आल्हखण्ड/९ इन्दलहरणब्याहताहीमा

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ३१७ से – ३५२ तक

 

अथ पाल्हखण्ड। पलखबुखारे की लड़ाई अथवा इन्दल हरण व बिवाह वर्णन॥ । 5 सवैया।।.. बाजत झांझ मृदंग तहाँ औ सबै मुश्चंगनसों स्वर गावें। काजत तार सितारनके यकत" की गति कौन बतावें ।। राजत बीण तहाँ तवला अवरु जहँ झंडन मुंडन आवे । गाजत कृष्ण तहाँ ललिते अब जहाँ शिव गोपीरूप बना ? मुमिरन । मैया भैया और बपैया सब दिशि देखा खूब निहार ॥ बिना चरैया गैयावाला दैया कौन होय रखवार ? बुढ़े नैया भवसागर में कोउ न मिले खेवैया हाल ।। मैया यशुमति केर कन्हैया भैया साँच कहें मुरपाल २ पारलगैया म्वरि नैया के गैयापाल कृष्ण महराज ॥

और खेवैया को नेया का जाकीशरण ले हम आज ३

तुम्ही गुसैयाँ दीनबन्धु हौ ओ ब्रह्मण्यदेव ब्रजराज॥
लाज रखैया बाम्हन तनकी साँचे एक कृष्ण महराज ४
शरणहि ताकत बिप्र सुदामा पायो सकल सम्पदा राज॥
छूटि सुमिरनी गई कृष्ण की इन्दल ब्याह बखानों आज ५

अथ कथाप्रसंग॥


परब दशहरा की जग जाहिर बुड़की हेतु जाय संसार॥
भारी मेला श्रीगंगा को हिंदुनक्यार पूर त्यवहार १
बहुतक छैला अलबेला तहँ घोड़न उपर भये असवार॥
करी तयारी श्रीगंगा की चक्कस लिये बुलबुलनक्यार २
जेठदुपहरी आरी ह्वैकै ब्यारी करैं बृक्षतर आय॥
देखि गँवाँरी तहँ नारी नर बोला तुरत बनाफरराय ३
कहाँ तयारी नर नारी करि ब्यारी किह्यो यहाँपर आय॥
देखि बनाफर को नर नारी बोले साँच देयँ बतलाय ४
कीन तयारी हम विठूर की भारी पर्ब दशहरा केरि॥
चकित ह्वैकै ऊदन दीख्यो चारिउ दिशातरफ फिरिहेरि ५
भारी मेला अलबेला तो रेला चला जाय सबराह॥
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया आयो जहाँ बैठ नरनाह ६
हाथ जोरिकै तहँ आल्हा के ऊदन बोले शीश नवाय॥
करैं तयारी हम गंगा की दादा हुकुमदेउ फरमाय ७
इतना सुनिकै आल्हा बोले साँची सुनो लहुरवा भाय॥
देश देशके राजा अइहैं होई भीर भार अधिकाय ८
रारि मचैहौ तुम मेला में हमपर परी आपदा आय॥
ताते जावो नहिं मेला को मानो कही लहुरवा भाय ९
इतना सुनिकै माहिल बोले तुम सुनिलेउ बनाफरराय॥

लड़िका ऊदन अब नाही हैं जो तहँ रारि मचैहैं जाय १०
बातैं सुनिकै ये माहिल की आल्हा बोले बचन बनाये॥
तुम चलिजावों माहिल मामा तौ हम ऊदन देयँ पठाय ११
इतना सुनिकै माहिल बोले हम तो करब जाय असनान॥
करो तयारी ऊदनठाकुर आल्हावचन मानिपरमान १२
आल्हा बोले फिरि देबाते तुमहूं जाउ साथ यहिकाल॥
पै तुम बर्ज्यो बघऊदन को जहँपर होय रारिको हाल १३
इतना कहिकै आल्हाठाकुर महलन फेरिगयो अलसाय॥
करै तयारी ऊदन लागे बाँके घोड़ लीन कसवाय १४
कच्छी मच्छी हरियल मुश्की सुर्खा सुरंगा रङ्ग बिरंग॥
नक्खा गर्रा पँचकल्यानी सब्जा स्याह एकही रंग १५
चुने सिपाही लिये संग में जिनते हारिगई तलवार॥
सजा रिसाला घोड़नवाला लग भग जानो एक हजार १६
सजे सिपाही पंद्रासौ लग एकते एक लड़ैया ज्वान॥
बाजे डंका अहतंका के घूमन लागे लाल निशान १७
इन्दल आये त्यहि समया में ऊदन पास पहूंचे आय॥
हमहूं चलिवे श्री गंगा को चाचा लेवो साथ लिवाय १८
इतना सुनिकै ऊदन बोले बेटा मानो कही हमार॥
दादा भौजी जो रोंकैं ना हमरे साथ होउ तय्यार १९
इन्दल चलिभे तब महलन को माता पास पहूंचे जाय॥
हाथ जोरिकै इन्दल बोले मातै बार बार शिरनाय २०
हुकुम कराय देउ ददुवा सों आवों चाचा साथ नहाय॥
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली बेटै बारबार समुझाय २१
पर्व दशहरा की टरिजावै फिरि तुम आयो गङ्ग नहाय॥

भारी मेला है बिठूर का जो तुम जैहौ पूत हिराय २२
हौ इकलौता म्बरी कोखि में ताते मोर प्राण घबड़ाय॥
इतना सुनिकै इन्दल बोले माता साँच देयँ बतलाय २३
जान न पावैं जो गंगा को तौ मरिजायँ जहरको खाय॥
हुकुम देवावै की ददुवाते की अब घरै बैठि पचिताय २४
सुनिकै बातैं ये इन्दल की सुनवाँ गई सनाका खाय॥
गई तड़ाका ढिग आल्हा के इन्दल हाल बतावा जाय २५
बातैं सुनिकै सब सुनवाँ की आल्हा बोले वचन सुनाय॥
लिखी विधाता की मेटै को अब तुम देवो पूत पठाय २६
जहर खायकै जो मरिजाई तौहू शोच होय अधिकाय॥
पार लगैहैं श्रीगंगाजी यहमत ठीक लीन ठहराय २७
इतना सुनिकै सुनवाँ चलिभै इन्दल पास पहूँची आय॥
औं बुलवायो बघऊदन को सवियाँहालकह्योसमुझाय २८
इन्दल बिगरे हैं महलन में गंगा इन्हैं देउ अन्हवाय॥
पै हम सौंपति त्वहिं इन्दलको देवर बार बार शिरनाय २९
किह्यो बखेड़ा नहिं मेला में रेला होय तहाँ अधिकाय॥
वहाँ न जायो इन्दल लैकै मान्यो कही बनाफरराय ३०
इतना सुनिकै ऊदन इन्दल दोऊ चलिभे शीश नवाय॥
जायकै पहुँचे फिरि फौजन में लश्कर कूच दीन करवाय ३१
बायें घोड़ा है देबा का दहिने बेंदुल का असवार॥
बीच म जावै इन्दल ठाकुर कम्मर परी एक तलवार ३२
पांच दिनौना मारग लागे छठवें दिवस पहूंचे जाय॥
भारी मेला भा बिठूर माँ आवा तहां कनौजीराय ३३
बाजै डंका तहँ ऊदन का लाखनि धावन लीन बुलाय॥

कहि समुझावा त्यहि धावनको डंका बन्द देउ करवाय ३४
हुकुम कनौजी का नाहीं है डंका कोऊ बजावै आय॥
इतना सुनिकै धावन चलिकै डंका बजत दीन रुकवाय ३५
कहा न मान्यो जब बरऊदन देबा ठाकुर उठा रिसाय॥
तुम्हैं मुनासिब यह चहिये ना सबसों बैर बढ़ावो भाय ३६
चालकै मिलिये अबलाखनिसों उनसों हुकुम लेउ करवाय॥
हीनी तुम्हरी कछु ह्वैहै ना मानो कही बनाफरराय ३७
सुनिकै बातैं ये देबा की ऊदन मानिंगयो त्यहिकाल॥
पाँच दुमाला दुइ हीरा लै चलिभा देशराजका लाल ३८
नचै पतुरिया त्यहि तम्बूमें ज्यहिमें रहें कनौजीराय॥
ऊदन ठाकुर तहँ पहुँचतभा राखी भेंट अगाड़ी जाय ३९
हाथ पकरिकै लाखनिराना अपने पास लीन बैठाय॥
कही हकीकति बघऊदन ने लाखनिहुकुमदीनफरमाय ४०
बाजै डंका इक ऊदन का औरन बन्द देउ करवाय॥
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे तम्बुन फेरि पहूंचे आय ४१
सुनो हकीकति अभिनन्दनकी हंसा ताको राजकुमार॥
त्वहिकी बेटी चित्तररेखा मेला हेतु भई तय्यार ४२
नटिनी सँगमें त्यहि बेटी के जादू क्यार जिन्हैं बयपार॥
बलखबुखारे को राजा जो त्यहिअभिनन्दननामउदार ४३
त्यहि का बेटा हंसाठाकुर चलिभा बहिनी साथलिबाय॥
सबालाख लश्कर को लैकै ब्रह्मावर्त्त पहूँचा आय ४४
तम्बु गड़िगे त्यहि रेती माँ भारी ध्वजारही फहराय॥
संग सहेली त्यहि बहिनी की बोलीं बेटी वचन सुनाय ४५
चलिये हनवन जल्दी करिये अब दिनगयो यामभरआय॥

