेंगे तो क्या होगा? अपनी बेइज्जती कराना और बेहुर्मती के साथ जान देना अच्छा होगा या बहादुरी के साथ सौ-पचास को मारकर लड़ाई के मैदान में मिट जाना उचित होगा?
किशोरी–जब ऐसा ही है और तुम प्राण देने के लिए मुस्तैद होकर जाती ही हो तो हम दोनों को क्यों छोड़े जाती हो? क्या इसलिए कि तुम्हारे बाद हम लोगों की दुर्दशा और बेइज्जती हो?
इस विषय में किशोरी, कामिनी और तारा में देर तक हुज्जत और बहस होती रही, अन्त में यही निश्चय हुआ कि सूरत बदलने और कवच पहनने के बाद हाथ में तिलिस्मी नेजा लेकर तारा सुरंग की राह से जाय और दुश्मनों का मुकाबला करे, किशोरी और कामिनी दोनों में से एक या दोनों तारा के साथ सुरंग में जायें और जब तारा सुरंग के बाहर हो जाय तो हर एक दरवाजे को बन्द करती हुई लौट आवें। इसके बाद दुश्मनों के भाग जाने पर मकान में तारा का लौट आना कोई मुश्किल न होगा।
यह बात तै पाई गई और तीनों नौजवान औरतें जिनमें आपस में बहिनों से भी बढ़कर मुहब्बत हो गई थी, छत के नीचे उतर आई और एक कोठरी में चली गयीं। तारा ने ऐयारी के मसाले से अपने को रँगा और अपनी ऐसी भयानक सूरत बनाई कि देखने वाला कैसी ही जीवट का क्यों न हो, मगर एक दफे तो अवश्य ही डर जाय। इसके बाद कवच पहना और तिलिस्मी नेजा लेकर सुरंग में रवाना हुई, हाथ में एक लालटेन लिए किशोरी और कामिनी भी साथ हुईं।
पहले तहखाने वाली कोठरी का दरवाजा खोला गया, फिर सुरंग का दरवाजा खोलकर तीनों मुँहबोली बहिनें सुरंग में दाखिल हो गयीं।
ये तीनों बीस-पच्चीस कदम से ज्यादा न गई होंगी कि पीछे की तरफ से यकायक दरवाजा बन्द कर लेने की आवाज आई, जिसे सुनते ही तीनों चौंक पड़ी और खड़ी हो गयीं। तारा ने किशोरी और कामिनी की तरफ देखकर कहा-"हैं, यह क्या बात है? मालूम होता है कि हमारा दुश्मन हमारे घर ही में है!" यह कहती हुई किशोरी और कामिनी के साथ तारा पीछे की तरफ लौटी और जब सुरंग के दरवाजे के पास आई तो दरवाजा बन्द पाया। खटखटाया, धक्का दिया, जोर किया, मगर दरवाजा न खुला। इस समय उन तीनों अबलाओं के दिल की क्या हालत हुई होगी सो हमारे बुद्धिमान पाठक स्वयं सोच सकते हैं। कामिनी ने घबराकर तारा से कहा, "तुम्हारा कहना ठीक है, बेशक हमारा दुश्मन हमारे घर ही में है।"
किशोरी-चाहे कोई हमारा नौकर हमारा दुश्मन हो या दुश्मन का कोई ऐयार हमारे नौकर की सूरत में यहां आकर टिका हो।
तारा-अब शक दूर हो गया और निश्चय हो गया कि कैदियों को इसी कम्बख्त ने निकाल दिया। मैं ताज्जुब में थी कि यह दरवाजा जो दूसरी तरफ से किसी तरह नहीं खुल सकता क्योंकर खुला और कैदी लोग क्योंकर निकल गये, मगर अब जो कुछ असल बात थी, जाहिर हो गई। अब उस शैतान ने (चाहे वह कोई भी हो) इसलिए यह दरवाजा बन्द कर दिया कि हम लोग पुनः लौटकर घर में न आ पावें। अफसोस बड़ा ही धोखा हुआ कि इतने पर भी हम लोग उससे बेफिक्र रहे और इस समय भी वह छिपकर हम लोगों के साथ ही साथ कैदखाने में उतरा, मगर कुछ मालूम न हुआ। (कुछे रुककर) हमारे नौकरों और लौंडियों को क्या मालूम हो सकता है कि इस समय हम लोगों के साथ किस दुष्ट ने कैसा बर्ताव किया!
कामिनी-क्या इस तरफ इस दरवाजे को खोलने की कोई तरकीब नहीं है?
