आल्हखण्ड/१७ ठाकुर उदयसिंह का हरण

आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ५१७ से – ५२८ तक

 

अथ आल्हखण्ड॥


ठाकुरउदयसिंहजीकाहरणवर्णन ॥

सवैया॥

बज्रसे अंग ओ बानर हय अरु बीरन में बलवान महा।
रणमण्डल कोउ न जाय सकै ज्यहि ठौर जबै यहु बीर रहा ॥
सप्त समुन्दर नाँघि अगाध दशकन्धर को पुर जाय दहा।
आयहु फेरि जवै ललिते रघुनाथ ते साँच हवाल कहा १

सुमिरन ॥


तुम्हें बहादुर में ध्यावत हौं अञ्जनि पूत वीर हनुमान ॥
तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ नितप्रतिकरों चरणकोध्यान १
सरवरि तुम्हरी का दुनिया मा दूसर कौन बहादुर ज्वान ।।
शरण तुम्हारी मा आयन है साँचे वीर बली हनुमान २
गदा प्रहारी हे असुरारी मारी दुष्ट लकिंनी नारि ॥
पर्शत पॉयन मकरी तरिगै लायो पर्वत शृंग उखारि ३
बड़े पियारे रघुनन्दन के वन्दन करों जोरि दोउ हाथ ।।
अवत चन्दन धूप दीप सों पूजन करों मानसी नाथ ४

करो मनोरथ पूरण हमरे सबविधि माननीय हनुमान ॥
छूटि सुमिरनी गै हनुमत कै ऊदन हरण सुनो अव ज्वान ५

अथ कथाप्रसंग॥


एक समैया की बातैं हैं परिगै पर्व दशहरा आय ॥
सुनवाँ बोली तब ऊदन ते साँची सुनो बनाफरराय १
मोरि लालसा यह डोलति है मज्जन करों बिठूरै जाय ।
आयसु लैकै तुम दादा की देवर मोहिं देउ हनवाय २
यह मन भायगई ऊदन के आल्हा महल पहूँचे जाय ।।
हाथ जोरि अरु विनती करिकै बोला तहाँ लहुरवाभाय ३
सुनवाँ भौजी की इच्छा है हमको गंग देउ हनवाय ।।
आयसु पावैं जो दादा की तौ हम जायँ बिठूरै धाय ४
इतना सुनिकै आल्हा बोले मानों साँच लहुरवा भाय ॥
देश देश के राजा अइहैं करिहौ कलह-तहाँपर जाय ५
त्यहिते बैठो घर अपने मा ऊदन साँच दीन बतलाय ॥
पर्व दशहरा की फिरि अइहै औरे साल हनायो जाय ६
इतना सुनिकै ऊदन बोले दादा सुनो बनाफरराय ।।
पगिया हमरी कछु अरुझीना जो तहँ रारि मचैवे जाय ७
वाचा हारे हम भौजी ते तुमको गंग देव हनवाय ।।
मोहिं भरोसा है दादा को करिहौ पूर मनोरथ भाय ८
बातैं सुनिकै वघऊदन की दीन्ह्यो हुकुम बनाफरराय ॥
हुकुम पायकै ऊदन ठाकुर लीन्ही तुरत फौज सजवाय ९
सजी पालकी तहँ ठाढ़ी थीं सुनवॉ फुलवा भई सवार ।।
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया औ जगनायक भयो तयार १०
सवालाख दल ऊदन लैकै तुरतै कूच दीन करवाय।।

