अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/चियांग् काई-शेक

अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ११२ से – ११४ तक

 

चियांग् काई-शेक--चीन के प्रधान सेना-नायक तथा राष्ट्रीय नेता। चियांग् काई-शेक का, चेकियांग् में, सन् १८८८ मे, जन्म हुआ। इनके पिता शराब के व्यापारी थे। जब इनकी आयु २० वर्ष की थी, तब उत्तरी चीन की एक मिलिटरी ऐकेडेमी (सैनिक शिक्षण-संस्था) में भरती हो गये। इनकी सैनिक शिक्षा जापान में समाप्त हुई, जहॉ डा० सन यात-सेन से इनकी भेंट हो गई। तबसे इन्होंने क्रान्तिकारी-दल मे प्रवेश किया तथा को मिन तांग (चीनी प्रमुख राष्ट्रीय संस्था) के सदस्य बन गये। सन् १९११, १९१२ और १९१७ की चीनी क्रान्तियो मे भाग लिया। सन् १९१७ से १९२२ तक डा० सन यात-सेन के सहयोगियो में रहे। सन् १९२३ में मास्को मिलिटरी ऐकेडेमी मे गये। सन् १९२४ में कैन्टन के पास व्हाम्पू में चीनी मिलिटरी ऐकेडेमी के अध्यक्ष हुए। इस संस्था के सैनिको को संगठित कर आपने, सन् १९२५ में, दक्षिण चीन के प्रतिद्वन्द्वी जनरलो के विद्रोह का दमन किया। जब डा० सन यात-सेन की मृत्यु होगई तो चियांग् को मिन तांग् के नेता होगये। साम्यवादियो (Communists) से सहयोग किया, प्रमुख सेनापति (Generalissimo) बने, और सन् १९२६ मे शंघाई पर आधिपत्य जमा लिया। मार्च १९२७ में उनका साम्यवादियो से तीव्र मतभेद हो गया, अतएव शंघाई मे आपने बहुसख्या में उनका वध किया। चियांग् ने नानकिंग में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना, पुरानी साम्यवादी को मिन तांग्-सरकार का विरोध करने के उद्देश्य से, की। अन्त में दोनो सरकारे मिल गई और चियांग् को अधिनायक स्वीकार किया गया। उत्तरी चीन की विजय के लिये प्रस्थान किया और सन् १९२८ में चियांग् काई-शेक ने वहाँ के सैनिक सर्वेसर्वा मार्शल चांग् सो-लिन को पराजित किया और सम्पूर्ण चीन देश नानकिंग्-सरकार के अधीन अधीन कर दिया। इस तरह चियांग् प्रधान मन्त्री और अधिनायक हो गये। परन्तु गृह-कलह जारी रहा। सन् १९३१ में चियांग् ने प्रधान-मन्त्री के पद से त्याग-पत्र दे दिया। सन् १९३२ मे वह फिर उसी पद पर नियुक्त किये गये। साम्यवादी सेनाएँ और कैन्टन में स्थापित वामपक्षीय सरकार इस समय चियाग् का विरोध कर रहे थे। साम्यवादियो ने दक्षिण के दो प्रान्तो में सोवियत-शासन स्थापित कर लिया था। चियांग् ने इन प्रान्तो पर सात बार चढ़ाई की और सन् १९३४ मे उन्हे परास्त कर दिया। कम्युनिस्ट सेना भाग तो गई पर उसने पश्चिम के केज़ेकुआन प्रान्त मे जाकर सोवियत सत्ता स्थापित करदी। इसके बाद चियांग् ने जापानियो के साथ समझौता करने की कोशिश की, जिन्होंने मंचूरिया पर क़ब्ज़ा कर लिया था तथा शंघाई पर आक्रमण कर दिया था। सन् १९३६ में चियाग् को एक प्रतिद्वन्द्वी जनरल ने पकड लिया, परन्तु बाद में समझौता होगया और वह छोड़ दिये गये। जब जुलाई १९३७ में जापान ने चीन पर हमला किया तब चियांग् काई-शेक ने प्रधान मन्त्री पद से त्याग-पत्र दे दिया और प्रमुख सेनापति का पद ग्रहण किया ताकि जापान का पूरी तरह मुकाबला किया जा सके।

चियाग् काई-शेक ने चीनी राष्ट्र में नवचेतन तथा राष्ट्रीयता को जगा दिया है। वह बड़ी दृटता, वीरता और धैर्य के साथ जापानियो का मुक़ाबला कर रहे हैं। जब दिसम्बर १९३७ मे नानकिंग् का पतन होगया तब उन्होने चुग्किंग् को अपनी राजधानी बनाया। उनकी

धर्मपत्नी, श्रीमती मे-लिंग् सुग्, का भी चीन के राष्ट्रीय संघर्ष में प्रमुख स्थान है। फरवरी १९४२ मे मार्शल चियाग् श्रीमती चियाग् काई-शेक सहित भारत आये। वह भारत के वाइसराय के अतिथि बने। उन्होने महात्मा गान्धी, प० जवाहरलाल नेहरू, मौ० आज़ाद तथा मि० जिन्ना आदि नेताओं से भेट की। अपके आगमन से भारत और चीन का पुरातन सास्कृतिक-नैतिक सम्बन्ध, राजनीतिक- सम्बन्ध के रूप मे, और भी दृढ़ हुआ है।