अप्सरा/अगला भाग ८
१३४ अप्सरा ___ संध्या हो चुकी थी। सूर्य की अंतिम किरणे पृथ्वी से विदा हो रही थीं। नीचे हरपालसिंह ने आवाज दी। ___ तारा ने ऊपर बुला लिया। हरपालसिंह बिलकुल तैयार होकर आज्ञा लेने आया था कि तारा कहे, तो वह गाड़ी लेकर आ जाय। हरपालसिंह को चंदन के पास पलँग पर बैठाकर तारा नीचे चली गई और थोड़ी देर में चार सौ रुपए के नोट लेकर लौट आई। हरपालसिह को रुपए देकर कहा कि वह सौ-सौ रुपए के तीन थान सोने के गहने और दस-दस रुपए तक के दस थान चाँदी के, जो भी मिल जायें, बाजार से जल्द ले आये। ___ हरपालसिंह चला गया । नारा कमरों में दिए जलाने लगी। फिर पान लगाकर दो-दो बड़े सबको देकर नीचे माता के पास चली गई। उसकी माता पूड़ियाँ निकाल रही थी। उसे देखकर कहा- "इससे तुम्हारी कैसे पहचान हुई ?" ___एक भावज ने कहा-"देखो न, मारे ठसक के किसी से बोली ही नहीं, 'प्रभु से गरब कियो सो हारा, गरख कियो वे बन की घुघची मुख कारा कर डारा।' हमें बड़ी गुस्सा लगी, हमने कहा, कौन बोले इस बहेतू से ?" दूसरी ने कहा- "इसी तरह फिर औरत बिगड़ जाती है, जुझंटा है, व्याह नहीं हुआ, अकेली घूमती है।" तीसरी ने कहा- छोटे बाबू से जान-पहचान अच्छी है।" यह कहकर पूड़ियाँ बेलती हुई अपनी जिठानी की तरफ देखकर आँखो मे बड़ी मार्मिक हँसी हँसी। ___ उसने साथ दिया, "हाँ, देखो न, बेचारे उतनी दूर से विना बोले नहीं रह सके। कैसा बनाया, और कोई जैसे सन्त में छेद करना जानता ही नहीं। उत्साह से तीसरी ने कहा-"इसीलिये तो ब्याह नहीं करते।" तारा को इस आलोचना के बीच बच रहने की काफी १३५ अप्सरा जगह मिली । काम हो रहा है देख वह लौट गई। इनके व्यवहार से मन-ही-मन उसे बड़ी लज्जा थी। तारा कनक के पास चली गई। उसके प्रति व्यावहारिक जो अन्याय उसके साथ उसके मकान की स्त्रियों ने किया था, उसके लिये बार-बार क्षमा माँगने लगी। पहले उसे लन्ना होती थी, पर दूसरे बार की आलोचना ने उसे काफी बल पहुँचा दिया। , 'दीदी, आप मुझे मिलें, तो सब कुछ छोड़ सकती हूँ।" कनक ने स्नेह-सिक्त स्वर से कहा। ___ तारा के हृदय में कनक के लिये पहले ही से बड़ी जगह थी। इस शब्द से वहाँ उसकी इतनी कीमत हो गई, जितनी आज तक किमी की मी नहीं हुई थी। चंदन पड़ा हुआ सुन रहा था, उससे नहीं रहा गया, कहा, बस, जैसी तजवीज आपने निकाली है, कुल रोगों को एक ही दवा है, मज- बूती से इन्हें पकड़े रहिए, गुरु समर्थ है; तो चेला कमी तो सिद्ध हो ही जायगा। . हरपालसिंह ने आवाज लगाई। तारा उठ गई। दिखाकर हरपाल- सिह ने दरवाजे पर ही कुल सामान दे दिया और पूछकर अपनी गाड़ी लेने चला गया। रात एक घंटे से ज्यादा पार हो चुकी थी। यह सब सामान तारा ने अपनी भावजों तथा अपने नियुक्त किए हुए लोगों और कुछ परजों को देने के लिये मँगवाया था। मकान में जाकर तैयारी करने के लिये अपनी मा से कहा। पूड़ियाँ बॉध दी गई। असबाब पहले ही से बाँधकर तैयार कर रक्खा था। घर में लियाँ एकत्र होने लगी। पड़ोस की भी कुछ खियाँ श्रा- आकर जमने लगी। तारा उठकर बार-बार देववों को स्मरण कर रहे. थी। ऊपर जा कनक को ओढ़ने के लिये अपनी चादर दी। भूल गई थी, छत से उसकी फेशवाज ले आई. और बाँधकर एक बॉक्स में निसमें पुराने कपड़े आदि मामूली सामान थे, डाल दिया। अप्सरा __ हरपालसिंह गाड़ी ले आया। कोई पूछता, तो गाँव के स्टेशन गाड़ी ले जाने की बात कहता था। तारा ने भावजों को भेंट दी। माता तथा गाँव की त्रियों से मिली। नौकरों को इनाम दिया। फिर कनक को ऊपर से उतारकर थोड़े से प्रकाश में थोड़े ही शब्दों में उसका परिचय देकर गाड़ी पर बैठाल, सामान रखवा, स्वयं भी भगवान विश्वनाथ का स्मरण कर बैठ गई। राजकुमार और चंदन पैदल चलने लगे। गाड़ी चल दी। (२१) दूसरा स्टेशन वहाँ से ५-६ कोस पड़ता था। रात डेढ़-दो बजे के करीब गाड़ी पहुँची। तारा ने रास्ते से ही कनक को धुंघट से अच्छी तरह छिपा रक्खा था। स्टेशन के पास एक बराल गाड़ी खड़ी कर दी गई। चंदन टिकट खरीदने और आवश्यक बातें जानने के लिये स्टेशन चला गया। राजकुमार से वहीं रहने के लिये कह गया। गाड़ी रात चार के करीब आती थी। चंदन ने स्टेशन मास्टर से पूछा, तो मालूम हुआ कि सेकेंड क्लास डब्बा मिल सकता है। चंदन भाभी के पास लौटकर समझाने लगा कि फर्स्ट क्लास टिकट खरीदने की अपेक्षा उसके विचार से एक सेकेंड-क्लास छोटा डब्बा रिज़र्व करा लेने से सुविधा ज्यादा होगी, दूसरे कीमत में भी कमी रहेगी। तारा सहमत हो गई। चंदन ने १००) तारा से और ले लिए। ग्रस्ते-भर कनक के संबंध में कोई बातचीत नहीं हुई। चंदन ने सबको सिखला दिया था कि कोई इस विषय पर किसी प्रकार का जिक्र न छेड़े। हरपालसिंह के आदमी स्टेशन से दूर उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। चंदन सोच रहा था, त्रियों को वेटिंग रूम में ले जाकर रक्खे या गाड़ी श्राने पर चढ़ावे। हरपालसिंह फुरसत पा टहलता हुआ स्टेशन की सरफ चला गया। चंदन डब्बा रिजर्व कराने लगा। राजकुमार को तारा ने अपने पास बैठा लिया। कुछ देर बाद शंका.से अगल-बाल देख-वाख, सीना तानता हुआ अप्सरा १३७ हरपालसिंह लौटा। तारा से कहा-"इहाँ तो बड़ा खतरा है बहन ! सॅमलकर जाना । लोग लगे हैं। सबकी बातचीत सुनते हैं, और बड़ी जॉच हो रही है। राज्य के कई सिपाही भी हैं। राजकुमार की आँखों से ज्वाला निकलने लगी. पर सँभलकर रह गया । तारा घबराकर राजकुमार की तरफ देखने लगी! कनक भी तेज निगाह से राजकुमार को देख रही थी। स्टेशन की बत्तियों के प्रकाश में यूँघट के भीतर से उसकी चमकती हुई आँखें मलक रही थी। कुल मुखाकृति जाहिर हो रही थी। तारा ने एक साँस लेकर हरपालसिंह से कहा- भैया, छोटे बाबू को बुला तो लाओ।" स्टेशन बड़ा था। बग़ल में, डब्बे लगे थे। कई कर्मचारी थे। चंदन का काम हो गया था। वह हरपालसिंह को रास्ते में ही मिल गया। उनके पास आने पर तारा, शंकित दबे हुए स्वर से, स्टेशन के वायुमंडल का हाल, अवश्यंभावी विपत्ति से घबराती हुई, कहने लगी। चंदन थोड़ी देर सोचता रहा, फिर हरपालसिंह से कहा- "भैया, तुम चले जाओ, भेद अगर खुल गया, और तुम साथ रहे तो तुम्हारे लिये बहुत बुरा होगा।" . हरपालसिंह की भौहें तन गई, निगाह बदल गई। कहा- भैया हे-जान का खेयाल करते, तो आपका साथ न देते। आपकी इच्छा हाय, तो हिय लाठी- चंदन ने उतावली से रोक लिया। इधर-उधर देखकर, धीरे से कहा-“यह सब हमें मालूम है भैया, तुम्हारे कहने से पहले ही। पर अब ज्यादा बहस इस पर ठीक नहीं, तुम चले जाओ, हम श्राराम-कमरे में जाते हैं, गाड़ी आती ही है, और हमारे साथ तुम स्टेशन पर रहोगे, तो देखकर लोग शक कर सकते हैं।" ___ "हाँ, यह तो ठीक है।" बात हरपालसिंह को जॅच गई। उसे विदा करने के लिये तारा उठकर खड़ी हो गई। सामान पहले ही गाड़ी से उतारकर नीचे रख लिया गया था। हरपालसिंह ने बैल नह दिए, और ताय के चरण छुए 1 तारा खड़ी रही । कनक १३८ अप्सरा के दिल में भी हरपालसिंह के प्रति इज्जत पैदा हो गई थी। तारा के साथ ही वह भी उठकर खड़ी हो गई थी। उसका खड़ा होना हरपाल- सिह को बहुत अच्छा लगा। इस सभ्यता से उसके वीर हृदय का एक प्रकार की शांति मिली। तारा उसके पुरस्कार की बात सोचकर भी कुछ ठीक न कर सकी। एकाएक सरस्वती के दिए हुए शब्दों की तरह उसे एक पुरस्कार सूझा-"भैया जरा रुक जाओ। जिसके लिये यह सब हो रहा है, उसे अच्छी तरह देख लो।" यह कह उसने कनक का घूघट उलट दिया । वीर हरपालसिंह की दृष्टि में जय देर के लिये विस्मय देख पड़ा। फिर न-जाने क्या सोचकर उसने गर्दन झुका ली, और अपनी गाड़ी पर बैठ गया। फिर उस तरफ उसने नहीं देखा, धीरे-धीरे सड़क से गाड़ी ले चला। राजकुमार और चंदन पचास कदम तक बढ़कर उसे छोड़ने गए। ____लौटकर राजकुमार को वही कीमती कपड़े, जो कनक के यहाँ उसे मिले थे, पहनाकर, जुद भी इच्छानुसार दूसरी पोशाक बदलकर चंदन स्टेशन कुली बुलाने गया। तारा से कह गया, जरूरत पड़ने पर वह कनक को अपनी देवरानी कहेगी, बाकी परिचय वह दे लेगा। __आगे-आगे सामान लिए हुए तीन कुली, उनके पीछे चंदन, बीच में दोनो स्त्रियाँ, सबसे पीछे राजकुमार अपना सुरक्षित व्यूह बनाकर स्टेशन चले । कनक अवगुंठित, तारा तारा की तरह खुली हुई। पर बारीक विचार रखनेवाले देखकर ही समझ सकते थे, उन दोनो मे कौन अवगुंठित और कौन खुली हुई थी। कनक सब अंगों से ढकी हुई होने पर भी कहीं से भी मुकी हुई न थी। बिल्कुल सीधी, जैसे अपनी रेखा और पद-क्षेप से ही अपना खुला हुआ जोवन सूचित कर रही हो । उधर ताय की तमाम झुकी हुई मानसिक वृत्तियाँ उसके अनवगुंठित रहने पर भी आत्मावरोध का हाल बयान कर रही थीं। नौकर ने जनाने आयम-कमरे का द्वार खोल दिया। लारा कनक को लेकर भीतर चली गई। बाहर दो कुर्सियाँ डलवा, बुक स्टाल से दो अंगरेजी उपन्यास खरीदकर दोनो मित्र बैठकर पढने लगे। लोग ________________
अप्सय १३९ चक्कर लगाते हुए बाते, देखकर चले जाते । कँवर साहव के आदमी भी कई बार आए, देर तक देखकर चले गए । जिस पखावजिए ने कनक को भगाया था, चंदन अपनी स्थिति द्वारा उससे बहुत दूर बहुत ऊँचे, संदेह से परे था। किसी को शक होने पर वह अपने शक पर ही शक करता। राजकुमार किताब कम पढ़ रहा था, अपने को ज्यादा । वह जितना ही कनक से भागता, चंदन और तारा उतना ही उसका पीछा करते । कनक अपनी जगह पर खड़ी रह जाती। उसकी दृष्टि में उसके लिये कोई प्रार्थना नहीं थी, कोई शाप भी नहीं था, जैसे वह केवल राजकुमार के इस अभिनय को खुले हृदय की आँखों से देखनेवाली हो। यह राजकुमार को और चोट करता था। स्वीकार करते हुए उसका जैसे तमाम बल ही नष्ट हो जाता था। राजकुमार की तमाम दुर्बलताओं को अपने उस समय के स्वभाव के तीखेपन और तेजी से आकर्षित कर चंदन लोगों को अपनी तरफ मोड़ लेता था । वह भी कुछ पढ़ नहीं रहा था, पर राजकुमार जितनी हद तक मनोराज्य में था, उतनी ही हद तक चंदन- बाहरी दुनिया में, अपनी तमाम वृत्तियों को सतर्क किए हुए, जैसे आकस्मिक धाक्रमण को तत्काल रोकने के लिये तैयार हो। पन्ने केवल दिखाव के लिये उलटता था, और इतनी जल्दबाजी थी कि लोग उसी की तरक आकृष्ट होते थे। चंदन का सोलहो आने बाहरी आडंबर था। राजकुमार का बाह्य-ज्ञान-राहित्य उस पर आक्रमण करने, पूछ-ताछ करने का मौका देता था। पर चंदन से लोगों में भय और संभ्रम पैदा हो जाता था। वे त्रस्त हो जाते थे, और खिंचते भी थे उसी की तरफ पहले। वहाँ जिसकी खोज में स्टेट के आदमी थे, चंदन-जैसे उस समय के आदमी से उसकी पूछ-ताछ बेअदबी तथा मूर्खता थी, और स्टेट की मी इससे बेइज्जती होती थी कहीं बात फैल गई ; शंका थी, कहीं यह कोई बड़ा आदमी हो; पाप था-हिम्मत थी नहीं, लोग आते और लौट जाते। चंदन समझता था। इसलिये यह और गंभीर होता रहा। ________________
अप्सरा ___ गाड़ी का वक्त आ गया । लोग प्लेटफार्म पर जमने लगे। चंदन की गाड़ी दूसरी लाइन पर लाकर लगा दी गई । सिगनल गिर गया। देखते-देखते गाड़ी भी आ गई। स्टेशन मास्टर ने गाड़ी कटवाकर चंदन के सामने ही वह डब्बा लगवा दिया, और फिर बड़े अदब से आकर चंदन को सूचना दी । एक दस रुपए का नोट निकालकर चंदन ने स्टेशन मास्टर को पुरस्कृत किया। स्टेशन मास्टर प्रसन्न हो गए। खड़े-खड़े पुलिस के दो सिपाही देख रहे थे। सामने आ सलामी दी। दो-दो रुपए चंदन ने उन्हें भी दिए । कुली लोग जल्दबाजी दिखला रहे थे। चंदन ने तारा को चढ़ने के लिये