आल्हखण्ड/२० बेला ताहर का मैदान
बेला और ताहर का युद्ध वर्णन ॥
सवैया॥
मैं बृषभान लली बिनवों सो अली सँग कुंजन जातनितय।
गावत बेनु बजावत आवत मोहनलालहु नित्त तितय ।।
श्यामह श्याम भये ज्यहि ठौर सो और बखान करै को कितय ।
गावत गीत सबै ललिते ज्यहि आवत जोन जहाँलों जितय १
सुमिरन॥
राधा रानी ठकुरानी के दूनों धरों चरण पर माथ ।।
मोहिं भरोसा अब तेरो है स्वामिनि पूरिकरो यह गाथ १
कण्ठ में बैठे तुम कण्ठेश्वरि भुज बल बैठिजाय हनुमान।।
बैठि सरस्वति जा जिह्वामा भूले अक्षर करों बखान २
भाँग भवानी महरानी के वन्दन करों जोरि दोउ हाथ ।।
भाँग न होती जो दुनिया मा ललिते कौन देत तब साथ ३
चढ़ै तरंगैं जब भाँगन की आँगन देखि परै सुरलोक ।।
दुख नहिं ब्यापै कछु देहीमा मनके छूटिजात सब शोक ४
भाँग घोटिकै नित प्रति पीवै जीवै वर्ष एक शत एक ।।
हर को ध्यावै तब सुखपावै पूरी होय तबै यह टेक ५
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका गुनो शूरमन क्यार ।।
बेला काटी शिर ताहर का सोई गाथ कहौं विस्तार ६
अथ कथाप्रसंग ॥
जहाँ चँदेले ब्रह्मा ठाकुर बेला गई तहाँ पर धाय ।।
बैठी पलँगा कर पंखालै लागी करन पवन सुखदाय १
ग्वरि २ बहियां हरि २ चुरियाँ शोभा कही वूत ना जाय ।।
शची मेनका की गिन्ती मा बेला रूप राशि अधिकाय २
यहु अलवेला ब्रह्मा ठाकुर बेलै बोला वचन सुनाय ।।
टरिजा टरिजा री आँखिनते दीखे गात सबै जरिजायँ ३
घटिहा राजा की कन्या ते का सुख होय मोहिं अधिकाय ॥
इतना सुनिकै बेला बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४
तुम्हैं मुनासिब यह नाहीं है जैसी कहौ चँदेलेराय ।।
राज कुटुँब सब अपनो तजिकै आइन चरण शरणमें धाय ५
सुनि सुनि बातैं अब प्रीतम की छाती घाव होत अधिकाय ॥
परवश कन्या की गति जैसी तैसी रही चँदेलेराय ६
ऐसी तुमको अब चहिये ना जैसी सूखी रहे सुनाय ।।
सुरपुर अहिपुर नरपुर माहीं प्रीतम कौन मोर अधिकाय ७
प्यारे प्रीतम इक तुमहीं हौ साँचो साँच दीन बतलाय ।।
सुनिकै बातैं ये बेला की बोला फेरि चँदेलाराय ८
मूड़ काटिकै अब ताहर का प्यारी मोहिं देउ दिखलाय ।।
घात करेजे का तब पूरै औ सुख सम्पति मोहिं सुहाय ९
इतना सुनिकै बेला बोली स्वामी बचन करो परमान ।।
कपड़ा घोड़ा दै कोड़ा निज पठवो मोहिं समर मैदान १०
एक लालसा पै डोलति है स्वामी पूरि करो यहि काल ।।
नगर मोहोबा मोहिं पठवावो दर्शन करों सासु के हाल ११
इतना सुनिकै ब्रह्मा बोले जावो साथ लहुरवाभाय ॥
बेला बोली तब स्वामी ते यह नहिं उचित मोहिं दिखलाय १२
ब्रह्मा बोले फिरि लाखनि ते तुमहीं जाउ कनौजीराय ।।
बेला बोली फिरि स्वामी ते यह नहिं उचित मोहिं दिखलाय १३
बदला लेहैं संयोगिनि का रखिहैं मोहिं कनौजै जाय ॥
ह्वई हँसौवा दुहुँ तरफा का प्रीतम करिहौ कौन उपाय १४
ब्रह्मा बोले फिरि आल्हा ते तुम चलि जाउ बनाफरराय ।।
यह मन भाई तब बेला के पलकी चढ़ी तड़ाकाधाय १५
चढ़ि पचशब्दा हाथी ऊपर अल्हा ठाकुर भये तयार ।।
डोला चलिभा फिरि बेला का संगै चले बहुत असवार १६
यह गति देखी माहिल ठाकुर लिल्ली उपर भये असवार ।।
जहँ पर बैठे पृथीराज हैं पहुँचा उरई का सरदार १७
बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय ॥