२१

सुनिकै बातैं ये सखियन की बेटी चली तड़ाकाधाय ४६
भा मटमेरा तहँ इन्दल का देखत रूपगई ललचाय॥
मन अरु नैना यकमिल ह्वैंगे सखियनदेखिगई सकुचाय ४७
फिरिफिरिचितवैदिशिइन्दलके हनवन करैं गंगको बारि॥
विधिउ न जानै गति नारी की दशरथ मरे नारिसों हारि ४८
सोई नारी फिरि फिरि चितवै कैसी करैं आजु त्रिपुरारि॥
इन्दल निकले जलके बाहर सोऊनिकलिपरीसुकुमारि ४९
दिह्यो दक्षिणा द्विज देवनको दोऊ मोहबे के सरदार॥
तहँते चलिभे फिरि तम्बू को देखत मेला केरि बहार ५०
चचा भतीजे दोऊ ठाकुर तम्बुन फेरि पहूँचे आय॥
बेटी प्यारी अभिनन्दन की सोऊ चली तहाँ ते धाय ५१
आयकै पहुँची सो तम्बुन में औ सखियनसों लगीबतान॥
ऐस रँगीला और सजीला मेला नहीं दूसरो ज्वान ५२
करिकै जादू याको हरिये करिये सखी स्वई अबसाज॥
मन नहिं हटको हमरो मानै ना अब करैं तुम्हारी लाज ५३

सवैया॥


होत अकाज न लाजरहै यह राज समाज लखे दुख छावै।
जो कुलकानि न आनिकरों कुलटा उलटा म्बहिंलोगबतावै॥
भावै यहै हमको सजनी रजनी बिन पीतम आनि मिलावै।
पावै जबै ज्यहि नेहलग्यो ललिते मनमें तबहीं सुखआवै ५४


सुनिकै बातैं चितरेखा की सखियनकहा बहुतसमुझाय॥
धीरज राखो अपने मन माँ पीतम मिली तुम्हारो आय ५५
इतना कहिकै संग सहेली हेली तुरत भईं तय्यार॥

लय अलबेली संग सहेली आई देखन गङ्ग बहार ५६
ऊदन इन्दल देबा ठाकुर तीनों गये तहाँपर आय॥
नाव मँगायो मल्लाहन ते बैठ्योसुमिरि शारदामाय ५७
बैठी नावन में चितरेखा बेखा नटिनिन केरि बनाय॥
काह बतावैं हम लेखा त्यहि देखा रूप नहीं है भाय ५८
पै अवरेखा चितरेखा को लेखा कामदेव की नारि॥
उठैं तरङ्गै तहँ गंगा की जंगा करैं वारिसों बारि ५९
लेकै पुरिया भैरोंवाली ऊदन उपर दीन सो डारि॥
बीर महम्मद की पुरिया को देबा उपर चलावा नारि ६०
नजर बन्दभै जब दूनों कै तुरतै इन्दल लीन उतारि॥
सुवा बनायो सो इन्दल को पिंजरा लीन तड़ाका डारि ६१
उतरिकै नावनसों जल्दी सो तम्बुन गई तड़ाका आय॥
उतरी जादू जब ऊदन की तबनहिं इन्दल परेदिखाय ६२
जब नहिं दीख्यो तहँ इन्दलको ऊदन तुरत गये घबड़ाय॥
जार मँगाये तहँ लोहे के सो गंगा माँ दये डराय ६३
मच्छ कच्छ बहुतक फँसिआये पै नहिं इन्दल परे दिखाय॥
तिल तिल ढूंढा सुइँ मेला में ऊदन देबा संग लिवाय ६४
पता न पायो जब इन्दल को तम्वुन फेरि पहूँचे आय॥
कही हकीकति तहँ माहिल ते नाहर उदयसिंह तहँ गाय ६५
सुनिकै बातैं उदयसिंह की माहिल बोले बचन बनाय॥
करो अँदेशा कछु जियरेना आल्है द्याब वहाँ समुझाय ६६
जादू कै कै कोउ इन्दल का साँचो लियो बनाफरराय॥
घरते ह्वैकै फिरि तुम ढूंढ्यो ह्याँते कूच देउ करवाय ६७
इतना सुनिकै उदयसिंह ने डंका कूच दीन बजवाय॥

पांव रोज को धावा करिकै दशहरिपुरै पहूँचे आय ६८
ऊदन रहिगे एक कोस में माहिल गये अगाड़ी धाय॥
बड़ी खातिरी आल्हा करिकै अपने पास लीन बैठाय ६९
आल्हा बोले तहँ माहिल ते मामा हाल देउ बतलाय॥
ऊदन देबा इन्दल बेटा तीनों रहे कहांपर भाय ७०
हम नहिं देखत इन तीनों को ताते चित्त बहुत घबड़ाय॥
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची सुनो बनाफरराय ७१
ख्यलै नेवारा गे नदिया में ऊदन इन्दल साथ लिवाय॥
ऊदन देबा इकमिल ह्वैकै औ इन्दलको दीन बहाय ७२
टरिजा टरिजा माहिल मामा धरती खोदि लेऊँ गड़वाय॥
ऐसी बातैं फिरि बोले ना ठाकुर साँच दीन बतलाय ७३
है मर्दाना ऊदन बाना मामा काह गये बौराय॥
किहे दिल्लगी की साँची है हमरोचित्त बहुत घबड़ाय ७४
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची कहा बनाफरराय॥
पोथा पढ़िकै धरिदीन्ह्यो सब अक्किल तुम्हरी गई हिराय ७५
कौनिअदावति नलपुष्कलकी भारत पढ़े बनाफरराय॥
कैसि दुर्दशा नलकी कीन्ह्यो पुष्कलनलकोजुआँखिलाय ७६
बिना वस्त्र के महराजा भे साजा सबै साज कर्तार॥
तिनकी प्यारी दमयन्ती जो सोऊ छूटिगई त्यहि बार ७७
त्यहि दमयन्ती के ब्याहे में आये पवन अग्नि सुरराज॥
उद्यम कीन्ह्यो गल ब्याहे को चाहे दूत भये नलराज ७८
ब्याह न कीन्ह्यो दमयन्ती ने बिन्ती बहुत कीन नलराज॥
गन्ती कीन्ह्यो दमयन्ती ना लज्जितभये तहाँ सुरराज ७९
बारह बरसै बनबाजी मा राजी भये इन्द्र महराज॥

आल्हा भैने साँची जानो ऊदनकीन्ह साँचयहकाज ८०
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर गरूई हाँक दीन ललकार॥
टरिजा टरिजा उरई वाले तारे चुगुलिन का बयपार ८१
साँची साँची आल्हा ठाकुर तुम्हरो इन्दल गयो हिराय॥
कहाँ असाँचा आल्हा ठाकुर साँचा सहों पुत्रका घाय ८२
करों दिल्लगी अस कबहूँ ना साँची सुनो बनाफरराय॥
ऊदन बोले ह्याँ देबा ते हमरो चित्त बहुत घबड़ाय ८३
दशहरिपुरवा माहिल पहुँचे कैसी खबरि सुनावैं जाय॥
पुत्र शोक सम दुख दूसर ना जानतगाथ भली तुममाय ८४
पुत्र शोक सों दशरथ मरिगे कीरति रही जगत में भ्राज॥
कीरतिसागर भट नागर जे आगर सबैगुणन रघुराज ८५
तेई खेवैया अब नैया के भैया काह करैं धौं आज॥
यहु दिन आये लग ध्यावै जो कलयुगस्वऊभक्तशिरताज ८६
सोई कलयुग के ऊदन हम साँचे कर्म्म कीन रघुराज॥
दया न छोड़ा द्विज गाइन ते पीठि न दीन प्राणकेकाज ८७
नहिं अभिमानी बातैं ठानी बालक बिप्र साथ महराज॥
परम पियारे द्विज तुम का हैं निर्मलएकऋचाज्यहिभ्राज ८८
ऐसी स्तुति ऊदन कीन्ह्यो देवा चलत भयो ततकाल॥
आयकै पहुँच्यो त्यहि मंदिर में ज्यहिमें देशराजको लाल ८९
ठाढ़े दीख्यो जब देवा को चलिमा उरई का सरदार॥
भल भल रोंका आल्हा ठाकुर करिकै बहुतभांति सतकार ९०
पै नहिं मान्यो जब माहिल ने आयसु दियो बनाफरराय॥
देखिकै सूरति फिरि देवा की आल्हागये बहुत घबड़ाय ९१
कैसी गुजरी है तीरथ में देवा साँच देय बतलाय॥

