कोड स्वराज
द्वारा कार्ल मालामुद

[  ]पाठकों के लिए


गत् दो वर्षों में हमारे द्वारा दिए गए भाषणों और बयानों का रिकार्ड इन फ़ील्ड नोट्स में संकलित है। इन भाषाणों में न्यूनतम सुधार किया गया है।


इस रिकॉर्ड में उस विषय की चर्चा की गई है जिसने हम दोनो को साथ लाया है और वह है भारतीय मानक (standards) पर किये गये काम। भारत सरकार द्वारा प्रकाशित मानक दस्तावेजों की संख्या 19,000 है। इन मानकों में वे तकनीकी ज्ञान शामिल हैं, जो हमारे विश्व को सुरक्षित रखने के तरीके को नियंत्रित करते हैं। वे सुरक्षा प्रदान करने के वाले कानून हैं।


भारतीय मानक, आधुनिक तकनीकी दुनिया के कई सारे विषयों के बारे में है: सार्वजनिक और निजी भवनों की सुरक्षा, कीटनाशकों से सुरक्षा, कारखानों में कपड़ा-उद्योग के मशीनों की सुरक्षा, खतरनाक सामग्रियों के परिवहन, खाद्य पदार्थों और मसालों में व्यंजनों का नियंत्रण, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के तरीके, इत्यादि।


भारत और अन्य देशों में, इन दस्तावेज़ों का इस्तेमाल को सीमित किया जा रहा था। जरूरतमंदों के लिए ये दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं। इन्हें कॉपीराइट के अधीन रखा गया है। इन्हें गैर अनुचित रकम पर बेचा जाता है और इन पर कड़े तकनीकी साधनों द्वारा रोक लगाई गई है। हमने उन मानकों को खरीदा, उन्हें इंटरनेट पर स्वतंत्र और अप्रतिबंधित इस्तेमाल के लिए पोस्ट कर दिया है। भारत सरकार को हमने हमारे कार्यों के बारे में पहले, पत्र द्वारा सूचित किया और फिर औपचारिक याचिका से सूचित कर दिया है।


जब सरकार ने हमें, मानकों के नए संस्करण प्रदान करने से इनकार कर दिया तो हमने नई दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की। हमने इस कदम को सत्याग्रह मान कर किया है, यह आत्म-सत्य' की तलाश में एक अहिंसात्मक प्रतिरोध है। हम बिना किसी हिचकिचाहट के साथ स्वीकार करते हैं कि हम महात्मा गांधी के शिष्य हैं और भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में न्याय और लोकतंत्र के संघर्ष के इतिहास के छात्र हैं।


भारत में इंजीनियरों की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए, नागरिकों को सूचित करने के लिए, शहरों को सुरक्षित रखने के लिए, हमने यह कदम उठाया है। इसके लिए हमें कोई अफसोस नहीं है। इन दस्तावेजों को लाखों लोगों ने पढ़ा। इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि इस बहुमूल्य जानकारी को फैलाने की ज़रूरत थी।


हम इन्हीं कारणों से इस पुस्तक को “कोड स्वराज” कहते हैं। जब हम “कोड" की बात करते हैं तो हमारा मतलब उन सोर्स (source) कोड से ज्यादा है, जिससे हमारे कंप्यूटर चलते हैं, या वे प्रोटोकॉल्स (protocols) जिन पर इंटरनेट काम करता है। कोड से हमारा मतलब है कोई भी नियम-पुस्तक, चाहे ये इंटरनेट के प्रोटोकॉल्स हो या हमारे वे नियम और कानून जिससे हमारा लोकतंत्र चलता है। इसी तरह, स्वराज का सिद्धांत है स्वयं द्वारा शासन
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जिसका अर्थ है कि सरकार, जनता की है और वह उनकी सामूहिक इच्छा से काम करेगी। कोड स्वराज का अर्थ है, नियम की खुली किताब, जो लोगों के लिये होगी और जिसकी जानकारी सभी को होगी।