जो कछु गाथा थी तम्बू की माहिल यथातथ्य गा गाय १८
तब महराजा दिल्ली वाला चौड़ै तुरत लीन बुलवाय ।।
खबरि सुनाई सब चौंड़ा को जो कछु माहिल दीन बतलाय १९
नार कॅकरिहा पर तुम घेरो डोला लावो बेगि छिनाय ।।
हुकुम पायकै महराजा को फौज तुरत लीन सजवाय २०
चढ़ि इकदन्ता हाथी ऊपर चौंड़ा कूचदीन करवाय ।।
बाजत डंका अहतंंका के पहुँचा नार उपरसो आय २१
दीख्यो आल्हा को चौंड़ाने गरुई हाँक कहा गुहराय ॥
डोला धरिकै अब बेला का जावो लौटि बनाफरराय २२
हुकुम पिथौरा का याही है आल्हा साँच दीन बतलाय ॥
सुनिकै बातैं ये चौंड़ा की बोला फेरि बनाफरराय २३
डोला लौटन को नाहीं है चौंड़ा काह गये बौराय ॥
एक पिथौरा की गिन्ती ना लाखन चढ़ैं पिथौरा आय २४
नगर मोहोबे डोला जाई चौंड़ा साँच दीन बतलाय ॥
गा हरिकारा फिरि तहँना ते जहँना बैठ बनाफरराय २५
डोला घेरा है बेला का बोला हाथ जोरि शिरनाय ।।
इतना सुनिकै ऊदन ठाकुर तुरतै कूच दीन करवाय २६
जहँ पर फौजे हैं चौंड़ा की पहुँचा तुरत लहुरवाभाय ।।
हाथ जोरिकै ऊदन बोले दादा कूच जाउ करवाय २७
इतना सुनिकै चौंड़ा वकशी तुरतै हुकुम दीन फर्माय ।।
जान न पावैं मोहबे वाले सब के देवो मूड़गिराय २८
हुकुम चौंड़िया का पावतखन क्षत्रिन खैंचि लीन तलवार ।।
झुके सिपाही दुहुॅ तरफा के लागी होन भडाभड़ मार २९
गोली ओला सम बरसी तहँ कोताखानी चली कटार ।।
भा खल भल्ला औ हल्लाअति जूझन लागि शूर सरदार ३०
कटि कटि कल्ला गिरैं बछेड़ा घूमैं मूड़ बिना असवार ।।
खट खट खट खट तेगा बोलैं बोलें छपक छपक तलवार ३१
झल् झल् झल् झल् झीलम झलकै नीलम रंग परैं दिखलाय ।।
चम् चम् चम् चम् छूरी चमकैं कउॅ धाल पकनि खड्गदिखाय ३२
मर् मर् मर् मर् ढालैव्वालैं तेगा ठन्न ठन्न ठन्नाय ।।
सन् सन् सन् सन् गोली बरसैं तीरन मन्न मन्न गा छाय ३३
धम् धम् धम् धम् बजैं नगारा मारा मारा परै सुनाय ॥
बड़ी खुशाली रण शूरन के कायर गये तहाँ सन्नाय ३४
कायर सोचत मन अपनेमा नाहक प्राण गँवाये आय ।।
माठा रोटी घरमा खाइत आपनि भैंसि चराइत जाय ३५
यह गति जानित जो पहिलेते काहे फँसित समर में आय ॥
नई बहुरिया घरमा बैठी कैसे धरा धीर उरजाय ३६
हाय रुपैया बैरी ह्वैगे हमरे गई प्राण पर आय ॥
को समुझाई घर दुलहिनिका देवी देवता रहे मनाय ३७
कायर बिनवैं मन सूरजते पश्चिम जाउ आज महराज ।।
तौ हम भागैं समरभूमि ते औ रहिजाय जगत में लाज ३८
शर सिपाही ईजति वाले दहिनी धरैं मुच्छ पर हाथ ।।
हनि हनि मारैं समरभूमि मा कटि कटि गिरैं चरण औ माथ ३९
को गति बरणै त्यहि समया कै बाजै घूमि घूमि तलवार ।।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार ४०
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार ।।
घोड़ बेंदुला के ऊपर ते नाहर उदयसिंह सरदार ४१
फिरि फिरि मारै औ ललकारै बेटा देशराज का लाल ।।
गरुई हाँके सुनि ऊदन की कम्पित होयँ तहाँ नरपाल ४२
एँड़ लगावै रस बेंदुल के हौदा उपर पहूँचै जाय ।।
मारि महाउत को हनिडारै औ असवारै देय गिराय ४३
यह गति दीख्यो जब ऊदन कै चौड़ा हाथी दीन बढ़ाय ।।
औ ललकारा समरभूमि मा ठाढ़े होउ बनाफरराय ४४
गरुई हाँकैं सुनि चौंड़ा की ऊदन घोड़ा दीन उड़ाय ।।
