आल्हखण्ड/१८ बेलाके गौनेका प्रथम युद्ध

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ५२९ से – ५४२ तक

 

अथ आल्हखण्ड॥

बेला के गौने का प्रथम युद्ध वर्णन॥


सवैया ॥

व्याकुल गंध्रव नागसबै नरदेव अदेव लहे दुखभारा।
गोतनु धारि गयी पिरथी अरथी सँग देवन लै त्यहिबारा॥
वाणि भई तबहीं नभते ललिते अवधेशके होब कुमारा।
ध्यावतं ब्रह्म सुरासुर जाहि स्वई प्रभु राम लियो अवतारा १

सुमिरन।।


दोउ पद बन्दीं रामचन्द्र के जिनबल चलाजाउँ भवपार ॥
राम न होते जो दुनियामा बेड़ा कौन लगावत पार १
कौन समुन्दर को मथिढारत चौदारतन लेत निकराय ॥
कोधों मारत दशकन्धर को धारत कौन धर्मपथ आय २
कोधों तारत इनपापिन को जिनकी दशा कही ना जाय ।।
नाग मारा कहि तरिगे जो पापी बालमीकि असभाय ३
गीपअजमिलगतिगणिकाकी सबको बिदित भली बिधि आय।।

ये सब पापी हैं प्रथमै के तरिगे रामचरण को ध्याय ४
स्वई भरोसा धरि जियरेमा नितप्रति धरों चरणपरमाथ ।।
पारलगायो भवसागर ते स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ ५
छोंड़ि सुमिरनी अब रघुबर कै बेला गौन कहौं सब गाय ।।
ब्रह्मा ठाकुर दिल्ली जैहैं पैहैं विजय पिथौराराय ६

अथ कथामसंग ॥


एक समैया इक औसर मा बैठे सभा रजा परिमाल ।।
आल्हा ऊदन इन्दल देवा लाखनि साथ और नरपाल १
को गति वरणै त्यहि समयाकै भारी लाग राजदरबार ।।
त्यही समैया त्यहि औसर मा आवा उरई का सरदार २
आवो आवो बैठो बैठो राजै कीन बहुत सतकार ॥
बैठिग ठाकुर उरई वाला आला चुगुलन मा सरदार ३
बिना बुलाये ते बोला फिरि तुम सुनिलेउ रजापरिमाल ।।
औसर ऐसो फिरि पैहौ ना ब्रह्मा गौनलेउ यहिकाल ४
बैठि कनौजी लाखनिराना बैठे देशराज के लाल ।।
लैकै वीरा यहि औसर मा तुम धरिदेउ रजापरिमाल ५
कौन बहादुर यहि समया मा बेला गौन चबावे पान ।।
स्यावसि स्यावसि माहिल ठाकुर तुम्हरे बचन ठीक परमान ६
इतना कहिकै परिमालिक जी तुरतै धरा तहाँपर पान ।।
है कोउ क्षत्री तेहेवाला लेवै पान आन सो ज्वान ७
सुनिकै बातैं परिमालिक की सब कोउ गये सनाकाखाय ।।
बोलि न आवा क्यहु ठाकुरते आनन गये तुरत मुरझाय
चारि घरीदिन यहिविधि बीता कोउ न पान पास समुहान ।।
तबै बहादुर द्यावलि वाला पहुँचा उदयसिंह तहँ ज्वान ९