बाजैं डंका अहतंका के हाहाकार शब्द गा छाय ११
आठ रोजकी मैजलि करिकै पहुँचा तहाँ बनाफरराय ।।
तम्बू गड़िगा तहँ ऊदन का भारी ध्वजा रहा फहराय १२
सुभिया बेड़िनि झुन्नागढ़ ते पहुँची स्वऊ बिठूरै जाय ॥
करै तमाशा सो तम्बुन में पावै द्रव्य तहाँ अधिकाय १३
जहँपर तम्बू था ऊदन का सुभिया तहाँ पहुँची आय ।।
रूप देखिकै बघऊदन का दीन्ह्यो नाच रंग बिसराय १४
कछु नहिं भावै मुभियामनमा ठगिनी भई तहाँपर आय। ।
औरी नटिनी सँग जे आई तिनका नाच दीनकरवाय १५
अपना बैठे तहँ सोचति है कैसे मिलैं बनाफरराय ।।
जादू डारैं जो ऊदन पर तबहुँनकाजसिद्धदिखलाय १६
जाहिर जादू मा सुनवाँ है हमरे जाय प्राण पर आय ॥
मनमा शोचै मनै बिसूरै मनमा बार बार पछिताय १७
डारि मोहनी दी लश्कर मा जेवर डिब्बा लीन उठाय ।।
दीन रुपैया ऊदन ठाकुर नटिनिन कूचदीन करवाय १८
चढ़ीं पालकी सुनवाँ फुलवा गंगा उपर पहूँचीं जाय ॥
मज्जन कीन्ह्यो उदयसिंह तहँ विप्रनदानदीन अधिकाय १९
मज्जन कीन्ह्यो जगनायक जी प्रातःकृत्य कीन हाय ।।
दान मान दै सब विपन को सबहिन कूचदीनकरवाय २०
लखा तमाशा औ मेला खुब तम्बुन फेरि पहूँचे आय ॥
उखरि ग तम्बू फिरि ऊदन का लश्कर कूच दीन करवाय २१
बाजैं डंका अहतका के हाहाकार शब्द गे छाय।।
अस्त दिवाकर जब पश्चिम में तम्बू दीन तहाँ गड़वाय २२
उत्तम नदिया हें यमुनाजी उतरे जहाँ वनाफरराय ।।

डिब्बा दीख्यो नहिं जेवर को सुनवाँ गई सनाकाखाय २३
तुरत बनाफर उदयसिंह को अपने पास लीन बुलवाय॥
कहि समुझावा तहँ ऊदन ते डिब्बा नहीं परै दिखलाय २४
एक लाख का सब गहना है कैसी करें बनाफरराय ॥
डिब्बा भूलाहै बिठूर मा मोको याद भयो यहँ आय २५
काह बतावों मैं देवर ते करिये कैसो कौन उपाय ॥
धीरज राखो अपने मनमा बोले वचन लहुरवाभाय २६
तुरत बुलायो जगनायक को औ सब हाल कह्यो समुझाय ॥
हम तो जावत हैं बिठूर को तुम अब कूचजाउ करवाय २७
यह मन भायगई जगना के ऊदन गये बिठूरै आय ।।
कैयो दिनका धावा करिकै जगना अटा मोहोबे जाय २८
रहा न मेला कछु लौटेमा सिरकी पाल पर दिखराय ॥
तिनमा नटिनी औ नट ठहरे गे तिन पास बनाफरराय २६
सुभिया दीख्यो जब ऊदन का भै मन खुशी तबै अधिकाय ।।
कहाँते आयो औ कहँ जैहौ ठाकुर हाल देउ बतलाय ३०
सुनिकै बातें ये सुभिया की बोले फेरि बनाफरराय ।।
नगर मोहोबा के हम ठाकुर आयन आजु बिठूर नहाय ३१
जब तुम नाचन गइ तम्बूमा गहनो गयो हमार हिराय ।।
पता लगावन त्यहि आयन है तुमते साँच दीन बतलाय ३२
इतना सुनिकै सुभिया बोली मानो साँच बनाफरराय ।।
पंसासारी हमते खेलो हम फिरि पता देव लगवाय ३३
खेल पसारा सुभिया बेड़िनि बैठे तहाँ लहुरवाभाय ।।
जुआँ युद्धसों साँचे क्षत्री कबहुॅ न धरै पछारी पॉय ३४
नल औ पुष्कल आगे खेल्यो झल्योदुःख नृपति अधिकाय ।

