आल्हखण्ड/८ चन्द्रावलि चौथि

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ २८३ से – - तक

 

मात अथ आल्हरखण्ड ॥ चन्द्रावलिकी चौथि अथवा वौरीगढ़की लड़ाई ॥ सवैया॥ शेश महेश गणेश रमेश धनेश सुरेश दिनेश मनाई। बावन पावन धोवन को सुखकारि पुरारि धरे सुखपावै ॥ सोई भये जमदग्नि के बंश औ पूरण अंश पुराण बता । वोई भये रघुनन्दन भूप सो रूप लखे ललिते मुद पा १ सुमिरन॥ धन्य बखानों में दिनकर को जिनते पढ़ा बीर हनुमान ॥ तिनके कुलमाँ रघुनन्दन मे जिनकोजानतसकलजहान १ तिनको मानत हम परमेश्वर पूरण ब्रह्म सुरासुरपाल । चारो प्यारे नृप दशरथ के कीन्हेनिवाल रूप जो ख्याल २ सोई धारे उर गिरिजापति मनमें बालरूप के हाल ।। काकभुशुण्डी कौवा तन को मुनि सों मांगि लीनसबकाल ३ कितन्यो राजा सिंहासन तजि इनके परे प्रेम के जाल ।

सुन्यो विभीषण की गाथा है शरणहिताकत भयो निहाल ४

सोई ललिते जब उर आवैं जावैं सबै लोक जंजाल॥
चौथि बखानों चन्द्रावलि की सुनिये ताको पूर हवाल ५

अथ कथाप्रसङ्ग॥


लागो सावन मनभावन जब वर्षन मेघ झमाझम लाग॥
दुःख टिगा नर नारिन का उपजा हिये प्रेम अनुराग १
गड़े हिंडोला सब घर घर हैं दर दर झुंड खड़े अधिकार॥
सावन आवन मनभावन की गावन लागीं गीत बहार २
कजली जाहिर मिर्जापुर की सिर्जा जनों वहाँ कर्तार॥
गड़ैं हिंडोला कोशलपुर में अबहूँ देखैं लोग बहार ३
सोई महीना जब आवत भा तब मल्हना को सुनोहवाल॥
बेटी प्यारी चन्द्रावलि जो ताको शोच करै सब काल ४
नयनन आँसू ढरकन लागे बयनन कढ़े चित्त घबड़ाय॥
ऐसी हालत भै मल्हना कै तबहीं गये उदयसिंहआय ५
लखिअसहालत उदयसिंह तब दोऊ हाथजोरि शिरनाय॥
पूॅछन लागे महरानी ते काहे गई उदासी छाय ६
सुनिकै बातैं उदयसिंह की मल्हना बोली बचन बनाय॥
याद आयगै लरिकाई कै सोई बात गई उरछाय ७
ताहि विसूरति मैं ऊदन थी सोई गई उदासी छाय॥
सखी हमारी एक साथ की पायो दुःख रहै अधिकाय ८
दुःख याद हो जब काहू को कोमल चित्त जाय घबड़ाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले माता साँच देउ बतलाय ९
आजुइ तुमका अस देखा ना बहुदिन लखातुम्हैं असमाय॥
की विष देवो उदयसिंह को की दुख देवो सॉच बताय १०
करो बहाना चहु केते तुम मानी नहीं लहुरवा भाय॥

इतना सुनिके मल्हना बोली ऊदन साँच देयँ बतलाय ११
लाग महीना अब सावन को गावन लगे नारि नर गीत॥
सुधि जब आवै चन्द्रावलि की तबहीं लेय मोह दलजीत १२
कठिन यादवा बौरीगढ़के जिनके लूटि मार का काम॥
बेटी ब्याही तिनके घरमाँ कबहुँन द्यखी आपनोधाम १३
चौथि पठावैं जो बौरीगढ़ तो फिर होय वहाँ पर मार॥
है बहनोई इन्दशाह तव ताके परी बांट है रार १४
गउना रउना सबके आवैं बेटी परी मोरि ससुरार॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले माता मानो कही हमार १५
चौथी लैकै बौरी जैबे बहिनी बिदा लेब करवाय॥
अब मैं जावों महराजा ढिग माँगों बिदा बेगिही जाय १६
इतना सुनिकै मल्हना बोली मानो कही बनाफरराय॥
मोहिं पियारी अस बेटी ना जो तुम जाउ लहुरवाभाय १७
कछु तुम कहियो ना राजाते ना बौरी को होउ तयार॥
प्राण पियारे तुम ऊदनहौ साँची मानो कही हमार १८
सुनिकै बातैं ये मल्हना की ऊदन चले जहाँ परिमाल॥
हाथ जोरिकै उदयसिंहने औ राजाते कहा हवाल १९
हम अब जैहैं बौरीगढ़ को बहिनी बिदा करैहैं जाय॥
कहा न मानब हम काहूको राजन हुकुम देउ फरमाय २०
बातैं सुनिकै बघऊदन की तुरतै उठा चँदेलाराय॥
साथै लैकै बघऊदन को फिरि रनिवास पहूँचाआय २१
डादन लाग्यो तहँ मल्हनाको री कस जौंहर दीन लगाय॥
ऊदन जैहैं चलिवौरी को बेटी बिदा करैहैं जाय २२
हवैं लुटेरा बौरी वाले ओ बइलानी बात बनाय॥

कुशल न होइहै ऊदन जैहैं त्वहिते साँचदेयँ बतलाय २३
कहा न मनिहैं ये काहू का कलहा देशराज के लाल॥
इतना सुनिकै मल्हनारानी सब राजा ते कहा हवाल २४
दोष हमारो कछु नाही है साँची सुनो बात महराज॥
काम न अबरा कछ हमरे घर बिनचन्द्रावलि होयअकाज २५
कहा न हमरो ऊदन मानैं अपनो कहा करैं सबकाल॥
पूँछो इनसे तुम महराजा पासै देशराज के लाल २६
इतना सुनिकै ऊदन बोले सॉची मानो कही हमार॥
खर्चा देवो मोहिं जल्दी अब मैं बौरी का खड़ातयार २७
कहा न मानव हम काहू को यहुतो साँच दीन बतलाय॥
जान न पावव जो बौरीका तौ मरिजाब जहरको खाय २८
सुनिकै बातैं ये ऊदन की निश्चयजानि लीनपरिमाल॥
यहु समझायेते मानीना रिसहा देशराजका लाल २९
यहै सोचिकै मन अपनेमाँ राजा सामा दीन कराय॥
चीरा कलँगी नौ दश तोड़ा सो ऊदन को दियोमँगाय ३०
बाइस हाथी साठि पालकी रथ चौरासी घोड़ हजार॥
यह सब सामा तहँ दीन्ह्यो तुम नाहर उदयसिंह सरदार ३१
दिल्ली ह्वैकै तुम चलिजावो औ मिलि लेउ पिथौरैजाय॥
जौन बतावैं पिरथी राजा तौनै किह्यो लहुरवाभाय ३२
इतना कहिकै गे परिमालिक पहुँचे फेरि राजदबार॥
वस्त्र अभूषण औ मोतिनके मल्हना दीन आयदशहार ३३
भरि भरि मेवा औ कतारूको मल्हना मटुका लीन गाय॥
नाई बारी भाट तँबोली चारो नेगी लीन बुलाय ३४
कहि समुझावा सब नेगिनको औ सब सामा दीन गहाय॥

