कोड स्वराज/लिंक की तालिका
लिंक की तालिका
इंटरनेट आर्काइव, भारत और अमेरिका में ज्ञान तक पहुंच
https://archive.org/details/A2KInIndiaAndAmerica
सैम पित्रोदा, डिजिटल इंडिया
https://www.youtube.com/watch?v=sSGCLBt1ju0
न्यूमा बैंगलोर में हैसगीक इवेंट
https://archive.org/details/in.hasgeek.2017.10.15.1
भारत की तस्वीरें
https://www.flickr.com/photos/publicresourceorg/collections/72157666804055474/
भारत की सार्वजनिक पुस्तकालय
https://archive.org/details/digitallibraryindia
हिंद स्वराज संग्रह
https://archive.org/details/HindSwaraj
भारत के राजपत्र
https://archive.org/details/gazetteofindia
वैश्विक सार्वजनिक सुरक्षा कोड
https://archive.org/details/publicsafetycode
सैम पित्रोदा
https://sampitroda.com/
@sampitroda
कार्ल मलामुद
https://public.resource.org/
@carlmalamud
कोड स्वराज, आधुनिक समय के नागरिक प्रतिरोध के अभियान की एक कहानी है,
जो महात्मा गांधी और उनके सत्याग्रह के अभियानों से प्रेरणा लेती है, जिसने सरकारों का अपने नागरिकों के साथ बातचीत करने का तरीका बदल दिया। ज्ञान की सार्वभौमिक पहुंच, सूचना का लोकतांत्रिककरण और स्वतंत्र ज्ञान की खोज में, मालामुद और पित्रोदा गांधीवादी मूल्यों को, आधुनिक समय पर लागू करते हैं और भारत और दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए एक दमदार एजेंडा पेश करते हैं।
डॉ. सैम पित्रोदा, भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री, श्री.राजीव गांधी और डॉ.मनमोहन
सिंह के सलाहकार रह चुके हैं जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त था। इन्हें वर्ष 1980
के दशक में, भारत की दूरसंचार क्रांति का नेतृत्व करने का श्रेय व्यापक रूप से दिया
जाता है। सैम के पास 20 सम्मानीय पी.एच.डी, 100 विश्वव्यापी पेटेंट हैं, और उन्होंने
वर्ष 1960 में पहला डिजिटल पी.बी.एक्स (PBXs) के निर्माण करने में सहायता की
थी। वे आन्ट्रप्रेनर भी हैं, जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका में विभिन्न प्रौद्योगिकी कंपनियों
की संस्थापना की।
कार्ल मालामुद ने इंटरनेट पर सबसे पहले रेडियो स्टेशन की शुरूआत की और इन्हें
मॉर्डन यू.एस. ऑपन गर्वमेंट मूवमेंट के एक अग्रदूत के रूप में जाना जाता है। कार्ल
Public.Resource.Org नामक एक गैर-लाभकारी संगठन का संचालन करते हैं, जो
नि:शुल्क और असीमित प्रयोग के लिए सरकारी सूचना के लाखों दस्तावेजों को
इंटरनेट पर उपलब्ध कराया है, जिसमें सभी 19,000 भारतीय मानक भी शामिल हैं।
उन्होनें इससे पहले आठ किताबें भी लिखी हैं।
यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।
यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।