कार्ल मार्क्स फ्रेडरिक एंगेल्स/समाजवाद

मास्को: प्रगति प्रकाशन, पृष्ठ ३६ से – ४० तक

 

समाजवाद

ऊपर की बातों से स्पष्ट है कि मार्क्स ने एकमात्र तत्कालीन समाज की गति के आर्थिक नियम के ही बल पर यह निष्कर्ष निकाला है कि पूंजीवादी समाज अनिवार्य रूप से समाजवादी समाज में परिवर्तित हो जायेगा। समाजवाद के आगमन की अनिवार्यता का मुख्य भौतिक आधार श्रम का समाजीकरण है जो अपने असंख्य रूपों में तीन और तीव्रतर गति से आगे बढ़ता रहा है। मार्क्स की मृत्यु के बाद के पचास वर्षों में, बड़े पैमाने पर उत्पादन के विकास में , पूंजीपतियों के कार्टेलों, सिण्डीकेटों और ट्रस्टों में , साथ ही वित्तीय पूंजी (फ़ैनेन्शल कैपिटल ) की सीमारेखाओं और शक्ति के अतिप्रसार में विशेष स्पष्टता से यह वृद्धि प्रकट होती रही है। इस परिवर्तन की बौद्धिक और नैतिक प्रेरक-शक्ति , उसको भौतिक रूप से संपन्न करनेवाली शक्ति , सर्वहारा वर्ग है जिसे पूंजीवाद ने ही शिक्षित किया है। पूंजीपतियों के विरुद्ध सर्वहारा वर्ग का संघर्ष नाना रूप धारण करता हुआ, जो नित बहुमुखी होते जाते हैं , अनिवार्यतः एक राजनीतिक संघर्ष हो जाता है जिसका ध्येय सर्वहारा वर्ग द्वारा राजनीतिक शक्ति को जीतना होता है (“सर्वहारा अधिनायकत्व")। उत्पादन के समाजीकरण से उत्पादन के साधनों का समाज के हाथ में आ जाना अनिवार्य है और “अपहरण करनेवाले स्वयं अपहरण किये जायेंगे"। इस परिवर्तन का सीधा परिणाम यह होगा कि श्रम की उत्पादिता में विशाल वृद्धि होगी, मजूरी के घंटे कम होंगे , बचे-खुचे और नष्टप्राय टुटपुंजिये और अलग-अलग उत्पादन के बदले सामूहिक और उन्नत श्रम होगा। अन्त में पूंजीवाद, कृषि और उद्योग-धंधों के संबंध को तोड़ देता है; लेकिन साथ ही अपने उच्चतम विकास के होते-होते , वह दोनों के बीच का संबंध स्थापित करने के लिए नये सूत्र तैयार करता है। सचेत रूप से विज्ञान के उपयोग, सामूहिक श्रम के मेल और जनसंख्या के पुनर्वितरण के आधार पर वह कृषि और उद्योग-धंधों को मिलाता है (वह एक साथ ही देहात के अलगाव और अकेलेपन को, असभ्यता और बड़े-बड़े शहरों में विशाल जन-समूहों के अस्वाभाविक केन्द्रीकरण को समाप्त कर देता है)। आधुनिक पूंजीवाद के उच्चतम रूपों द्वारा कुटुम्ब के एक नये प्रकार, स्त्रियों की स्थिति और नयी पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा में परिवर्तन की तैयारी हो रही है। वर्तमान समाज में स्त्रियों और बच्चों द्वारा मजदूरी, पूंजीवाद द्वारा दादा- पंथी कुटुम्ब का नष्ट-भ्रष्ट होना आवश्यक रूप से बड़े ही भयावह', सर्वनाशी और जघन्य रूपों में प्रकट होते हैं। फिर भी "वर्तमान उद्योगधंधे घर के बाहर उत्पादन-क्रम में स्त्रियों, नौजवानों और छोटे छोटे लड़के-लड़कियों को महत्वपूर्ण भाग देकर कुटुम्ब और स्त्री-पुरुष के संबंध के एक उच्चतर रूप के लिए एक आर्थिक आधार का निर्माण करते हैं। कुटुम्ब के ट्यूटौनिक-ईसाई रूप को अचल और त्रिकाल-सत्य समझना वैसे ही भ्रमपूर्ण है जैसे प्राचीन रोम, ग्रीस के कुटुम्ब को या कुटुम्ब के पूर्वी रूपों को ऐसा समझना। सम्मिलित रूप से ये ऐतिहासिक विकास की शृंखलाएं हैं। यह भी स्पष्ट है कि सभी उम्र के स्त्री और पुरुष - दोनों ही तरह के व्यक्तियों से सामूहिक रूप में काम करने वाला गुट बनता है, इस बात से अवश्य ही अनुकूल परिस्थितियों में उसे मानवीय