बिदा होन जब ऊदन लागे मल्हना छातीलीनलगाय ३५
कहि समुझावा भल ऊदन को कीन्ह्यो रारि नहीं तुम जाय।
देश पराये में गमखाना यहही नीति बनाफरराय ३६
इतना कहिकै रानी मल्हना आशिर्वाद दीन हरषाय॥
सुमिरि भवानी मइहरवाली मनियादेव हृदयसों ध्याय ३७
तुरत बेंदुला पर चढ़ बैठ्यो औ चलि दियो बनाफरराय॥
माहिल शाले चंदेले के सोतो गये महोबे आय ३८
गये कचहरी परिमालिक की माहिल बोल शीश नवाय॥
सबियां क्षत्री ह्याँ बैठे हैं पै नहिं ऊदन परैं दिखाय ३९
इतना सुनिकै राजा बोले नीके हवैं लहुरवा भाय॥
पता लगावैं माहिल ठाकुर कहँ पर गये बनाफरराय ४०
नीके जानैं सब माहिल को इनके चुगुलिन का वयपार॥
क्वउन बतावा तहँ माहिल को कहॅ पर उदयसिंह सरदार ४१
तह ते उठिकै माहिल चलिभे मारग पता लगावत जायँ॥
चुगुल शिरोमणि माहिल ठाकुर याते कौन देय बतलाय ४२
मालिनि बिटिया उरईवाली बेही नगरमोहोबे भाय॥
पता नं पायो जब काहू ते माहिल गये तासुघर धाय ४३
हाल बतायो सब माहिल को सुनतै कूच दीन करवाय॥
जायकै पहुँचे फिरि दिल्ली में जहँ पर रहै पिथौराराय ४४
ऊदन पहुँचे ह्याँ दिल्ली में डेरा परा बाग में जाय॥
बड़ी खातिरी भै माहिल कै राजा पास लीन बैठाय ४५
माहिल वोले तहँ राजाते मानो कही पिथौराराय॥
ऊदन आये हैं मोहबे ते साँचे हाल देयँ बतलाय ४६
काल्हि सबेरे मलखे अइहैं दिल्ली देहैं आगिलगाय॥

यह सुनि आयन परिमालिकते मानो साँच पिथोराराय ४७
इतना सुनिकै पिरथी बोले माहिल काह गयो बौराय॥
कौन दुशमनी परिमालिक वे दिल्ली शहर देयँ फुकवाय ४८
ऊदन जैहैं बौरीगढ़को हमको खबरि मिली है साँच॥
असरिस लागी माहिल ठाकुर मारों निकरि परै तबकाँच ४९
इतना सुनिकै माहिल चलिमे बौरीगढ़ै पहूँचे जाय॥
बोले ताहर सों पिरथीपति तुम ऊदनको लवो बुलाय ५०
इतना सुनिकै ताहर चलिमे बगिया फेरि पहूंचे जाय॥
तुम्है बुलायो महराजा है यह ऊदन ते कह्यो सुनाय ५१
इतना सुनतै ऊदन ठाकुर बेंदुल उपर भयो असवार॥
सुमिरि शारदा मइहरवाली अपनी लीन ढालतलवार ५२
ताहर ऊदन दूनों चलि भे औ दरबार पहूंचे आय॥
हाथ जोरिकै महराजा के सम्मुख ठाढ़भयो शिरनाय ५३
पाग उतारी बघऊदन ने औ धरिदीन चरणपर जाय॥
देखि नम्रता उदयसिंह कै राजा पास लीन बैठाय ५४
पिरथी बोले उदयसिंह ते कहँ को चले बनाफरराय॥
इतना सुनतै ऊदन बोले मानो साँच पिथौराराय ५५
बहिनी हमरी जो चन्द्रावलि ताकी चौथि लेन को जायँ॥
दर्शन करिकै पृथीराज के जायो कह्यो चँदेलोराय ५६
सोई दर्शन को आयेहन मानो सत्य बचन यहिकाल॥
इतना सुनिकै पिरथी बोले बेटा देशराज के लाल ५७
लौटि मोहोबे ऊदन जावो मानो सत्य बचन यहिकाल॥
मारे जैहो बौरीगढ़ में ऊदन साँचे कहैं हवाल ५८
हवें लुटेरा यदुबंशी सब कैसे पठै दीन परिमाल॥

भलो चुरो कछु वै मानैं ना बेटा देशराज के लाल ५९
इतना सुनिकै ऊदन वोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
कीन प्रतिज्ञा हम महराजा बहिनी बिदा लेब करवाय ६०
झूँठि प्रतिज्ञा हम करिहैं ना चहुतनधजीधजी उड़िजाय॥
करो आज्ञा अब जाने की आशिर्वाद देउ हरपाय ६१
इतना सुनिकै महराजा तब चीराकलँगी दीन मँगाय॥
शाल दुशाला मोहनमाला सबधनदीन लाखको भाय ६२
रानी अगमा यह सुनि पावा आये देशराज के लाल॥
भयो बुलौवा जब महलन ते आयसु दीन तवै महिपाल ६३
तुरतै ऊदन तहँ ते चलिभे रानी भवन पहूँचे आय॥
आईं नारी बहु दिल्ली की देखन हेतु लहुरवा भाय ६४
रूप देखिकै बघऊदन को मनमें कहैं गिरीश मनाय॥
मेरो बालम ऊदन होतो देतो शिव यह योगबनाय ६५
तो मनभाती दिखलाती सब आती फेरि यहाँलग कौन॥
छाती खोले दिखलाती सो गाती गीत रँगीले जौन ६६
ऐसी नारी नहिं केहू युग कलियुगकुलटनकोअधिकार॥
उलटन पुलटन कुलटन दीख्यो ऊदन जानिगयो बयपार ६७
भगिनी माता औ कन्या सम कीन्ह्योतीनि भांति ब्यवहार॥
रानी अगमा बोलन लागी मानों उदयसिंह सरदार ६८
तुम नहिं जावो गढ़बौरी को बेटा देशराज के लाल॥
बिना बिचारे औ शोचे बिन कैसे पठै दीन परिमाल ६९
बिना दयाके बौरीवाले नित उठिकरैं निर्दयी काम॥
जानि बूझिकै कैसे पठवैं ऊदनजाउ यमन के धाम ७०
इतना सुनिकै ऊदन बोले माता साँच देयँ बतलाय॥

१९

ना मुहिं पठयो परिमालिक ने ना मुहिमल्हनादीनपठाय ७१
मनसे आई चन्द्रावलि को सावन मुहवा देउँ दिखाय॥
राजा रानी की सम्मत ना अपने बूत चल्यनहममाय ७२
रीछ औ बाँदर सँगमा लैकै जीत्यो लङ्क राम महराज॥
ग्वालनबालनयशुमति लालन लैकै हना कंस शिरताज ७३
छोटो अंकुश मानुष लैकै बैठै नित्त नाग शिर जाय॥
जहँ मनभावै तहँ लैजावै तेजै सबल परै दिखलाय ७४
तेज न होई ज्यहि देही माँ सो लै करी फौज का माय॥
दया धर्ममाँ कछ अन्तर ना मन्तर साँच देयँ बतलाय ७५
धरम युधिष्ठिर का जाहिर है अधरम कौरौ गये नशाय॥
शौटि बनाफर अब जाई ना चहुतनधजीधजीउड़िजाय ७६
इतना सुनिकै रानी अगमा मनमाँ ठीक लीन ठहराय॥
क्यहु समुझायेते मानी ना साँचो हठी बनाफरराय ७७
बहु धन दीन्ह्यो फिरि ऊदनको आशिर्बाद दीन हर्षाय॥
पायँ लागिकै महरानी के ऊदन कूच दीन करवाय ७८
छाय उदासी गै महलन में तम्बुन अटा बनाफर आय॥
कूच करायो फिरि बगिया ते औ बैरीगढ़ चला दबाय ७९
बारा दिनकी मैजलि करिकै बौरी पास पहूॅचे आय॥
एक कोस जब बौरी रहिगै ऊदन तम्बू दीन गड़ाय ८०
परा पलँगरा त्यहि तम्बू माँ तापर बैठ बनाफरराय॥
लिखिकै चिट्ठी बीरशाहको धावन हाथ दीन पठवाय ८१
बैठक बैठे तहँ क्षत्री सब एकते एक शूर सरदार॥
चिट्ठी लैकै घावन दीन्ह्यो आवन पढ़ा बनाफर क्यार ८२
बड़ी खुशाली वीरशाह करि जोरावरको लीन बुलाय॥