भाला मारा इकदन्ताके भाग्यो तुरत पछाराखाय ४५
खेत छूटिगा तब चौंड़ा ते आल्हा कुच दीन करवाय ॥
डोला पहुँचा बरइन पुरवा बेला बोली वैन सुनाय ४६
नगर मोहोबा का याही है साँची कहौ बनाफरराय ।।
नगर मोहोबा का पुरवा यह बेला रानी परै दिखाय ४७
खबरि पायकै सुखिया बारिनि तहँ पर गई तड़ाका आय ॥
संग सहेलिन को लैकै सो परछन कीन तहाँपर जाय ४८
चलिभा डोला फिरि आगे को मालिनि पुरै पहूँचा आय ।।
खबरि पायकै फुलिया मालिनि सोऊ चली तड़ाका धाय ४९
संग सहेलिन को लीन्हे सो डोला पास पहुँची आय ।।
कीनि आरती सो बेला की देखिकै रूप गई सन्नाय ५०
हाय ! विधाता यह का कीन्ही सुरपुर पती दीन पठ्वाय ।।
इतना कहिकै फुलिया मालिनि दाँते ॲगुरी लीन चपाय ५१
सुनिकै बातैं ये फुलिया की बेला गयो क्रोध उरछाय॥
हुकुम लगायो इक चाकर को जूतिन देवो मूड़ उठाय ५२
हुकुम पायकै सो बेला को मारन लाग तड़ाका धाय ॥
आल्हा बोले तब बेला ते यह नहिं तुम्हें मुनासिब आय ५३
आवे न डोला गा मोहबे का रैयति प्रथम रहिउ पिटवाय ॥
सुनिकै बातैं ये आल्हा की बेला तुरत दीन छुड़वाय ५४
मालिनि पुरवा ते डोला चलि पहुॅचा नगर मोहोबे आय ॥
खबरि पायकै बारहु रानी मल्हना महल गई सब धाय ५५
द्यावलि सुनवाँ फुलवा मल्हना द्वारे सबै पहूँचीं आय ॥
कीन आरती तहॅ बेला की सबहिन दुःख शोक बिसराय ५६
संगै लैकै फिरि बेला का महलन गई तड़ाका आय॥
भा अति मेला तहँ नारिन का शोभा कही वूत ना जाय ५७
मुहँ दिखलाई रानी मल्हना तहँ पर दीन नौलखा हार ॥
पायँ लागिकै बेला रानी कङ्कण तुरतै दीन उतार ५८
भीर मेहरियन के हटिगै जब अकसर बहू रही त्यहिठाँय ।।
मल्हना पूँछै तब बेला ते साँची साँच देय बतलाय ५९
बालम तुम्हरे अब कैसे हैं कहँ कहँ लगे अंग किनघाय।।
इतना सुनिकै बेला वोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ६०
बाई दहिनी द्वउ कोखिन मा लागी सेल कटारी घाय॥
गाँसी खटकति है मस्तक में मैया बिपति कही ना जाय ६१
बातैं सुनिकै ये बेला की मल्हना गिरी पछाराखाय ।।
कथा पुराणन की बातैं बहु बेला कहा तहाँ समुझाय ६२
कथा सुनाई गंधारी की ज्यहि के मरे एकशत पूत ॥
कथा बताई यदुनन्दन की जहँ मरिगये सबै रजपूत ६३
कथा बखानी रघुनन्दन की नृपपद छूटि मिला वनबास ॥
कही कहानी दशकन्धर की ज्यहिके भई वंशकी नाश ६४
बेला वानी सुनि रानी सब तुरतै शोक दीन बिसराय ।।
प्रसव वेदना ज्यहि पर बीती जीती स्वई शोक अधिकाय ६५
बेला बोली चन्द्रावलि ते ननँदी साँच देयँ बतलाय ।।
भैया अपने को सतखण्डा ननँदी मोहिं देय दिखलाय ६६
इतना सुनिकै चन्द्रावलि तहँ गै सतखण्डा तुरत लिवाय ॥
को गति बरणै सतखण्डा कै साँचो इन्द्र धाम दिखलाय ६७
चँदन किंवरिया जहँ लागी है खम्भन रत्न जटित को काम।
कैसो सम्भ्रम मन जो होवै बैठत लहै तहाँ विश्राम ६८
बेला पहुँची जब छज्जा पर पक्षिन भीर दीख अधिकाय ॥
कोकिल हंस मोर पारावत तीतर लवा सुवा सुखदाय ६९
शोभा देखत तहँ छज्जा की बेला बार बार पछिताय ।।
जीवत प्रीतम हमरे होते तौ सुख भोग होत अधिकाय ७०
आज काल्ह दिन प्रीतम झेलैं ताते नरक सरिस दिखलाय ।।
हाय ! विधाता की मरजी अस भारी विपति गई शिर आय ७१
प्रीतम प्यारे के सतखण्डा हम पर फाटि गिरो अरराय ।।