परम पियारो पुत्र हमारो इन्दल राख्यो कहाँ छिपाय ९२
पूत न होवैं बहु कलयुग में यामें भूतन को अधिकार॥
सेव करावैं बालापन में ज्वाने भये बसैं ससुरार ९३
पूत सपूतो इन्दल प्यारो कहँ पर मैनपुरी चौहान॥
इतना सुनिकै देबा बोला साँची कहौं शपथभगवान ९४
वंश पिथौरा के नजदीकी आहिन सत्य बनाफरराय॥
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे भाई सरिस चारिहू भाय ९५
कमती जानैं जो काहू को तो म्वहिं सजादेयँ भगवान॥
कोऊ लैगा छलि जादू सों इन्दल तुम्हरो पूत परान ९६
ऊदन बिगड़े तहँ मेला में जैवे पता लगावन काज॥
तिल तिल पृथ्वी मेला ढूँढ़ा भारी भीर तहाँ महराज ९७
पता न लाग्यो जब इन्दल को माहिल कहा तबै समुझाय॥
आल्हा ठाकुर को समुझावब ऊदन कूच देउ करवाय ९८
कहा मानिकै तब माहिल का डांड़े परा लहुरवा भाय॥
जौन देश में इन्दल ह्वैहैं ऊदन लैहैं खोज लगाय ९९
बात सुनिकै ये देबा की आल्हा बहुत गये घबड़ाय॥
जो कछु भापा माहिल ठाकुर साँची जना बनाफरराय १००
पुत्र शोच सों उर धड़कत भो जियरे धीर धरा ना जाय॥
आल्हा बोले तब देबा ते तुम ऊदनको लवो बुलाय १०१
उनहीं पाँयन देबा चलिभा ऊदन खबरि दीन बतलाय॥
बड़े शोच में बड़ भैया हैं तुमकोतुरतबुलायनिभाय १०२
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे सम्मुख गये तड़ाका आय॥
आवत जान्यो जब ऊदन को आल्हाशीशलीननिहुराय १०३
औ दिशि दीख्यो ना ऊदनके मानों शत्रु ठाढ़ भो आय॥

हाथ जोरिकै ऊदन बोले चरणन बार बार शिरनाय १०४
मोहलति पावों छा महिना कै इन्दल खोजिदिखाओं आय॥
इतना सुनिकै आल्हा जरिगे अपनो कोड़ा लीनउठाय १०५
पीटन लाग्यो जब ऊदन को सुनवाँ सुनत गैई तहँ आय॥
कहि समुझायो सो आल्हाको आल्हातुरतदीन दुरियाय १०६
टरिजा टरिजा री सम्मुख ते नहिं शिरकाटिदेउँ भुइँ डारि॥
ऊदन मारा है इन्दल को साँचीखबरि मिलीम्बहिंनारि १०७
सुनवाँ बोली फिरि आल्हाते साँची सुनो बनाफरराय॥
हम तुम जी हैं जो दुनिया में ह्वैहैं पुत्र नाथ अधिकाय १०८
मिली सहोदर फिरि भाई ना आई कौन साँकरे काज॥
सुन्दरगढ़ को चाचा हमरो तुमको कैदकीन महराज १०९
बनि सौदागर उदयसिंह ने तुम्हरी कैद दीन छुड़वाय॥
बराबरस के ऊदन ठाकुर माड़ोलीन बापका दायँ ११०
लड़ि गजराजा सों ऊदन ने मलखे ब्याह दीन करवाय॥
नरपति राजासों लड़िकै फिरि फुलवालये लहुरवाभाय १११
हथी पछारा इन दिल्ली में द्वारे पृथीराज के जाय॥
ऐसे नामी इन ऊदन का मारब नहींमनासिबआय ११२
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर जूरा पकड़ि तड़ाकालीन॥
खैंचिं तमाचा शिरमाँ मारा सुनवाँगमनमहलकोकीन ११३
मारन लाग्यो फिरि ऊदन को द्यावलि सुनत पहूँची आय॥
मोललकारा फिरि आल्हाको मारो नहीं बनाफरराय ११४
इतना सुनिकै आल्हा बोले माता बैठु धाम में जाय॥
जैसे ऊदन तुम को प्यारे तैसे पूत हमारो आय ११५
हम समुझावा भल ऊदन को तुम ना जाउ लहुरवा भाय॥

पूत हमारे के मारन को ऊदन मेला गये लिवाय ११६
बातैं सुनिकै ये आल्हा की द्यावलि ठाढ़ि रही शिरनाय॥
ऊदन ठाकुर को आल्हा ने कोड़न चर्सा दीनउड़ाय ११७
ओ ललकारा फिरि ऊदन को आल्हा दाँतन ओठ चबाय॥
धिक धिक तेरी रजपूती का इन्दल बिना पहूँचे आय ११८
दशहरिपुरवा अब आये ना नहिंहनिडरों खड्ग के घाय॥
जहँ मनभावै तहँ चलिजावै साँची शपथ शारदामाय ११९
सुनिकै बातैं ये आल्हा की ऊदन चला बहुत घबड़ाय॥
सुनवाँ फुलवा द्यावलि तीनों पृथ्वी गिरीं पछारा खाय १२०
देबा ऊदन दोऊ ठाकुर सिरसागढ़ै पहूँचे जाय॥
खबरि पायकै मलखाने ने फाटकवन्दलीन करबाय १२१
यह गति दीख्यो उदयसिंहने ठाढ़ो लाग तहाँ पछिताय॥
कोऊ साथी नहिं बिपदा में यह देबाते कह्यो सुनाय १२२

सवैया॥


जाकि सुता हरिके गृह शोभित चन्द्रललाट महेश प्रवीनो।
इन्द्र गयन्द दयो हय रबिको देवन धेनु ढुमादिक दीनो॥
शिरी मुनिरायजू कोपकिह्यो तब गण्डकधारि सबै जलपीनो।
एते बड़ेको बिपत्तिपरी तब सिंधु कि काहु सहाय न कीनो १२३


इतना सुनिकै देबा बोला साँची सुनो लहुरवा भाय॥
साथ तुम्हारो हम छाँड़व ना चहुतनधजीधजीउड़िजाय १२४
पै हम बांचे बहु पुराण हैं देखी कथा अनेकन भाय॥
बिपतिमें साथी कोउ बिरलाहै साॅची सुनो बनाफरराय १२५

सवैया॥

रागवही ज्यहि रामबसैं अरुध्यान वही जो धनी के धरेका।
प्रीति वही जो सदा निवहै अरु दाग वही कटु बचनकहेका॥
सुखसम्पत्ति अनेक भरी पर आवै नहीं कोउ काम परेका।
काहेकोआदम शोचतहै कोउ मित्रनहीं है बिपत्ति परेका १२६
ठाकुर वही जो दुख सुख बूझै सेवक वो मनलाग रहेका।
भाई वही जो भारहि खैंचत पुत्र वही परिवार बढ़ेगा॥
नारी वही जो जरै पियके सँग शूर वही सनमुक्खलड़ेका।
सम्पतिमेंतो अनेकमिलैं पर मित्रवही जो बिपत्ति परेका १२७



इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची कही समय की बात॥
अब मन भाई यह हमरे है नरवर चलैं आजहीतात १२८
यह मन भाय गई देबाके दोऊ भये बेगि तय्यार॥
सात रोजकी मैजलि करिकै नरवर पहुँचिगये सरदार १२९
यह सुधि पहुँची जब मोहबे में आल्हा तजा लहुरवाभाय॥
बारहु रानिन सों परिमालिक महलन गिरे मूर्च्छाखाय १३०
तुरत पालकी को मँगवायो दशहरिपुरै पहूँचे जाय॥
औधिरकाल्यो भल आल्हा को रहिगा चुप्प बनाफरराय १३१
कायल ह्वैगै आल्हाठाकुर राजा लौटि परा पछिताय॥
ऊदन बैठे ह्याँ कुँवना पर हिरिया गई तहाँ परआय १३२
देखिकै सूरति बघऊदन के हिरिया गई तुरत पहिंचान॥
हँसिकै हिरिया बोलन लागी साँचीसुनोबनाफरज्वान १३३
कौनि मुसीबत तुमपर परिगै जो तजि दियो ढालतलवार॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले मालिनिठीककहैयहिबार १३४

परी मुसीबत हमरे ऊपर पृथ्वी मोहबा लीन लुटाय॥
घोड़ बेंदुला फुलवा सुनवाँ लीन्ह्यो जीति पिथौराराय १३५
करब नौकरी हम मकरँद कै महलन खबरि जनावै जाय॥
इतना सुनिकै हिरियामालिनि महलन अटीतुरतहीआय १३६
जहँ पर माता मकरन्दाकी ऊदन कथा गई तहँ गाय॥
आवन सुनिकै बघऊदन का मातामकरँदलीन बुलाय १३७
जो कछु गाथा मालिनि भाषी माता मकरँदगई सुनाय॥
इतना सुनिकै मकरँद चलिभा कुँवना उपर पहूँचाआय १३८
कुशल प्रश्न करि सब आपस में मकरँद बोला अतिघबड़ाय॥
हाल बतावो ऊदनठाकुर हमरे धीर धरा ना जाय ९३९
हिरियामालिनि की बातैं सुनि माता बैठि महल पछिताय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले मालिनिबातदिल्लगीभाय १४०
सुनिकै बातैं बघऊदन की मकरँद घरका चलालिबाय॥
ऊदन पहुँचे रनिवासे में देबा टिका द्वार पर आय १४१
हाल बतायो सब महलन में जैसे इन्दल गये हिराय॥
मारा पीटा जस आल्हा ने सोऊ कथा गये सबगाय १४२
बनी रसोई फिरि महलन में संध्याकाल पहूँचा आय॥
मकरँद ऊदन भोजन करिकै सोये विकट नींदको पाय १४३
चले दिवाकर घर अपने को पक्षिन लियो बसेरा धाय॥
लिहे अञ्जली दोउ हाथन में सुरजनअर्घदेयँ द्विजराय १४४
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गढ़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे सन्तनधुनी दीनपरचाय १४५
परे आलसी निजनिज शय्या घों घों कण्ठ रहे घर्राय॥
गुरू पिता दोऊ पद जिनके तिनकेचरणनशीशनवाय १५६

करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त ।।
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १४७

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबावू
प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलां
निवासिमिश्रबंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसाद
कृतऊदननरवरगमनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥

सवैया॥

कौनफली सबकाल बली यहि पुण्यथलीमनमाँझ बिचारा।
निंदिकै काहि बखानकरों क्यहि कौनसों बैरकरों यहिबारा॥
याहि लियों ठहराय मनै प्रभु एकसों एक हैं देव उदारा।
बेद पुराण बतावत हैं ललिते सब ते बढ़िकै ॐकारा १

सुमिरन॥


इकलो अक्षर ॐकार को अब हम शिरसों करैं प्रणाम॥
ब्रह्मा विष्णु औ शिवशंकर दुर्गा केर ताहि में धाम १
एक मात्रा में शिवशंकर दुर्गा अर्द्ध करैं विश्राम॥
एक मात्रा में ब्रह्माजी एक म रहैं हमारे राम २
इकलो अक्षर यहु जो ध्यावै पूरण होयँ तामु के काम॥
यहिते बढ़िकै हिन्दूमत में दूसर नहीं बेद मैं नाम ३
अज अविनाशी घट घट बासी पूरण ब्रह्म चराचर राम॥
बेद व्याकरण दोउ साखी हैं खण्डनकरै कौन यह नाम ४
नाम न रैहै जब दुनियाँ मा तब सब होइहैं पशू समान॥
कीरति गावों बघऊदन कै सुनिये खूब ध्यान धरि ज्वान ५

अथ कथाप्रसंग॥


उदयदिवाकर भे पूरब में किरणनकीन जगत उजियारा॥
सोयकै जागे बघऊदन तब प्रातःकृत्य कीन सरदार १

ऊदन देबा मकरँद ठाकुर तीनों एक जगा मे आय॥
ऊदन बोले तब देबा ते दादा शकुन देउ बतलाय २
भाई भौजी माता छोटी फुलया ऐसि छूटिगै नारि॥
पता लगाये बिन घर जावैं दादा डरै जानसों मारि ३
माता तलफति घरमा होई भौजी होई हाल बिहाल॥
मल्हना रानी रोवति होई होइहैं दुखी रजापरिमाल ४
हाल बतावों का फुलवा के मुर्दासरिस होयगी बाल॥
जेठ दशहरा दुशमन ह्वैगा कहिये काह करैं यहिकाल ५
इकलो बेटा म्बरे भैया के सबविधि रूपशील गुणवान॥
क्षमा न करिहैं सो बेटा बिन यह हम ठीक कीन अनुमान ६
इतना सुनिकै देवा बोला भैया उदयसिंह सरदार॥
प्रश्न हमारो यह बोलत है योगी बनो फेरि यहिवार ७
यह मनभाई उदयसिंह के मकरँद साथ भयो तय्यार॥
तिलकलगायो फिरिकेशरिका गेरुहा वस्त्र पहिरि सरदार ८
गुदरी डारी फिरि कांवेमाँ त्यहिमाँपरी ढाल तलवार॥
डमरू लीन्यो मकरन्दा ने बँसुरी उदयसिंह सरदार ९
खँझड़ी लीन्ह्यो देवाठाकुर मकरँद बोलिउठा त्यहिवार॥
महल हमारे पहिले चलिये पाछे अनत चलेंगे यार १०
सम्मत करिकै तीनों योगी पहुँचे जाय राजदरवार॥
बैठ सिंहासन नरपति राजा देवा कीन्ह्यो राम जुहार ११
पै पहिंचाना जब नरपति ना मकरँद हाथ जोरि शिरनाय॥
जितनी गाथा बघऊदन की सो राजा को दीन बताय १२
हाल जानिकै महराजा ने तुरतै हुकुम दीन फर्माय॥
तहँते चलिभे मकरँद ऊदन माता पास पहूँचे आय १३

मर्म जानिकै महतारीने आशिर्बाद दीन हरषाय॥
मकरँदचलिभा निजमहलनको पहुँचा नारिपास सो जाय १४
कही हकीकति सब रानी सों कुसुमा बोली शीश नवाय॥
पहिले जैयो तुम झुन्नागढ़ तहँपर पता लगैयो जाय १५
घर घर जादूई झुन्नागढ़ कन्ता सत्य कहौं समुझाय॥
तुमहूं जावो ऊदन सँग में हमरो चित्त बहुतघबड़ाय १६
इतना कहिकै कुसुमारानी पुरिया चारि दीन पकराय॥
रखिहौ मुखमाँ यह पुरिया जब जादूसकी निकट नहिंआय १७
लैकै पुरिया मकरन्दा फिरि तहँ ते कूच दीन करवाय॥
देबा ऊदन जहँ ठाढ़े थे मकरँद तहाँ पहूँचा आय १८
सम्मत करिकै तीनों योगी झुन्नागढ़ै चले फिरिधाय॥
सातरोजकी मैजलि करिकै झुन्नागढ़े पहूँचे आय १९
बाजा डमरू मकरन्दा का खँझड़ी मैनपुरी चौहान॥
बाजी बँसुरी तहँ ऊदन की गावनलाग राग कल्यान २०
तान कान में ज्यहिके जावे त्यहिके जाय प्रान पर आन॥
मोहित ह्वैगे नरनारी सब लागे हृदय तान के बान २१
भा खलभल्ला औ हल्लाअति लल्ला छांड़ि चलीं तब बाल॥
होश बजुल्ला ना छल्ला का []अल्लाध्यानकरैंत्यहिकाल २२
भये दुपल्ला उरपल्ला तब कल्लन कल्ला दीन भिड़ाय॥
प्राणन तल्ला तज्यो इकल्ला लल्ला जौनु बनाफरराय २३
बड़ी भीर भै गलियारे में नाचै देशराज का लाल॥
बाजै डमरू जस मकरँद के देबा देय तैसही ताल २४
रूप देखिकै तिन योगिन का जादू करैं अनेकन नारि॥


कुसुमारानी की पुरिया सों जादू गई तहां सब हारि २५
रूप उजागर सब गुण आगर नागर देशराज का लाल॥
विषय उमण्डी बलबण्डी जी रण्डी कुलै बिडम्बी बाल २६
ती सब देखैं बघऊदन को ननन वैनन सैन चलाय॥
धर्म न छाँड़ै यहु क्षत्री का ज्यहिकाकहीउदयासेंहराय २७
दीख कुदृष्टी ज्यहि ऊदन का त्यहिका डाटिदीन ततकाल॥
नैनन सैनन अरु वैनन में डिगेन सिद्धपुरुषक्यहुकाल २८
हम नहिं भोगी नर योगी हैं रोगी विषय भरी तू बाल॥
माता भगिनी अरु कन्यासम देखैं तीनिभाव सबकाल २९
तपै बिखण्डी पररण्डी है भण्डी नरक केरि अधिकाय॥
यह हम जानतहैं नीकी विधि तुमने साँच देयँ बतलाय ३०
बातैं सुनिकै ई योगी की नारिन मूड़ लीन औंधाय॥
बोलि न आवा क्यहु नारी ते घर घर चलन लगीं शर्माय ३१
खबरि पायकै कान्तामल ने योगिन द्वार लीन बुलवाय॥
योगी आये जब द्वारे पर आसन तुरतदीन बिछवाय ३२
लैकै गडुवा दौरति आवा तुरतै पॉय पखारेसि आय॥
पैर धोयकै तिन योगिन का लै जलधाम छिनाकाजाय ३३
पढ़ै मनुस्मृति भलकान्तामल जाने अतिथिभाव अधिकाय॥
पै पहिंचानत त्यहि योगीथे मकरँद बार बार मुसुकाय ३४
यह गति दीख्यो मकरन्दाकै बोल्यो तुरत बनाफरराय॥
तुम पहिंचान्योनहिंमकरँदको तुमको देखि देखिमुसुकायँ ३५
पाय इशारा यहु ऊदन का मुरख तन दीख खूब धरिध्यान॥
देवा ऊदन मकान्दा का निश्चय फेरिलीन पहिंचान ३६
किह्यो खातिरी तब पहुनन कै लै रनिवास पहूँचा जाय॥