बाहर ही से आवाज दी, भाभी चलिए । सिपाहियों ने आदमियों को हटाकर रास्ता बना दिया । हटाते वक्त. दो-एक धक्के स्टेट के आदमियों को भी मिले। कुली लोग सामान उठा-उठाकर डब्बे में रखने लगे। चंदन ने खिड़कियाँ बंद करा दी। दरवाजा चपरासी ने खोल दिया। तारा कनक को साथ लेकर धीरे-धीरे डब्बे के भीतर चली गई। चंदन ने कुलियों ओर चपरासियों को भी पुरस्कार दिया। राजकुमार भी भीतर चला गया। चंदन के चढ़ते समय पुलिस के सिपाहियों ने फिर सलामो दी । चंदन ने दो-दो रुपए फिर दिए, और भीतर चढ़ गया। पुलिस के सिपाहियों ने अपनी मुस्तैदी दिखाकर चलते-चलते प्रसन्न कर जाने के विचार से "क्या देखते हो, हटो यहाँ से कह-कहाकर सामने के लोगों को दोचार धक्के और लगा दिए । प्रायः सब लोग स्टेट ही के खुफिया विभाग के थे। ___गाड़ी चल दी। कनक ने आप-ही-आप घूघट उठा दिया। विगत प्रसंग पर बातें होती रही। चारों ने खुलकर एक दूसरे की बातें की। जो कुछ भी राजकुमार को अविदित था, मालूम हो गया । कनक के अंदर अब किसी प्रकार का उत्साह नहीं रह गया था। वह जो कुछ कहती थी, सिर्फ कहना था, इसलिये । उसके स्वर में किसी प्रकार का अभियोग न था, कोई आकांक्षा न.थी । राजकुमार के पिछले भावों से उसके मर्म-स्थल पर चोट लग चुकी थी। जितनी ही बातें होती, ________________
अप्सरा राजकुमार उतना ही दवना जा रहा था। तारा ने फिर कोई आग्रह विवाह आदि के लिये नहीं किया। चंदन भो दो-एक बार उसे दाप देकर चुप रह गया । हाँ, कुछ देर तक मनोवैज्ञानिक बातचीत की थी, जिससे राजकुमार को भी अपनी त्रुटि मालूम हा रही थीं। पर कनक ने इधर जिस तेजी से, संबंध-रहित की तरह, बिल्कुल खुलो हुई वातचीत की, इससे चंदन के प्रसंग पर अत्यंत संकोच और हेठी के कारण राजकुमार हारफर भी विवाह की बात स्वीकृत नहीं कर रहा था। उस समय कनक को जो कुछ आनंद मिला था, वह केवल चंदन की बातचीत से । नाराज थी कि उसके इस प्रसंग का इतना बड़ाव किया जा रहा है। सत्य-प्राप्ति के बाद जैसे सत्य की बहस केवल तकरार होती है, हृदय-शून्य, ये तमाम बातें कनक को वैसी ही लग रही थीं । राजकुमार के प्रति तारा के हृदय में अनादर था, और कनक के हृदय में दुराव। चारा एक-एक बेंच पर बैठे थे। तारा थक रही थी। लेट रही। चंदन ने स्टेशन पर और यहाँ जितनी शक्ति खर्च की थी, उसके लिये विश्राम करना आवश्यक हो रहा था । वह भी लेट रहा। हवा, नहीं लग रही थी इसलिये उठकर मरोखे खालकर फिर. लट रहा। राजकुमार बैठा हुआ सोच रहा था । कनक बैठी हुई अपने भविष्य की कल्पना कर रही थी, जहाँ केवल भावना-ही-भावना थी, सार्थक शब्द-जाल कोई नहीं । बड़ी देर हो गई। गाड़ी पूरी रफ्तार से चली ना रही थी । उठकर चंदन की किताब उठाकर कनक पढ़ने लगी। ताय और चंदन सो गए। ____ राजकुमार अपने गत जीवन के चित्रों को देख रहा था। कुछ संस्मरण लिखने के लिये पाकेट से नोटबुक निकालकर लिखने लगा। एक विचित्र अनुभव हुआ, जैसे उसकी तमाम देह बँधी हुई खिंची जा रही हो, कनक की तरफ़, हर अंग उसके उसी अंग से बँधा हुआ। जोर लगाना चाहा, पर जैसे कोई शक्ति ही न हो । इच्छा का वाष्प ________________
१४२ अप्सरा जैसे शरीर के शत छिद्रों से निकल जाता है । केवल उसका निष्क्रिय अहंज्ञान और निष्क्रिय शरीर रह जाता है, जैसे केवल प्रतिघात करते रहने के लिये, कुछ सृष्टि करने के लिये नहीं। इसके बाद हो उसका शरीर काँपने लगा। ऐसी दशा उसकी कभी नहीं हुई। उसने अपने को सँभालने की बड़ी चेष्टा की, पर संस्कारों के शरीर पर उसके नए प्रयत्न चल नहीं रहे थे, जैसे उसका श्रेय जो कुछ था, कनक ने ले लिया हो, जो उसी का हो गया था ; वह जिसे अपना समझता था, जिसके दान में उसे संकोच था, जैसे उसी के पास रह गया हो, और उसकी वश्यता से अलग। अपनी