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विकास का कारण बन जाना चाहिए। यद्यपि अपने स्वतः विकसित,

पाशविक पूंजीवादी रूप में , जहां मजदूर उत्पादन-क्रम के लिए होता है, उत्पादन-क्रम मजदूर के लिए नहीं होता, यह स्थिति भ्रष्टाचरण और दासता का मूल है।" ('पूंजी', खंड १, अध्याय १३ का अन्त ।) कारखानों के चलने से "भविष्य की शिक्षा का बीज बोया जा रहा है, ऐसी शिक्षा का बीज, जो एक ख़ास उम्र के बाद हर बच्चे के लिए उत्पादन-श्रम के साथ शिक्षा और व्यायाम का मेल कर सके, केवल इसलिए नहीं कि यह सामाजिक उत्पादन को बेहतर बनाने का एक साधन होगा वरन् इसलिए कि मनुष्यों के पूर्ण विकास का यही एक मार्ग है"। (वहीं।) इसी ऐतिहासिक आधार पर-न केवल अतीत की व्याख्या करने के अर्थ में, बल्कि निर्भीक भविष्यवाणी और उसकी उपलब्धि के लिए साहसपूर्ण अमली कार्रवाई करने के अर्थ में भी मार्क्स का समाजवाद जाति और राज्य की समस्याओं की विवेचना करता है। जातियां सामाजिक विकास के पूंजीवादी युग की अनिवार्य उपज तथा अनिवार्य रूप हैं। मजदूर वर्ग में तब तक शक्ति और परिपक्वता नहीं आ सकती थी जब तक वह "अपने को जाति (नेशन) का अंग न बना ले", जब तक कि वह "जातीय (नेशनल )" न बने (“ यद्यपि इस शब्द के पूंजीवादी अर्थ में नहीं")। परन्तु पूंजीवाद के विकास से जातियों के बीच की दीवारें अधिकाधिक ढहने लगती हैं, जातीय अलगाव दूर होता है और जातीय विरोध के बदले वर्ग विरोध का जन्म होता है। इसलिए विकसित पूंजीवादी देशों में यह बिल्कुल सच है कि “मजदूरों का कोई देश नहीं है" और सभ्य देशों के मजदूरों की “संयुक्त कार्यवाही सर्वहारा वर्ग की मुक्ति की पहली शर्तों में है" ( 'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' )। राज्य संगठित हिंसा का नाम है; समाज के विकास की एक अवस्था में, (जब वह ऐसे वर्गों में बंट गया जिसमें समझौता न हो सकता था) अनिवार्यतः उसका जन्म हुआ जब बिना ऐसे अधिकार" के जो समाज के ऊपर और किसी हद तक उससे परे हो, उसका अस्तित्व असम्भव था। वर्ग-संबंधी अन्तर्विरोधों से उत्पन्न होकर, यह राज्य "सबसे शक्तिशाली और आर्थिक दृष्टि से प्रधान वर्ग का राज्य हो जाता है। यह वर्ग राज्य की सहायता

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से राजनीतिक दृष्टि से भी प्रधान वर्ग बन जाता है। और इस प्रकार