यह मन विनवत बेला रानी महलन गई तड़ाका आय ७२
बेला बोली फिरि मल्हनाते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
मोरि लालसा यह डोलति है चन्दन बगिया देउ दिखाय ७३
सुनिकै बातैं ये बेला की पलकी तुरत लीन मॅगवाय ।।
बैठि पालकी महरानी सब चन्दन बाग पहूँची जाय ७४
पुष्पवाटिका तहँ राजत है छाजत सवै दिनन ऋतुराज ।।
बेला चमेली श्री नेवारकी पंक्ती रहीं एक दिशिछाज ७५
विसुनकान्ता कहुँ कहुँ फूले कहुँ कहुँ फूले सुर्ख अनार ॥
श्वेत रक्त औ मधुर गुलाबी पाटल फूले भांति अपार ७६
फुली चांदनी श्वेत वरणहैं जिन पर केलि करत बहुभुंग ।।
को गति वरणै दुपहरिया कै ज्यहिको रक्तवरण है रंग ७७
श्वेत रक्त औ मधुर गुलाबी सब विधि फलि रहा करवीर ।।
कदली केवड़ा यकदिशिराजत छूटत देखि मुनिनको धीर ७८
श्वेत रक्त तहँ चन्दन छाजैं राजै कोकिल मोर चकोर ।।
पीव पपीहा की रट सुनिकै विरहिनि पीरहोय अतिघोर ७६
यह सुख सम्पति बेला लखिकै कीन्ह्यो घोर शोर चिग्घार ।।
जितनी रानी थीं बगिया में सबहिन छंड़ि दीन डिंडकार ८०
मोती ऐसे आँसू ढरकै बेला हृदय शोक गा छाय ।।
तब समुझावै मल्हना रानी बहुवर शोक देउ बिसराय ८१
पारस पत्थर घर तुम्हरेमा बहुवर बैठिकरो तुम राज ।।
हुकुम तुम्हारो रैयति मानी ह्वैहैं सबै धर्म के काज ८२
द्यावलि बोली फिरि बेला ते रानी बचन करो परमान ।।
धर्म सनातन को याही है राखै सासु श्वशुरको मान ८३
इतना सुनिकै बेला बोली यहु दुख दून तुम्हारो दीन ।।
घर बैठारयो दोउ पुत्रन को मोहबा बंशनाश तुम कीन ८४
इतना सुनिकै द्यावलि बोली साँची मानो कही हमार ॥
यह सब करतब है माहिल कै जिनके चुगुलिन का बैपार ८५
सवन चिरैया ना घर छोड़े ना बनिजरा बनिज को जाय ।।
चुगुली करिकै माहिल ठाकुर मोको तुरत दीन निकराय ८६
गे जगनायक जब कनउज का आवैं नहीं बनाफरराय ॥
मैं समुझायों द्वउ भाइन का लाये संग कनौजीराय ८७
घाट बयालिस तेरह घाटी सब रुकववा पिथौराराय।।
जीति पिथौरा को लखाना सबियाँ लीन्हे घाट छँड़ाय ८८
पान धरायो जब गौने का तब नहिं बीरा क्वऊ चबाय ।।
वीरा लीन्ह्यो जब ऊदन ने ब्रह्मा लीन्ह्यो तुरत छँडाय ८९
यह सब करतब है माहिल के डारयनि वंशनाश करवाय ।।
काल नगीचे ज्यहि के आवै त्यहिकै देवै बुद्धि नशाय ९०
इतना कहतै तहँ द्यावलि के आल्हा गये तड़ाका आय ।।
बेला बोली तहँ आल्हा ते कीरतिसागर लवो दिखाय ९१
यह मन भाई सब रानिन के पलकी चढ़ी तड़ाका धाय ।।
चली पालकी महरानिन की संगै चले बनाफरराय ६२
कीरतिसागर फिरि आई सब नोंका पास लीन मॅगवाय ।।
भये खेवैया आल्हा ठाकुर पहुँचे पार तड़ाका आय ९३
अतिशुभ मंदिर ब्रह्मानँद का शोभा कही वूत ना जाय ।।
गई तड़ाका सब महरानी चकितलखैं चहूँदिशिधाय ९४
पंसासारी ब्रह्मानँद की बेला नजरि परी सो आय ॥
तब अलबेला बेलारानी बोली सुनो बनाफरराय ९५
बड़े खिलारी तुम चौपरिके सो अब मोहिं देउ सिखलाय ॥
इतना सुनिकै आल्हा बैठे चौपरि तहाँ दीन फैलाय ९६
बेला खेलै पंसासारी अंचल अपन उड़ावति जाय ।।
यह गति देखी आल्हा ठाकुर नीचे लीन्ह्यो शीश झुकाय ९७
बहुतक रूप धरे बेला ने आल्है मोह रही करवाय ॥
चाटक नाटक करि सबहारी मोहा नहीं बनाफरराय ९८
