आल्हखण्ड/२१ चन्दनबागकेर मैदान

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ५८५ से – ५९४ तक

 

अथ आल्हखण्ड।

चन्दन बगिया का युद्धवर्णन॥

सवैया॥

ता पद पङ्कज प्रेम नितै सो इतै हम चाहत शारदरानी ।
ध्यावत तोहिं मनावत गावत पावत मोद महेश भवानी ।।
हे सुखदे बसुदे यशुदे तब भाग कहौ तौ कहॉलों बखानी ।
गावत गीत यही ललिते फलिते पदपङ्कज जे रतिमानी १

सुमिरन ॥


मैं पद बन्दों जगदम्बा के अम्बाचरण कमल धरि माथ ।।
करि अवलम्बा श्रीदुर्गा का गावा चहौं यहाँ कछ गाथ १
मोहिं भरोसा महरानी का दानी तीनि लोक की माय ।।
सब सुखखानी दुर्गा रानी पूरण कृपा करो अब आय २
जनक नन्दिनी के पद बन्दों जिन बल चला जाउँ भव पार ।।
नैया डगमग डगमग हौवै बूड़न चहै सदा मँझधार ३
नहीं खेवैया कोउ नैया को मैया तुहीं लगावै पार ।।

दैया दैया करि मरि जावै ज्यहिनहिंचरण कमल आधार ४
छूटि सुमिनी गै देबी कै शाका सुनो शूरमन क्यार ॥
चन्दन बगिया को कटवाई ठाकुर उदयसिंह सरदार ५

अथ कथा प्रसंग ॥


ब्रह्मा ठाकुर त्यहि समया मा साँचो मरणहार दिखलाय ॥
गॉसी खटकति है मस्तक में कोखिन सेल कटारी घाय १
बेला रानी त्यहि समया मा लै शिर तहाँ पहूँची जाय ॥
जहाॅ चँदेला सुख शय्या मा करहत रहै वाण के घाय २
धरि शिर दीन्ह्यो तहँ ताहरको बोली हाथ जोरि शिरनाय ॥
कीनि आज्ञा पूरण स्वामी मारा समर आपनो भाय ३
सुनिकै बातैं ये बेला की देखन लाग चँदेलाराय ॥
जब शिर दीख्यो सो ताहर का तब मन मोद भयो अधिकाय ४
ब्रह्मा बोले फिरि बेला ते प्यारी साँच देयँ बतलाय ॥
मैके ससुरे सब सुख तुम्हरे चाहौ रहौ तहाँ तुम जाय ५
नहीं भरोसा अब जीवन का प्यारी प्राण रहे नगच्याय ॥
इतना कहिकै ब्रह्मा ठाकुर सुरपुर गयो तड़ाकाधाय ६
बेला गिरिकै रोवन लागी कारण करन लागि अधिकाय ।।
जो मैं जनतिउँ यह गति होई काहे हनति समर में भाय ७
हाय! विधाताकी मर्जी यह हमरे बूत सही ना जाय ।।
चटक चूनरी ना मैली भै ना हम धरा सेज पै पाँय ८
खबरि पहुँचिगें यह महलन में रानी गिरीं भरहरा खाय ॥
हाहाकार परा मोहबे मा कोऊ रँधा भात ना खाय ९
ऊदन लाखनि दोऊ आये जहँपर मरा चॅदेलाराय ॥
ने समुझावैं भल बेला को रानी शोक देउ बिसराय १०

