अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश
रामनारायण यादवेंदु

पृष्ठ ६९ से – ७२ तक

 



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ओटावा-समझौता-–सन् १९३२ मे ओटावा (कनाडा) में,साम्राज्य-आर्थिक-सम्मेलन हुआ था, जिसमे ब्रिटिश साम्राज्यान्तर्गत सभी देशो के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे। इस सम्मेलन में पारस्परिक तटकर (Tariff) सबंधी निश्चय निर्धारित किये गये, जो ओटावा समझौता के नाम से प्रसिद्ध है।


ओटो, डा० स्ट्रैसर--एक निर्वासित जर्मन राजनीतिज्ञ, हिटलर-नीति-विरोधी काले मोर्चे (Black Front) का नेता। १९३० तक डा० ओटो हिटलर का अनुयायी रहा। इसने नाज़ी दल में एक समाजवादी पक्ष खड़ा किया। सन् १९३० में वह हिटलर के दल से अलग होगया। उसने “क्रान्तिकारी राष्ट्रीय समाजवादी-दल” क़ायम किया जो बाद मे काले मोर्चे (Black Front) के रूप में बदल गया। इसके कार्यक्रम मे नाज़ीवाद तथा समाजवाद का मिश्रण था। सन् १९३३ मे हिटलर ने डा० ओटो को जर्मनी से निर्वासित कर दिया। वह ज़ेकोस्लोवाकिया तथा स्विट्ज़रलैण्ड में भ्रमण करके हिटलर के विरुद्ध प्रचार करने लगा।


औकिनलैक--आपका पूरा नाम है जनरल सर क्लौड जॉन इरे औकिनलक। आपका जन्म सन् १८८४ में हुआ। दक्षिण-पश्चिमी समुद्रतटीय प्रदेश-इँगलैंड--में औकिनलैक ने जर्मन-आक्रमण से रक्षा के लिए सेना का संगठन किया। मई १९४० मे उत्तरी नार्वे में मित्रराष्ट्रो की सेना का संचालन किया। इसके बाद इँगलैंड में पोर्ट् समाउथ से ब्रिस्टल तक ५०० मील लम्बे समुद्री-तट की रक्षा के लिए ६ मास तक आपने बड़े साहस से योजना-कार्य किया।

आपने वैलिगटन कालिज में शिक्षा प्राप्त की है। सबसे प्रथम वह भार-

तीय सेना मे साधारण अफसर नियुक्त किए गए। बिगत महायुद्ध में आपने स्वेज नहर पर मिस्र मे कार्य किया था। सन १९१३ मे मेसोपोटामिया में सैनिक-कार्य किया। युद्ध की समाप्ति तक वही पर रहे।

सन १९२७ में इम्पीरियल डिफसे काॅलेज से परिक्षा पास की और सन् १९२९-३० मे आपको प्रथम पंजाब रेजिमेंट की प्रथम बटालियन का सचालन कार्य सौपा गया। सन् १९३० मे आप स्टाफ कालिज क्वेटा में शिक्षक हो गए। सन् १९३३ से १९३६ तक पेशावर ब्रिगेड का संचालन किया। सन् १९३६ में जनरल औकिनलैक के जनरल स्टाफ का डिपुटी चीफ नियुक्त किया गया। बाद में जनरल स्टाफ के चीफ के पद पर भी कार्य किया। भारतीय सेना के प्रतिनिधि के रूप मे आपको चैटफील्ड कमिशन का सदस्य नियुक्त किया गया था। सन् १९३६ मे कुछ समय के लिये आपको मेरी डिवीजन में जनरल आफीसर कमाडिंग् का कार्य सौपा गया। यही से आपको इँगलैण्ड में सेना के संगठन के लिए आमंत्रित किया गया।

सन १९४१ मे आपको भारत का प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया।

जून १९४२ में लीबिया में तुबरुक का मोर्चा जनरल रिची के हाथ से निकाल जाने और अँगरेज़ी सेनाओं द्वारा सोलम, कपुज्ज़े, हलफाया और