तमाम रचनाओं का ऐसी विYखल अवस्था देख वह हताश हो गया। आँखों में आंसू आ गए। चट विकृत हो गई। ___ तारा और चंदन सो रहे थे। कनक. राजकुमार को देख रही थी। अब तक वह मन से उससे पूर्णतया अलग थी । राजकुमार के साथ जिन-जिन भावनाओं के साथ वह लिपटी थी, उन सबको बैठी हुई अपनी तरफ खींच रही थी। कभी-कभी राजकुमार की मुख-वेध से उसके हृदय की करुणाश्रित सहानुभूति उसके स्त्रीत्व की पुष्टि करती हुई राजकुमार की तरफ़ उमड़ पड़ती थी। तब राजकुमार की क्षुब्ध चित्त-वृत्तियों पर एक प्रकार का सुख झलक जाया करता था, उसे कुछ सांत्वना मिलती थी। नवीन बल प्राप्त कर वह अपने समर के लिये फिर तैयार होता था। कनक रह-रहकर खुद चलकर अपनी निर्दोषिता जाहिर कर एक बार फिर, और अंतिम बार के लिये, प्रार्थना करने का निश्चय कर रही थी, लज्जा और मर्यादा का बॉध तोड़कर उसके स्त्रीत्व का प्रवाह एक बार फिर उसके पास पहुँचने के लिये व्याकुल हो उठा । पर दूसरे ही क्षण राजकुमार के बुरे बर्ताव याद आते ही वह संकुचित हो जाती थी। ___ जब कनक के भीतर सहृदय कल्पनाएँ उठती थीं, तब राजकुमार देखता था, कनक उसके भीतर, उसकी भावनाओं से रँगकर अत्यंत सुंदर हो गई है। हृदय में उसका उदय होते ही एक ज्योतिःप्रवाह ________________
अप्सरा १४३ फूट पड़ता था । स्नेह, सहानुभूति और अनेक कल्पनाओं के साथ उसकी कविता सुंदर तरंगों से उसे बहलाकर बह जाती थी। ___ गाड़ी आसनसोल स्टेशन पर खड़ी थी। राजकुमार बिलकुल सामने की सीट पर था । डब्बे के झरोखेखुले हुए थे। गाड़ी को स्टेशन पहुँचे दस मिनट के करीब हो चुका था। कनक का मुंह प्लैटफार्म की तरफ था। बाहर के लोग उसे अच्छी तरह देख सकते थे, और देख रहे थे। प्लैटफार्म की तरफ राजकुमार की पीठ थी। राजकुमार चौंक पड़ा, जब एकाएक गाड़ी का दरवाजा खुल गया । कनक सिंकुड़कर शंकित दृष्टि से आदमी को देख रही थी। घूघट काढ़ना अनभ्यास के कारण उसके शंकित स्वभाव के प्रतिकूल हो गया। ____दरवाजे के शब्द से राजकुमार की चेतना ने आँखें खोल दी। झपटकर उठा । एक परिचित आदमी देख पड़ा । कनक ने तारा और चंदन को जगा दिया। दोनो ने उठकर देखा, एक साहब और राजकुमार, दोनो एक दूसरे को तीव्र स्पर्धा की दृष्टि से देख रहे थे। "तुम शायद मुझे नहीं भूले हैमिल्टन ।" राजकुमार ने अँगरेजी में उपटकर कहा। ___साहब देखते रहे । साहब के साथ एक पुलिस का सिपाही और स्टेशन मास्टर तथा और कुछ लोग स्टेशन के और कुछ परिदर्शक एकत्र थे। __ साहब को बुरी तरह डाँटे जाते देखकर स्टेशन मास्टर ने मदद की इस डब्बे में भगाई हुई औरत है-वह कौन है ?" ___ "है नहीं, हैं कहिए, उत्तर तब मिलेगा। आप कौन हैं, जिन्हें उत्तर देना है ?" राजकुमार ने तेज स्वर से यूछा। ___"मेरी टोपी बतला रही है। स्टेशन मास्टर ने आँखें निकालकर कहा। ___“मैं आपको श्रादमी तब समगा , जब जरूरत के वक्त, आप कहे कि एक रिज़र्व सेकेंड क्लास के यात्री को आपने 'कौन है कहा था।" ________________
अप्सरा स्टेशन मास्टर का चेहरा उतर गया । तब कांस्टेबुल ने हिम्मत की"आपके साथ वह कौन बैठी हुई है ?" 'मेरी स्त्री, भावज और भाई।" ___ स्टेशन मास्टर ने साहब को अँगरेपी में समझा दिया । साहब ने दो बार आँखें मुकाए हुए सर हिलाया, फिर अपनी सीट की तरफ चल दिए । और लोग भी पीछे-पीछे चले। दरवाजा बंद करते हुए सुनाकर राजकुमार ने कहा-0owards (डरपोक सब!) ___गाड़ी चल दी। (२२) राजकुमार के होठों का शब्द-बिंदु पीकर कनक सीपी की तरह आनंद के सागर पर तैरने लगी । भविष्य की मुक्ता की ज्योति उसकी वर्तमान दृष्टि में चमक उठी । अभी तक उसे राजकुमार से लजा नही थी, पर अब दीदी के सामने आप-ही-आप लाज के भार से पलकें मुकी पड़ती थीं। राजकुमार के हृदय का भार भी