पीड़ित वर्ग को दबाने और उसका शोषण करने के लिए उसे नये साधन मिल जाते हैं। इस प्रकार प्राचीन राज्य गुलामों के मालिकों का राज्य था जिससे गुलामों को दबाया जा सके जैसे कि सामन्ती राज्य कम्मियों और भूदासों को दबाने के लिए अभिजात वर्ग का अस्त्र था, और जैसे कि वर्तमान प्रतिनिधिपूर्ण राज्य पूंजी द्वारा मजदूरों के शोषण का अस्त्र है।" ( एंगेल्स , परिवार, निजी संपत्ति तथा राज्यसत्ता की उत्पत्ति', जिसमें लेखक ने अपने और मार्क्स के विचारों की व्याख्या की है।) यही स्थिति जनवादी जनतंत्र में भी, सबसे स्वाधीन और प्रगतिशील पूंजीवादी राज्य में भी है। अन्तर केवल रूप का होता है ( सरकार का संबंध स्टॉक एक्सचेंज से हो जाता है और अधिकारी वर्ग तथा प्रेस को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घूस दे दी जाती है इत्यादि )। समाजवाद वर्गों का अंत करते हुए, इसी साधन से, राज्य का भी अन्त कर देगा। ‘ड्यूहरिंग मत- खण्डन' में एंगेल्स ने लिखा है- “राज्य का यह पहला काम , जब वह वास्तव में पूर्ण समाज का प्रतिनिधि बनकर आता है और समाज के नाम पर उत्पादन के साधनों पर अधिकार कर लेता है, राज्य के नाते उसका अन्तिम स्वाधीन कार्य भी होता है। एक क्षेत्र के बाद दूसरे में राज्य का सामाजिक संबंधों में हस्तक्षेप व्यर्थ हो जाता है और उसके बाद अपने आप बंद हो जाता है। लोगों के शासन के स्थान पर वस्तुओं का नियंत्रण और उत्पादन-क्रमों का निर्देश आ जाता है। राज्यसत्ता का 'अन्त नहीं किया जाता' वह स्वयं क्रमशः नष्ट हो जाती है।" "उत्पादकों के स्वतंत्र और समान सहयोग के आधार पर जिस समाज को उत्पादन का पुनर्संगठन करना है वह समाज राज्यसत्ता की सारी मशीनरी को पुरानी चीज़ों के अजायब घर में, चर्खे और पीतल की कुल्हाड़ी के साथ रख देगा। और यही उसके लिए उचित स्थान भी होगा।" (एंगेल्स : 'परिवार, निजी संपत्ति तथा राज्यसत्ता की उत्पत्ति')

अन्त में छोटे किसानों के संबंध में, जो अपहरण करनेवालों के अपहरण किये जाने के समय बने रहेंगे, मार्क्सीय समाजवाद का दृष्टिकोण एंगेल्स के एक कथन से प्रकट होता है जो मार्क्स के मत को

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व्यक्त करता है: "जब हमारे हाथ राज्य-सत्ता आ जायगी तब हम छोटे किसानों को ( मुआवजे देकर या बिना दिये ) बलपूर्वक अपहरण करने का सोचेंगे भी नहीं जैसा कि बड़े ज़मींदारों के संबंध में हमें करना पड़ेगा। छोटे किसानों में हमारा सबसे पहला काम यह होगा कि बलपूर्वक नहीं वरन् उदाहरणों से और सामाजिक सहायता देकर उनके निजी उत्पादन और निजी स्वामित्व को सहकारी उत्पादन और सहकारी स्वामित्व में परिवर्तित कर दें। उस समय छोटे किसानों को इस परिवर्तन के लाभ दिखाने के लिए हमारे पास काफ़ी साधन होंगे और इन लाभों को हमें उन्हें अभी से समझाना चाहिए।" ( एंगेल्स : 'पश्चिम में कृषि की समस्या', पृष्ठ १७, अलेक्सेयेवा द्वारा सम्पादित , रूसी अनुवाद में ग़लतियां हैं। सबसे पहले «Neue Zetb¹² में प्रकाशित )