ऊदन मकरँद को रानी लखि खातिरफेरिकीनअधिकाय ३७
रानी पूछा फिरि मकरँद ते योगी बन्यो पूत कस आय॥
इतना सुनिकै मकरँद ठाकुर इन्दलहरण गयोसबगाय ३८
सुनिकै बातैं सब मकरँद की रानी बार बार पछिताय॥
लिखी विधाता की मेटै को औ दैयागतिकही न जाय ३९
पूत सपूतो इन्दल खोयो मातै पितै दुःख अधिकाय॥
बिधना डारै अस बिपदा ना कोउ न सहै पुत्रका घाय ४०
भरे घुचघुचा सुनि ऊदन के नैनन नीर परे दिखराय॥
उठिकै ऊदन रनिवासे ते देबी धाम पहुँचे आय ४१
बेठिकै मठियामा बघऊदन सुमिर्यो तहाँ शारदामाय॥
ध्यान लगायो जगदम्बा का सब अवलम्बा दीनभुलाय ४२
शोच भूलिगा तब ऊदन का मनमाँ खुशीभई अधिकाय॥
तहँते चलिकै बघऊदन फिरि महलन अटातुरतही आय ४३
बनी रसोई रनिवासे में भोजन कीन सबन सुखपाय॥
राति अँध्यरिया फिरि आवत भै सोये बिकट नींदको पाय ४४
बलखबुखारे निशि स्वपना माँ पहुँचा देशराजका लाल॥
सोयकै जाग्यो बघऊदन जब लाग्यो सबतेकहनहवाल ४५
बलख बुखारे के जैबे को तीनों बीर भये तय्यार॥
कान्तामलहू सँग में ह्वैगा चारों चलतभये सरदार ४६
अटक उतरिकै काबुल ह्वैकै पहुँचे बलखबुखारे जाय॥
शहर पनाहै चौगिर्दा ते बड़बड़महलपरैं दिखलाय ४७
साँचे योगी चारो बनिकै पहुँचे शहर बीच में आय॥
बाजी खँझड़ी तहँ देवा की मकरॅद डमरू रहा बजाय ४८
कर इकतारा कान्तामल के ऊदन बँसुरी रहा बजाय॥

ता ता थेई ता ता थेई थिरकनलागलहुरवाभाय ४९
ठप्पा ठुमरी भजन रेखता धुर्पद सरंगीत कल्यान॥
राग बिहगरो जयजयवन्ती तूरैं गजल पर्जपर तान ५०
कमर झुकावै भाव बतावै लाला देशराज का लाल॥
रूप देखिकै तिन योगिन का अबलनसबलखड़ीतहँमाल ५१
कोऊ अँगिया पहिरनि आवै जूरा कोऊ सँवारति बाल॥
कोऊ दुपट्टा गलसों ओढ़ै कोऊ चली मोरकी चाल ५२
कोऊ महाउर लिये हाथ में कोऊ चली छाँड़ि कै बाल॥
कोऊ मेंहदी तजिकै दौरी बौरी भई तहाँपर बाल ५३
ऐसी बंशी प्यारी बाजै राजै ऊदन ओठ बिशाल॥
गाजै छाजै ध्वनि उपराजै लाजैं देखि देखि मनवाल ५४
हेला मेला अलबेला मा ठेला ठेल गैल में भाय॥
कोऊ चमेला कोउ बेलाका बारन तेल लगावत जाय ५५
बड़ी भीर भय गलियारन में कहुॅ तिलडरा भूमि ना जाय॥
नचै बेंदुला का चढ़वैया आल्हा केर लहुरवा भाय ५६
दावति आवैं नृप ड्योढ़ी को चागें रूम शील अधिकाय॥
जायकै पहुँचे जब फाटकपर बाँदिन भीरभई अतिआय ५७
खबरि मुनाई रनिवासे में रानिन महलन लीनबुलाय॥
झूँठ लफोड़ा अस नाहीं थे जसकछुआजपरैं दिखलाय ५८
तबै जमाना कनु साँचा था जाँवा चला धाम को जाय॥
ब्राह्मण माधुन पर परतीती नीती यही सदाकी आय ५९
चलै अनीती तजि रीती जो ताको देय देय धिक्कार॥
नृप अभिनन्दन के महलन में योगी पहुँचिगये त्यहिवार ६०
कहाँते आयो औ कह जैहौ अपनो हाल देउ बतलाय॥

सुनिकै बानी महरानी कै बोला तुरत बनाफरराय ६१
हमतो योगी बंगाले के जावैं हरद्वार को माय॥
भिक्षावृत्ती करि हम खावैं तुमते साँच दीन बतलाय ६२
रानी बोली फिरि योगिन ते बारे डार्यो मूड़ मुड़ाय॥
कौनि व्यवस्था तुमपर परिगै सोऊ साँच देउ बतलाय ६३
सुनिकै बानी यह रानी कै बोला मैनपुरी चौहान॥
गीता गायो जो अर्जुन ते स्वामी कृष्णचन्द्र भगवान ६४
पढ़ि पढ़ि गीता बैरागी ह्वै हम सब लीन योग को धार॥
लिखी बिधाता की मेटै को रानी मानो कही हमार ६५
इतना सुनिकै रानी बोली अब तुम भजन सुनावोगाय॥
बातैं सुनिकै महरानी की नाचनलाग लहुरवा भाय ६६
बेटी आई अभिनन्दन के देखै सोऊ तमाशा धाय॥
बाजैं खँझड़ी तहँ देबा के मकरँद डमरू रहा बजाय ६७
भैरोंवाली पुरिया डारी सबकी सुधिबुधि गई हिराय॥
ऊदन बोले तब बेटी ते भोजन हमै देउ करवाय ६८
कीनि तयारी जब ब्यारी कै लाग्यो चित्त तबै मचलाय॥
कलके भूँखे हम गावत हैं आरी भयन पेटके घाय ६९
सुनिकै बातैं ये ऊदन की बेटी चलि भै साथ लिवाय॥
जायकै पहुँची पँचमहलापर पीढ़ा तहाँ दीन डरवाय ७०
ऊदन बोले तब बेटी ते तुमको मंत्र देयँ बतलाय॥
सुनिकै बातैं ई योगी की बेटी बाँदिन दीन हटाय ७१
ऊदन बोले तब बेटी ते हमते साँच देउ बतलाय॥
इन्दलठाकुर तुम्हरे घर में ठहरे कौन जगहपर आय ७२
जोअभिलाषा फिरि तुम्हरीहो अबहीं पूरि देयँ करवाय॥

२२

मोहिं तपस्या को बल पूरो तुमहूँ राख्यो नाहि छिपाय ७३
भूत भविष्यत बर्त्तमान की गाथा सबै सकैं बतलाय॥
बातैं सुनिकै ई योगी की बेटी पिंजरा लई उठाय ७४
करिकै बाहर फिरि पिंजराके तुरतै मानुप दीन वनाय॥
यही तरासों नित प्रति बेटी निशि में पास लेय पौढ़ाय ७५
इन्दल दीख्यो जब ऊदन को तब यह बोल्यो वचन सुनाय॥
धोखे भले ना योगी के चाचा यहाँ पहूँचे आय ७६
बातैं सुनिकै ये इन्दल की बेटी मूड़ लीन निहुराय॥
ऊदन बोले तब बेटी ते तुम्हरो ब्याह देब करवाय ७७
सवा बनावो तुम इन्दल को हम को मंत्र देउ बतलाय॥
परो उदासी है मोहबे में करिबे ब्याह वहाँते आय ७८
बेटी बोली तब ऊदन ते चाचा साँचदेयँ बतलाय॥
डोला हमरो पहिले जाई तो हम मानुप देब बनाय ७६
नहीं तो कन्ता अब जैहैंना रैहैं सदा हमारे पास॥
बारा बरसै जब तप कीनी तविधिपूरिकीनममआश ८०
कैसे जीवे बिन स्वामी के चाचा कहैं छोंड़िकै लाज॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले बेटी धरो धीर मनआज ८१
चोरी चोरा म्बहिं भावै ना तुमने साफ देयँ बतलाय॥
कौन दुसरिहा उदयसिंहको रोकी ब्याह यहाँपर आय ८२
बाधिंकै मुशकै अभिनन्दनकी भौंरी तुरत लेब करवाय॥
देश देश औ जगमें जाहिर नामी सबै बनाफरराय ८३
महिनाभर के फिरि अर्सा में ह्याॅपर ब्याह करब हम आय॥
इन्दल बोले चितरेखा ते यहही ठीकठाक ठहराय ८४
कहा न टारो तुम चाचाको तौ बिधि फेरि मिलैं हैं आय॥

