डन्कर्क--डोवर जल-डमरूमव्य में, फ्रास के समुद्री तट पर, यह फ्रांस का बन्दरगाह है। २८ मई है १९४० को जब बेलजियम के बादशाह ने जर्मनी के सम्मुख आत्म-समर्पण कर दिया, तब जर्मन लोगो ने डन्कर्क से होकर फ्रांस पर आक्रमण किया। डन्कर्क मे ब्रिटेन तथा फ्रांस की सवोंत्तम सेनाएँ थी।
जर्मन-सेनाओ ने अचानक बड़े वेग से उन्हें चारो ओंर से घेर लिया। ब्रिटिश तथा फ्रासीसी सैनिको ने बड़ी वीरता से मुक़ाबला किया, किन्तु जर्मन सेना ने ब्रिटिश तथा फ्रासीसी सेना का पेरिस तथा अन्य स्थानो की सेनाओ से पृथक्करण कर दिया। इससे उनकी सहायता के लिए न तों रसद पहुँच सकी और न कुमुक ही भेजी जा सकी।
जर्मन सेना के आठ-नौ डिवीज़नो ने (प्रत्येक डिवीज़न मे ४०० विविध प्रकार की बख्तरदार गाडियॉ तथा यान्त्रिक सैन्य थी) एकदम पीछे से ब्रिटिश फौज़ पर हमला किया। इसमे ३०,००० ब्रिटिश सैनिक मारे गये और ३,३५,००० सैनिक जहाज़ों मे बिठाकर ब्रिटेन वापस लाये गये। ५०,००० जर्मन सैनिक मारे गये। पऱन्तु इसमे फ्रांस की शक्ति का भारी नाश हुआ। जिस मैजिनो क़िलेबन्दी पर फ्रांस को अपार गर्व था, वह व्यर्थ सिद्ध हुई। ३-४ जून १९४० तक सब ब्रिटिश सेना डन्कर्क से वापस ब्रिटेन चली गई। ४ जून १९४० को मि० विन्स्टन चर्चिल ने पार्लमेट मे भाषण देते हुए कहा--"हमारी सेना तथा जनता के सुरक्षित रूप से बच आने पर कृतज्ञता-प्रकाशन करते हुए हमे यह तथ्य विस्मृत न कर देना चाहिए कि फ्रांस तथा बेलजियम मे जो कुछ घटित हुआ है, वह महान् सैनिक संकट है। फ्रास की सेना
कमजोर हो गई है, वेलजियम की सेना नष्टप्राय हो चुकी है। फास की यह किले-बन्दी, जिस पर इतना भारी विश्वास था, नष्ट हो चुकी है। बहुत-सी खानें तथा कारखाने शत्रु के हाथ में पड़ गये हैं।"
इस घटना के बाद ही ब्रिटेन ने आक्रमक युद्ध आरम्भ किया। अब तक वह रक्षात्मक युद्ध करता आ रहा था।