[ ११४ ] चीन--चीनी-प्रजातन्त्र। चीनी भाषा मे इसे 'चुग् हुआ मिन को' कहते हैं। मुख्य चीन मे १८ प्रान्त हैं तथा क्षेत्रफल १५,३३,००० वर्गमील है। इसमे मगोलिया, सिकियाग्, तिब्बत (जो १९१२ ई० तक चीन के अधीन था और अब स्वतन्त्र है) तथा मन्चूरिया--इन विवादास्पद बाहर के देशो को शामिल करके क्षेत्रफल ४२,७८,००० वर्गमील होजाता है। मुख्य चीन की जनसख्या ४०,००,००,००० है, और यदि उपर्युक्त देशो की जनसख्या भी शामिल की जाय, तो ४५,८०,००,००० हो जायगी। सन् १९११ में जब चीन मे क्रान्ति हुई, और फलतः मचू राजवश के एकतन्त्र शासन का अन्त होकर प्रजातन्त्र की स्थापना हुई तब से चीन में स्थायी रूप से गृहकलह होता रहा। प्रजातन्त्र के सर्वप्रथम पुरातन-पन्थी राष्ट्रपति मार्शल यूआन शि-काई का दक्षिणी चीन के प्रजातन्त्रवादी नेता डा० सन यात-सेन ने विरोध किया। सन् १९१५ में मार्शल यूआन ने अपने को चीन का सम्राट घोषित कर दिया। परन्तु थोड़े समय बाद ही उसका देहान्त होगया। क्रान्ति के
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परम्परागत केन्द्र दक्षिण-चीन की राजधानी नानकिग् में डा० सन यात-सेन ने प्रगतिशील प्रजातन्त्र-शासन की स्थापना की। चीन के उत्तरी तथा दक्षिणी प्रान्तो में सदैव संघर्ष रहा है। वर्षों गृह-कलह चला; उत्तर और दक्षिण प्रदेश ही नहीं लड़ते रहे, बल्कि अनेक सेनापति अपने प्रभाव के प्रान्तों में शासन स्थापित करते और एक-दूसरे से लड़ते रहे। सन् १९२३ में डा० सन यात-सेन ने को मिन ताग्—चीन की राष्ट्रीय क्रान्तिकारी-सस्था--का, सोवियट सलाहकार वोरोडिन के सहयोग से, सगठन किया। तब से सोवियट रूस बराबर चीन की राज-क्रान्तियो में दिलचस्पी लेता रहा है। सन् १९३१ और १९३२ में चीन का नया शासन-विधान बनाया गया। को मिन तांग की राष्ट्रीय-कांग्रेस सर्वोच्च राष्ट्रीय सत्ता है। काग्रेस केन्द्रीय कार्यकारिणी समिति (Cential Executive Committee) की नियुक्ति करती और यह समिति राष्ट्रीय सरकार बनाती है। सरकार के पॉच विभाग हैं-( १ ) शासन-प्रबन्ध, (२) व्यवस्था ( कानून ), ( ३ ) न्याय, (४) परीक्षा, (५ ) नियंत्रण। यह विभाग 'यूआन' कहलाते हैं। शासन-प्रवन्ध-विभाग ही वास्तव में सरकार है और इसके प्रमुख का पद दूसरे देशों के प्रधान-मंत्री के बराबर है। इसके अतिरिक्त एक राज-परिषद् ( State Council ) भी हैं । यह सरकार की सर्वोच्च संस्था है। इसका अध्यक्ष ही राष्ट्रीय सरकार का राष्ट्रपति होता है। शासन-प्रबंध-विभाग के अध्यक्ष चीन के एक महाजन (वेकर) डा० कुग् हैं, जो नियाग काई-शेक के साटू हैं। स्वर्गीय डा० सन यात-सेन से भी उनका यही नाता था।

जब चीन में आन्तरिक कलह कुछ शान्त होगया, तब बाहरी आक्रमण होने लगे और जापान ने उस पर हमला कर दिया। सन् १९३१ में जापान ने चीन के मंचूरिया प्रान्त पर अधिकार जमा लिया और वहाँ दिखावटी मन्चूरो राज्य की स्थापना कर दी। सन् १९३२ में शंघाई ने दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। चियांग ई-शेक ने समझौता कर लिया, क्योंकि वह जापान के भावी अनिवार्य आक्रमण के मुक़ाबले के लिये, जो समस्त चीन को हड़प जाने के इरादे से था, चीन की विभिन्नता नष्ट कर एकता और संगठन पैदा करना चाहे थे। और इसके लिये समय और शांति की आवश्यकता थी। संधि हो गई, परन्तु जुलाई १९३७ मे ७ ता० ३ चीनी जापानी सिपा-