पारस पत्थरहै मोहबे मा लोहा छुवत सोन ह्वैजाय ।।
राजपाट लै सब मोहबे कै तुम सुख भोग करो अधिकाय ११
इतना सुनिकै बेला बोली मानो साँच बनाफरराय ।।
जल्दी जावो तुम दिल्लीको चन्दनबाग कटावो जाय १२
बिना पियारे इक प्रीतम के सब मुख नर कसरिस दिखराय ।।
नाश करनलको हम उपजीथीं दूनों बंश डरे मरवाय १३
अब सुखसोवैं कस मोहबे मा दिल्ली जाउ बनाफरराय ॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले बेला साँच देयँ बतलाय १४
अब नहिं जावैं हम दिल्लीको कीन्हे कोप पिथोराराय ।।
जान आपनो सबको प्यारो जलथल जीव जन्तु जेमाय १५
पगिया अरझी नहिं बगिया में सोई चन्दनदेयँ मँगाय ॥
औरो चन्दन बहु दुनिया में सो कहुछ करन लवों लदाय १६
पै अब दिल्ली को जैहौं ना बेला साँच देउँ बतलाय ।।
इतना सुनिकै बेला बोली मानो कही बनाफरराय १७
शाप तडाका अब मैं देहौं ऊदन तुरत भस्म ह्वैजाय ।।
बातैं सुनिकै ये बेला की कम्पितभयो लहुरवाभाय १८
लाखनि बोले तब ऊदन ते चंदन चलो देयँ कटवाय ।।
आखिर देही यह रहिहै ना अब यश लेउ बनाफरराय १९
इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची कहौ कनौजीराय ॥
जल्दी चलिये अब दिल्लीको चन्दनबाग लेयँ कटवाय २०
सम्मत करिकै ऊदन लाखनि डंका तुरत दीन बजवाय ।।
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्दगा छाय २१
भूरी सजिकै लखराना की तुरतै गई तड़ाका आय ।।
फूलमती पद वन्दन करिकै त्यहिपर बैठ कनौजीराय २२

ऊदन बैठे रस बेंदुलपर मन में ध्याय शारदामाय ।।
सजे सिपाही सब ठाढ़े थे तुरतै कूच दीन करवाय २३
बाजत डंका अहतंका के यमुना पास पहूँचे जाय ॥
पार उतरिकै श्री यमुना के दिल्ली शहर गये नगच्याय २४
चन्दन बगिया जहँ पिरथीकी तहँ पर गये बनाफरराय ॥
चन्दन बढ़ई को बुलवायो चन्दन सबै दीन गिरवाय २५
तब तो माली हल्ला करिकै चलिभे जहां पिथौराराय ।।
लगी कचहरी महराजा की शोभा कही वूत ना जाय २६
ठाढ़े माली तहँ बिनवत हैं दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
ऊदन आये हैं मोहबे ते चन्दनबाग डरी कटवाय २७
कहा न माना क्यहु माली का ओ महराज पिथौराराय ॥
सुनिकै बातैं ये माली की चौंड़ा धाँधू लीन बुलाय २८
कहि समुझावा तिन दूननते यहु महराज पिथौराराय ॥
जितने आये हैं बगिया में सबकी कटा देउ करवाय २९
इतना सुनिक चौंड़ा धाँधू दूनों लीन फौज सजवाय ॥
चढ़ि इकदन्ता भौरानँदपर दूनों कूच दीन करवाय ३०
भारीलश्कर इत लाखनि का उत यहु गयो चौंड़िया आय ॥
चन्दन छकड़ा चौंड़ा घेरे औ यह बोला भुजा उठाय ३१
कौन बहादुर है मोहबे मा चन्दन बाग लीन कटवाय ।।
हुकुम पिथौरा का नाहीं है लकड़ी एक यहाँ से जाय ३२
सुनिकै बातैं ये चौंड़ा की सम्मुख गये बनाफरआय ॥
हमीं बहादुर हैं मोहबे के चन्दन बाग लीन कटवाय ३३
मोहिं ठकुरानी बेला रानी मोहबे वाली दीन पठाय ॥
सती ह्वैहै लै ब्रह्मा को चौंड़ा साँच दीन बतलाय ३४