भारी गाथा नलराजा की देखो महाभार्त में जाय ३५
द्वापर शकुनी के सँग खेल्यो कुन्ती पुत्र युधिष्ठिरराय ॥
हारि द्रौपदी महराजा गे खैंचा चीर दुशासन आय ३६
मानिकै शासन दुर्योधन का पहुँचे वनोवास फिरिजाय ।।
काटिकै संकट महराजा सब कीन्हेनिमहाभार्तफिरिआय३७
यहु दुखदाई पंसासारी खेलन लागि बनाफरराय ।।
जादू डारी सुभिया बेड़िनि भे तब सुबा लहुरखाभाय ३८
डारिकै पिंजरा मा ऊदन का सुभिया कूच दीन करवाय ।।
जायकै‌ पहुँची फिरि दिल्ली मा जहँ पर बसैं पिथौराराय ३९
जहाँ कचहरी दिल्लीपति की सुभिया गई यतन सों धाय ॥
करी बन्दगी महराजा को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४०
सुभिया बोली फिरि पिरथी ते राजन साँच देयँ बतलाय ।।
डारिकै जादू हम ऊदन पर औ मेला ते लई चुराय ४१
पै डर हमरे है आल्हा का स्वामी जगा देउ बतलाय ।।
डारिकै सिरकी हम दिल्ली मा निर्भय बसी पिथौराराय ४२
इतना सुनिकै पिरथी बोले सुभिया कूच देउ करवाय ।।
जो सुनिपै हैं आल्हा ठाकुर हम ते रारि मचै हैं याय ४३
इतना सुनिकै सुभिया चलिभै डेरन फेरि पहूँची आय ।।
कूच करावा फिरि दिल्ली ते सब दरबार मँझावा जाय ४४
कहूँ ठिकाना जब लाग्योना झुन्नागढ़ै गयी तब धाय ॥
जहाँ कचहरी गजराजा की सुभिया तहाँ पहूँची जाय ४५
हाथ जोरि कै महराजा के आपन हाल दीन बतलाय ।।
जगा चाहती हम झुन्नागढ़ यह इककाज हमारो आय ४६
इतना सुनिकै राजा बोले सुभिया कूच जाउ करवाय ॥

जो सुनि पै हैं आल्हा ठाकुर हमते रारि मचै है आय ४७
सुनिकै बातैं गजराजा की सुभिया कूच दीन करवाय ।।
झारखण्ड के फिरि जंगल मा डेराजाय दीन गड़वाय ४८
चौकी पहरा करि जादू के निर्भय बसी तहाँ मुखपाय ॥
सुनवाँ सोचै ह्याँ महलन मा आये नहीं लहुरवा भाय ४९
पता लगावों मैं ऊदन का जावों देश देश को धाय ।।
यहै सोचिकै रानी सुनवाँ चिल्हिया बनी सरगमड़राय ५०
पहिले ढूँढ़ा त्यहि बिठूर का पाछे गयी कामरू धाय ।।
सिलहट बिजहट मौरँग झुन्ना दिल्ली शहर लखा फिरिजाय ५१
पता न पायो जब ऊदन का पहुँची झारखण्ड में आय ।।
तहॉ पै डेराहैं बेड़िनि के सुनवाँ बैठि बरगदे जाय ५२
पेड़ बरगदा के नीचे मा सुभिया पलँग लीनविछवाय ।।
लैकै पिंजरा फिरि सुवना का मानुष तुरतै दीन बनाय ५३
खेलै चौपरि सॅग ऊदन के सुभिया बोली बचन सुनाय॥
ब्याह हमारे सँगमा करिये मानो कही बनाफरराय ५४
भजिये अल्ला बिसमिल्ला को ऊदन रटौ खुदाय खुदाय ॥
तब सुख पैहौ तुम देहीं का नाहीं खाल लेउँ खिचवाय ५५
खुदा खैरियत तुम्हरी करि हैं बिसमिल भलाकरी सबकाल ॥
बाबा आदम संकट टारी मेटी अली भली जंजाल ५६
बातैं सुनिकै ये वेड़िनि की बोला देशराज का लाल ।
खुदा खुदाई चहु दिखलावैं बिसमिलआयजायततकाल५७
ऊदन ब्याहै नहिं बेड़िनि को कबहूँ राम नाम विसराय ।।
देश आरिया के क्षत्री हम कैसे मुसलमान ह्वैजाय ५८
जब छुइजावैं मुसलमान को तबहीं तुरत करैं असनान ।