तुम चलिजावो अब बगियाको जहँपर टिका बनाफरराय ८३
आदर करिकै नरनाहर को जल्दी लावो इहाँ बुलाय॥
इतना सुनिकै बुला जुरावर अपने मित्रन सों हरषाय ८४
पाग बैंजनी सब कोइ बँधिये जामा हरे रंग को भाय॥
एकै बाना एक निशाना मिलिये उदयसिंहकोजाय ८५
देखैं किसको पहिले भेंटैं नाहर उदयसिंह सरदार॥
इतना सुनिकै सब मित्रनने एकै रंग कीन शृङ्गार ८६
पंद्रा सोला एकै रँग के बगिया तुरत पहूँचे जाय॥
एकै रँगके सब क्षत्री हैं नहिंकोउ रावरङ्क दिखराय ८७
मिले जुरावरको ऊदन तब निश्चय राजपुत्र अनुमान॥
देखि चतुरता उदयसिंह की सोऊ मनै बहुत शरमान ८८
औ फिरि बोला उदयसिंह ते तुमको नृपति बुलावा भाय॥
इतना सुनिकै बघऊदन तब साथै कूच दीनं करवाय ८९
नचै बेंदुला तहँ मारग में अद्भुत कला रहा दिखराय॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधे यह रणबाघु बनाफरराय ९०
बैठ सिंहासन महराजा जहँ पहुँचा उदयसिंह तहँ जाय॥
चरण लागिकै महराजाके ठाढ़े भये शीशको नाय ९१
पकरिकै बाहू तब ऊदन की तुरतै लीन्ह्यो हृदय लगाय॥
बड़ी खातिरी करि ऊदनकी अपने पास लीन बैठाय ९२
चिट्ठी दीन्ह्यो चंदेले की लीन्ह्यो वीरशाह हर्षाय॥
पढ़िकै चिट्ठी परिमालिक की मनमाँ बड़ा खुशी ह्वैजाय ९३
जो कछु सामा मर्दानाथी ऊदन सबै दीन मँगवाय॥
बड़ी खुशाली भै राजा के फूले अंग न सका समाय ९४
राजा बोला फिरि ऊदन ते मानो कही बनाफरराय॥

दिन दश रहिकै तुम बौरी में पाछे बिदा लियो करवाय ९५
कवहूं आयो नहिं बौरी को नाहर उदयसिंह सरदार॥
जायकै भेंटो अब बहिनी को इतनी मानो कही हमार ९६
इतना सुनिकै बघऊदन ने अपने साथ जुरावर लीन॥
जाय बेंदुलापर चढ़िबैठा महलनगमन बेगिहीकीन ९७
अगे जुरावर पीछे ऊदन महलन बेगि पहूँचे जाय॥
चरण लागिकै महरानी के ऊदन सामा दीन मँगाय ९८
देखैं सामा महरानी तहँ औरो नारिन लीन बुलाय॥
देखिकै सामा चंदेले की सबके खुशीभई अधिकाय ९९
मटुका खुलिगे मेवावाले घर घर तुरत दीन बँटवाय॥
दर दर गाथा चंदेले की घर घर रहे नारि नर गाय १००
यकटक देखैं बघऊदन को क्षत्री बड़ा रँगीला ज्वान॥
रूप देखिकै बघऊदन को नारिन छूटिगयो अरमान १०१
जिन नहिं देखा बघऊदन को तेऊ गईं तहाँपर आन॥
जब मुख देखैं बघऊदन को तब चुभिजाय करेजेबान १०२
बेटी प्यारी परिमालिक की भेंटी उदयसिंहको आय॥
लाज ससेटी बेटी भेंटी बैठा सकुचि बनाफरराय १०३
तबलों माहिल दाखिल ह्वैगे औ दरबार पहूॅचे आय॥
किह्यो खातिरी बीरशाह ने अपने पास लीन बैठाय १०४
किह्यो बड़ाई जब ऊदन की माहिल ठाकुर सों महगज॥
माहिल बोले महराजा ते आवत सुने हमारे लाज १०५
किह्यो प्रशंसा तुम ऊदन की जान्यो भेद नहीं महिपाल॥
राज्यते बाहर इनको कीन्ह्यो क्रोधितभयोबहुतपरिमाल १०६
आल्हा रहिगे नैनागढ़ में ऊदन यहाँ पहुँचे आय॥

बिदाकरैहैं ये बेटी को दासी अपनि बनैहैं जाय १०७
खबरि पायकै परिमालिक ने हमको तुरत दीन पठवाय॥
बिदाकरैहैं जो बघऊदन तौ सब जैहैं काम नशाय १०८
ईजति जैहै दोऊ दिशिकी साँचे हाल दीन बतलाय॥
जहर घोराबो तुम भोजन में औ ऊदन को देउ खवाय १०९
बिना बयारी जूना टूटै औ बिन औषधि बहै बलाय॥
चरचा कीन्ह्यो नहिं ऊदन ते मानो साँच यादबाराय ११०
इतना कहिकै माहिल ठाकुर चलिभा करिकै राम जुहार॥
हुकुम लगायो महराजा ने महलन भोजनहोयँ तयार १११
फेरि बुलायो सब पुत्रन को माहिल कथा कह्योसमुझाय॥
बात लेन को ऊदन आयो भोजन जहर देउ डरवाय ११२
छली धूर्त्त को या बिधि मारै तौ नहिं दोष देय संसार॥
खबरि जनाई फिरि महलन में भोजन बेगि भये तय्यार ११३
भयो बुलौवा फिरि भोजन का ऊदन लीन ढाल तलवार॥
देश हमारे कै रीती ना भोजनकरै बाँधि हथियार ११४
शंका लावो कछु मन में ना नाहर उदयसिंह सरदार॥
बातैं सुनिकै बहनोई की ऊदन धरी ढाल तलवार ११५
जायकै पहुँचे फिरि चौकापर नाहर देशराज के लाल॥
साथै बैठे बहनोई के राखे गये परोसे थाल ११६
रक्षक सबको जग एकै है पूरणब्रह्म चराचर राम॥
करै चाकरी नहिं अजगर क्यहु पक्षी करै न केहू काम ११७
अथवा जानो यह साँची तुम मछलिन कौन देय आहार॥
ताल सुखाने चपीं भूमि में रक्षा करैं राम भर्त्तार ११८
भै रघुनन्दन कै दाया तब ऊदन लीन्ह्यो थाल उठाय॥

आपन दीन्यो बहनोई को ताको लीन्ह आप सरकाय ११९
यह गति दीख्यो बहनोई जब तब अतिबोल्यो क्रोध बढ़ाय॥
हमरो भोजन तुम कस लीन्ह्यो अपनो दीन्ह्यो हमैं उठाय १२०
इतना सुनिकै ऊदन बोले ठाकुर साँच देयँ बतलाय॥
उचित हमारे यही देशमें सोई कीन यहॉपर आय १२१
इतना सुनिकै इन्द्रसेन ने अपनो पाटा लीन उठाय॥
पीठिम मारा बघऊदन के बोला यह रीति है भाय १२२
देखि तमाशा ऊदन ठाकुर अपनो गडुवा लीन उठाय॥
कुमक आयगै बीरशाह कै परिगो गाँस बनाफरराय १२३
मर्द मर्दईते चूकै चूकै ना चहु निर्दई दई ह्वैजाय॥
नरपुर गाथा घर घर गावैं सुरपुर बास मर्दका आय १२४
कीन मर्दई बघऊदन ने बहुतक क्षत्री दिये गिराय॥
कोठे परते तलवारी को चन्द्राबलिने दीन गहाय १२५
सो लै लीन्ह्यो बघऊदन ने मारन लाग बनाफरराय॥
इकले ऊदन के मुर्चापर कोई शूर नहीं समुहाय १२६
उचित न मारब बहनोई का ऊदन ठीक लीन ठहराय॥
पाय दुचित्ता बघऊदन को बंधन तुरत लीन करवाय १२७
जायकै डार्यो फिरि खन्दक में पहरा चौकी दीन कराय॥
देखि दुर्दशा यह ऊदन कै बहिनी बारबार पछिताय १२८
मन में शोचै मनै बिचारै कासों कहै दुःख अधिकाय॥
तबलों मालिनि पोहपा आई ऊदन कथा गई सब गाय १२९
ऐसो पाहुन ऐखि दुर्दशा हमते कछू कहा ना जाय॥
को समुझावै महराजा को आपन देवे प्राण गँवाय १३०
सुनिकै बातैं ये मालिनि की तब चन्द्रावलि कह्यो सुनाय॥