रूप भयङ्कर दशवों धरिकै डाइनि बैठिगई मुहबाय ॥
यहिका लखिकै आल्हा ठाकुर तुरतै खाँड़ा लीन उठाय ९९
गर्जत बोले आल्हा ठाकुर का तू मोहिं रही डरवाय ॥
देखि भयङ्कर क्षत्री डरपै कीरति जावै सबै नशाय १००
हो अप कीरति जब दुनिया में तब तो मृत्यु नीकि ह्वैजाय ।।
ऐसे वैसे हम क्षत्री ना जो अब देवैं धर्म नशाय १०१
रूप मोहनी माता जाना डाइनि शत्रुरूप दिखलाय ॥
अब तू पलटे कित स्वरूप को कित तू करै समर रण आय १०२
इतना सुनतै बेलारानी प्रथमै लीन्ह्यो रूप बनाय ।।
पाप तुम्हारे कछु मन में ना साँचे शूर बनाफरराय १०३
याॅचे तुमका हम तम्बूमा अपने लाइन साथ लिवाय ।।
संग लहुरवा का लीन्ह्यो ना हमरे उमर सरिस सो आय १०४
संग लकड़ियन मिलि अग्नी को ज्वाला अधिक२ अधिकाय॥
यामें संशय कछु नाहीं है बिप्रनमोहिं दीन बतलाय १०५
यै तहँ सज्जन औ दुर्ज्जनका मंद औ तीक्ष्ण भेदहै भाय ।।
सज्जन क्षत्री असकलियुगमा नहिं कहुँ घरन घरन अधिकाय १०६
जस तुम द्यावलि के उपजेहौ कीरति रही लोक में छाय ॥
उत्तम करणी करि नर सज्जन कीरति ध्वजा देयँ फहराय १०७
धर्म नशावैं ते मरिजावैं जिन अप कीरति बहुत सुहाय ॥
साँचे याँचे तुम क्षत्री हो कीरति कहीलो कस बगाय १०८
धर्म पतिव्रत के शपथन ते आशिर्बाद बनाफरराय ।।
कीरति गाई जो सज्जन की गावत स्वऊ सरिस ह्वैजाय १०९
सज्जन गावै गाय सुनावै पूरो अर्थ देय बतलाय ।।
जो मन भावै क्याहु सज्जन के पावै अमरलोक सो भाय ११०
ऐसे कीरति के सागर तुम साँचे धर्म बनाफरराय ॥
इतना कहते तहँ बेला के मल्हना आदि गई सब आय १११
बैठिकै नैया सब महरानी सागर पार पहूँचीं जाय ॥
बारह ताल हते मोहबे में बेला दीख सबन को धाय ११२
बेला बोली फिरि मल्हना ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
मिले आज्ञा मोहिं माता की लश्कर जाउँ तड़ाकाधाय ११३
कीनि प्रतिज्ञा हम प्रीतम सों माता साँच देयँ बतलाय ।।
मूड़ काटिकै हम ताहर को औ स्वामी को देव दिखाय ११४
जग मर्यादा राखन हेतू सेवक भाव देव दिखलाय ॥
प्रीतम प्यारे की आज्ञा सों जीतों समर सगानिज भाय ११५
मोहिं विधाता की मर्जी थी अनरथ रूप दीन उपजाय ।।
अर्थ न पावा कछु देही का भइजगदेह अकारथ माय ११६
स्वारथ प्रीतम के सँग होती सो विधि दीन बियोग कराय।।
जन्म अकारथ यहु दुनिया माँ कौनीभाँति काटिहौंमाय ११७
नैनन योवन औ बैनन को नहिं कछु पूरभयो व्यवहार ।।
अंग न पर्शा हम प्रीतम का ना पद पूर भयो भार्तार ११८
सदा अभागी नर नारिन को नाहक रचा नहीं कर्तार ॥
कर्म शुभाशुभ जो लाग्यो है सोई भोगि रहा संसार ११९
यहै सोचिकै मन अपने मा आयसु देउ तड़ाका माय ।।
समय किफायत गाथा भारी आरी कहे जान ह्वैजाय १२०
इतना सुनतै मल्हना रानी मनमा बार बार पचिताय ।।
दुःख विधाता हमका दीन्ह्यो गाथा कही कहाँ लग जाय १२१
इतना सोचत मन अपने मा आयसु फेरि दीन हर्पाय ।।
चरण लागिकै महरानी के बेला कूच दीन करवाय १२२
संग बनाफर आल्हा ठाकुर पलकी चली तड़ाका धाय ।।
बेला बोली तहँ आल्हा ते साँची सुनो बनाफरराय १२३
द्यखों चौतरा गजमोतिनि का यह मन गई लालसा छाय ।।
इतना सुनतै आल्हा ठाकुर सिरसा चले तड़ाकाधाय १२४
जहाँ चौतरा गजमोतिनि का डोला तहाँ दीन धरवाय ॥
उतरिकै डोला ते बेला तब चन्दन अक्षत फूलमँगाय १२५
