कुरल-काव्य/परिच्छेद २० व्यर्थ-भाषण

कुरल-काव्य
तिरुवल्लुवर, अनुवादक पं० गोविन्दराय जैन

पृष्ठ १४८ से – १४९ तक

 

 

परिच्छेद २०
व्यर्थ-भाषण

अर्थशून्य जिसके वचन, सुन उपजे उद्वेग।
उस नर के सम्पर्क से, बचते सभी सवेग॥१॥
मित्रों को भी क्लेश दे, उससे अधिक निकृष्ट।
गोष्ठी में जो व्यर्थ का, भाषण देता धृष्ट॥२॥
दम्भभरा निस्मार जो, भाषण दे निशंक।
घोषित करे अयोग्यता, मानो प्रज्ञारंक॥३॥
कर प्रलाप बुधवृन्द में, लाभ न कुछ भी हाथ।
जो भी अच्छा अंश है, खोता वह भी साथ॥४॥
बकवादी यदि योग्य हो, तो भी दिखे अयोग्य।
गौरव से वह रिक्त हो, मान न पाता योग्य॥५॥
रुचि जिसकी बकवाद में मानव उसे न मान।
आवश्यक ही कार्य ले, कचरा सम धीमान॥६॥
उचित जचे तो बोल ले, चाहे कर्कश बात।
वृथालाप से तो वही, दिखती उत्तम तात॥७॥
तत्वज्ञान विचार में, जिनका मन संलग्न
वे ऋषिवर होते नहीं, क्षणभर विकथा-मग्न॥८॥
जिनकी दृष्टि विशाल वे, प्राज्ञोत्तम गुणधाम।
कभी न करते भूलकर, बकवादी के काम॥९॥
भाषण के जो योग्य हो, वह ही बोलो बात।
और न उसके योग्य जो, तज दीजे वह भ्रात॥१०॥

 

परिच्छेद २०
व्यर्थ-भाषण

१—निरर्थक शब्दो से जो अपने श्रोताओं में उद्वेग लाता है यह सब के तिरस्कार का पात्र है।

२—अपने मित्रों को दुख देने की अपेक्षा भी अनेक लोगों के आगे व्यर्थ की बकवाद करना बहुत बुरा है।

३—जो निरर्थक शब्दों का आडम्बर फैलाता है वह अपनी अयोग्यता को ऊँचे स्वर से घोषित करता है।

४—सभा में जो व्यर्थ की बकवाद करता है, उस मनुष्य को देखो, उसे और कुछ तो लाभ होने का नहीं, पर जो कुछ उसके पास अच्छी बातें होंगी वे भी छोड़कर चली जावेगी।

५—यदि व्यर्थ की बकवाद अच्छे लोग भी करने लगे तो वे भी अपने मान और आदर को खो बैठेंगे।

६—जिसे निरर्थक बातों के करने की अभिरुचि है उसे मनुष्य ही न मानना चाहिए, कदाचित् उससे भी कोई काम आ पड़े तो समझदार आदमी उससे कचरे के समान ही काम ले ले।

७—यदि समझदार को योग्य मालूम पड़े तो मुख से कठोर शब्द कहले, क्योंकि यह निरर्थक भाषण से कही अच्छा है।

८—जिनके विचार बड़े बड़े प्रश्नों को हल करने में लगे रहते हैं ऐसे लोग विकथा के शब्द अपने मुख से निकालते ही नहीं।

९—जिनकी दृष्टि विस्तृत है वे भूल कर भी निरर्थक शब्दों का उच्चारण नहीं करते।

१०—मुख से निकालने योग्य शब्दों का ही तू उचारण कर, परन्तु निरर्थक अर्थात् निष्कल शब्द मुख से मत निकाल।