माहिल बोले तब ब्रह्मा ते ठाकुर काह धरावो नाम ।।
पान चबावो तुम दिल्ली का नाहीं उदयसिंह का काम १०
जाति कुलीने नहिं ऊदन हैं नहिं विश्वासयोग यहिकाल॥
इन्हैं निकारयो परिमालिक है खोंटे देशराज के लाल ११
मतलब इन ते जो रहिहै ना पिरथी करी बहुत सनमान ।।
अगुवाकारी होयँ बनाफर तौ सब लड़ैं बीर चौहान १२
पान चबावो तुम जल्दी सों देवे बिदा तुरत करवाय ।।
इतना सुनिकै ब्रह्मा चलिभे पहुँचे पाननिकट फिरिआय १३
लैकै बीरा तहँ ऊदनते ब्रह्मा गये तड़ाकाखाय ॥
आल्हा मनमा कायल ह्वैगा ऊदन बहुत गये शरमाय १४
दूनों भाई चले तड़ाका दशहरि पुरै पहूँचे आय ॥
आल्हा बोले तहँ ऊदन ते यह गति भई लहुरवा भाय १५
बड़ बड़ राजन के सम्मुख मा ब्रह्मा लीन्ह्यो पान छिनाय ।।
घटिहा राजा मोहबे वाला कैसी हँसी दीन करवाय १६
तुम नहिं मोहबे ऊदन जावो हटका रहै लहुरवाभाय ।।
कहा हमारा तुम माना ना ताका पायगयो फलआय १७
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर सोये बिकट नींद को पाय॥
कछू दिनौना के बीते मा गौना समय पहूँचा आय १८-
मल्हना निश्चय तब ठहरायो जैहैं नहीं बनाफरराय ॥
बिना बनाफर उदयसिंह के लेहै कौन बिदा करवाय १९
यहै सोचिकै मल्हना रानी लाखनिराना लीन बुलाय ॥
आल्हा उदन द्वउ रूठे हैं जानो आप कनौजीराय २०
हैं दिन चाकी नहिं गौना के याकी कौन करी तदबीर ॥
जब सुधि आवै इन बातन की तबहीं होय करेजे पीर २१

आश हमारी अब तुमहीं लग साँची सुनो कनोजीराय ।।
तुम जो जावो ब्रह्मा सँग मा तौ सब काम सिद्धि ह्वैजाय २२
सुनिकै बातैं ये मल्हना की बोले फेरि कनौजीराय ॥
हम चलिजैबे ब्रह्मा सँग मा लैबे बिदा मातु करवाय २३
इतना कहिकै लाखनि चलिभे अपनी फौज पहूँचे आय ॥
बाजा डंका इत ब्रह्मा का हाहाकार शब्द गा छाय २४
उतै कनौजी लाखनिराना अपनी फौज लीन सजवाय ॥
यह सुधि पाई उदयसिंह जब आये तबै तड़ाकाधाय २५
औ यह बोले लखराना ते मानो कही कनौजीराय ।।
साथी हमरे की ब्रह्मा के जो तुम फौज लीन सजवाय २६
पहिले लड़िकै हमरे सँगमा पाछे धरयो अगारी पॉय ।।
इतना सुनिकै सय्यद बोले तुम सुनि लेउ कनौजीराय २७
संग न जावो तुम ब्रह्मा के सम्मन यहै ठीक ठहराय ।।
करो लड़ाई तुम ऊदन ते तौ सब जैहैं काज नशाय २८
हितू तुम्हारे नहिं ब्रह्मा हैं जैसे हितू बनाफरराय ।।
कहा मानिकै यह सय्यद का लाखनि फेंट दीन खुलवाय २९
भई अठारह उरई वाले मोहबे अये तड़ाकाधय ॥
बड़ बड़ शूरन को सँग लैकै ब्रह्मा कूच दीन करवाय ३०
सात दिनौना के अरसा माँ दिल्ली गये चँदेलेराय ।।
दिल्ली करे फिरि डॉड़े मा लश्कर ब्रह्मा दीन डराय ३१
गड़िगा तम्बू तहॅ ब्रह्मा का भारी ध्वजा रहा फहराय ।।
माहिल पहुँचे फिरि दिल्ली मा जहँ पर बैठ पिथौराराय ३२
बड़ी खातिरी पिरथी कीन्ही अपने पास लीन बैठाय ।।
काहे आये उरई वाले आपन हाल देउ बतलाय ३३