बेबश ह्वैकै पिंजरा आयन ताते छूटिगयो सब मान ५९
पढ़ैं फारसी हम बिद्या ना अपनो धर्म करैं प्रतिपाल ।।
नित प्रति ध्यावैं रघुनन्दन को पूरणब्रह्म सुरासुर पाल ६०
खाल न रहै जो देहीमा केवल प्राण करैं विश्राम ॥
तबहूँ मुख सों ऊदन ठाकुर कबहुँ न लेयँ खुदाको नाम ६१
निर्भय बातैं सुनि ऊदन की बरगद डार दीन टँगवाय ।।
बहुतक बाँसन हनि हनि मारा ऊदन जपो खुदाय खुदाय ६२
सुनिकै बातैं ये सुभिया की बोला फेरि बनाफरराय ॥
ऊदन ब्याहै नहिं बेड़िनि को कबहूँ राम नाम बिसराय ६३
बात न दूसरि हम अब कहिवे चहु तन धजीधजीउड़िजाय ।।
ऊदन ब्याहै नहिं बेड़िनि को कबहूँ राम नाम बिसराय ६४
सुनिकै बातैं उदयसिंह की तुरतै सुवना लीन बनाय ।।
डारिकै पिंजरामा ऊदन का टाँगा फेरि बरगदा आय ६५
देखि दुर्दशा यह ऊदन की सुनवॉ बार बार पछिताय ।।
डारि मशान दियो सुनवाँ ने पाछे पिंजरा लीन उठाय ६६
लैकै पिंजरा कछु दूरी मा सुनवाँ गई तड़ाका धाय ।।
सुवना लैकै फिरि पिंजरा ते मानुष तुरतै दीन बनाय ६७
सुनवाँ बोली फिरि ऊदन ते क्यों नहिं देवर जपो खुदाय ॥
काहे बिलमें तुम बेड़िनि में नित प्रति सहौ बाँसके घाय६८
चलिये देवर अब मोहबे को तुम्हरी बार बार बलिजायँ ।।
सुनिकै बातैं ये सुनवाँ की बोले फेरि बनाफर राय ६९
चोरी चोरा ना हम जैहैं तुमते साँच देय बतलाय ।।
लैकै फौजै दादा आवैं हमरी कैद लेयँ छुड़वाय ७०
ऐसे ऊदन अब जैहैं ना नित प्रति सहैं बाँसके घाय ।।

सुवा बनावो अब मानुष ते टाँगो फेरि बरगदा दाय ७१
इतना सुनिकै रानी सुनवाँ टाँगा फेरि बरगदा आय ॥
चील्ह रूप ह्वै उड़ि तहँनाते पहुँची फेरि मोहोबे जाय ७२
मानुपि ह्वैकै फिरि महलन मा इन्दल पूत लीन बुलवाय ॥
कहि समुझावा सब इन्दल ते वप्पै खबरि जनावो जाय ७३
सुनिकै बातैं ये माता की इन्दल पूत चला शिरनाय ।।
जहाँ कचहरी है आल्हा कै इन्दल पूत पहूँचा आय ७४
बड़े प्यार सों आल्हा ठाकुर अपने पास लीन बैठाय ।।
फिरि शिर सूंध्यो आल्हा ठाकुर बोल्यो मधुर वचन मुसुकाय ७५
काह लालसा है बचुवा के सो अब बेगि देउ बतलाय ॥
इतना सुनिकै इन्दल ठाकुर कहिगा यथातथ्य सब गाय ७६
सुनिकै आल्हा बोलन लागे है यहु दुष्ट लहुरवा भाय ।।
करकति छाती दुख सुनिकै अब त्यहिते कैद छुड़ाव बजाय ७७
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर डंका तुरत दीन बजवाय ।।
सजिगा लश्कर फिरि आल्हा का तुरतै कूच दीन करवाय ७८
बनिकै चिल्हिया सुनवाँ रानी आधे सरग रही मड़राय ॥
जाय बरगदा के फिरि पहुँची चुप्पे बैठि डारपै जाय ७९
डारि मशान दयो सुभिया दल तुरते पिंजरा लीन उठाय ।।
कछु दूरि चलि झारखण्ड ते फूँका मन्त्र तहॉपर जाय ८०
मानुप ह्वैकै फिरि बघऊदन ठाढ़े भये शीश को नाय ।।
तब समुझावा रानी सुनवाँ लश्कर गयो तुम्हारो आय ८१
चील्हरूप ह्वै रानी सुनवाँ बैठी एकडार पै जाय ॥
तहने चलिकै ऊदन ठाकुर आगे मिले फौजमें आय ८२
जादू चौकी सुभिया वाली सबियाँ हाल कहा समुझाय ।।