मैं अब देखों जस ऊदन को मालिनितसतुमकरोउपाय १३१
बातैं सुनिकै चन्द्रावलिकी मालिनि कहाबचनसमुझाय॥
निशा अँधेरी है सावन की तुमको ऊदनलवैं दिखाय १३२
इतना सुनिकै मालिनि सँग में ऊदन पास पहूँची जाय॥
बहिनी प्यारी चन्द्रावलि तहँ बोली सुनो बनाफरराय १३३
बाहर आवो तुम खन्दक के अपने घोड़ होउ असवार॥
निर्भय जावो तुम मोहबे को भाई उदयसिंह सरदार १३४
इतना सुनिकै ऊदन बोलैं बहिनी साँच देयँ बतलाय॥
चोरी चोरा जो घर जावैं तौ रजपूती धर्म नशाय १३५
खबरि जो पइहैं सिरसावाले अइहैं तुरत बीर मलखान॥
सुखसों सोवो तुम महलन में करिहैंकुशलमोरिभगवान १३६
इतना सुनिकै बहिनी चलिभै महलन फेरि पहूँची आय॥
लिखी हकीकति सब मलखेको खन्दक परे लहुरवाभाय १३७
लिखिकै पाती सुवना गरमें बांधिकै दीन्ह्यो तुरत उड़ाय॥
जावो सुवना तुम मोहबे को मल्हना महल पहूँचोजाय१३८
उड़िकै सुवना तहँ ते चलिभा नरवरगढ़ै पहूँचा आय॥
मकरँद घूमै ज्यहि बगियामें सुवना बैठ तहाँपर जाय १३९
चकित घूमै मकरन्दा तहँ परिगै दृष्टि सुवापर आय॥
पाती दीख्यो गल सुवना के तुरतै लीन तहाँ पकराय १४०
पढ़िकै पाती लै सुवना को सो नरपतिको दीन दिखाय॥
पाछे पहुँचा फिरि महलन में रानी खबरि जनाईजाय १४१
सुनी हकीकति जब रानी ने पाती गले दीन बँधवाय॥
सुवना चलिभा नरवरगढ़ ते पहुँचा नगर महोबेआय १४२
मल्हना ठाढ़ी रह अणटापर सुवना बैठ तहाँपर जाय॥

पाती दीखी गल सुवना के मल्हनानामदीनबतलाय १४३
सुन्यो जबानी जब मल्हनाकी सुवना बैठ हाथ पर आय॥
छोरिकै पाती मल्हना रानी आँकुइआँकुनजरिकैजाय १४४
पढ़िकै पाती रानी मल्हना रुपना बारी लीन बुलाय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो महरानी ने औसबहालकह्योसमुझाय १४५
लैकै चिट्ठी रुपना चलिभा मलखे पास पहूँचा जाय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो मलखाने को औरोहाल गयो सबगाय १४६
पढ़िकै चिट्ठी मलखाने ने तुरतै फौजन कीन तयार॥
जितने क्षत्री रहैं सिरसामें सबियाँबाँधिलीनहथियार १४७
लैकै फौजै मलखाने फिरि पहुँचा नगर मोहोबे आय॥
खबरि पठाई फिरि आल्हाको राजा पास पहूँचे जाय १४८
हाथ जोरिकै मलखे बोले दोऊ चरणन शीश नवाय॥
कीन तयारी हम बौरी को ब्रह्मै साथ देउ पठवाय १४९
सुनिकै बातैं मलखाने की बोले तुरत चँदेलेराय॥
शकुन उठावो देबा ठाकुर, देबो हार जीत बतलाय १५०
सुनिकै बातैं महराजा की ज्योतिष पुस्तक लीन उठाय॥
पाय न उठायो देबा ठाकुर बोल्योहाथजोरि शिरनाय १५१
जायके तुम्हारी बौरी ह्वैहै राजन सत्य दीन बतलाय॥
देखी दु फौजै आल्हा ठाकुर तबगगये तहाँपरआय १५२
मन में दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाकोआय॥
तबलों मालिक तब चमकम लागे पक्षी गये बसेरन धाय १५३
ऐसो पाहुन दिया तकि तकि घों घों कण्ठ रहा घर्राय॥
को समुझावै ये रघुनन्दन के सन्तनधुनी दीन परचाय १५४
सुनिकै बातैं ये महोबा अपने को ह्याँते करों तरँगको अन्त॥

राम रमामिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १५५

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुन्शी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनाराणजीकी आज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि
मिश्रबंशोद्भवबुध कृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृत
ऊदनबन्धनबर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥


सवैया॥

ध्यावत तोहिं सरस्वति मातु करो निज सेवकपै अब दाया।
शारद नारदके पद ध्याय मनावत तोहिं सदा रघुराया॥
गावतहौं गुण गोबिंद के अरु पावतहौं नितही मनभाया।
नावतहौं शिर बारहिं बार करो ललिते कर मातु सहाया १

सुमिरन॥


दोउ पद ध्यावों जो बर पावों सो सुनिलेउ शारदा माय॥
जस जस गावों मैं आल्हा को तसतस सुखी होउँ अधिकाय १
माता भ्राता त्राता ताता नाता तुममा दीन लगाय॥
तारो बोरो जो अब चाहो हमतो शरण तुम्हारी माय २
बेद पुराणन श्रुति असमृति में जाँचा साँचा हमअधिकाय॥
तुम्ही भवानी शारद मइया सबका सार परी दिखराय ३
तब पद बिछुरे उर हमरे ते मूरखचन्द कहैं सब गाय॥
ताते बिछुरैं पद उरते ना यह बर मिलै शारदामाय ४
छूटि सुमिरनी गै शारद कै अब आगे के सुनो हवाल॥
मलखे आल्हा बौरी जैहैं ह्वैहैं तहां युद्ध बिकराल ५

अथ कथाप्रसंग॥


उदय दिवाकर भे पूरवमें किरणनकीनजगत उजियार॥
हुकुम पायकै मलखाने को सवियाँ फौज भई तय्यार १
सजि पचशब्दा गा आल्हाका तापर होत भयो असवार॥

घोड़ी कबुतरी की पीठी पर बैठ्यो सिरसा का सरदार २
चढ़ा मनोहर की पीठी पर देबा मैनपुरी चौहान॥
ब्रह्मा ठाकुर हरनागर पर बैठे सुमिरि राम भगवान ३
गर्भ गिरावनि कुँवाँ सुखावनि लछिमिनि तोप भई तय्यार॥
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ४
रणकी मौहरि बाजन लागी घूमन लागे लाल निशान॥
छाय लालरी गै अकाश में लोपे अन्धकार सों भान ५
पहिल नगारा में जिन बन्दी दुसरे बांधिलीन हथियार॥
तिसर नगाराके बाजत खन हाथी घोड़न भये सवार ६
चौथ नगारा बाजन लाग्यो मलखे कूच दीन करवाय॥
हाथी चलिभे दल बादल सों घण्टा गरे रहे हहराय ७
कोउ कोउ घोड़ा हंस चालपर कोउ कोउ मोरचालपरजाय॥
सरपट जावै कोउ कोउ घोड़ा केहू टाप न परै सुनाय ८
खर खर खर खर कै रथ दौरे रब्बा चलैं पवनकी चाल॥
मारु मारूकै मौहरि बाजैं बाजैं हाव हाव करनाल ९
बाजैं डङ्का अहतङ्का के बङ्का सबै शूर सरदार॥
शङ्का नाहीं क्यहु जियरे में चहुदिन रातिचलै तलवार १०
लश्कर पहुँचा सब दिल्ली में क्षत्रिन कीन तहाँ विश्राम॥
इकलो मलखे त्यहि समया में पहुँचा पृथीराज के धाम ११
बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो तहँ पर बैठ वीर मलखान॥
सबियाँ गाथा बौरीगढ़ की मलखे कीन तहाँपर गान १२
सुनी हकीकति जब मलखे की चौंड़ा सूरज लीन बुलाय॥
चिट्ठी दीन्ह्यो पृथीराज ने चौंड़े फेरि कह्यो समुझाय १३
कह्यो जवानी वीरशाह ते जल्दी बिदा देयँ करवाय॥