इतना सुनिकै माहिल बोले मानो साँच पिथोराराय॥
ब्रह्मा आये हैं गौने को फौजै परी डाँड़ पर आय ३४
पहिले बीरा ऊदन लीन्ह्यो सो ब्रह्मा ने लीन छिनाय ॥
अब मन तुम्हरे जैसी आवै तैसी कहो पिथोराराय ३५
इतना सुनिकै पिरथी बोले माहिल साँच देयँ बतलाय ।।
बिना लड़ाई के गौना कहु कैसे देयँ पिथौरा राय ३६
करैं लड़ाई अब सँभराभरि पाछे बिदा लेयँ करवाय ।।
यह कहि दीजो तुम ब्रह्मा ते माहिल बार बार समुझाय ३७
इतना सुनिकै ब्रह्मानँद ते माहिल खबरि जनाई आय ॥
बिना लड़ाई के मनिहै ना यहु महराज पिथौराराय ३८
इतना सुनिकै ब्रह्मा ठाकुर कागज कलमदान मँगवाय ।।
लिखिकै चिट्ठी दी धावन को धावन चला तड़ाका धाय ३९
जहाँ कचहरी पृथीराज की धावन अटा तड़ाका आय ।।
हाथ जोरिकै धावन तुरतै चिट्ठी तहाँ दीन पकराय ४०
बॉचत चिट्ठी ब्रह्मानँद की पिरथी क्रोध दीन अधिकाय ।।
शूर चौड़िया को बुलवायो औ सब हाल कह्यो समुझाय ४१
तुरतै डंका को बजवावो सबियाँ फौज लेउ सजवाय ।।
बाँधि जँजीरन तुम ब्रह्मा का हमका बेगि दिखावो आय ४२
हुकुम पिथौरा का पावनखन डंका तुरत दीन बजाय ।।
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय ४३
सजि सजि तोपैं खेतन चलिभई हाथिन होन लागि असवार ।।
झीलम बखतर पहिरि सिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार ४४
दुइ दुइ भाला इक इक बस्छी कोउ कोउ बाँधी तीनकटार ।।
तीर तमंचा कड़बीन औ गदकागुर्ज लीन त्यहिबार ४५

कच्छी मच्छी नकुला सब्जा हरियल मुश्की घोड़ अपार ॥
ताजी तुर्की पँचकल्यानी इनपर होन लागि असवार ४६
अंगद पंगद मकुना भौंरा सजिगे श्वेतवरण गजराज ॥
सोहै अँवारी तिन हाथिन पर बहुतन होदा रहे बिराज ४७
को गति बरणै त्यहि समया कै मानो कोप कीन सुरराज ॥
बाजैं डंका अहतंका के मानों गिरैं उपर ते गाज ४८
पहिल नगाड़ा में जिनबन्दी दुसरे फाँदि भये असवार ।।
तिसर नगाड़ा के बाजत खन चलिभे सबै शूर सरदार ४९
खर खर खर खर कै रथदौरे रव्वा चले पवन की चाल ।।
हाथी चिघरे घोड़ा हींसे कीन्हेनि शब्द बहुतनरपाल ५०
गुप्ती धावन तहँ ब्रह्मा का तम्बुन अटा तड़ाका आय ।।
खबरि सुनाई यह ब्रह्मा को की दल अवै चँदेलेराय ५१
इतना सुनिकै ब्रह्मा ठाकुर फौजै तुरत लीन सजवाय ॥
बाजे डंका अहतंका के वंकन शंक दीन विसराय ५२
ई निरशंका मोहबे वाले बाँधेनि तुरत ढाल तलवार ॥
साजा ठाढ़ा हरनागर था ब्रह्मा फॉदि भये असवार ५३
पहिलि लड़ाई भै तोपन कै पाछे चलन लागि तलवार ।।
कहुँ कहुँ भाला कहुँ कहुँ बरछी मारन लागि शूर सरदार ५४
तीर तमंचन की मारुइ भइँ कोताखानी चलीं कटार ॥
तेगा चमकै बर्दवान का ऊना चलै बिलाइति क्यार ५५
को गति बरणै त्यहि समयामा बाजै छपक छपक तलवार ।।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार ५६
ना मुहँ फेरै दिल्ली वाले ना ई मोहबे के सरदार ॥
मुण्डन केरे मुड़ चौरा भै औ रुण्डन के लगे पहार ५७