जो कछु कैहैं चाचा हमरे सो नहिं टरै भूमिटरिजाय ८५
बेटी बोली फिरि ऊदन ते चाचा साँच देयँ बतलाय॥
किरिया करलो तुम आवनकी तौ फिरि जावो इन्हैंलिवाय ८६
सुनिकै बातैं चितरेखा की ऊदन गङ्गालीन उठाय॥
सुवा बनायो तब बेटी ने पिंजरा तुरत दीन बैठाय ८७
मन्त्र बतायो फिरि ऊहन को औ लै पिंजरा दीन गहाय॥
ऊदन चलिभे फिरि महलन ते पहुँचे फेरि द्वार में आय ८८
पिंजरा दीख्यो जब देवाने तब मन खुशीभयोअधिकाय॥
गीत बंदमे फिरि योगिन के तहँते कूच दीन करवाय ८९
चारो योगी चलि मारग में बैठे एक बृक्षतर जाय॥
बाहर पिंजरा के सुवना करि ऊदन मानुष दीन बनाय ९०
मानुप ह्वैगे बघइन्दल जब तब सब खुशीमये अधिकाय॥
बिदामांगि कै कान्तामल फिरि झुन्नागढ़ै पहूँचा जाय ९१
ऊदन देवा इन्दल मकरँद चारो चले तहाँते ज्वान॥
आयकै पहुँचे सिरसागढ़ में जहँपर बसै वीरमलखान ९२
मलखे दीख्यो जब ऊदन को भेंट्यो बड़े प्रेमसों आय॥
देबा बोल्यो मलखाने ते तुम सुनिलेउ बनाफरराय ९३
बिपदा आई जब ऊदन पर फाटक बन्द लीन करवाय॥
यहु दिन लायो नारायण जब तब तुम मिले बनाफरराय ९४
कोऊ बिपदामा साथी ना साँचो साँच परा दिखराय॥
मलखे बोले तब देबा ते तुमको साँच देयँ बतलाय ९५
लपण राम की तुम गाथा को जानो भलीभांति सरदार॥
छोटेभाई हम आल्हा के यह सब जानिगयो संसार ९६
करैं लड़ाई बड़भाई ते तौ सब क्षत्रीधर्म नशाय॥

धर्म न छाँड़्यो भीमसेन ने बनमाँ रह्यो मूलफलखाय ९७
किह्यो दुर्दशा दुर्योधन ने योधन भीमसेन अधिकाय॥
हुकुम युधिष्ठिर का पायो ना आयो धन बल सवै गवाँय ९८
अब बतलावो तुम इन्दल को पायो खोज कहाँपर भाय॥
इतना सुनिकै बघऊदन ने सबियाँ कथा दीनबतलाय ९९
मलखे बोले फिरि ऊदन ते दशहरिपुरै चलो तुम भाय॥
ऊदन बोले मलखाने ते दादा साँच देयँ बतलाय १००
हमहूँ मकरँद नरवर जैबे इन्दल जावो आप लिवाय॥
कसम जो खाई चितरेखा ते करिबेब्याहतुम्हारो आय १०१
कहि समुझायो तुम दादा ते नरवर मिली उदयसिंहराय॥
इतना सुनिकै इन्दल बोले चाचा सुनो बनाफरराय १०२
तुम ना हो दशहरिपुर को तौ इन्दल कै जाय बलाय॥
कौन बुलाई घर इन्दल का जेंवो बच्छ तड़ाकाआय १०३
सुनिकै बातैं बघइन्दल की ऊदन कहा बहुत समुझाय॥
मलखे दादा के सँग जावो नरवर मिलबतुम्हैंहमआय १०४
इतना कहिकै बघऊदन ने तहँ ते कूच दीन करवाय॥
मकरँद ऊदन सिरसागढ़ ते नरवर गढ़ै पहूंचे जाय १०५
मलखे देबा इन्दल ठाकुर इनहून कुच दीन करवाय॥
लागि कचहरी परिमालिक के तीनों तहां पहूंचे आय १०६
राजा दीख्यो जब इन्दल को तब मन खुशीभयो अधिकाय॥
मलखे बोले तब राजा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १०७

सवैया॥


आज जो काज कियो बघऊदन लाजरही औ बढी प्रभुताई।
राजन आपके पुण्य प्रकाशते भासरही जग में ठकुराई॥

पारसहे जिनके घरमा तिनकी लघुता कहि कौन दिखाई।
राजनराज समाजबढ़्यो औचढ़्योललिते यशसिंधुउफाई १०८


इतना कहिकै मलखाने ने औरो हाल दीन बतलाय॥
बिदामांगिकै परिमालिक ते दशहरिपुरै पहूँचे आय १०९
मलखे देबा इन्दल सँगमाँ महलन गये बनाफरराय॥
रूप देखिकै इन तीनों का आल्हा ठाढ़ भये हर्षाय ११०
बड़ी खुशाली मन अन्तरभै औ यह बोले बचन सुनाय॥
कहाँ बनाफर बघऊदन हैं हमरे परम सनेही भाय १११
नेही गेही नरदेही को इनसोंअधिक कौनदिखलाय॥
परम सनेही यहि देही का नही टिका कहाँपर जाय ११२
डाटा डपटा नहिं ऊदन का पाला प्रीति रीति अधिकाय॥
गुणही प्यारे हैं मानुष के जानौयुगनयुगनतुमभाय ११३
होय निर्गुणी जो दुनिया मा जहँ तहँ बैठे पेट खलाय॥
यह यश गैहैं जे आगे नर खैहैं पुवा कचौरी भाय ११४
कलियुग आवाहै दुनियामा सब सों कलह देय करवाय॥
भूप युधिष्ठिर यहि डरिभागे गलिगेशैलहिमालयजाय११५
क्षण क्षण बुद्धी उलटै पुलटै पण्डित मूर्ख बनावैभाय॥
उड़ैं सुहारा सम परदारा आरा चलैं पेट में भाय ११६
वश नहिं इन्द्री अब काहूकी कलियुग नीच मीच सुखदाय॥
ऋषी कहावैं जे मनइनमा तिनहुनकामदेय बहँकाय ११७
यहु परितापी अरु पापी अति ब्यापीभयो जगत में आय॥
हाय रुपैया यहि समया में दैया बापू रहा कहाय ११८
दिना कन्हैया के ध्याये ते विपदा कोन हटावै आय॥

यहु सब जानतहैं अपने मन कलियुगअधिक२लपटाय ११९
खायँ पछारा मन कलियुग में जप तप पुण्य देयँ बिसराय॥
कोऊ ज्ञानी अरु ध्यानी ना रघुवर पार लगावैं भाय १२०
यह संजीवनि जबतक रहिहै रघुवर नाम चिंतवन भाय॥
यहि परितापी अरु पापी ते कोउकोउबचीसमरमेंआय १२१
कलह करायो यहि कलियुगने ऊदन नहीं परैं दिखराय॥
इतना सुनिकै मलखे बोले दोऊ हाथजोरि शिरनाय १२२
गये बनाफर हैं नरवरगढ़ मकरँद ठाकुर गये लिवाय॥
किह्यो शिकायत नहिं ऊदनने यह सब भाग्य करावै भाय १२३
पूर शनैश्चर माहिल मामा सोना लखत ल्वाह ह्वैजाय॥
आय हकीकी यहु मल्हना का फीकीकहै रातदिन भाय १२४
पै अरसान्यो त्यहि ऊदन ना क्षत्री रूप लहुरवा भाय॥
तुम कछु शोचो अब दादा ना होनी मेटि कौनपै जाय १२५
यह अनहोनी शुभदाई भै इन्दल ब्याह करो अबभाय॥
ऊदन मिलि हैं नरवरगढ़ माँ साँचोमिलनदीनबतलाय १२६
बहु शिरनाई यह गाई है दादै आप बुझायो जाय॥
मोरि ढिठाई जड़ताई को करि हैं क्षमा बनाफरराय १२७
कसम जो खाई चितरेखा सँग करिवे व्याह तुम्हारो आय॥
आयसु पावैं जो दादाकी राजन न्यवतदेयँ पठवाय १२८
आल्हा बोले मलखाने ते पहिले हाल देउ बतलाय॥
कौन देश को इन्दल हरिगे मिलिगेकौनरीतिसोंभाय १२९
कछू हकीकति तुम गाई ना अवहीं न्यवत पठावो भाय॥
इतना सुनिकै मलखे ठाकुर दोऊहाथ जोरि शिरनाय १३०
जितनी कीरति बघऊदन की सो आल्हा को गये सुनाय॥

हाल जानि कै आल्हा ठाकुर मनमेंसोचिसाचिअधिकाय १३१
आयसु दीन्ह्यो मलखाने को भावै करो तौन तुम भाय॥
इतना सुनिक मलखे चलि भे सुनवाँ महल पहूँचे जाय १३२
सुनवाँ दीख्यो मलखाने को आदर भाव कीन अधिकाय॥
हाथ पकरिकै फिरि इन्दल का मलखे भाभीदीन गहाय १३३
यह गति जानैं नारायण फिरि कितनी खुशीभई अधिकाय॥
पूँछन लागी जब ऊदन का मलखेगये कथा सब गाय १३४
अब सुखदाई दिन आवा है भौजी पूत बिवाहब जाय॥
कायल ह्वैकै बड़भाई ने हमते हुकुमदीन फरमाय १३५
यही महीना मा भौंरी हैं पण्डित साइति दीन बताय॥
करो तयारी अब ब्याहे की नरवर मिली बनाफरराय १३६
नाम बनाफर का सुनतैखन फुलवा तहाँ पहूँची आय॥
जितनी गाथा बघऊदन की बाँदिनतहां दीनबतलाय १३७
बड़ी खुशाली भै फुलवा के द्यावलि बार बार बलिजाय॥
तहँते चलिकै मलखे ठाकुर पण्डिततुरतलीनबुलवाय १३८
छिकै साइति मलखे ठाकुर राजन न्यवन दीन पठवाय॥
ब्याह नगीचे न्यवतहरी सब दशहरिपुरै पहूंचेआय १३९
माँय मन्तरा कै ब्यरिया भै पण्डित अटा तड़ाका आय॥
रानी आई मोहबे वाली भारी भीर भई अधिकाय १४०
करि अवलम्बा जगदम्बा का अम्बा बार बार शिरनाय॥
भई तयारी फिरि ब्याहे की इन्दलचढ़ापालकी जाय १४१
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय॥
कुँवाँ बिवाह्यो फिरि इन्दल ने सुनवाँ पैर दीन लटकाय १४२
यही नेग जब पूरा ह्वैगा इन्दल चढ़ा पालकी आय॥