दुनिया जानति है ऊदन को जिनके लड़न क्यार बयपार ।।
दूसर धंधा कछु कीन्हे ना चौंड़ा मानु कही यहि बार ३५
अटक पारलों झंडा गड़िगा बाजी सेतबन्धलों टाप ।।
दतिया बूंदी जालंधर औ हमरी गई कमायूँ थाप ३६
चन्दन जैहै सब मोहबे को चाहै फौज देउ कटवाय ।।
रुकिहै चन्दन अब चौंड़ा ना तुमते साँच दीन बतलाय ३७
इतना सुनिकै जरा चौंड़िया तुरते लीन्ह्यो गुर्ज उठाय ॥
ऐंचि के मारा सो ऊदन के लैगा बेंदुल वार बचाय ३८
बचा दुलरवा द्यावलिवाला हौदा उपर पहूँचा जाय ॥
कलश सूबरण हौदा वाले सो धरती मा दीन गिराय ३९
झुके सिपाही दुहुँ तरफा के लागी चलन तहाँ तलवार ।।
पैग पैग पै पैदल गिरिगे दुइ दुइ पैग गिरे असवार ४०
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार ।।
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार ४१
बिजयसिंह है बिकानेर को बिरसिंह गाँजर को सरदार ॥
दोऊ मारै दोउ ललकारैं दोऊ समरधनी तलवार ४२
कोऊ हारैं नहिं काहू सों दोउ रण परा बरोबरि आय ॥
दोऊ ठाकुर हैं हाथी पर दोऊ देयँ सेलके घाय ४३
वार चूकिगे बिरसिंह ठाकुर मारा बिजयसिंह सरदार ॥
जूझिगे बिरसिंह समरभूमि में हिरसिंह आय गयो त्यहिबार ४४
सँभरो ठाकुर अब हौदापर कीन्ह्यो बिजयसिंह ललकार ।।
सुनिकै बातैं बिजयसिंह की हिरसिंह खैंचि लीनि तलवार ४५
ऐंचिकै मारा बिजयसिंह को सो तिन लीन ढालपर वार ।।
रिसहा ठाकुर बिकानेर को सोत्यहि मारा फेरि कटार ४६

लागि कटारी गै हिरसिंह के सोऊ जूझिगयो त्यहिबार ।।
हिरसिंह बिरसिंह गाँजरवाले दोऊ जूझिगये सरदार ४७
तब महराजा कानउज वाला लाखनिराना कहा पुकार ।।
गंगा मामा कुड़हरिवाले मारो बिजयसिंह यहिबार ४८
इतना सुनिकै गंगाठाकुर अपनो हाथी दीन बढ़ाय ॥
बिजयसिंह को फिरि ललकारा ठाकुर कूच जाउ करवाय ४९
नहीं तो बचिहौ ना हौदापर जो बिधि आपु बचावै आय ॥
इतना सुनिकै बिजयसिंह ने अपनो हाथी दीन बढ़ाय ५०
बिजयसिंह औ फिरि गंगा का परिगा समर बरोबरि आय ॥
सेल चलाई बिजयसिंह ने गंगा लैगे वार बचाय ५१
ऐंचिकै भाला गंगा मारा त्यहिके गई प्राणपर आय ॥
जूझिग राजा विकानेर का गंगा बढ़ा तड़ाका धाय ५२
हीरामणि चरखारी वाला सोऊ गयो तहॉपर आय ।।
त्यहि ललकारा फिरि गंगा को ठाकुर खबरदार ह्वैजाय ५३
वार हमारी ते बचिहै ना जो विधि आपु बचावै आय ।।
त्यहिते तुमका समुझाइत है ठाकुर कूच जाउ करवाय ५४
इतना कहिकै हीरामणि ने मारी खैंचि तुरत तलवार ।।
बचिगा ठाकुर कुड़हरि वाला लीन्हे सिआड़ि ढाल पर वार ५५
बोला ठाकुर चरखारी का ठाकुर धन्य तोर अवतार ।।
मैं हनि मारा दुहूँ हाथ ते पै तुम लीन ढाल पर वार ५६
सुनिकै बातैं हीरामणि की गंगा लीन तुरत तलवार ।।
ऐंचिकै मारा हीरामणि के सो पै जूझि गयो त्यहिबार ५७
स्यावसि स्यावसि गंगा मामा लाखनि कहा वचन ललकार ।।
तुम्हरी समता का क्षत्री ना अब कोउ देखिपरै यहिबार ५८