को गति बरणै जगनायक कै मारे घूमि घूमि तलवार ।।
ब्रह्मा ठाकुर के मुर्चा मा कोउ न ठाढ़ होय सरदार ५८
लरिका मरिगे पृथीराज के क्षत्रिन छाँड़ि दीन मैदान ।।
घाँघू चौड़ा त्यहि समया मा भारी कीन घोर घमसान ५९
भा खलभल्ला औ हल्लाअति लल्ला डारि भागि हथियार ॥
ना मुहँ फेरैं दिल्ली वाले ना ई मोहबे के सरदार ६०
कीरति प्यारी के भूखे हैं दोऊ दिशिमा परम जुझार ॥
फिरि फिरि मारे औ ललकारै यहु मल्हना को राजकुमार ६१
घोड़ा मारै भल टापन ते ऊपर आप करैं तलवार ।।
ब्रह्मा ठाकुर के मुर्चा मा क्षत्री डारि भागि हथियार ६२
देखि तमाशा चौड़ा घाँघू रहिगे चुप्प साधि त्यहि बार ॥
यहु निरशंकी परिमालिक का बहुतन पठै दीन यमद्वार ६३
रण अभिलाषा नहिं काहू के सब क्वउ गये मनैमन हार ।।
ठाकुर बेढव जगनायक है भैने जौनु चँदेले क्यार ६४
वाॅधू ठाकुर के मुर्चा मा दूनों हाथ करै तलवार ।।
चौड़ा ब्राह्मण इकदन्ता से बीरन रहा तहाँ ललकार ६५
रोज केतकी क फूलै ना चंपा रोज न लागै डार ।।
गई जवानी फिरि मिलिहै ना ना फिरि रोज चलैं तलवार ६६
कीरति गैहैं सब दुनिया मा जो कउ लड़ै शूर सरदार ॥
आखिर देही यह रहि है ना जोरी जोरन जोर हजार ६७
सदा न फूलै यह वन त्वरई यारो सदा न सावन होय ॥
सदा न पैहौ यह नर देही ।यारो सदा न जीवै कोय ६८
ऐसी बातैं चौड़ा कहि कहि क्षत्रिन दीन्हे खूब जुझाय ।।
ब्रह्मा ठाकुर त्यहि समया मा भारी हाँक कहा गुहराय ६९

पावैं पिछाड़ी का डारयो ना यारो राख्यो धर्म हमार॥
मारो मारो ओ रजपूतो देहैं विजय अवशि करतार ७०
इतना कहिकै ब्रह्मा ठाकुर लाग्यो करन आप तलवार ।।
ब्रह्माठाकुर के मुर्चा मा कोउ न ठाढ़ होय सरदार ७१
जैसे भेडिन भेड़हा पैठै जैसे अहिर बिडारै गाय ।।
तैसे मारै ब्रह्मा ठाकुर रणमा कोउ न रोक पाय ७२
ब्रह्माठाकुर के मारुन मा कोऊ शूर नहीं समुहाय ॥
लश्कर भाग्यो पृथीराज का पायो विजय चॅदेलेराय ७३
त्यही समैया त्यहि औसर मा माहिल उरई का सरदार ।।
लिल्ली घोड़ी पर चढ़ि बैठयो तिकतिक करन लाग त्यहिबार ७४
जहाँ कचहरी पृथीराज की भारी लाग राज दरबार ।।
उतरिक घोड़ीते भुइँ आवा पहुँचा उरई का सरदार ७५
आवत दीख्योजब माहिलको राजा कीन बड़ा सतकार॥
आवो आवो उरई वाले माहिल राजा हितू हमार ७६
इतना कहिकै महराजा ने अपने पास लीन बैठाय।।
माहिल बोले त्यहि समया मा मानो कही पिथौराराय ७७
लड़िकै जिनिहौ ना ब्रह्माते चहुबल देयँ तुम्हैं करतार ॥
घाँघू चौड़ा सब कोउ हारे जीता पूतु चँदेले क्यार ७८
बड़े लड़ैया मोहबेवाले उनके बांट परी तलवार ।।
उड़न बछेड़ा जिनके घर मा तिनते लड़ै कौन सरदार ७९
पिरथी बोले तब माहिल ते ठाकुर उरई के सरदार ॥
कौन उपाय करैं यहि औसर ज्यहिमा बिजय देयँ करतार ८०
इतना सुनिकै माहिल बोले ओ महराज पिथौराराय ।।
रूप जनाना करि ताहर का ढोला आपु देउ पठवाय ८१