उसी क्षण से दूर हा गया । एक प्रकार की गरिमा से चेहरा वसंत के खुले हुए फूल पर पड़ती हुई सूर्यरश्मि से जैसे चमक उठा। ___ तारा के तारक नेत्र पूरे उत्साह से उसका स्वागत कर रहे थे, और चंदन तो अपनी मुक्त प्रसन्नता से जैसे सबको छाप रहा हो। चंदन राजकुमार को भाभी और कनक के पास पकड़ ले गया"ओह ! देखा भाभी, जनाब कितने गहरे हैं !" __कनक अब राजकुमार से आँखें नहीं मिला सकती, राजकुमार को देखती है, तो जैसे कोई उसको गुदगुदा दता है। और, उससे सहानुभूति रखनेवाली उसकी दीदी और चंदन भी इस समय उसकी लज्जा के तरफदार न होंगे, उसने समझ लिया। राजकुमार के पकड़ आते ही वह उठकर तारा की दूसरी बाल सटकर बैठ गई । उसकी बेंच पर राजकुमार और चंदन बैठे । राजकुमार को देखकर तारा सस्नेह हँस रही थी- तो यह कहिए, आप दोनो सधे हुए थे, यह अभिनय ________________
अप्सरा अब तक दिखलाने के लिये कर रहे थे। आपने अभिनय की सफलता में कमाल कर दिया। आप लोगों को प्रसन्न करना भी तो धर्म है।" राजकुमार मुस्किराता जाता था। कनक दीदी की आड़ में छिपकर हँस रही थी। चंदन बड़ा तेज था । उसने सांचा, आनंद के समय जिवना ही चुप रहा जाता है, आनंद उतना ही स्थायी होता है, और तभी उसके अनुभव का सच्चा सुख भी प्राप्त होता है । इस विचार से उसने प्रसंग बदलकर कहा, मामी, ताश तो होंगे? ___ एक बॉक्स में पड़े तो थे।" ___ 'निकाल दो, अच्छा, मुझे गुच्छा दे और किस बॉक्स में हैं, बतला दे, मैं निकाल लें।" चंदन ने हाथ बढ़ाया। तारा स्वयं उठकर चली । “रज्जू बाबू, यह बॉक्स उताये।" राजकुमार ने उठकर ऊपरवाला तारा का कैशबॉक्स नीचे रख उस बड़े बॉक्स को उतार लिया। खालकर तारा ने वाश निकाल लिए। कौन किस तरफ हो, इसका निर्णय होने लगा । राजकुमार बॉक्सों को उठाकर रखने लगा । फैसला नहीं हो रहा था । चंदन कहवा था, तुम दोनो एक तरफ़ हो जाओ, मैं और राजकुमार एक तरफ । पर तारा चंदन को लेना चाहती थी। क्योंकि मजाक के लिये मौका राजकुमार और कनक को एक तरफ करने में था दूसर उनमें चंदन खेलता भी अच्छा था । कनक सोचती थी, दीदी हार जायगी, वह जरूर अच्छा नहीं खेलती होगी। अपनी ही तरह दिल से तारा भी कनक को कमजोर समझ रही थी। राजकुमार जरा-सी बात के लंबे विवाद पर चुपचाप हँस रहा था। कनक ने खुलकर कह दिया, मैं छोटे साहब को लँगी। यही फैसला रहा। अब बात उठी, क्या खेला जाय । चंदन ने कहा, ब्रिज । तार, इनकार कर गई। वह ब्रिज अच्छा नहीं जानती थी। उसने कहा, बादशाह-पकड़ । कनक हँसने लगी। चंदन ने कहा, अच्छा एंटी ________________
१४६ अप्सय नाइन खेलो । राजकुमार ने कहा-“भई, अपनी डफली अपना राग, क खेलो, बहूजो उनतीस-खेल अच्छा नहीं जानतीं, मैं हार जाऊँगा।" ___"मैं सड़ियल खेल नहीं खेलता, क्यों भाभीजी, उनतीस के लिये पत्ते छाँटता हूँ ?' चंदन ने सबसे छोटे होने के छोटे स्वर में बड़ी दृढ़ता रखकर कहा । यही निश्चय रहा। ____ “आप तो जानती हैं न २९ ? कनक से चंदन ने पूछा । “खेलिए" कनक मंद मुस्किरा दी। ____ कनक और चंदन एक तरफ, तारा और राजकुमार दूसरी तरफ हुए। चंदन ने पत्तियाँ अलग कर ली। कह दिया कि बोली चार-हीचार पत्तियों पर होगी, रंग छिपाकर रक्खा जायगा, जिसे जरूरत पड़े, साबित करा ले, रंग खुलने के बाद रॉयल पेयर की कीमत होगी। चारचार पत्तियाँ बाँटकर चंदन ने कहा-"कुछ बाजी भी ?" "हाँ, घुसौवल, हर सेट पर पाँच घूसे” राजकुमार ने कहा । "यार, तुम, गँवार हो, एम० ए० तो पास किया, पर सिंहजी का शिकारी स्वभाव वैसा ही बना हुआ है, अच्छा बोलो," राजकुमार से कहा- मैं कहता हूँ, बाजी यह रही कि हवड़ा-स्टेशन पर हैमिल्टन की कारस्तानी का मोरचा वह ले, जो जीते।" ____ राजकुमार चंदन की सूझ पर खुश हो गया । कहा-'सेवन्टीन" (सत्रह)। कनक ने कहा-"नाइन्टीन" (उन्नीस) राजकुमार-'पास' चंदन-इस-तुम तो एक ही धौल में फिस्स हो गए !" ताप और चंदन ने भी पास किया । कनक के उन्नीस रहे । उसने रंग रख दिया। खेल होता रहा । कनक ने उन्नीस कर लिए। खेल में राजकुमार कभी कायल नहीं हुआ। पर आज एक ही बार हारकर उसे बड़ी लज्जा लगी। अब राजकुमार ने पत्तियाँ बॉर्टी। कनक-'सेवन्टीन" ________________