कलहा लरिका बच्छराज का नामी सबै बनाफरराय १४
लड़िकै जितिहौ तुम इनते ना मरिकै सात धरौ अवतार॥
लैकै फौजै सूरज बेटा मलखे साथ होउ तय्यार १५
बिदा माँगिकै महराजा ते सूरज सिरसा का सरदार॥
आये फौजन में मलखाने सब दल बेगि भयो तय्यार १६
गज इकदन्ता चौंड़ा बैठ्यो सूरज सब्जा पर असवार॥
कूच को डङ्का बाजन लाग्यो हाथिन घोर कीन चिग्घार १७
चलिभइँ फौजैं दल बादल सों बौरीगढ़ै गई नगच्याय॥
आठकोस जब बौरी रहिगै आल्हा डेरा दीन गड़ाय १८
तम्बू गड़िगा तहँ आल्हाका बैठे सबै शूरमा आय॥
आल्हा बोले तहँ देबा ते कहिये करिये कौन उपाय १९
इतना सुनिकै देबा बोला साँची तुम्हैं देयँ बतलाय॥
योगी बनिकै बोरी चलिये तौसबहालठीकमिलिजाय २०
यह मन भाई मलखाने के गुदरी पहिरि लीनततकाल॥
आल्हा देबा ब्रह्मा ठाकुर इनहुनतिलकलगायोभाल२१
लीन बाँसुरी ब्रह्मा ठाकुर खँझरी मैनपुरी चौहान॥
कर इकतारा आल्हा लीन्ह्यो डमरू लीन बीर मलखान २२
चारो चलिभे फिरि तम्बुन ते बौरीगढ़ैं पहूँचे पाय॥
बजी बाँसुरी तहँ ब्रह्माकी देबा खँझरी रहा बजाय २३
टप्पा ठुमरी भजन रेखता मलखे गावैं मेघ मलार॥
को गति बरणै इकतारा कै बाजैं खूब लोह के तार २४
रूप देखिकै तिन योगिन का मोहे सबै नारिनर वाल॥
वात फैलिगै बौरीगढ़ में योगी आये खूब विशाल २५
भा खलभल्ला भो हल्लाअति पहुँचे बीर शाहके दार॥

तजिकै लल्ला चलीं इकल्ला बल्लन क्यार मनों त्यौहार २६
अटाके ऊपर कटा करनको नारिन पैन नैन हथियार॥
कड़ाके ऊपर छड़ा बिराजैं तिनपर पायजेब झनकार २७
कर इकतारा आल्हा लीन्हे नीचे करैं तारसों रार॥
बजै बाँसुरी भल ब्रह्माकै मानो लीन कृष्ण अवतार २८
उपमा नाही शिरीकृष्ण के तीनों लोकन के कर्तार॥
काह हकीकति है ब्रह्मा कै पै यह बँसुरी केरि बहार २९
चाजै खँझरी भल देबा कै मलखे करैं तहाँ पर गान॥
देखि तमाशा तहँ योगिनका लागे कहन परस्पर ज्वान ३०
ऐसे योगी हम देखे ना दाढ़ी गई गई सपेदीछाय॥
गङ्गासागर के संगमलों देखा देश देश अधिकाय ३१
बीरशाह तब वोलन लाग्यो चारों योगिन ते मुसुकाय॥
कहाँ ते आयो औ कहॅ जैहौ आपन हाल देउ बतलाय ३२
सुनिकै बातैं महराजा की मलखे बोले वचन बनाय॥
हम तो आये प्रागराज ते जावैं हरद्वार को भाय ३३
भोजन पावैं हम क्षत्रिन घर वृत्ती यहै लीन ठहराय॥
होय जनेऊ ज्यहि घर नाहीं क्षत्री कौन भांति सो आय ३४
जनमत ब्राह्मण क्षत्री बनियाँ तीनों शूद्र सरिस हैं भाय॥
होय जनेऊ जब तीनों घर तब वह वर्ण ठीक ठहराय ३५
जो मर्यादा तुम छोंड़ा ना तौ घर भोजन देउ कराय॥
कलियुग आवा महराजा है ताते साफ दीन बतलाय ३६
हम नहिं भोजन करें शूद्र घर चहु मरिजायँ पेटके घाय॥
यकइस लंघन चहु ह्वैजावें पैनहिं सिंघासको खाय ३७
सुनिकै बातैं ये योगी की भामन खुशी यादवाराय॥

औ यह बोला फिरि योगिनते हमहूँ साँच देयँ बतलाय ३८
तुम्हरो हमरो मत एकै है शंका आप देउ बिसराय॥
पतित न क्षत्री कोउ बौरीगढ़ यादव बंश यहां अधिकाय ३९
पापी आयो इक मोहबे ते ताको खन्दक दीन डराय॥
औरन पापी कोउ बौरी में तुमको सांच दीन बतलाय ४०
इतना सुनिकै मलखे बोले ओ महराज यादवाराय॥
कैसो खन्दक कैसो पापी दर्शन हमैं देउ करवाय ४१
कबहूँ खन्दक हम देखाना तुमते साँच दीन बतलाय॥
बड़ी लालसा भै जियरे माँ खन्दकआप देउदिखलाय ४२
इतना सुनिकै महराजा तब योगिन लीन्ह्यो साथ लिवाय॥
जौने खन्दक में ऊदन थे सो महराज दिखावा जाय ४३
ऊदन दीख्यो जब योगिन को नीचे लीन्ह्यो शीश नवाय॥
चारो योगी तहँते चलिभे पहुँचे राजभवन में आय ४४
भयो बुलौवा फिरि भोजन को मलखे बोले बचन बनाय॥
आजु यकादशि निर्जल बर्त्ते राजन साँच दीन बतलाय ४५
करैं बसेरो नहिं बस्ती में जंगल बास करैं सब काल॥
बिदा मांगिकै महराजा ते चारो चलत भये ततकाल ४६
आयकै पहुँचे फिरि फौजनमें अंगड़ खंगड़ धरे उतार॥
सुरँग खुदायो मलखाने ने क्षत्रिन तुरत कीन तय्यार ४७
जौने खन्दक में ऊदन थे फूटो सुरँग तहाँपर जाय॥
सुरँग के भीतर सों बघऊदन पहुँचे फौज आपनी आय ४८
जैसे पियासा पानी पावै तैसे खुशी भये सब भाय॥
बाजे डंका अहतंका के शंका सबन दीन बिसराय ४९
मलखे बोले तहँ आल्हा ते लश्कर कूच देउ करवाय॥

बिदा करावैं चन्द्रावलि को तब यश जाय जगतमेंछाय ५०
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर बोले करौ यहै अब भाय॥
हुकुम पायकै यहु आल्हा को मलखे कूच दीन करवाय ५१
चलिभै फौजैं दलबादल सों बौरीगढ़ै गईं नगच्याय॥
प्रलय मेघ सम बजैं नगारा हाहाकार शब्द गा छाय ५२
गा हरिकारा तब बौरी में राजै खबरि जनाई जाय॥
फौजै आईं क्यहु राजा की बौरी डांड़ दबायनि आय ५३
सुनिकै बातैं हरिकाराकी राजा गयो सनाकाखाय॥
मलखे बोले ह्यां रूपन ते कहियो बीरशाह ते जाय ५४
सुरुँग खोदिकै बघऊदन को आल्हा ठाकुर लीन निकारि॥
बिदा कराये बिन जैहैं ना ताते करो नहीं तुमरारि ५५
बहिनी ब्याही तुम्हरे घरमाँ ताते क्षमाकीन यहिबार॥
नहिं अस ठाकुर को जन्माजग जाते मानि लीन हमहार ५६
इतना सुनिकै रूपन चलिभा बौरीगढ़ै पहूँचा जाय॥
खबरि सुनाई महराजा को, जो कछु कह्यो बनाफरराय ५७
सो नहिं भाई बीरशाह मन बोल्यो तुस्त बचन ललकार॥
काह हकीकति है आल्हा कै आवैं बिदा करावन द्वार ५८
हठ नहिं छोड़्यो दुर्य्योधन ने औ मरिगयो सहित परिवार॥
खबरि जनावो तुम आल्हा को हमरे साथ करैं तलवार ५९
इतना सुनिकै रूपन चलिभे फौजन फेरि पहूँचे आय॥
कही हकीकति बीरशाह की सुनि जरि उठे बनाफरराय ६०
हुकुम लगायो निज फौजनमें सबियां शूर होयँ तय्यार॥
हुकुम पायकै मलखाने को क्षत्रिन बांधिलीन हथियार ६१
गजे चढ़ैया गजपर चढ़िगे बाँके घोड़न भे असबार॥