एक खुले नियम पुस्तक के बिना आज का इंटरनेट बहुत ही अलग होता। हमारा मानना है। कि सभी अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रकचर) खुले और पारदर्शी नियमों पर आधारित हों, जो किसी को भी यह समझने की अनुमति दे कि सिस्टम कैसे काम करता है और इसे हम कैसे बेहतर बना सकते हैं। इस तरह का सिद्धांत, लोकतंत्र का एक मूल सिद्धांत है। इसे ही हुम। ‘जानकारी को लोकतांत्रिक’ बनाना कहते हैं, जिसमें लोगों को इसकी जानकारी पाने में कहीं कोई बाधा न हो।


हमारा मानना है कि समाज में सच्चे कोड स्वराज से हम और आगे बढ़ सकते हैं और हर इंसान के लिए, व्यापक पहुंच' (universal access) जैसे आकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त कर। सकते हैं। इंटरनेट ने हमें सिखाया है कि एक ओपन सिस्टम हमें, हमारे सपनों से भी आगे ले। जा सकता है। और इसी सबक को अब और अधिक व्यापक रूप से लागू किया जाना चाहिए।


गांधी जीका स्वतंत्रता आंदोलन केवल भारत की स्वतंत्रता के लिये ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में स्वशासन, लोकतंत्र और राजनैतिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों को स्थापित करने के बारे में था। गांधीजी और वे सभी लोग जो उनके अनुयायी थे, उनमें सभी के लिए समान अवसरों की सुलभता, सूचना का लोकतांत्रीकरण, ट्रस्टीशिप, और सामान्य अच्छाईयों के सिद्धांत, गहराई से अंतर्निहित थे।


हम जिन तकनीकियों का उपयोग कर रहे हैं वे उन लोगों से प्रेरित हैं जिन्होंने हमसे पहले। काम किया है। हालांकि जो व्यक्तिगत जोखिम हुम उठाते हैं, वे उतने भी खतरनाक नहीं हैं, पर हमने निरंतर संघर्ष करने के सबक को अपने अंदर समा लिया है। सत्याग्रह के तरीकों और विधियों को, बड़ी और छोटी दोनों तरह की समस्याओं पर लागू किया जा सकता है, लेकिन जो मायने रखता है वह यह है कि हम सभी अपने लोकतंत्र को बेहतर बनाने का प्रयास करें। लोकतंत्र में सरकार हमारे लिए होती है, और जब तक हम सार्वजनिक कार्य में शामिल नहीं होते और जब तक हम खुद को, और हमारे शासकों को शिक्षित नहीं करते, तबतक हुम दुनिया के ट्रस्टीशिप में अपना आसन खो देंगे।


हमने इस पुस्तक में बड़ी संख्या में तस्वीरें भी डाली हैं। यह पुस्तक एक मिश्रण है। इसका कारण यह है कि हम तस्वीरों से प्रेरणा लेते हैं। हमें कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी और सूचना मंत्रालय के अभिलेखागार (archive) में पुरानी तस्वीरों को देखना अच्छा लगता है। पहले से मौजूदा चीज़ों पर ही ज्ञान बढ़ता है और हमने इस पुस्तक को नेट (internet) पर उपलब्ध मौजूदा सामग्रियों पर बनाया है जो सभी के लिये उपलब्ध है।


हम यह भी आशा करते हैं कि आप इन अद्भुत संसाधनों को देखने, और अपने स्वयं के काम में इन्हें इस्तेमाल करने के लिए समय निकालेंगे। ज्ञान पर सार्वभौमिक पहुंच मानव का
[ ११ ]पाठकों के लिए


अधिकार है, लेकिन हमें केवल ज्ञान का इस्तेमाल करने से ज्यादा कुछ और भी करना चाहिए। हम सभी को समाजिक ज्ञानपुंज में योगदान भी करना चाहिए।