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हियो मे हुई ज़रा-सी मुठभेढ का एक बहाना लेकर जापान ने चीन से युद्ध छेड़ दिया। जापानी सेना ने चीन के एक विशाल प्रदेश सहित, दिसम्बर १९३७ मे, चीन की राजधानी नानकिंग् पर अधिकार जमा लिया और वहाँ वाग् चिंग्-वी की अध्यक्षता मे खिलौना-सरकार बना दी। चीन-सरकार अपनी राजधानी दक्षिण-पश्चिमी चीन के चुग्किंग् नगर मे उठा ले गयी। ब्रह्मा (बर्मा) से चुग्किंग् तक एक सड़क बनाई गई थी। यह बर्मा-रोड कहलाती है, जिसे १९४२ के अप्रैल तक चीन-सरकार इस्तेमाल करती रही; किन्तु अप्रैल मे, ब्रह्मा के पतन के साथ, यह सड़क भी जापानियो के अधिकार मे चली गई। जगी रसद और दूसरा अमरीकी और बरतानवी सामान आदि इसी मार्ग से चीन को जाता था,क्योंकि चीन के समुद्र-तटवाले प्रदेशो पर जापानियों का प्रभुत्व है। चीनी साम्यवादियो ने पुराने भेदभाव को भुलाकर, देश की आजादी की प्रेरणा से प्रभावित होकर, जनरलिस्सिमो चियाग् से समझौता कर लिया है और अपनी सेनाएँ, जापानियों से लड़ने के लिये, उनकी कमान (Command) में दे दी हैं, पर देश के भावी शासन-विधान के सम्बन्ध मे उनका आन्तरिक मतभेद है। चीन के सथ सोवियट रूस की सबसे अधिक क्रियात्मक सहानुभूति पहले से रही है। ब्रिटेन और सयुक्त-राज्य अमरीका भी, अपने हितों की रक्षा के लिये, चीन सहायता-सहानुभूति पीछे से करने लगे हैं और आज रूस के साथ चीन की भी साथी मुल्कों (United Nations) में गणना करते हैं। भारत और चीन का तो पुरातन सांस्कृतिक सम्बन्ध है। सन् १९३९ मे प० जवाहरलाल नेहारू चियाग् काई-शेक तथा अन्य नेताओ से भेट करने चीन गये। उन्होंने चीन का भ्रमण भी किया तथा भारत का संदेश सुनाया। आपके ही पयत्न से, कांग्रेस की और से, एक डाक्टरी सेवा-दल चीनी रणक्षेत्र पर भेजा गया था। अँगरेजों की ४५,००,००,००० पौंड की पूँजी चीन के उद्योगधन्धो और व्यवसायो मे और सयुक्त-राज्य अमरीका की ४०,००,००,००० डालर की पूँजी चीन के उद्योग मे लगी हुई है। चीन ही अकेला संसार मे सबसे बढा पिछड़ा प्रदेश है जिसका अभी तक यूरोपीय देश बँटवारा नही कर सके हैं। इसलिये चीन पर आज समस्त प्रगतिवादी देशो की दृष्टि लगी हुई है। चीन के मचूरिया (मचूक़ो)
[ ११७ ]प्रदेश पर जापान का, वाह्य मंगोलिया पर सोवियट रूस का, आन्तरिक मगोलिया पर जापान का, सिंकियांग् पर सोवियट रूस का इस समय नियंत्रण है। यह सभी प्रदेश चीन के अधिकार से पहले या पीछे निकल चुके है, पर चीन इन पर अपना आधिपत्य चाहता है। चीन-जपान-युद्ध मे, ७ जुलाई '४२ ई० तक, पिछले पाँच साल के युद्ध-काल में, २५ लाख जापानी और ३५ लाख चीनी मारे जा चुके हैं। धन-हानी भी अतुल हुई और हो रही है।