इतना सुनिकै सुभिया बेड़िनि तुरतै उठी तड़ाका धाय ८३
सहुवा बीरन को बुलवावा औ सब हाल दीन बतलाय ॥
करो तयारी समरभूमि की आये लड़न बनाफरराय ८४
खबरि फैलिगै यह बेड़ियन-मा ह्वैगे डेढ़ सहस तय्यार ।।
झीलम बखतर सबहिन पहिरा सबहिन बाँधिलीन हथियार ८५
कोउ कोउ बेड़िया चढ़ि हाथिन मा कोउ कोउ घोड़भये असवार ।।
बहुतक बेड़िया हैं पैदल मा लीन्हे हाथ ढाल तलवार ८६
गड़िगा तम्बू ह्याँ आल्हा का भारी ध्वजा रहा फहराय ॥
बाजै डंका अहतंका का हाहाकार शब्दका छाय ८७
देवा ऊदन इन्दल ठाकुर तीनों भये बेगि तय्यार ॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असवार ८८
दुहुँ दल तुरतै इकठौरी भे लागी चलन तहाँ तलवार ।।
कहुँ कहुँ भाला कहुँ कहुँ बरछी कहुँ कहुँ मारैं ज्वान कटार ८९
कटि भुजदण्डै गिरे खेत में उठि उठि रुण्ड करैं तलवार ।
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार ९०
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्त की धार ।
ना मुहँ फेरै मोहवे वाले नादलबेड़ियनकात्यहिबार ९१
बड़े लड़ैया ई बेड़िया हैं इनते हारिगयी तलवार ॥
को गति वरणे तहँ इन्दल के सबदि शिकरै भड़ा भड़ मार ९२
सुनवाँ सुभिया के बरणी में जादुन द्वऊ बड़ी हुशियार॥
आनी पानी अरु आँधी की पुरियन होय तहाँपर मार ९३
चले सिरोही रणमण्डल मा क्षत्री गरू करैं ललकार ॥
कऊँ बाल पकनि बिजली चमकनि तड़पै चहुँदिशा तलवार ९४
यत्री गाजैं डंका बाजैं छाजैं तहाँ शूर सरदार ॥

को गति वरणै तहँ बेड़ियन कै उनतो भली मचाई रार ९५
इनहुन दुर्गति तिनकी कीन्ही कायर छोंडि भागि मैदान ।।
कटि कटि कल्ला गिरै बछेड़ा घैहा होयँ अनेकन ज्वान ९६
पाँचसै बेड़िया घायल ह्वैगे सब दल रहिगा एकहजार ।।
तीनसै क्षत्रिय मोहबेवाले जूझे समर तहाँ त्यहिबार ९७
रानी सुनवॉ सुभिया बेड़िनि जादुन करैं तहाँपर रार ॥
कोऊ काहूते कमती ना दोऊ जादुन में हुशियार ९८
बीरमहम्मद की पुरिया को सुभिया छाँड़ि दीन त्यहिबार ।।
नारसिंह की जादू लैकै सुनवाँ तजा तुरत ललकार ९९
चिल्हिया ह्वैकै सुनवाँ सुभिया दूनन खूब कीन मैदान ॥
लड़ते लड़ते दूनों चिल्हिया पहुँचीं जाय तुरत असमान १००
लड़ते लड़ते द्वउ ऊपर ते नीचे गिरीं तड़ाका आय ।।
बड़ी लड़ाई भै पंजन ते अद्भुत समर कहानाजाय १०१
जहाँ लड़ाई द्वउ चिल्हियन की इन्दल तहाँ पहूँचा आय ।।
सुनवाँ बोली तहँ इन्दल ते बेटा मूड़ देउ बगदाय १०२
इन्दल बोले तब सुनवाँ ते कैसे देवैं मूड़ गिराय ॥
जो हम मारैं यहि तिरिया को तौ रजपूती धर्मनशाय १०३
हाथ मेहरियन पर छाँडै़ ना कबहूँ बीर समर में आय ॥
कैसे मारैं हम तिरिया को माता सोचो और उपाय १०४
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली बेटा जूरा लेउ उड़ाय ॥
बातैं सुनिकै ये सुनवाँ की जूरा काटि लीन त्यहिठायँ १०५
जीवन दान दीन सुभिया को सोऊ भागि तडाकाधाय ॥
जादू झूटी भइँ सुभिया की तबसो लागित हाँ पचिताय १०६
ऊदन देबाकी मारुन मा बेड़िया भागे खेत बराय ।।