गाफिल देखैं जब ब्रह्मा का तबहीं कैदलेयँ करवाय ।।
इतना सुनि कै ताहर बोले सम्मत नीक नहीं यह भाय ८२
रूप जनाना हम करिबे ना चहु तन धजीधजी उड़िजाय ॥
कीरति जैहै सब दुनिया ते औ रजपूती धर्म नशाय ८३
इतना सुनिकै चौड़ा बोला हम बनिजाब जनानाभाय ।।
बिना बयारी जूना टूटै ओ बिन औपध बहै बलाय ८४
साम दाम औ दण्ड भेद सों नितप्रति चतुर करत हैं काम ।।
मोहिं पियारी यह कीरति है जीतैं शत्रु होय जगनाम ८५
सुनिकै बातैं ये चौंडा की बोला पृथीराज चौहान ।।
स्यावसि स्यावसि चौड़ा बकशी तुम्हरे वचन मोहिं परमान ८६
सुनी पिथौरा की बातैं ये चौड़ा चला तड़ाका धाय॥
जायकै पहुँच्यो रंगमहल में सबियाँ जेवर लीन मँगाय ८७
अनवट बिछिया पायन पहिरे पहिरे कड़ा छड़ा त्यहिबार ।।
धरि पकपान द्वऊ पैरन मा त्यहिपर पायजेब झनकार ८८
किंकिणि पहिरी करिहायें मा कण्ठम पहिरि मोतियनहार ॥
बाजू जोसन बाँधि बजुल्ला दोऊ भुजन कीन शृंगार ८९
छनी पछेला पहुँची ककना दूनों हाथन करैं बहार ।।
आठ अँगुरियन छल्ला पहिरे अँगुठा लीन आरसीधार ९०
चुरियाँ पहिरी द्वउ हाथन मा तिनबिच लीन पनरियाडार ।।
नथुनी लटकन बेसरि पहिरी कानन करनफूल शृङ्गार ९१
बेंदा धारयो फिरि माथे मा बँदियाँ शिरपर करैं बहार ॥
मिस्सी रगरी सब दाँतन मा चौड़ा बना जनाना यार ९२
सिवा औंधे धरि छाती मा चोलीबन्द लीन कसवाय ।।
पाहिरी सारी काशमीर की शोभा कही वूत ना जाय ९३

दुलहिनि बनिकै चौड़ा वकशी तुरतै चढ़ा पालकी जाय ।
जहरबुझाई लीन कटारी सो सारी में धरी चुराय ९४
ताहर बैठै दल गंजन पर घाँघू हाथी पर असवार ॥
झीलमबखतर पहिरि सिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार ९५
चली पालकी फिरि चौड़ा की लश्कर कूच दीन करवाय ॥
इक हरकारा ताहर पठयो औ सब हाल दीन बतलाय ९६
खबरि जनावो तुम ब्रह्मा को बेला बिदा लेयँ करवाय ।।
आवत डोला है बेलाका इकले अवो चँदेलेराय ९७
इतना सुनिकै धावन चलिभा तम्बुन फेरि पहूंचा आय ।।
खबरि जनाई सब ब्रह्मा को जो कछु ताहर दीन बताय ९८
सुनिकै बातैं हरकारा की हरनागर पर भयो सवार ।।
घरी अढ़ाई के अरसा मा पहुँचा मोहबे का सरदार ९९
आवत दीख्यो जब ब्रह्मा का ताहर बोले बचन उदार ।।
आवो आवो ब्रह्मा ठाकुर तुमते हारिगयी तलवार १००
डोला लाये हम बहिनी का ठाकुर बिदा लेउ करवाय ॥
कौन दुसरिहा ह्याँ तुम्हरो है जो अब रारि मचावैआय १०१
लड़ि भिड़ि तुमते हम हारे सब तब यह ठीक लीन ठहराय॥
रंडा हैहै जो बहिनी मम तौ सब जैहैं काम नशाय १०२
यहै सोचिकेै महराजा ने डोला यहाँ दीन पठवाय ।।
बड़ी खुशाली भै राजा के संग न अये बनाफरराय १०३
जो कहुँ औते ऊदन ठाकुर तौ ह्याँ होत युद्ध अविकाय ।।
बड़ी खुशाली भै राजा के जो तुम लीन्ह्यो पानछिनाय १०४
अब यहु डेोला है बहिनी का मोहबे आपु देउ पठयाय ।।
सुनि सुनि बतैं ये ताहर की ब्रह्मा तुरत गये पतियाय १०५

