अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/दरेदानियाल
दरेदानियाल (Dardanelles)--यह डमरूमध्य दक्षिण मे काले-सागर तथा भूमध्य-सागर को मिलाता है। १८४१ ई० से यह तुर्की के अधिकार मे है। १८वी तथा १९वी शताब्दी में रूस इस पर अपना अधिकार करके भूमध्य-सागर में अपना आधिपत्य जमाना चाहता था। परन्तु ब्रिटेन, फ्रान्स और तुर्की ने इसका विरोध किया और, इस कारण, क्रीमियन युद्ध छिड़ा। विगत विश्व-युद्ध तक यह तुर्की के अधिकार में रहा। युद्ध के बाद मित्र-राष्ट्रो ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया और गैलीपोली प्रायद्वीप, जिसमें इस जल-डमरूमध्य का योरपियन-तट पडता है, यूनान को दे दिया गया। उपरान्त यह निरस्त्र कर दिया गया और हर प्रकार की जहाज़रानी के लिए इसे खोल दिया गया तथा इसका नियत्रण एक अन्तर्राष्ट्रीय कमीशन के हाथ मे दे दिया गया। परन्तु कमाल के नेतृत्व मे, तुर्की के यूनान पर विजय प्राप्त करने के बाद, गैलीपोली फिर तुर्की को दे दिया गया और, ४ अगस्त १९२३ के लौसेन-समझौते के अनुसार, इस पर अन्तर्राष्ट्रीय-नियन्त्रण हलका कर दिया गया, और तुर्की का इस पर आंशिक प्रभुत्व
होगया। ऐतिहासिक परम्परा के विरुद्ध रूस ने, आक्रमण का रास्ता खुल जाने की आशङ्का से, इसका विरोध किया और वरतानिया ने आग्रह। परन्तु, २० जुलाई १९३६ के मोन्ट्रियो-समझौते के अनुसार, तुर्की को इस डमरूमध्य का शस्त्रीकरण और क़िलेबन्दी करने का अधिकार मिल गया। अन्तर्राष्ट्रीय कमीशन का पचायती नियंत्रण भी हट गया और तुर्की को इस पर पूरा कब्जा मिल गया। परन्तु इस पूर्ण प्रभुत्व पर यह मर्यादाये लगा दी गई कि शान्ति के समय इसमें व्यापारिक जहाजरानी स्वतत्र रूप से हो सकेगी, १०,००० टन से ज्यादा के युद्ध-यान, पनडुब्बियाॅ तथा लड़ाकू वायुयानों को ले जानेवाले जहाज़ इसमे से न गुजर सकेंगे। इनके अतिरिक्त दूसरे लड़ाकू जहाज़ भी केवल दिन में निकल सकेगे। युद्ध के समय तुर्की तटस्थ रहेगा तथा विग्रही राष्ट्रों के युद्ध-पोतों को इसमें से गुजरने नहीं दिया जायगा। परन्तु यदि
युद्ध-पोत राष्ट्रसंघ के आदेश से अथवा किसी विशेष समझौते की रक्षा के लिए भेजे जायॅगे, तो उन पर तुर्की रा कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया जायगा। अन्यथा दरेदानियाल डमरूमध्य पर तुर्की को पूरा कब्जा है।