करि खलभल्ला औं हल्लाअति लल्ला देशराज का लाल ।।
लड़ै इकल्ला रजपूतन ते ते कल्ला काटि गिरावै हाल ५९
जैसे होरी बल्ला जावै तैसे चलै खूब तलवार ।।
करै दुपल्ला तहँ छातिन के नाहर उदयसिंह सरदार ६०
जैसे भेडिन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय ।।
तैसे रणमा चौड़ा मारै क्षत्री जाय युद्ध अलगाय ६१
चौंड़ा ऊदनकी मारुनमा द्वउदल छिन्न भिन्न ह्वैजायँ ॥
यहु रण नाहर चौंड़ा चाँभनु बहु रणबाधु बनाफरराय ६२
कोऊ काहूते कमती ना द्वउ रण परा बरोबरि आय ॥
लाखनि धाँधूका मुर्चामा शोभा कही बूत ना जाय ६३
लड़ैं सिपाही दुहुँ तरफा ते आमाझोर चलै तलवार ।।
ना मुहँ फेरै दिल्ली वाले ना ई मोहबे के सरदार ६४
बड़ी लड़ाई भैं बगियां में चौंड़ा ऊदन के मैदान ।।
कायर भागे दुहुँ तरफा ते अपने अपने लिये परान ६५
लश्कर भाग्यो पृथीराज का जीत्यो कनउज का सरदार ॥
लादिकै छकरनमें चन्दन को चलिभा उदयसिंह त्यहिबार ६६
बाजत डंका अहतंका के लाखनि कूचदीन करवाय ।।
पार उतरि के श्री यमुना के तम्बुन फेरि पहूँचे पाय ६७
लाखनि ऊदन दोऊ ठाकुर वेलै खबरि जनाई जाय ॥
यह अलबेला बेला रानी अनमन उठी तहाॅ ते धाय ६८
दीख्यो छकरा फिरि चन्दन का बोली सुनो बनाफरराय ।।
गीले चन्दन ते सरि है ना सूखो चन्दन देउ मँगाय ६९
बारह खम्मा हैं दिल्ली मा जहँ दरबार पिथौरा क्यार ।।
ते लै आवो तुम जल्दी अब ठाकुर उदयसिंह सरदार ७०

सुनिकै बातैं ये बेला की बोला फेरि बनाफरराय ।।
सूखो चन्दन हग कनउज ते स्वामिनि आज देयँ मँगवाय ७१
पै नहिं जावें अब दिल्ली को तुम ते साँच देयँ बतलाय ।।
इतना सुनिकै बेला बोली सॉची कहौ बनाफरराय ७२
मंशा तुम्हरी पूरण ह्वैगै जूझे समर चँदेलेराय ।।
हम पर मोहे तुम ऊदन थे ताते डारे कन्त मराय ७३
चहौ इकन्त भोग जो करनो सोहै कठिन बनाफरराय ।।
पर पति भोगै अब बेला ना चहुतन धजी धजी उड़ि जाय ७४
भल चतुराई तुम सीखी थी कीन्ही खूब समय पर भाय ।।
पूर मनोरथ तब होई ना मानो साँच बनाफरराय ७५
राज पाट अरु तनु धनकारण हम नहिं सकैं धर्म को टारि ।।
सतयुग त्रेता अरु द्वापर के करिबे धर्म यहां अनुहारि ७६
चन्दन खम्भा की तुम लावो की अब लेउ शाप विकराल ।।।
झूंठ न यामें कछु जानो तुम बेटा देशराज के लाल ७७
इतना सुनिकै डरे बनाफर तब फिरि कहा कनौजीराय ।।
ह्वै तुम बेटी महराजा की काची बात रहिउ बतलाय ७८
ऐस बनाफर नहिं ऊदन हैं जो रण डारैं कन्त मराय ।।
मौत आयगै चन्देले कै उनके बुद्धि‌ गयी बौराय ७९
भरी कचहरी परिमालिक की बीरा लीन्ह्यनि हाथछँड़ाय ।।
बीरा लेती जो ब्रह्मा ना ऊदन विदा लेति करवाय ८०
घटिहा राजा परिमालिक हैं घटिहा वंश वीर चौहान ।।
घाटि न करतीं जो ब्रह्मा ते जीतत कौन समर मैदान ८१
चंदन जितनो तुम बतलावो तितनो देयँ आज मँगवाय ।।
पगिया अरझी नहिं दिल्ली में अनहक प्राण गँवावैं जायँ८२