झीलम बखतर पहिरिसिपाहिन हाथम लीन ढाल तलवार ६२
यक यक भाला दुइ दुइ बरछी कोताखानी लीन कटार॥
रणकी मौहरि बाजन लागी रणका होनलाग ब्यवहार ६३
सजा बेंदुला का चढ़वैया लाला देशराज का लाल॥
को गति बरणै मलखाने कै जाको डरैं देखि नरपाल ६४
बड़ा लड़ैया भीषमवाला देबा मैनपुरी चौहान॥
ब्रह्मा ठाकुर सजि ठाढो भो करिकै रामचन्द्रको ध्यान ६५
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बन्दी कीन समरपद गान॥
बाजे डंका अहतंका के घूमनलागे लाल निशान ६६
हिंया कि गाथा ऐसी गुजरी सुनिये बीरशाहको हाल॥
सुरज जुरावर दोउ पुत्रन को तुरतै बोलि लीन नरपाल ६७
करो तयारी समरभूमिकै अपनी फौज लेउ सजवाय॥
जान न पावैं मोहबेवाले सबकी कटा देउ करवाय ६८
हुकुम पायकै महराजा को डंका तुरत दीन बजवाय॥
सजे सिपाही बौरी वाले मनमाँ श्रीगणेशपदध्याय ६९
अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतबरण गजराज॥
सजि इकदन्ता दुइदन्ता गे तिनपर हौदा रहे बिराज ७०
कच्छी मच्छी नकुला सब्जा हरियल मुश्की घोड़ अपार॥
ताजी तुरकी पँचकल्यानी सुरखा सुरँगा भये तयार ७१
चढ़ि अलबेला तिन घोड़नपर अपने बांधि लये हथियार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे हाथम लिये ढाल तलवार ७२
बाजीं तुरही मुरही ऐसी पुप्पूं पुप्पूं परा सुनाय॥
बाजे डफला अलबेला सब शूरन मेला दीन लगाय ७३
मारु मारु करि मौहरि बाजीं बाजीं हाव हाव करनाल॥

खर खर खर खर कै रथ दौरे रब्बा चले पवनकी चाल ७४
सुर्खा घोड़ा चढ़ जुरावर सूरज सब्जापर असवार॥
सुमिरि भवानी सुत गणेश को दोऊ चलन भये सरदार ७५
घोड़न बरणों की असबारन पैदर सेना तीस हजार॥
तीन सहस हाथिन पर सोहैं बाँके यादव परम जुझार ७६
बाम्हन थोरे क्षत्री ज्यादा लीन्हे कठिन धार तलवार॥
गर्ज्जति आवैं समरमूमि को एकते एक शूर सरदार ७७
कायर हल्ला खलभल्ला में तल्ला छोंड़ि प्राण के दीन॥
खुशी छायगै मन शूरन के मानों जीति इन्दपुर लीन ७८
बजे नगारा ठनकारा के दारा गर्भपात सुनिकीन॥
गये दरारा उर कायर के सायर सत्यसत्य कहिदीन ७९
उइ धिरकारैं अपने तनका मनमाँ बार बार पछितायें॥
भैंसि बियानी घर हमरे मा माठा दूध केर अधिकाय ८०
हाय रुपैया मारे डारैं लीन्हे समरभूमि को जायँ॥
दैया भैया भैया कहिकै ज्वैया हेतु बहुत पछितायँ ८१
शूर यशोमति मैया वाले भैया गैयन के चरवाह॥
नाव खेवैया भवसागर के नागर कृष्णचन्द्र नरनाह ८२
तिनका सुमिरणमनअन्तरकरि तत्पर भये स्वामि के काज॥
करि अभिलाषा समरभूमि कै राखे मनै धर्म की लाज ८३
पढ़िअशलोकनतजिशोकनको लोकन केर मिले जनुराज॥
तैसे गाने मनअन्तर में बाजे तहाँ शूर शिरताज ८४
बाजे बाजे बाजे सुनिकै लाजे मनै आपने बीच॥
तिनकोकहियतहमअपनीदिशि जानोसकल नरनमेंनीच८५
हम अनुमाना मन अपने है जाना नारि वित्तको कीच॥

पै हम त्यागी अनुरागीता लागी आश नारिधनबीच ८६
आपै त्यागी अनुरागीना तौ कस कहै नारिधन कीच॥
साँच बखानैं हम अपनीदिशि सोई सकल नरनमें नीच ८७
पै यहु कलियुग बाबा आयो छायो रहै मनै संताप॥
मन नहिं इस्थिर क्षणहू होवै कैसे होय मुनिन में थाप ८८
जपतै माला गायत्री के आला परब्रह्म के ध्यान॥
यहु मन काला भाला मारै जो सब इन्द्रिनमें बलवान ८९
नीच न कहिये यहि कालामें जो कोउ साँच बिप्रको बाल॥
युग यहु पाजी बदिकै बाजी राजानलको किह्योबिहाल ९०
एसे पाजी की राजी में सूरज बीरशाह का लाल॥
जायकै पहुँच्यो समरभूमि में अब मलखेका सुनो हवाल ९१
सो जब दीख्यो आसमानको छाई खब गर्द गुब्बार॥
हँसिकै बोला रणशूरन ते सँभरो सबै शूर सरदार ९२
इतना कहतै फौजै आई तोपन होनलागि तहँ मार॥
अररर अररर तोपैं छूटीं हाथिन घोर कीन चिग्घार ९३
को गति बरणै त्यहि समयाकै भारी भयो भयङ्कर मार॥
जावैं गोला जौनी दिशिको तौनी दिशिकोकरैं चिथार ९४

सवैया॥


भभकार उठैं तहँ गोलन की फुफकार करैं रण में गजराजा।
धुधकार नगारनकी गमकी चमकी तलवारि जुरे सबराजा॥
अपार जुझार करैं तहँ मार न डरैं मन नेकहु एकहुसाजा।
समाजऔसाजदोऊदिशिमें अवलरैंललितेसबहीजयकाजा ९५



षड़ी लड़ाई भै तोपन कै लोपे अन्धकार सों भान॥

२०

छायँ अँधेरिया गै दशहूदिशि कतहुँ न सूझै अपन बिरान ९६
धावा ह्वैगा दोऊ दल का दोऊ भये बरोबरि आय॥
सूरजगकुर बौरी वाला सिरसा क्यार बनाफरराय ९७
दोऊ सोहैं भल घोड़नपर लीन्हे हाथ ढाल तलवार॥
द्वउ ललकारन मारन लागे सम्मुख होत होत सरदार ९८
सुँढ़ि लपेटा हाथी भिडिगे अंकुश भिड़ा महौतनक्यार॥
हौदा हौदा यकमिल ह्वैगा औ असवार साथ असवार ९९
कल्ला भिड़िगे असवारन के लागी होन भड़ाभड़ मार॥
छूटे ऊना लण्डन वाले कोताखानी चली कटार १००
बिजुली दमकै कउँधा चमकै तैसे धमकिरही तलवार॥
मलखे ठाकुर शूर जुरावर दोऊ लड़नलागि सरदार १०१
सूरज ऊदन की भेंटन में लेटनलागि सिपाही ज्वान॥
परे लपेटे भट भेटे जे लेटे समर भूमि मैदान १०२
मनो ससेटे यम भेटे मे लेटे क्षत्री परम जुझार॥
वह पनारा तहँ रक्तन के औ हिलक्वारा उठैं अपार १०३
को गति बरणै तहँ पैदल की बाजै घूमि घूमि तलवार॥
अपन परावा कछु सूझैना जूझै जूझ बूझ त्यहिवार १०४
बड़ी लड़ाई भै बौरीगढ़ मलखे सूरज के मैदान॥
फिरि फिरि मारै औ ललकारै नाहर समरधनी मलखान १०५
बड़ा लड़ैया सिरसा वाला ज्यहिते हारि गई तलवार॥
घोड़ी कबुतरी रणमें नाचे साँचे शूरबीर सरदार १०६
सुरज बोले तिन मलखे ते ठाकुर मानो कही हमार॥
लौटि मोहोबे जल्दी जावो तबहीं कुशलरचाकरतार १०७
इतना सुनिकै मलखे बोले तुमते साँच देयँ बतलाय॥