भल औ अनभल जब जस होवय ' तब तस बुद्धि जाय बौराय ।।
सुनान हन्ना क्यहु सुबरण का नाक्यहुदीखनैन सोंजाय १०६
रचा बिधाता नहिं कबहूंथा मारन हेतु गये रघुराय ॥
यह अनहोनी हम दिखलाई सोचो सदा स्वजन जन भाय १०७
होनहार वश ब्रह्मा ह्वैके डोला निकटगये नगचाय ॥
तबहीं चौड़ा उठि पलकी ते बाँये दीन कटारीघाय १०८
दहिने सांगहनी घाँघू ने ताहर मारयो तीर चलाय ।।
तीनों घायपरे ब्रह्मा के तुरतै गिरे मूर्च्छाखाय १०९
यह गति दीखी जब ब्रह्मा की रोवनलागि मोहबिया ज्वान ॥
तबललकारयो जगनायकजी होवो खड़े समर चौहान ११०
दगाते मास्यो तुम ब्रह्माको हमरे साथ करो तलवार ।।
जियत न जाई क्वउ दिल्ली का सबका डरों जानसों मार १११
तौ तौ भैने चंदेले का नहिं ई डारों मुच्छ मुड़ाय ॥
सुनिकै बातै जगनायक की ताहर कूच दीन करवाय ११२
ताहर नाहर के जातैखन जगना अटा तहाँ पर जाय ।।
मुर्च्छित दीख्यो ब्रह्मानँद को पलकी उपर दीन पौढ़ाय ११३
लैकै पलकी जगनायक जी तम्बुन फेरि पहूँचे आय ॥
जागी मुर्च्छा तहँ ब्रह्मा की बोले तुरत चँदेलेराय ११४
कूच करायो नहि लश्कर को मोहबे खबरि देउ पठवाय ॥
सनिकै बातै ये ब्रह्मा की धावन तुरत लीन बुलवाय ११५
कही हकीकति सब धावन ते तुरतै चला शीशकोनाय ।।
जहाँ कचहरी परिमालिक की धावन तहाँ पहूँचाआय ११६
कही हकीकति महराजाते तुरतै गिरे पछाराखाय ।।
बीची काट्यो या बरैं ने मानोडसा भुजंगम आय ११७

विपदा आई फिरि मोहोबे मा फैली बात महल में जाय ।।
सुनी हकीकति रानी मल्हना महलन गिरी मुर्च्छा खाय ११८
बारहु रानी चंदेले की रोवैं तहाँ पछाराखाय ।।
रय्यति रोवैं घर अपने मां सपने सरिस जगत दिखलाय ११९
साँचो स्वपना जग हम देखैं को उन पूत पतोहू भाय ॥
आज मरैं दिन दूसर काल्ही याही साँच परै दिखलाय १२०
त्यहिते भैया यहि दुनिया मा कबहुँन करैं उपरको शीश ॥
सम्मत हमरो यह साँचा है निनप्रतिम जैराम जगदीश १२१
सोउन बाचा यहि दुनिया मा बाहू गये जासु के बीश ।।
सहसन बाहुनका अर्ज्जुन भा ता काहना‌ अवशि जगदीश १२२
काह हकीकति नरपामर की जो करिलेय उपर को शीश ।।
रहिगा ठाकुर ना सिरसा का कलियुग वीर धीर अवनीश १२३
ताते चाही नर देही को झुकि २ झुकतर झुकि जाय।
त्यों त्यों त्यों त्यों ऊपर जावै ज्यों२शीश झुकावत जाय १२४
जैसे तरुवर है रसालको वौरन भार रहा गरुवाय ।।
ज्योज्यों बाढ़ै फल रसालके त्योंत्यों झुकत २झुकिजाय १२५
ज्योज्यों पकिपकि टपकता त्यो त्यो डार उपरको जाय ।।
ऐसो सम्मत यह साँचा है याँचा समय गयो नगच्याय १२६
नहीं तो आल्हाको थाल्हाकरि ललिते धर्म देत दिखलाय ॥
काह हकीकति नर पामर की जो अभिमान करतरहिजाय१२७
सुनी पाठ हैं जिन दुर्गा की स्त्रिन हना वीर समुदाय ॥
धर्म यथारथ की बातैं सब अबको स्वजन देय दिखलाय १२८
ताते गाथा यह सब छूटा लूटा दुःख मोहोबा आय ॥
खबरि पहुंचिगै दशहरिपुरखा आल्हानिकटतड़ाकाजाय १२९