कीन चबुतरा की पूजा भल मन में बार बार तहँ ध्याय ।।
सती शिरोमणि गजमोतिनि जो सॉचे शूर बनाफर राय १२६
आभा बोलै तौ चौराते ज्यहि संतोष मोहिं ह्वैजाय ।।
बोली आभा गजमोतिनि की माहिल डारे कन्तमराय १२७
सत्त विधाता मोको दीन्ह्यो सत्ती भयूँ यहां पर आय ।।
तीनि महीना सत्रह दिनमा सब महनामथ जाय पटाय १२५
दिल्ली मोहबा द्वउ शहरन में राँड़ै राँड़ै परैं दिखाय।।
आभा सुनिकै बेला बोली बहिनी साँचदेय बतलाय १२९
हम तो रण्डा वादिन जाना जादिन मरे बीर मलखान ॥
कीरति पायो जग मण्डल में तुमको सत्तदीन भगवान १३०
करि परिकरमा फिरि चौराकी पलकी चढ़ी तड़ाकाधाय ॥
दावे लश्कर को आवति भै मन में श्री गणेश पद ध्याय १३१
पहर अढ़ाई के अर्सामा डोला गयो फौज में आय ।।
यह अलबेला बेला रानी प्रीतम पास पहूँची जाय १३२
देख्यो बेला को ब्रह्मानँद आयसु तुरत दीन फरमाय ॥
मोरि लालसा यह ड्वालतिहै ताहर शीश दिखावो आय १३३
सुनिकै बातैं ये प्रीतम की दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
बेला बोली फिरि प्रीतम ते आपन बस्त्र देउ मँगवाय १३४
यामें संशय कछु नाहीं है ताहर शीश दिखाउब आय ॥
धीरज राखो अपने मन माँ अब मैं जात तड़ाकाधाय १३५
सुनिकै बातैं ये बेला की सब सामान दीन मँगवाय॥
भइ मर्दाना बेला रानी शोभा कही बूत ना जाय १३६
झीलम बखतर बेला पहिरी शिरपर धरी बैंजनी पाग ॥
को गति वरणै तहँ बेला कै मुखमें स्वहैं तिलन के दाग १३७
छुरी कटारी बेला बाँधी कम्मर कसी एकतलवार ।।
भाला बरछी लै हाथे मा हरनागर पर भई सवार १३८
बाजे डंका अहतंका के फौजें सबै भई तय्यार ।।
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया नाहर उदयसिंह सरदार १३९
त्यही समैया त्यहि औसर मा बेला पास पहूँचा आय ॥
उदन बोले तहँ बेला ते हमको लेवो साथ लिवाय १४०
सुनिकै बातैं ये ऊदन की बेला बोली वचन उदार ॥
साथ न लेवे हम काहू को ठाकुर उदयसिंह सरदार १४१
इतना कहिकै बेलारानी लश्कर कूच दीन करवाय ॥
बाजत डंका अहतंका के निर्भय चले शूर मा जायँ १४२
दिल्ली केरे फिरि डाँडे़ मा लश्कर सबै पहुँचा आय ॥
गड़िगे तम्बू तहँ बेला के सवरँग धजा रहे फहराय १४३
लिखी हकीकति फिरि पिरथी को कागज कलमदान मँगवाय ।।
बेला पहुँची अब मोहबे का औ घर जिया चँदेलाराय १४४
अधकर बाकी जो गौने की सो अब तुरत देउ पठवाय ॥
नहीं तो ब्रह्मा हैं डाँड़े पर दिल्ली शहर देयँ फुँकवाय १४५
ताहर नाहर के हाथे सों अधकर तुरत देउ पहुँचाय ॥
कुशल आपनी जो तुम चाहौ मानो साँच पिथौराराय १४६
इतना लिखिकै बेलारानी धावन हाथ दीन पठवाय ।।
धावन चलिभा फिरि तम्बू ते औ दरबार पहूँचा आय १४७
लागि कचहरी पृथीराज की भारी लाग राज दरबार ।।
बैठक बैठे सब क्षत्री हैं टिहुन न धरे नांगि तलवार १४८
तहँ परवाना धावन दीन्ह्यो दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
खोलिकै चिट्ठी पिरथी पढ़िकै तुरतै गये सनाका खाय १४९
उत्तर लिखिकै फिरि चिट्ठी का धावन तुरत दीन लौटाय ।।
ताहर बेटा को बुलवायो औ सब हाल कहा समुझाय १५०
बेटी हमरी चैरिनि बैंगे ब्रह्माठाकुर दीन जियाय ॥
अधकर लेने को आये हैं सवियाँफौजलेउसजवाय १५१