सजे बराती तहँ ठाढ़े थे आल्हा कूचदीनकरवाय १४३
चलिकै पहुँचे फिरि नरवरगढ़ ऊदन मिले तहां पर आय॥
लैकै फौजे मकरन्दा मिलि आल्हा सहितचलेहर्षाय १४४
अटक उतरिकै कावुल ह्वैकै पहुँचे मास अन्त में जाय॥
रहो बुखारो आठ कोस जब तब टिकिरहे बनाफरराय १४५
टिकिगा लश्कर रजपूतन का क्षत्रिन छोरि धरे हथियार॥
आल्हा ठाकुर के तम्बू माँ बैठे बड़े बड़े सरदार १४६
बोले पण्डिन तब आल्हा ते तुम सुनि लेउ बनाफरराय॥
ऐपनवारी की बिरिया है रूपन बारी देउ पठाय १४७
इतना सुनिकै रूपन बोला दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
हम नहिं जैहैं बलखवुखारे अवकी आनदेउपठवाय १४८
इतना सुनिकै मलखे बोले रूपन साँच देउ बतलाय॥
जौने घोड़ा का जी चाहै तौनै देयँ तुरत मँगवाय १४९
घोड़ करि लिया रूपन माँग्यो मलखे तुरत दीन कसवाय॥
ऐपनवारी बारी लैकै बैठा घोड़ पीठि में जाय १५०
ढाल खड्ग लै मलखाने ते रूपन कूच दीन करवाय॥
डेढ़ पहर के फिरि अर्सा मा पहुँचाराजद्वार पर जाय १५१
हुकुम दर्ररै हुकुम दर्ररै नाहर घोड़े के असवार॥
कहाँ तै आये औ कहँ जैहै कहँ है देश रावरे क्यार १५२
इतना सुनिकै रूपन बोला तुमते साँच देयँ बतलाय॥
नगर महोबाते आयन हम इन्दलब्याहकरनकोभाय १५३
ऐपनवारी हम लै आये रूपन बारी नाम हमार॥
खबरि जनावो महराजा को हमरो नेग देयँ अवद्वार १५४
इतना सुनिकै द्वारपाल कह रूपन बारी बात सुनाय॥

काह नेग द्वारे को चहिये सोऊ देयँ आप बतलाय १५५
रूपन बोला द्वारपाल सों यह तुम खबरि सुनावो जाय॥
एक पहर भर चलै सिरोही यहही नेग देयँ पठवाय १५६
सुनिकै बातैं ये बारी की आरी द्वारपाल अधिकाय॥
शोचि समझिकै महराजा सों रूपन कथा सुनाई जाय १५७
इतना सुनिकै अभिनन्दन ने हंसामल को लयो बुलाय॥
पकरिकै लावो त्यहि बारी को द्वारे जौन रहा वर्राय १५८
इतना सुनिकै हंसामल ने अपनी लई ढाल तलवार॥
औरो क्षत्री चलि ठाढ़े में अपनेबाँधिबाँधिहथियार १५९
द्वारे देखैं जब बारी को आरी भरे सिपाही ज्वान॥
भीर देखिकै रूपन बारी लाग्योकरन घोरघमसान १६०
चली सिरोही भल द्वारे पर औ बहिचली रक्त की धार॥
रूपन बारी के मुर्चा पर अंधा धुंध चलै तलवार १६१
रूपन मारै तलवारी सों घोड़ा करै टाप की मार॥
बड़े लड़ैया काबुल वाले मनसों गये तहाँपर हार १६२
धर्म बनाफर का जाहिर है जिनके जपै तपै का काम॥
विजय अधर्मिन की दीखी ना रावण कीन बहुतसंग्राम १६३
कंस सुयोधन जरासंध अरु अधरम रूप मरा शिशुपाल॥
काल कलेवा सबको कीन्ह्यो रहिगा धर्मएक सबकाल १६४
ताते धर्मी आल्हा ठाकुर रूपन खूब करै तलवार॥
देखि वीरता यह रूपन की हंसा कहा बचनललकार १६५
सँभरिकै बैठै अब घोड़ा पर वारी भली मचाई रार॥
जियत न जैहै दरवाजे ते हमरी देखि लेय तलवार १६६
इतना सुनिकै रूपन बोला क्षत्री गानो कही हमार॥

नेग आपनो हम भरिपावा राजन आय आपके द्वार १६७
दायज लेहैं आल्हा ठाकुर अब हम जान चहत सरदार॥
इतना कहिकै रूपन बारी फाटक निकरिगयोवापार १६८
मारु मारू कहि क्षत्री दौरे रूपन घोड़ दीन दौराय॥
आयकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में ज्यहि में बैठ बनाफरराय १६९
खबरि सुनाई ह्याँ आल्हा को ह्याँपर शूर लागि पछिताय॥
तक अभिनन्दन सब लरिकनते बोला दोऊ भुजा उठाय १७०
बाजैं डङ्का अहतङ्का के लश्कर सबै होय तय्यार॥
जान न पावैं मोहबे वाले मारो ढूँढ़ि ढूँढ़ि सरदार १७१
हुकुम पायकै महराजा को सातो पुत्र भये तय्यार॥
झीलम बखतर पहिरि सिपाही हाथम लई ढालतलवार १७२
अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतवरण गजराज॥
धरिगे हौदा तिन हाथिनपर क्षत्री चढ़े समरके काज १७३
को गति बरणै तहँ घोड़न कै जिनपर चढ़े शूर शिरताज॥
सजिगा हाथी अभिनन्दन का तापर बैठिगयो महराज १७४
सुमिरि भवानी सुत गणेशको राजा कूच दीन करवाय॥
खर खर खर खर कै रथ दौरे चहवह धुरीरहीं चिल्लाय १७५
मारु मारु करि मौहरि बाजीं बाजीं हाव हाव करनाल॥
मारू बाजा सुनि बोलत भा बेटा देशराज का लाल १७६
जनु अभिनन्दन चढ़िआवतहै लक्षण जानि परैं यहिकाल॥
हँसिकै बोला मलखाने ते बेटा देशराज का लाल १७७
सजिये दादा मलखाने अब देवा होउ आप तय्यार॥
और सिपाही जे मोहबे के तेऊ बाँधि लेयँ हथियार १७८
सुनिकै बातैं बघऊदन की सबियाँ शूर भये तय्यार॥

रणकी मौहरि वाजन लागीं रणका होनलाग ब्यवहार १७९
बलखबुखारे का अभिनन्दन सोऊ गयो समर में आय॥
प्रथम लड़ाई में तोपन कै धुवना रहा सरगमें छाय १८०
लागै गोला ज्यहि हाथी के मानो च्वार सेंधिकैजाय॥
जउने ऊँट के गोला लागै तुरतैगिरै समर अललाय १८१
गोला लागै ज्यहि क्षत्री के धुनकत सई सरिरोवाड़िजाय॥
लागै गोला ज्यहि घोड़ाके मानों गिरह कबूतरखाय १८२
जौने रथमा गोला लागै पहिया धुरी अलग ह्वैजाय॥
गिरैं कगारा जस नदिया में तैसे गिरें ऊँट गजधाय १८३
सन् सन् सन् सन् गोलीछूटैं लोटैं शूर पछाराखाय॥
छाँड़ि आसरा जिंदगानी का खेलन लागे ल्वाह अघाय१८४
भाला बलछी छूटन लागे कहुँ कहुँ कड़ाबीन की मार॥
मारैं तेगा बर्दवानका ऊना चलै बिलाइति क्यार १८५
चलै कटारी बूँदी वाली अंधाधुंध चलै तलवार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १८६
बड़ी लड़ाई अभिनन्दन की नदिया बही रक्तकी धार॥
फिरि फिरि मारैं औ ललकारैं नाहर उदयसिंह सरदार १८७
सातौ लड़िका अभिनन्दन के आमाझ्धार करैं तलवार॥
चढ़ा चौंडिया इकदन्तापर बकशीजौनु पिथौराक्यार १८८
हनि हनि मारै रजपूतन का चौंड़ा समरधनी मैदान॥
कागति बरणौं भैं देबाकै ठाकुर मैनपुरी चौहान १८९
हंसा ठाकुर के मुर्चापर पहुँचा समरधनी मलखान॥
घोड़ी कबुतरी टापन मारै घायलहोयँअनेकन ज्वान १९०
को गति बरणै मलखाने कै बेटा बच्छराज का लाल॥