तारा-कोई नहीं।
कामिनी-और अगर दुश्मनों ने सुरंग के मुहाने का दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया हो तो क्या होगा?
तारा-उस दरवाजे के दूसरी तरफ ऐसी चीज नहीं है जो दरवाजा बन्द करने के काम में आवे, मगर फिर भी दुश्मन होशियार हो तो हर तरह से वह मुहाना बन्द कर सकता है। उस दरवाजे के ऊपर मिट्टी, पत्थर या चूने का ढेर लगा सकता है, ईंटपत्थर की जुड़ाई कर सकता है, या उस खोह भर को ईंट-पत्थर से बन्द कर सकता है।
किशोरी–हाय, अब हम लोग बेमौत मारे गये| ताज्जुब नहीं कि इस बात का बन्दोबस्त पहले ही मे कर लिया गया हो।
कामिनी-बस, अब हम लोगों को यहां जरा भी न अटक कर सुरंग के बाहर निकल चलना चाहिए. शायद उधर का रास्ता अभी बन्द न हुआ हो।
तारा, किशोरी और कामिनी तेजी के साथ सुरंग के दूसरे मुहाने की तरफ रवाना हुई और थोड़ी ही देर में वहाँ जा पहुँची। इस सुरंग में मकान की तरफ जिस तरह की सीढ़ियां बनी हुई थीं, उसी तरह की सीढ़ियां सुरंग के दूसरी तरफ भी थीं। जब तारा ने दरवाजे की कुण्डी खोली और उसे धक्का देकर खोलना चाहा तो दरवाजा न खुला, उस समय तारा हाय करके बैठ गई और बोली-'बहिन, बस जो कुछ हम लोगों को शक था वही हुआ। इस समय दुश्मनों की बन पड़ी और हम लोग बेमौत मारे गये। यह दरवाजा भीतर की तरफ हटता होता तो खुल जाता और हमें मालूम हो जाता कि आगे रास्ता किस चीज से बन्द किया गया है, ईंट-पत्थर और चने से या खाली मिट्टी से, और हम लोग इस तिलिस्मी नेजे से उसमें रास्ता बनाकर निकल जाने का उद्योग करते क्योंकि यह नेजा हरएक चीज में घुस जाने की ताकत रखता है, मगर अफसोस तो यह है कि यह लोहे का मजबूत दरवाजा खुलने के समय बाहर की तरफ खुलता है। यह भी कारीगर की भूल है। भूलों का मजा समय पड़ने पर ही मालूम होता है, अब मुझे मालूम हुआ कि मकान बनाने वाले को दरवाजे की अवस्था पर विशेष ध्यान देना चाहिए, कोई दरवाजा ऐसा न बनाना चाहिए जो खुलते समय बाहर की तरफ खुलता हो, जिसे बाहर वाला मामूली तौर पर मिट्टी का ढेर लगाकर भी बन्द कर सकता है। हाय, अब मैं क्या करूं? मुझे अपने मरने का तो कुछ भी रंज नहीं है अगर रंज है तो केवल इतना ही कि तुम दोनों को कमलिनी ने हिफाजत से रखने के लिए के लिए मेरे पास भेजा और मेरी बदौलत तुम्हें यह दिन देखना नसीब हुआ!"
मामूली तौर पर जैसा कि अक्सर मौका पड़ने पर लोग कह दिया करते हैं, इस समय किशोरी और कामिनी यह बात तारा को कह सकती थीं कि 'बहिन, हम लोग तो तुम्हें मना करते थे कि सुरंग की राह से बाहर मत जाओ, मगर तुमने न माना, अगर मान जाती तो यह दुःख भोगना क्यों नसीब होता?'
मगर नहीं, बेचारी किशोरी और कामिनी बड़ी ही नेकदिल थीं, वे जानती थीं कि जो होना था सो तो हो चुका, अब ऐसी बातें कहकर तारा का दिल दुखाना नादानी है और इससे कोई फायदा नहीं, तारा ने जो कुछ किया उसे भला ही समझ के किया। मगर जब ईश्वर की भी ऐसी मर्जी हो तो क्या किया जाय।
इस सुरंग के दोनों तरफ की दीवार बहुत ही मजबूत थी और उस पर फौलादी मोटी चादर चढ़ी हुई थी। यद्यपि तिलिस्मी नेजा उस फौलादी मोटी चादर में भी घुस सकता था, मगर इसमें कोई फायदा न था। तिलिस्मी नेजा ऐसे स्थान से सुरंग खोदकर रास्ता बनाने का काम नहीं दे सकता था, तिस पर भी तारा ने उद्योग में कोई बात उठा न रखी, मगर नतीजा कुछ भी न निकला।