जायके पहुॅचो समरभूमि में अधकर तहाॅ देउ चुकवाय ।।
मारे मारे तलवारिन के सबके देवो मूड़ गिराय १५२
अधर तबहीं ई भरि पैहैं जैहैं भागि चँदेलेराय ।।
इतना सुनिकै ताहर चलिभे दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १५३
हुकुम लगायो फिरि लश्कर में तुरतै सजन लागि सरदार ॥
झीलम बखतर पहिरि सिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार १५४
सजे बछेड़ा ताजी तुर्की मुश्की घोड़ भये तय्यार ॥
लक्खा गर्रा पचकल्यानी सुर्खा सिर्गा आदि अपार १५५
डारि रकाबै गंगा यमुनी आननदीन लगाम लगाय ॥
हथी महाउत हाथी लैकै तिनका दीन भूमि बैठाय १५६
धरी अँबारी तिन हाथिन पर बहुतन हौदा दीन धराय ।।
चुम्बक पत्थर के हौदा हैं जिनमें से लबलौं चाखाय १५७
कोउ कोउ हाथी इकदन्ता हैं कोउ दुइदन्त श्वेत गजराज ॥
यकमिलह्वैके सब चिघरत है मानो कोप कीन सुर राज १५८
सजिगैं फौजै दल बादल सों ताहर गये मातु के धाम ॥
हाल बतायो सब अगमा सो करिकै चलिभा दण्ड प्रणाम १५९
प्यारी अपनी के महलन में ताहर गये तड़ाका धाय ॥
बैठा ठाकुर जब शय्यापर दैया बिपति कही ना जाय १६०
राह कटावै मंजारी तहँ होवै छींक तड़ातड़ आय ॥
झंझा बायू डोलन लागी आयू गई जनोन गच्याय १६१
बादल छायो आसमान में कउँ धालपकि लपकि रहिजाय ।।
चमकै विजुली त्यहि समया मा दमकै आसमान हहराय १६२
थर थर थर थर थर थर कंपै झंपै आसमान त्यहिकाल ॥
दर दर दर दर दर दर दरकै फरकैदहिन अंगत्यहिकाल १६३
मरणहि सूचित भो पत्नी को ननँदी वचन गये ठहराय ॥
उठी तड़ाका लखि अशकुन को प्रीतम गरे गई लपटाय १६४
ताहर रोक्यो त्यहि समया मा अपनी माया मोह भुलाय ।।
हुकुम सुनावा महराजा का सबियाँ हाल कहा समुझाय १६५
लौटिकै मुर्चा ते आउब जब तुम्हरो करब मनोरथ आय ॥
ऐसे कहिकै ताहर नाहर चलिभे बहुत भांति समुझाय १६६
आये फौजन में रण नाहर डंका तुरत दीन बजवाय ।।
बाजत डंका अहतंका के लश्कर कूच दीन करवाय १६७
चढ़ि दलगंजन की पीठी मा मनमा श्रीगणेश पद ध्याय ।।
बन्दन कीन्ह्यो पितु चरणन का चन्दन अक्षत फूल चढ़ाय १६८
प्राण निछावरि फिरि मनते करि चलिभा दिल्ली राजकुमार ।।
गर्जत तर्जत लर्जत आवत नाहर दिल्ली का सरदार १६९
आयकै पहुॅचा समर भूमि मा गरुई हाँक कहा ललकार ॥
लेय चँदेला अब अधकर को आयो दिल्ली राजकुमार १७०
सुनिकै बातैं ये ताहर की बेला मोहबे का सरदार।।
असल जनाना मर्दाना जो ठाना समर आय त्यहिबार १७१
पहिले मारुइ भइँ तोपन की पाछे चलन लागि तलवार ।
सब हथियारन में तलवारी याही धर्मरूप अवतार १७२
आरयसाही जे उत्साही गाही धर्म युद्ध के यार ।।
तौन सिपाही बेपरवाही छाँड़े प्राण आशत्यहिबार १७३
तड़तड़तड़ तड़ तड़ तड़काटैं पाटैं मुण्डन भूमि अपार ।।
मुरि२ गिरि २ लरि२ कितन्यो जूझनलागि शूरसरदार १७४
झम् झम् झम् झम् भाला बरसैं तरसैं घाव देखि जिययार ।।
भम् भम् भम् भम् क्षत्री भमकैं चमकै चमाचम्म तलवार १७५
गम् गम् गम् गम् ढोलकगमकैं दमकैं शक्ति शूल विकराल ॥
मारु मारु के मौहरि बाजै बाजै हाव हाव करनाल १७६
जूझे क्षत्री दुहुँतरफा के नदिया बही रक्त की धार॥
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १७७
को गति बरणै वहि समया कै चहुँदिशि होय भडाभड़ मार ।।