त्यहिकी समता का हंसा ना पै तहँ युद्ध करै बिकराल १९१
कोगति बरणै तहँ हंसा कै ध्वंसा बड़े बड़े सरदार॥
भई प्रशंसा तहँ हंसा कै क्षत्रीडारि भागि तलवार १९२
बड़ा प्रतापी अरि परितापी सुर्खा घोड़े पर असवार॥
गनि गनि मारै रजपूतन को क्षत्री खेलै खूब शिकार १९३
भागीं पईहै मोहबेवाली आली खानदान को ज्ञान॥
आयकै गर्ज्यो त्यहि समयामें नाहरसमरधनी मलखान १९४
अकसर मलखे के जियरे पर अरुझे बड़े बड़े सरदार॥
जीति न पावैं मलखाने ते औमुहँफेरिलेयँ त्यहिवार १९५
देबा बोला तब ऊदन ते ठाकुर बेंदुल के असवार॥
अकसर मलखे के ऊपर माँ क्षत्री अरुझे तीनिहजार १९६
भागीं सेना मुहबेवाली अकसर लड़ै बीर मलखान॥
इतना सुनिकै ऊदन चलिमा संगमचलाचौंड़ियाज्वान १९७
ब्रह्मा मकरँद जगनायकजी येऊ चलतभये त्यहिबार॥
जोगा भोगा देबा ठाकुर मन्नागूजर परम जुझार १९८
ये सब पहुँचे समरभूमि में हाथमें लिये नॉगि तलवार॥
बलखबुखारे के क्षत्रिन को मारनलागि ढूँढ़िसरदार १९९
बड़ी कसामसि समरभूमि भै कहुँ तिलडरा भूमि ना जाय॥
छाय लालरीगै अकाश में सबसँग ध्वजारहे फहराय २००
घोड़ा हींसैं समरभूमि में सावन यथा मेघ घहरायँ॥
हाथी चिघरैं रणमण्डल में कायर समर न रोंकैंपायॅ २०१
शूर सिपाही ईजतवाले ते तहँ मारु मारु बर्रायँ॥
कऊ तमंचा को धरि धमकै कोऊदेयँ गुर्ज के घाय २०२
कोऊ मारैं तलवारी सों कोऊ मारैं ढाल घुमाय॥

पटा बनेठी बाना जानैं तेनर मारैं गदा चलाय २०३
बलखबुखारे का अभिनन्दन मलखे साथ करै तलवार॥
हंसा ठाकुर उदयसिंह ये दोऊ लड़ैं तहाँ सरदार २०४
सुक्खालड़िका अभिनन्दनका मकरँद नरपति राजकुमार॥
अपने अपने द्वउ मुर्चा मा मारैं एक एक ललकार २०५
देबाठाकुर औ मोहन का परिगा समर बरोबरि आय॥
बड़ी लड़ाई क्षत्रिन कीन्ह्यो कायर भागे पीठि दिखाय २०६
जितने कायर दुहुँतरफा के तरलोथिन के रहे लुकाय॥
हेला आवै जब हाथिन का तब बिन मरे मौत ह्वैजाय २०७
कागति बरणौं मैं कायर कै मनमा बार बार पछितायँ॥
हाय रुपैयन के लालच ते हमरे गई प्राणपर आय २०८
करित नौकरी क्यहु बनियांके हल्दी धनियां के बयपार॥
तो नहिं बिपदा हमपर आवत छूटत नहीं लोग परिवार २०९
कायर सोचैं यह अपने मन शूरन होयँ अनन्दाचार॥
गिरि उठि मारैं समरभूमि में दोऊ हाथ करैं तलवार २१०
छाँड़ि आसरा जिंदगानी का क्षत्रिन कीन घोरघमसान॥
दोउदल अरुझे समरभूमिमा मारैं एकएक को ज्वान २११
कटिकटि कल्लागिरैं समर में उठि उठि रुण्डकरैं तलवार॥
मुण्डन केरे मुड़ चौरा भे औं रुण्डन के लगेपहार २१२
परीं लहासैं जो मनइन की तिनकाखावैं श्वान सियार॥
मेला ह्वैगा तहँ गीधन का चील्हनसीधाका व्यवहार २१३
नचैं योगिनी खप्परलीन्हे मज्जैं भूत प्रेत बैताल॥
धरु धरु धरु धरु मारो मारो बोलै बच्छराजका लाल २१४
ऊदन ताकैं ज्यहि हौदाका बेंदुल तहाँ देइ पहुँचाय॥

सातो लड़िका अभिनन्दन के आल्हा कैदलीनकरवाय २१५
तव अभिनन्दन रिसहा ह्वैकै अपनो हाथी दीन बढ़ाय॥
आल्हा ठाकुर पचशब्दापर राजा पास पहुँचे आय २१६
तब ललकारो अभिनन्दनने आल्हा कूच देउ करवाय॥
जियत न जैहौ तुम सम्मुखते जोबिधिआपवचावैआय २१७
इतना सुनिकै आल्हा बोले राजन साँच देयँ बतलाय॥
बिना बियाहे हम बेटा को कैसे लौटि मोहोबे जायँ २१८
भलो आपनो जो तुम चाही सबकी कैद लेउ छुड़वाय॥
हँसी खुशी सों बेटी ब्याहो काहे रारि बढ़ावो भाय २१९
बिना बियाहे हम जैबे ना चहुतन धजीधजी उड़िजाय॥
इतना सुनिकै अभिनन्दनने मार्यो भालातुरतचलाय २२०
बार बचाई तब आल्हा ने साँकरि हाथी दीन गहाय॥
आल्हा बोले पचशब्दा ते अब गाढ़े में होउ सहाय २२१
घूमो हाथी तब आल्हा को रणमा साँकरिहा घुमाय॥
जितने साथी अभिनन्दन के ते सब भागे पीठिदिखाय २२२
झुके सिपाही मोहबे वाले मारैं एक एक को धाय॥
मलखे ऊदन देबा मकरँद सिवियाँलश्करदीनभगाय २२३
भागी फौजैं अभिनन्दन की इकलो रहा आप नरराज॥
कियो लड़ाई भल इकलेई कैदी भयो फेरि महराज २२४
गंगा कीन्ही फिरि फौजन में इन्दल ब्याह द्याव करवाय॥
सातों लड़िकन सों महराजा आल्हाठाकुरदीन छुड़ाय २२५
तुरतै पण्डित को बुलवायो सोऊ साइति दीन बताय॥
भई तयारी फिरि भौंरिन कै मड़ये तरे पहूँचे जाय २२६

सवैया॥

आमको खम्भगड़ो तहँ सुन्दर माड़व मालिन ठीक बनायो।
कै गठि बन्धन बैठिगयो नृप स्वच्छ कुशानिज हाथ उठायो॥
दान दयेउ कन्या अभिनन्दन बन्दन कै रघुनाथ मनायो।
चन्दन अक्षत फूलनलै ललिते मनमोद गणेशचढ़ायो २२७


बड़ी खुशी सों अभिनन्दनने बेटी ब्याह दीन करवाय॥
बिदा करायो चितरेखा को औधनदीन्ह्योखूबलुटाय २२८
भये अयाचक सब याचक गण जय जयकार रहे सब गाय॥
बाजे डंका अहतंका के आल्हा कूचदीनकरवाय २२९
एक महीना के भीतर में दशहरि पुरै पहूंचे आय॥
परछन करिकै दरवाजे सों सुनवाँ लैगय बधूलिवाय २३०
दगीं सलामी की तोपैं बहु धुवना रहा रगमें छाय॥
मनियादेवन की पूजाकरि बैठीं धाम आपने आय २३१
आल्हा बैठे फिरि महलन में ऊदन बैठे शीश नवाय॥
माहिलगकुर की गाथा को आल्हाठाकुर दीनसुनाय २३२
चुगुलशिरोमणि माहिलठाकुर ठाकुर रहे तहाँ सब गाय॥
होय भलाई मम चुगुलिन में इतनाकहा लहुरवाभाय २३३
खेत छूटिगा दिन नायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
ब्याहपूर भा अब इन्दल का सुमिरों तुम्हें शारदामाय २३४
पारलगायो महरानी तुम दानीयुगन युगन अधिकाय॥
कोउअभिमानीजगरहिगा ना ज्यहिपरकोपकीनतुममाय २३५
आशिर्बाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललितेकहतकथाकसगाय २३६

आल्ह खण्ड । ३५२

रहै समुन्दर में जबलों जल जवलों रहँ चन्द श्री सूर ।। मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रही सदाभरपूर २३७ माथ नवावों पितु अपने को ह्यांते करों तरंग को अन्त ।। राम रमा मिलि दर्शन देखें इच्छा यही भवानीकन्त २३६ इति श्रीलखनऊनिवासि सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवावमयागनारायण जीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गत पंडरीकलां निवासि मिश्रवंशोद्भव बुध कपाशङ्कर सून पं० ललिताप्रसादकन इन्दलपाणिग्रहण वर्णनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥ इन्दलहरण सम्पूर्ण शुभमस्तु । इति ॥

  1. *(अल्ला) देबी का नाम है।