आल्हा ऊदन इन्दल तीनों लागे बैठि तहाॅ पचिताय ।।
द्यावलि सुनवाँ फुलवा तीनों सुनतै गिरीं पछाराखाय १३०
बड़ी दुर्दशा त्यहि समया कै हमरे बूत कही ना जाय ।।
रानी मल्हना के महलन मा सब दुखउतरा गाय बजाय १३१
फिरि फिरि रानी रोदन ठानैं सखियाँ रहीं तहाँ समुझाय ।।
माहिल भूपति द्वउ मरिजावैं उरई गिरै गाज अरराय १३२
जिनकी चुगुलिन ते महलनमा यहु दुःख परा आज दिन आय ॥
मरै पिथौरा दिल्लीवाला जो यहु पूत डरा मरवायं १३३
होय निपूती रानी अगमा सोऊ महल बैठि पछिताय ॥
इतना कहिकै रानी मल्हना फिरि फिरि बार बार पछिताय १३४
ताहर नाहर गा दिल्ली मा राजै खबरि जनाई जाय ।।
बात फेलिगै सब दिल्ली मा औ रनि‌ वास पहूंची आय १३५
खबरि पायकै रानी अगमा महलन गिरी पछारा खाय ।।
कन्त जूझिगे रण खेतन मा बेला सुना तहाँपर आय १३६
चहु पछितानी मन अपने मा भूषण बसन दीन छिरकाय ।।
कहा न मानै तहँ काहू का बेला गिरै परै बिलखाय १३७
औ गरिआवै बेला रानी चौड़ा बंश नाशि ह्वैजाय ।।
बने जनाना तू दिल्ली मा ओदहिजार भवानी खाय १३८
नाहक जन्मी घाँघू मैया दैया गती कही ना जाय ॥
नहिं रजपूती कछु ताहर मा धोखे हना तीरका घाय १३९
इतना कहिकै बेला रानी तुरतै उठी तड़ाका धाय ॥
महल छोड़ि के महतारीका पहुँची और महलमें जाय १४०
मधम युद्ध भा जो गौने मा सो हम सबै गये अवगाय ॥
आशिर्वाद देउँ मुन्शी सुत जीवो प्राग नरायण भाय १४१

रहै समुन्दर में जब लों जल जब लों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रहौ सदाभरपूर १४२
माथ नवावों पितु माता को जिन बल पूरिभई यह गाथ ।।
करों तरंग यहाँ सों पूरण तब पद सुमिरि भवानीनाथ १४३
जो अभिलाषा मन हमरे है सो तुम पूरिकरो भगवन्त ॥
राम रमामिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १४४

इति श्री लखनऊ निवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवल किशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण

जीकी आज्ञानुसार उन्नाम प्रदेशान्तर्गत पंडरीकलीनिवासि मिश्रवंशोद्भव

बुधकृपाशङ्कस्मनु पण्डित ललिता प्रसाद कृतबेलागौन आनयमेंठाकुर

ब्रह्मासिंहघायल वर्णनोनामप्रथमयुद्धेप्रथमस्तरंगः १ ॥

बेलाके गौने का प्रथम युद्ध समाप्त॥

इति ।