इतना सुनिकै बेला बोली मानो साँच कनौजीराय ।।
प्राण पियारे जो तुम्हरे हैं तो तुम कूचदेउ करवाय ८३
तेहा राखौ रजपूती का चन्दन खम्भ देउ मँगवाय ॥
नहीं जनाना बनि मोहबे ते जावो लौटि कनौजीराय ८४
शाप में देहौं अब ऊदन का तुमते साँच देयँ बतलाय ॥
मोहबा दिल्ली द्वउ शहरन में परि हैं राँड़ राँड़ दिखलाय ८५
इतना सुनिकै लाखनि बोले बेला साँच देयँ बतलाय ।।
बहुत झमेला ते मतलब ना चन्दन देब वही मँगवाय ८६
तौ तौ लड़िका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरो मुड़वाय ॥
सुनि के बातें लखराना की बेला बड़ी खुशी लैजाय ८७
तबै बनाफर उदयसिंहजी तहँते कूच दीन करवाय ॥
फिरि यह बोले लखराना ते मानो कही कनौजीराय ८८
मृत्यु रूप यह बेला रानी दीन्ह्यसि वेलि द्वऊ कुल भाय ।।
नाश करनके हित यह बेला चन्दन खम्भ रही मँगवाय ८९
नहीं तो मतलब का खम्भाते जब हम और देयँ मँगवाय ।।
अपन‌ रँड़ापा ते चाहति है सब संसार राँड़ ह्वैजाय ९०
प्राण आपने हम मल्हना को दीन्हे व्याह नेगमें भाय ।।
सो अब बिरिया चलि आई है बेला मृत्यु बहाना आय ९१
क्यहु समुझाये ते समुझै ना बेला विपति बेलि हरियाय ।।
जियत पिथौरा के ह्वैहै ना‌ की हम खम्भ लेयॅ उखराय ९२
दुखित पिथौरा अब दुनिया मा मरिगे सात पूत रणआय ।।
पुत्र न एको अब पृथ्वी के जो अवलम्ब परे दिखलाय ९३
बिना पुत्र के गति नहिं होवे वेद औ शास्त्र रहे बतलाय ।।
अगमा मल्हना द्वउ रानिन की बेला नाशिदीन करवाय ९४

हवै झमेला हमपर तुमपर कैसी करैं कनौजीराय ॥
ऐसी सुनिकै लाखनि बोले मानो साँच बनाफरराय ९५
होनी ह्वैहै सो ह्वैहै अब याही ठीक लेउ ठहराय ।।
मृत्यु आयगै जब रावण कै तब वन वास गये रघुराय ९६
कोऊ रक्षा तब कीन्ह्यो ना जब मुनिपिया समुन्दरजाय ।।
ब्रह्मा विष्णु शिव सम्बन्धी इनते और कौन अधिकाय ९७
बिपति समुन्दर पर जब आई तब सब गये तुरत अलगाय ॥
त्यहिते सम्मत अब याही है भुरहीं कूच देउ करवाय ९८
मर्जी होई नारायण की होई स्वई बनाफरराय ।।
इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची कहाँ कनौजीराय ९९
सम्मत ठीको अब याही है दिल्ली चलैं तड़ाकाधाय ॥
मर्जी याही नारायण की अनरथ रूप परै दिखलाय १००
इतना कहिकै लाखनि ऊदन सोये द्वऊ सेज पर जाय ।।
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय १०१
तारा गण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ॥
आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायण भाय १०२
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यश सों रहौ सदा भरपूर १०३
पूरण कीन्ह्यो अब याहीं ते चन्दन बाग केरि सब गाथ ॥
वन्दन करिकै पितु माताके दूनों धरों चरण पर माथ १०४
पूरि तरंग यहाँ सों ह्वैगै तव पद सुमिरि भवानीकन्त ।।
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही मोरि भगवन्त १०५

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई )मुशीनवलकिशोरात्मजवाचूप्रयागनारा-

यणजीकीयाजानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपंडरीकलां निवासिमिश्रवंशोद्भववुधकृपा-

शंकरसूनु पं० ललितामसातचंदनवाटिकायुद्धवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