बिदा कराये बिन जैबेना चहुतनधजीधजीउड़िजाय १०८
सूरज बोले मलखाने ते यह नहिं होनहार यहिबार॥
इतना कहिकै सूरज ठाकुर अपनी खैंचिलीनतलवार १०९
ऐंचिकै मारा मलखाने के मलखे लीन ढालपर वार॥
आल्हा बोले मलखाने ते ठाकुर सिरसा के सरदार ११०
पकरिकै बाँधो तुम सूरज को इनपर करो नहीं अब वार॥
गरुहर नाते के लड़िकाहैं मानों सिरसाके सरदार १११
सुनिकै बातैं ये आल्हा की तुरतै उतरिपरा मलखान॥
पकरिकै बाँध्यो रणमण्डल में देखैं खड़े अनेकन ज्वान ११२
सूरज बन्धन दीख जुरावर पहुँचा तुरत तहाँ पर आय॥
औ ललकारा मलखाने को ठाढ़े होउ बनाफरराय ११३
इतना सुनिकै बघऊदन ने तुरतै पकरि जुरावर लीन॥
उतरि कबुतरी ते मलखाने बन्धनतुरत तहाँपर कीन ११४
दूनों लरिका बीरशाह के आल्हााकुर लीन बँधाय॥
भागीं फौजैं बौरीगढ़ की काहू धरा धीर ना जाय ११५
खबर सुनाई बीरशाह को क्षत्रिन नीचे शीश नवाय॥
बन्धन सुनिकै द्वउ पुत्रन को दुखिया भयो यादवाराय ११६
इन्द्रसेन औ मोहन बेटा इनको तुरत लीन बुलवाय॥
हाल बतायो समरभूमि को आशिर्बाद दीन हर्षाय ११७
करो तयारी सब भाइन सह आल्है पकरि दिखावो आय॥
इतना सुनिकै सबियाँ बेटा चलिभे राजै शीश नवाय ११८
आयकै पहुँचे निज सेनन में डंका तुरत दीन बजवाय॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय ११९
पहिल नगारा में जिन बन्दी दुसरे शूर भये हुशियार॥

तिसर नगारा के बाजत खन क्षत्री समर हेतु तैयार १२०
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन वेद उच्चार॥
रण की मौहरि बाजन लागीं रणका होनलाग ब्यवहार १२१
चलिभै सेना बौरीगढ़ सों हाहाकारी परै सुनाय॥
घरी मुहूरत के अन्तर में पहँचे समरभूमिमें आय १२२
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे देबा मैनपुरी चौहान॥
सब रणशूरन त्यहि समया में भारी भीर दीख मैदान १२३
उड़ी कबुतरी मलखाने की हौदन उपर पहूँची जाय॥
मलखे मारै तलवारिन सों घोड़ी देय टापके घाय १२४
मोहन ठाकुर उदयसिंह को परिगा समर बरोबरि आय॥
भई कसामसि समरभूमि में औ तिलडरा भुई ना जाय १२५
को गति बरणै रजपूतन कै दूनों हाथ करैं तलवार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १२६
जैसे भेड़िन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिड़ारै गाय॥
तैसे मारै मलखे ठाकुर कायर भागैं पीठदिखाय १२७
है मर्दाना जिनको बाना ते नर करैं तहाँ पर मार॥
को गति बरणै इन्द्रसेन कै दूनों हाथ करै तलवार १२८
बड़े लड़ैया बौरी वाले मानैं नहीं समर में हार॥
ना मुँह फेरैं मोहबे वाले दोऊ कठिन मचाई रार १२९
गिरैं कगारा जस नदिया माँ तैसे गिरैं ऊंट गज धाय॥
परीं लहासैं रणशूरन की तिनपर रहे गीध मड़राय १३०
गोली ओली कतहूॅ बरसैं कतहूँ कठिन चलै तलवार॥
छुरी कटारी कोऊ मारैं कोऊ कड़ाबीन की मार १३१
गदा के ऊपर गदा चलावैं ढालन मारैं ढाल घुमाय॥

सर सर मारैं तलवारिन सों तीरन मन्न मन्न गा छाय १३२
धम् धम् धम् धम् बजैं नगारा मारा मारा परै सुनाय॥
झम्झम्झम्झम्झीलमझलकैं नीलम रंग परैं दिखराय १३३
चम् चम् चम् चम् भाला चमकैं दमकैं उडुगण मनों अकाश॥
बम् बम् बम् बम् क्षेत्री बँबके भभकैं शूरनकेर प्रकाश १३४

सवैया॥


आश करैं नहिं प्राणन की ललिते रणशूरन रीति सदाहै।
प्राण कि नाश कि कीर्त्ति प्रकाश कि आश नहीं सुख या बिपदाहै॥
बीर कि शान कि पान कि मान कि ठानठने मलखान यदाहै।
शान कि आन करे रणज्वान सो प्राणपयान कियेयीतदाहै १३५



को गति बरणै मलखाने कै रणमाँ कठिन करै तलवार॥
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया नाहर उदयसिंह सरदार १३६
गनि गनि मारै रजपूतन का बेटा देशराज का लाल॥
मोहनठाकुर बौरी वाला आला बीरशाहका बाल १३७
बिकट लड़ाई की संयुग में कायर भागे लिहे परान॥
बड़ा लड़ैया भीषमवाला आला मैनपुरी चौहान १३८
लड़ै चौंड़िया दिल्लीवाला बेटा लड़ै पिथौराक्यार॥
को गति बरणै इन्द्रसेन कै दूनों हाथ करै तलवार १३९
मलखे बोले इन्द्रसेन से जीजा मानों कही हमार॥
बहिनी बेही तुम्हरे घरमाँ तुमते सदा हमारीहार १४०
अबै मसाला कछु बिगराना अनभल नहीं कीन कर्त्तार॥
बिदा कराये बिन जैबे ना मानो सत्यबचन सरदार १४१
फौजै फ्यारो समरभूमि ते बौरी जाउ आप ततकाल॥

तुम ससुझावो महराजा को काहे रारि करैं नरपाल १४२
इतना सुनिकै इन्द्रसेन ने गरूई हाँक कीन ललकार॥
काह हकीकति तुम राखतिहौ जावो बिदाकरावन द्वार १४३
इतना कहिकै इन्द्रसेन ने अपनी खैंचि लई तलवार॥
दौरिकै पकरयो उदयसिंह ने मलखे बाँधिलीनत्यहिवार१४४
देखिकै बन्धन इन्द्रसेन को मोहनआयगयो त्यहिकाल॥
मारन लाग्यो रजपूतन को मोहन बीरशाहका लाल १४५
औरो भाई जे मोहन के तेऊ करनलागि तलवार॥
झुके सिपाही बौरीवाले लागे करन भड़ाभड़मार १४६
पैदरि पैदरि के वरणी भै औ असवार साथ असवार॥
बड़ी लड़ाई हाथिन कीन्ह्यो घोड़न कीन टापकीमार १४७
लीन्हे साँकरि दल बादलसों हाथी करत फिरैं चिग्धार॥
भाला छूटैं असवारन के पैदल खूब चलै तलवार १४८
झुके सिपाही मोहबेवाले इनहुन कीन घोर घमसान॥
चौंड़ा बाम्हन के मुर्चा में कोऊ शूर नहीं समुहान १४९
सोहै चौंड़िया इकदन्ता पर हाथम लिये ढाल तलवार॥
मोहन ठाकुर बौरी वाला सब्जा घोड़ापर असवार १५०
हनि हनि मारै रजपूतन का गरूई हाँक देय ललकार॥
अभिरे क्षत्री अरमबारा सों आमाझ्वारचले तलवार १५१
जौनै हौदा ऊदन ताकैं बेंदुल तहाँ पहुँचै जाय॥
ऊदन मारैं तलवारिन सों बेंदुल टापन देइँ गिराय १५२
भाला चमकै तहँ देवा का मोहन केरि चलै तलवार॥
घोड़ी कबुतरी का चढ़वैया मलखे सिरसाका सरदार १५३
मारि गिराये रजपूतन का कायर भागे लिहे परान॥