सिद्दीबरानी ख़ाली करके पीछे हट जाने के बाद इस रण-क्षेत्र का सैन्य-संचालन जनरल औकिनलैक ने अपने हाथ मे ले लिया। आपने अपना नया मोर्चा पीछे हटकर सिकन्दरिया से सत्तर मील पश्चिम मे लगाया है, जहाँ शुरू में जर्मनो ने बड़ी तेज़ी दिखाई थी, और ऐसा दिखाई देने लगा था कि वह मिस्र को शीघ्र ले लेंगे। किन्तु आप बड़ी रण-चातुरी औल वीरता से अपनी सेना को वहाँ लड़ा रहे हैं। लड़ाई इस रणक्षेत्र पर आजकल घमासान की हो रही हे।


औद्योगिक संगठन समिति--यह अमरीका का एक मज़दूर संगठन है। अमरीकी मज़दूर-संघ की एक शाखा है जो यह चाहती है कि समस्त

मजदूरो का व्यापक रूप से सगठन किया जाय। अमरीकी मज़दूर-संघ में केवल दक्ष मज़दूर ही शामिल हो सकते है; परन्तु औद्योगिक संगठन समिति दक्ष और मामूली दोनों प्रकार के मज़दूरों के लिए है।


औपनिवेशिक माँग--जिन यूरोपीय या एशियाई राष्ट्रो के पास पर्याप्त उपनिवेश नही है--अधिकृत देश नही है--वे यह माँग पेश करते है कि उन्हे उनकी बढती हुई जन-सख्या की आबादी तथा औद्योगिक विकास के लिए कच्चा माल उत्पन्न करने वाले उपनिवेश चाहिये। वर्तमान समय मे हिटलर और मुसोलिनी जो युद्ध मे उतरे है, इसमे उनका एक लक्ष्य यह भी है कि एशिया और अफ्रीका के पिछडे देश उन्हे, इन उद्देशो की पूर्ति के लिए, मिल जाँय।


औपनिवेशिक स्वराज्य--वर्तमान समय में ब्रिटिश-राष्ट्र-समूह के अन्तर्गत केवल ५ उपनिवेशो को स्वायत्त-शासन प्राप्त है-- दक्षिणी अफ्रीकन यूनियन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैएड तथा आयरिश स्वतंत्र-राज्य। इनमे से अन्तिम उपनिवेश तो ब्रिटिश राष्ट्र-समूह से अलग है और उसे ब्रिटिश डोमी-नियन मानना सत्य के साथ अन्याय करना होगा। शेप चार उपनिवेशो को वैस्टमिन्स्टर क़ानून १९३१ के अनुसार अपने आन्तरिक शासन मे पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त है। प्रत्येक उपनिवेश की निजी सेना है तथा उसे अपने गवर्नर-जनरल की नियुक्त मे ब्रिटिश मंत्रि-मण्डल को सलाह देने का अधिकार है। अक्सर उसकी सम्मति से ही गवर्नर-जनरल नियुक्त किया जाता है। प्रत्येक उपनिवेश की पार्लमेंट को यह अधिकार है कि वह अपने विधान में परिवर्तन करले तथा कोई भी ऐसा क़ानून बनाले जो इँगलैएंड कि पार्लमेंट द्वारा निर्मित क़ानून के विपरीत हो। परन्तु वैदेशिक, साम्राज्य-रक्षा तथा व्यापारिक सन्धियों और युद्ध-घोषणा तथा शान्ति-संधी आदि मामलो मे उपनिवेशो की सरकारे सदैव ब्रिटिश सरकार के पद-चिन्हो पर चलती है।

भारत के वायसराय लाई लिनलिथगो ने ८ अगस्त १९४० के वक्तव्य मे यह निश्चयपूर्वक घोषणा की है कि भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिया जायगा। परन्तु औपनिवेशिक स्वराज्य की स्थापना कब की जायगी, इसका अभी तक स्पष्टिकरण नही हो सका। यह भी घोषणा की गई है कि युद्ध के

बाद भारतीयो को अपना शासन-विधान बनाने की सुविधा दी जायगी और ब्रिटिश पार्लमेंट उस पर विचार करेगी।

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