जो कोउ भागतहै सम्मुख ते त्यहिना हनैं बनाफरराय १०७
मारे मारे तलवारिन ते बिड़िया चिरिया करै निदान ।।
खेत छूटिगा सव बिड़ियन ते जीता उदयसिंह मैदान १०८
बाजे डंका अहतंका के ह्वैगा घोर शोर घमसान ।।
जितने क्षत्री मोहबेवाले डेरन आय गये ते ज्वान १०९
चील्ह रूप ह्वै सुनवाँ रानी महलन आयगयी ततकाल ।।
कूच करायो फिरि लश्कर को बेटा देशराज के लाल ११०
आल्हा ठाकुर पचशब्दा पर इन्दल पपिहा पर असवार ॥
घोड़ बेंदुला पर ऊदन है कम्मर परी नाँगि तलवार १११
यहु अलबेला भीषम वाला देवा मैनपुरी चौहान ।।
घोड़ मनोहर पर सोहत हैं रण मा बड़ा लड़ैया ज्वान ११२
कैयो दिनकी मैजलि करिकै झुन्नागढ़ै पहूँचे आय ॥
गड़िगा तम्बू तहँ आल्हा का भारी ध्वजा रहा फहराय ११३
ढोल नगारा तुरही बाजीं हाहाकार शब्दगा छाय ॥
गा हरिकारा तब झुन्नागढ़ राजै खबरि जनावा जाय ११४
आल्हा ऊदन मोहबे वाले धूरे परे हमारे आय ॥
आवैं फौजें झारखण्ड ते अवतो नगर मोहोबे जायँ ११५
सुनिकै बातैं हरिकारा की पलकी तुरत लीन मँगवाय ॥
हइशत मुहरैं इक हीरालै पलकी चढ़ा तड़ाकाधाय ११६
जहाँ बनाफर आल्हा ठाकुर राजा तहाँ पहूँचा आय ।।
आदर करिकै आल्हा ठाकुर अपने पास लीन बैठाय ११७
डारि अशर्फी दी सम्मुखमा हीरा हाथ दीन पकराय ॥
सबियाँ गाथा तब ऊदन की आल्हा यथातथ्यगे गाय ११८
बड़े प्रेम सों दोऊ ठाकुर बोलैं प्रीति रीति के भाय ।।

बिदा मांगिकै फिरि आल्हासों राजा चढ़ा पालकी जाय ११९
गा महराजा झुन्नागढ़ मा तम्बुन स्वये बनाफरराय ।।
राति बसेरा करि झुन्नागढ़ भुरहीं कूच दीन करवाय १२०
कैयो दिनकी मैजलि करिकै मोहबे गये बनाफरराय ॥
सौसौ तोपैं दगी सलामी जब‌ घर गये उदयसिंह राय १२१
को गति वरणै त्यहि समयाकै हमरे बून कही ना जाय ।।
ऊदन हरण पूर अब ह्वैगा ध्यावैं तुम्हैं शारदा माय १२२
कण्ठ में बैठो तुम महरानी भूले अक्षर देउ बताय ।।
आशिर्वाद देउॅ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १२३
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १२४
माथ नवाबों पितु माता को जिनबल पूर कीन यह गाथ ॥
नहीं भरोसा निज सुजवल का स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ १२५
पूर तरंग यहाँ सों ह्वैगा सुमिरों तुम्है भवानीकन्त ॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही मोरिभगवन्त१२६

इति श्री लखनऊ निवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवल किशोरा त्मजवावू प्रयागना-

रायणजी की आज्ञानुसार उनाममदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भव

बुधकृपाशवन्मनु पं०ललितामसादकृतऊदनहरण

वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥

उदयसिंह का हरण समाप्त ।।
इति॥