बड़ा लड़ैया ताहर नाहर यहु दलगंजन पर असवार १७८
मारत मारत रजपूतन को बेला पास पहूँचा आय ॥
जानि चँदेला फिरि ललकारयो ठाकुर कूच जाउ करवाय १७९
ब्रह्मरूप तब बेला बोली नाहर साँचदेय बतलाय ।।
मोहिं झमेलाते मतलबना अधकर यहाँ देउ पहुँचाय १८०
मोहिं जियावा घर बेला ने याही हेतु दीन पठवाय ॥
भिक्षक ह्वैके समरभूमि में चाहैं आप लेयँ छुड़वाय १८१
ऐसे अधकर यहु छुटि है ना दुइमा एक बंश रहिजाय ॥
इतना सुनिकै ताहर नाहर बोले दोऊ भुजा उठाय १८२
सँभरिकै बैठे अब घोड़े पर ठाकुर खबरदार ह्वैजाय ।।
इतना कहिकै ताहर नाहर भालामारा तुरत चलाय १८३
वार बचाई तहँ भाला की बेला खैंचि लीन तलवार ॥
ऐंचि सिरोही बेला मारी ताहर लीन ढालपर वार १८४
यहु इकदन्ता को चढ़वैया चौंड़ा आयगयो त्यहिबार ।।
रूप देखिकै सो बेला का जान्यो सबै कपट ब्यवहार १८५
चुरिया खुलिगै इक बेला की सोऊ दृष्टिपरी त्यहिबार ।।
चौंड़ा बोला तब ताहर ते यहु नहिं मोहबे का सरदार १८६
बहिनि तुम्हारी यह बेला है तुमते साँच बतावै यार ।।
इतना सुनिकै ताहर ठाकुर चक्रित लखन लाग त्यहिबार १८७
गाफिल दीख्यो जब ताहरको बेला हनी तुरत तलवार ।।
घायल ह्वैगा ताहर ठाकुर बेला काटि लीन शिरयार १८८
बड़ा झमेला अब को गावै बेला कूच दीन करवाय ।।
बाजत डंका अहतंका के तम्बुन फेरि पहूँची आय १८९
लश्कर पहुँच्यो सब दिल्लीमा घर घर खबर गई यह छाय ॥
बेला मारा है ताहर को कोऊ रँधा भात ना खाय १९०
रानी अगमा के महलन मा पहुँची खबरि तड़ाका आय ।।
को गति बरणै त्यहिसमया कै विपदागई महल में छाय १९१
चिघरै रानी रनिवासे मा गिरि गिरि परै पछाराखाय ।
रूप शील गुण वर्णन करिकै मनमा बारबार पछिताय १९२
नाहक बेला तू पैदा भइ डारे बंश नाश करवाय ॥
त्वरे बियाहेते गौने लौं जूझे सातपुत्र रणजाय १९३
दियावरैया अब महलन में कोऊ नहीं परै दिखलाय ॥
सातपुत्र की मैं महतारी सो निरबंश डरे करवाय १९४
केसि निर्दयी बेला ह्वैगै मारे सि समर आफ्नो भाय ।।
इतना कहिकै रानी अगमा फिरि गिरि गई मूर्च्छाखाय १९५
छाय उदासी गै दिल्ली मा कहुँ नहिं मसातलक भन्नाय॥
घर घर रय्यत अपने रोवै दर दर गाथ गई यहछाय १९६
बदला लीन्ह्यो चंदेले का बेला समरभूमि में आय ॥
यहि अलबेला अब गाथा को पूरणकीन यहाँते भाय १९७
खेत छुटिगा दिननायक सों झंडागड़ा निशाको आय ।।
चरि चरि गौवें घरका डगसें पक्षी चले बसेरन धाय १९८
गिरे आलसी खटिया तकि तकि सन्तन धुनी दीन परचाय ।।
आशिर्वाद देउँ मुन्शी सुत जीवो प्रागनरायणभाय १९९
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहो सदा भरपूर २००
माथ नवावों पितु माता को जिन बल परिभई यह गाथ ॥
बिपति निवारण जगतारण के दूनों धरों चरणपर माथ २०१
करों तरंग यहाँसों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त ॥
रामरमामिलि दर्शन देवो इच्छा यही मोरि भगवन्त २०२
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई ) मुशीनवलकिशोरात्मजवाबू
प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतर्षंडरीकला
निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललितापसाद
कृत ताहरवधवर्णनोनामप्रथमस्तरङ्गः ॥१॥
बेला ताहर का मैदान समाप्त॥
इति।