को गति बरणै रणशूरन कै सम्मुख करैं समर मैदान १५४
मान न रहिगे क्यहु क्षत्रिनके सब के छूटि गये अरमान॥
बहुतक करहैं समरभूमि में अधजलपरेअनेकनज्वान १५५
बहुतक सुमिरैं घर अपने को औ मन परे परे पछितायँ॥
बहुतक क्षत्री गिरैं समर में काटे बृक्ष सरिस भहराय १५६
नदी भयङ्कर बही रकत की त्यहिमाँ गिरे ऊंट गज धाय॥
छुरी कटारी मछली ऐसी ढालैं कछुवा परैं दिखाय १५७
परीं लहासैं तहँ मनइन की छोटी डोंगिया सम उतरायँ॥
बह सिवारा जस नदिया माँ तैसे बहे बाल तहँ जायँ १५८
भूत पिशाच योगिनी नाचैं गावैं गीत बीर बैताल॥
श्वान शृगालन की बनिआई गीधन गरे परे जयमाल १५९
चिघरैं हाथी रणमण्डल में डगरैं बड़े बड़े सरदार॥
झगरैं मलखे रणशूरन ते डगरैं डारि डारि हथियार १६०
रहि अभिलाषा नहिं केहू के जो फिरि करै वहाँपर मार॥
जितने लड़िका वीरशाह के बाँधे सिरसा के सरदार १६१
रहैं सिपाही जे बौरी के भागे डारि ढाल तलवार॥
भागे क्षत्रिन का मारैं ना नाहर मोहबे के सरदार १६२
रीति पुरानी इन छोड़ी ना कतहूँ समर भूमि में ज्वान॥
पूरो क्षत्रीपन करतीं ना मरतीं नहीं समर मैदान १६३
तो यह गावत को गाथा फिरि तजिकै सकल आपनो काम॥
यह सब जानत है अपने मन रहिहै एक रामको नाम १६४
तबहूँ मानत है जीवन बहु तजिकै कर्म धर्म्म इतमाम॥
यह नहिं जानत है अपने मन साँचो धर्मकर्म सुखधाम १६५
गये सिपाही नूप द्वारे पर औ सब हाल बताये जाय॥

बन्धनसुनिकै सब लड़िकनको राजा गये सनाकाखाय १६६
खबरि पहुँचिगै रनिवासे में राजा रानी लीन बुलाय॥
चौहर आई चन्द्रावलि तहँ सोऊगई कथा सब गाय १६७
हमरे घरके माहिल वैरी उनके चुगुलिनका वयपार॥
कहा मानिकै तुम माहिल का दादा किह्योयहांलग रार १६८
ना सुनिपावा मैं पहिले ते माहिलदीन्ह्यो रारि लगाय॥
तौ अस हालत कसहोतै अब तबहीं देति सबै समुझाय १६९
योगी बनिकै ब्रह्मा आये सूरति दीख दूरि ते माय॥
होति खटपटी जो ऊदन ते ब्रह्माभाय न अउतोधाय १७०
टेक कठिन है बघऊदन कै हम खुब जानैं ठीक स्वभाव॥
मिलिये दादा अब आल्हा ते याही जानो नीक उपाव १७१
सुनि सुनि बातैं सब बौहर की रानी नृपति दीन समुझाय॥
सुनिकै बातैं महरानी की राजा ठीक लीन ठहराय १७२
आगि लगाई माहिल ठाकुर नातेदारी दीन तुराय॥
राजा सोचत यह अपने मन पहुँचातुरतसिंहासनआय१७३
कलम दवाइति कागज लैकै चिट्ठी लिखनलाग ततकाल॥
जितनी बातैं माहिल कहिगा लिखिगेयथातथ्यनरपाल १७४
फिरि कछु बातैं चन्द्रावलिकी लल्लो पत्तो लिखा बनाय॥
बन्धन छोरो सब पुत्रन को तुरतै बिदा लेउ करवाय १७५
कीनि घटिहई माहिल ठाकुर नाहक रैसा दीन लगाय॥
कहा मानिकै हम माहिल का साँचोसाँच गयन बौराय १७६
लिखी विधाता कै मेटै को साँचो कहैं गीत सब गाय॥
लिखिकै चिट्ठी दै धावन को राजा बैठिगये शिरनाय १७७
लैकै चिट्ठी धावन चलिभा पहुँचा जहाँ बनाफरराय॥

चिट्ठी दीन्ह्यो सो आल्हा को ठाढ़ो भयो शीशकोनाय १७८
लागि कचहरी तहँ आल्हा कै रुमि झुमि रहीं पतुरियानाच॥
आल्हा बाँचन चिट्ठी लागे ह्वैगा रंग भंग तहँ साँच १७९
पढ़िकै चिट्ठी आल्हा ठाकुर सबको दीन्ह्यो हाल बताय॥
माहिल ठाकुर की किरपा ते इतना परा परिश्रमआय १८०
फिकिरिम माहिल हैं ऊदनकी निश्चय समुझि परै यहिबार॥
जाको रक्षक रघुनन्दन है ताको जाय न बाँकोबार १८१
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर बन्धन तुरत दीन छुड़वाय॥
कहि समुझायो सबलरिकन ते राजै खबरि जनावो जाय १८२
ब्रह्मा आवत इन्द्रसेन सँग इनका बिदा देयँ करवाय॥
माहिल मामा हमरे लागैं तातेकिहिनिदिल्लगीआय १८३
त्यहिमा सज्जन तुम महराजा सोऊ दया दीन बिसराय॥
क्षम्यो ढिठाई अब हमरी तुम तुम्हरीशरणगये हमआय १८४
नातेदारी में उत्तमहौ आहिउ कृष्णवंश महराज॥
गुरू श्वशुर सों संगर ठानैं क्षत्री जन्म युद्धके काज १८५
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर सबको बिदा कीन ततकाल॥
ब्रह्मा पहुँचे बीरशाह घर औंसबकह्यो बनाफरहाल १८६
सुनिकै बातैं सब आल्हा की राजा बिदा दीन करवाय॥
बैठि पालकी में चन्द्रावलि गौरा पारवती को ध्याय १८७
बहुधन दीन्हो ब्रह्मा ठाकुर महरन पलकी लीन उठाय॥
दशहूँ लरिकन सों महराजा आये जहाँ बनाफरराय १८८
आवत दीख्यो वीरशाह को आल्हा मिले अगारी आय॥
मिला भेंटकरि सबसों राजा अपने धाम गये हर्षाय १८९
बाजे डंका अहतंका के आल्हा कच दीन करवाय॥

चौड़ा सूरज दिल्ली पहुँचे आल्हा गये मोहोबे आय १९०
बेटी पहुँची जब महलन में मल्हना मिली अगाड़ी धाय॥
बारहु रानी परिमालिक की बेटी देखि गई हर्षाय १९१
सावन भावन गावन लागीं आवन लागि विदेशी ज्वान॥
मल्लन कल्लन फरकन लागे थिरकनलागिमेघअसमान १९२
दादुर बोलन जलमें लागे बिरहिन उठी करेजे पीर॥
बिना पियारे घर पीतम के कैसे धरै नारि मनधीर १९३

सवैया॥


कैसे धरै मनधीर तिया परदेश पिया ज्यहि सावन छाये।
राग औरङ्ग अनंग कि जंग उमंग भरै पियकी सुधिआये॥
गात सबै तियके सकुचात बिदेश परे पिय पेट खलाये।
कहाकहैं ललिते बिधिप्रीति अनीति किरीति सदादरशाये १९४



गवैं सुहागिल सब सावन में वारामासी मेघ मलार॥
गड़े हिंडोला हैं घर घर में दर दर सावन केरि बहार १९५
काग उड़ावन उनघर लागीं जिन घर परे पिया परदेश॥
सावन रावन उनके लागै जिनके चिट्ठीके अन्देश १९६
नहीं तो सावन अतिपावन है गावन गीत क्यार त्यवहार॥
हमैं सुहावन मनभावन है साबनक्यारसकलव्यवहार १९७
चौथि पूरिभै चन्द्रावलि कै ह्यॉते होय तरॅग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त १९८
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय॥
तारागण सब चमकन लागे सावन मेघ रहे घहराय १९९
कहूँ कहुँ तारा कहूँ कहुॅ बादल नभहू भयो कलियुगी आय॥

आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायणभाय २००
रहै समुन्दर में जबलों जल जवलों रहैं चंद औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २०१
माथ नवाबों पितु अपने को मन में रामचन्द्र को ध्याय॥
तुम्ही खेवैया हौ नैयाके ओ रघुरैया होउ सहाय २०२
माघ कृष्ण तिथि श्रीगणेशकी ताते बार बार पदध्याय॥
सम्बत वनइस सै पचपन में पूरो भयो आज अध्याय २०३

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूमप्रयागनारायण
जीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पँड़रीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भवबुध
कृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत चन्द्रावलिचौथिपूर्णवर्णनभाव
द्वितीयस्तरंगः॥२॥

चन्द्रावलि की चौथि सम्पूर्ण॥

 

॥इति॥