अमरा १७ तारा-"नाइन्टीन" कनक-"नाइन्टीन' चंदन ने कहा, गोइयाँ पर क्या बोलें, पास। राजकुमार के पास रंग नहीं था। पर कनक फिर बढ़ रही थी, उसका पुरुषाचित अकारण बड़प्पन फड़क उठा, कहा-"टुएंटी" (बीस) कनक-ऐक्सेप्ट" (मुझे बीस स्वीकार है) राजकुमार-"टुएंटीवन्(इकोस) कनक-( अच्छी तरह अपनी पचियाँ देखती, मुस्किराती हुई) "ऐक्सेप्ट राजकुमार-"टुएंटी दू" (बाईस) कनक-ऐक्सेप्ट" राजकुमार (विना पत्ते देखे, खुलकर)-'टुएंटी थी" कनक ने हँसकर कहा, पास। राजकुमार ने बड़ी शिथिलता से रंग रक्खा । खेल होने लगा। पहला हाथ चंदन ने लिया । कनक ने एक पेयर दिखलाया। चंदन ने कहा, टुएंटी फ्राइव । राजकुमार के पास पत्तियाँ थीं नहीं । शान पर चढ़ गया था। हारता रहा। खेल हो जाने पर देखा गया, राजकुमारके आधे नहीं बने थे। दो काली बिंदियाँ खुली। राजकुमार बहुत झेपा। ___ गाड़ी बर्दवान पार कर चुकी । खेल होता रहा । अब तक राजकुमार पर तीन काले और चार लाल खुल चुके थे। तारा ने स्टेशन करीब देख तैयार हो रहने के विचार से खेल बंद कर दिया । पहले उसे राजकुमार की बातों से जितना आनंद मिला था, अब हवड़ा ज्यों-ज्यों नजदीक आने लगा, उतना ही हृदय से डरने लगी। मन-ही-मन सकुशल सबके घर पहुँच जाने की कालीजी से प्रार्थना करने लगी । कनक को अच्छी तरह अोढ़ाकर कुछ मुँह ढककर चलने की शिक्षा दी। चंदन ने कहा, कयर हो चुका है, अब मैं जैसा जैसा कहूँ, करो; कहीं मार-पीट की नौबत आएगी, तो तुम्हें सामने कर दूंगा। ________________
अप्सरा __ इस मित्र-परिवार की तमाम आशाओं और शंकाओं को लिए पूरी रफ्तार से बढ़ती हुई गाड़ी लिलुआ-स्टेशन पर आकर खड़ी हो गई। हर डब्बे पर एक-एक टिकट-कलक्टर चढ़कर यात्रियों से टिकट लेने लगा। ____ कनक से हारकर अब राजकुमार उससे नजर नहीं मिलाता । कनक स्पर्धा लिए हुए दृष्टि से, अलि-युवती की तरह, अपने फूल के चारो ओर मँडराया करती है। सीधे, तिरछे, एक बराल, जिस तरह भी आँखों को जगह मिलती है, दीदी और चंदन से बचकर, पूरी बेहयाई से उससे चुभ जाती है। उसे गिरफ्तार कर खींचती, मुका हुआ देख सस्नेह छोड़ देती है। एक स्त्री के सामने यह राजकुमार की पहली हार थी, हर तरह। ___ गाड़ी लिलुआ-स्टेशन से छूट गई। चंदन ने नेतृत्व लिया । तारा का हृदय रह-रहकर काँप उठता था। राजकुमार महापुरुष की तरह स्थिर हो रहा था, अपनी तमाम शक्तियों से संकुचित चंदन की जरूरत के वक्त तत्काल मदद करने के लिये । कनक पारिजात की तरह अर्द्धप्रस्फुट निष्कलंक दृष्टि से हवड़ा-स्टेशन की प्रतीक्षा कर रही थी। केवल सर चादर से ढका हुआ, श्वेत बादलों में अधखुले सूर्य की तरह। देखते-देखते हवड़ा आ गया । गाड़ी पहले प्लैटफार्म पर लगी। चंदन तुरंत उतर पड़ा । दो टैक्सियाँ की । कुली सामान उठाकर रखने लगे। चंदन ने एक ही टैक्सी पर कुल सामान रखवाया। सिर्फ बहू का कैश-बॉक्स लिए रहा । राजकुमार को धीरे से समझा दिया कि सामान वह अपने डेरे पर उतारकर रक्खेगा, वह बहू को छोड़कर घर से गाड़ी लेकर आता है। कुलियों को दाम दे दिए। ___एक टैक्सी पर राजकुमार अकेला बैठा, एक पर बहू, कनक और चंदन । टैक्सियाँ चल दी। चंदन रह-रहकर पीछे देखता जाता था। पुल पार कर उसने देखा, एक टैक्सी आ रही है। उसे कुछ संदेह हुआ। उस पर जो आदमी था, वह यात्री नहीं जान पड़ता था। चंदन ने सोचा, यह जरूर खुफिया का कोई है, और हैमिल्टन ने इसे पीछे ________________