हम दोनों, तकनीकी क्षेत्र के लोग हैं। हमने पूरी जिंदगी दूरसंचार और कम्प्यूटर में काम कर के बिताये हैं। इंटरनेट एक ऐसा चमत्कार है जिसने दुनिया को बदल दिया है। लेकिन इसकी और भी अधिक करने की क्षमता है। परन्तु हम, हमारे जैसे अनेक तकनीकी लोगों को देखते हैं जो नए ऐप (App) पर काम कर रहे हैं या विज्ञापन के क्लिकों (Ad Clicks) को बढ़ाने में लगे हैं।


जैसे-जैसे व्यापार की दुनिया, मध्यस्थता (arbitrage) और एकाधिकार (monopoly) के जरिये निजी फायदे को बढ़ाती जाती है वैसे-वैसे दुनिया और भी असमान होती जाती है। हम आशा करते हैं कि हमारे क्षेत्र में काम कर रहे सहकर्मी लोग, सार्वजनिक काम करने के लिए कछ समय निकालेंगे और गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर हमारी दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में मदद करेंगे। एक ऐसी जगह जो सिर्फ निजी लाभ पर नहीं, बल्कि समाज के हित के लिए काम करने पर भी ध्यान देगी।


कुछ लोगों को सूचना को डेमोक्रेटाईज़ करना, हवा में बात करने जैसा लग सकता है, जो शायद इन समस्या की घड़ी में, गंभीर लोगों द्वारा किया जाने वाला महत्वपूर्ण काम नहीं है। एक संशयात्मक संपादक यह पूछ सकता है कि जब लोग भूखे हैं और हमारा ग्रह नष्ट हो रहा है तो हम कंप्यूटर और नेटवर्क पर कैसे ध्यान दे सकते हैं?


हमारे पास इसके दो जवाब हैं। सबसे पहले यह कि, कंप्यूटर और नेटवर्क हमारे काम का क्षेत्र है। सभी अपनी दुनिया में जो कुछ कर सकते हैं, वे करते हैं। लेकिन हमारा असली । जवाब यह है कि ‘ज्ञान तक पहुंच (access to knowledge)' तरक्की के इमारत की आधार शिला है। सूचना को सार्वजनिक (डेमोक्रेटाईज़) करना तरक्की के उद्देश्य को पूरा करने का ज़रिया है, जिसके ही नींव पर हम सभी तरक्की की इमारत खड़ी कर सकते हैं।


यदि हम इस नींव को रखते हैं, तो हमारा मानना है कि हम अपनी दुनिया का पुनिर्माण कर सकते हैं, जैसा हमसे पहले कई लोगों ने पुराने समय में दुनिया को फिर से बनाया था। हम अपनी वित्तीय प्रणाली की गहरी खामियों को बदल सकते हैं, जो सार्वजनिक लाभ के बजाय केवल कुछ लोगों के पास सभी संसाधनों को इकट्ठा करने में मदद करती है। हम स्वास्थ्य, परिवहन, भोजन और आश्रय को प्रदान करने के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। हम अपने बच्चों को और खुद को शिक्षित करने के तरीकों में भी क्रांतिकारी बदलाव ला । सकते हैं। हमारी सरकारों के काम करने के तरीकों में बदलाव ला सकते हैं। हम अपने ग्रह की देखभाल करना आरम्भ कर सकते हैं। सूचना को सार्वजनिक (डेमोक्रेटाइज़) करने से दुनिया बदल सकती है। ज्ञान को वि-उपनिवेशीकरण (डीकोलोनाइजेशन) करने से दुनिया बदल सकती है। आइए हम उस यात्रा पर एक साथ चलें।

कार्ल मालामुद और सैम पित्रोदा

[ १२ ]
CWMG, vol. 3 (1898-1903), फ्रन्टीसपीस. सन् 1900 में जोहान्सबर्ग.
[ १३ ]
CWMG, vol. 9 (1908-1909), फ्रन्टीसपीस, गांधी जी लंदन में, 1909.