अप्सरा लगाया है। अपने ड्राइवर से कहा, इस गाड़ी को दूसरी गाड़ी की बराल करो। ड्राइवर ने वैसा ही किया । चंदन ने राजकुमार से कहा, 'टी पीछे लगा है, टैक्सी एक है, देखें, किसके पीछे लगती है। चंदन और कलकत्ते के विद्यार्थी खुफियावालों को 'टी' कहते हैं। राजकुमार ने एक दफा लापरवाह निगाह से पीछे देखा। सेंट्रल ऐवेन्यू के पास दोनो गाड़ियाँ दो तरफ हो गई। राजकुमार की टैक्सी दक्षिण चली, और चंदन की उत्तर । कुछ दूर चलकर चंदन ने देखा, टैक्सी विना रुके राजकुमार की टैक्सी के पीछे चली गई। चंदन को चिंता हुई। सोचने लगा। बहू ने कहा-"छोटे साहब, वह गाड़ी शायद उधर ही गई ?" "हाँ" चंदन का स्वर गंभीर हो रहा था। "तुम्हारा मकान तो आ गया, इस तरफ है न ?" तारा ने कहा। "हाँ चलो, दीदी, आज हमारे मकान रहो।" ड्राइवर से कनक ने कहा, "बाई तरफ़।" टैक्सी कनक के मकान के सामने खड़ी हो गई। मकान देखकर चंदन के हृदय में कनक के प्रति संभ्रम पैदा हुआ। कनक उतर पड़ी। सब लोग बड़े प्रसन्न हुए। दौड़कर सर्वेश्वरी को खबर दी। कनक ने मीटर देखकर एक आदमी से किराया चुका देने के लिये कहा। चंदन ने कहा, अब घर चलकर किराया चुका दिया जायगा । कनक ने न सुना । तारा का हाथ पकड़कर कहा, दोदी, चलो। तारा ने कहा"अभी नहीं बहन, इसका अर्थ तुम्हें फिर मालूम हो जायगा । फिर कमी रज्जू बाबू का साथ लेकर आया जायगा । तुम्हारा विवाह तो हमे यहीं करना है।" ___ कनक कुछ खिन्न हो गई । अपने ड्राइवर से गाड़ी ले आने के लिये कहा । तारा और चंदन उतरकर अहाते में खड़े हो गए। सर्वेश्वरी उपर से उतर आई । कनक को गले लगाकर चूमा । एक साँस में कनक बहुत कुछ कह गई। सर्वेश्वरी ने तारा को देखा, तारा ने सर्वेश्वरी को. बारा ने मुँह फेरकर चंदन से कहा छोटे साहब, जल्द चलो। तार ________________
१५० अप्सरा को तकलीफ हो रही थी । सर्वेश्वरी अत्यंत सुंदर होने पर भी तारा का बड़ी कुत्सित देख पड़ी। उसके मुख की रेखाओं के स्मरणमात्र से तारा को मय होता था। अपने चरित्र बल से सर्वेश्वरी के विकृत परमाणुओं को रोकती हुई जैसे मुहूर्त मात्र में थककर ऊब गई हो । तब तक कनक का ड्राइवर मोटर ले आया। पहले सर्वेश्वरी तारा को भी स्नेह करना चाहती थी, क्योंकि दीदी का परिचय कनक ने सबसे पहले दिया था ; पर हिम्मत करके भी तारा की तरफ स्नेहभाव से नहीं बढ़ सकी, जैसे ताय की प्रकृति उससे किसी प्रकार का भी दान स्वीकृत करने के लिये तैयार नहीं, उसे उससे परमार्थ के रूप से जो कुछ लेना हो, ले। कनक ने दीदी की ऐसी मूर्ति कमी नहीं देखी, यह वह दीदी न थी। कनक के हृदय में यह पहलेपहल विशद भावना का प्रकाश हुआ। सर्वेश्वरी इतना सब नहीं समझ सकी। समझी सिर्फ अपनी शुद्रता और तास की महत्ता, उसका अविचल स्त्रीत्व, पति-निष्ठा । आप-ही-आप सर्वेश्वरी का मस्तक झुक गया। उसका विष पीकर तारा एक बार तपकर फिर धीर हो गई। सर्वेश्वरी के हृदय में शांति का उद्रेक हुआ। ऐसी परीक्षा उसने कभी नहीं दी। सिद्धांत वह बहुत जानती थी, पर इतना स्पष्ट प्रमाण अब तक नहीं मिला था। वह जानती थी, हिंदू-घराने में, और खासकर बंगाल छोड़कर भारत के अपर उत्तरी भागों में, कन्या को देवी मानकर घरवाले उसके पैर छूते हैं। कनक की दीदी को उसने देवी और कन्या के रूप में मानकर पास आ पैर छुए। तारा शांत खड़ी रही। चंदन स्थिर, भुका हुआ। ड्राइवर गाड़ी लगाए हुए था। तारा बिना कुछ कहे गाड़ी की तरफ बढ़ी, मन से भगवान विश्वनाथ और कालीजी को स्मरण करती हुई। पीछे-पीछे चांदन चला। सर्वेश्वरी ने बढ़कर दरवाजा खोल दिया । तारा बैठ गई। नौकर ने कैश-बॉक्स रख दिया। चंदन भी बैठ गया। कनक देखती रही। पहले उसकी इच्छा थी कि वह भी दीदी के