हिंदी कविता प्रश्नपत्र दिल्ली विश्वविद्यालय मार्च २०२३

हिंदी कविता प्रश्न पत्र दिल्ली विश्वविद्यालय मार्च २०२३  (2023) 

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय, पृष्ठ १ से – ४ तक

 

  [This question paper contains 4 printed pages]

 

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Sr. No. of Question Paper : 3012D
Unique Paper Code : 2052101001
Name of the Paper : Hindi Kavita: Aadikal Evam Nirgunbhakti Kavya
हिंदी कविता : आदिकाल एवं निर्गुण-भक्ति काव्य
Name of the Course : B.A. (Hons.) Hindi : DSC-1
Semester : I
Duration : 3 Hours
Maximum Marks : 90
 


छात्रों के लिए निर्देश

1. इस प्रश्न-पत्र के मिलते ही ऊपर दिए गए निर्धारित स्थान पर अपना अनुक्रमांक लिखिए।
2. सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
3. इस प्रश्न पत्र में दो पृष्ठ हैं।


1.सप्रसंग व्याख्या कीजिए :(9×3=27)

(क) संगहें पान कम्मान राज। उभ्भरे अंग अंतर बिराज॥
आलिंग बुंबि उर चंपि अप्प। बद्धेव तेज तामंस दप्प॥
कर धरे से धनु आनंद चित्त। बिछुर्यै मिल्यो चिरकाल मित्त॥
कम्मान राज मिलि तेज ताय। अरिमंझिबिंटि मिलिमनु सहाय॥

अथवा

 

देख-देख राधा-रूप अपारा।
अपरुब के विहि आनि मिलाओल खिति तल लाबनि-सार।
अंगहि अंग अनंग मुरछायत हेरए पड़ए अथीर।
मनमथ कोटि मथन करु जे जन से हेरि महि मधि गीर।
कत-कत लखिमी चरण-तल नेओछए रंगिनि हेरि विभोरि।
करु अभिलाख मनहि पद-पंकज अहोनिसि कोर अगोरि।

 

(ख) मूवाँ पीछै जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लोह सब, (तब) पारस कौंणैं काम॥
इस तन का दीवा करौं, बाती मेल्यूं जीव।
लोही सींचौ तेल ज्यूँ, कब मुख देखौं पीव॥

 

अथवा

 

कहा नर गरबसि थोरी बात।
मन दस नाज टका दस गंठिया, टेढौ टेढौ जात॥टेक॥
कहा लै आयौ यहु धन कोऊ, कहा कोऊ लै जात॥
दिवस चारि की है पतिसाही, ज्यूं बनि हरियल पात॥
राजा भयौ गांव सौ पाये, टका लाख दंस ब्रात॥
रावन होत लंका को छत्रपति, पल में गई बिहात॥
माता पिता लोक सुत बनिता, अंत न चले संगात॥
कहै कबीर राम भजि बौरे, जनम अकारथ जात॥

(ग) खेलत मानसरोवर गईं। जाइ पाल पर ठाढ़ी भईं॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली। पदमावति सों कहहिं सहेली॥
ए रानी! मन देखु विचारी। एहि नैहर रहना दिन चारी॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू। खेलि लेहु जो खेलहु आजू॥
पुनि सासुर हम गवनव काली। कित हम, कित यह सरवर-पाली॥
कित आवन पुनि अपने हाथा। कित मिलि कै खेलब एक साथा॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं। दारुन ससुर न निसरै देहीं॥
पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह।
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह॥

 

अथवा

कहा मानसर चाह सो पाई। पारस-रूप इहाँ लगि आई॥
भा निरमल तिन्ह पायँन्ह परसे। पावा रूप रूप के दरसे॥
मलय-समीर बास तन आई। भा सीतल, गै तपनि बुझाई॥
न जनौं कौन पौन लेइ आवा। पुन्य-दसा भै पाप गँवावा॥
ततखन हार बेगि उतिराना। पावा सखिन्ह चंद बिहँसाना॥
बिगसा कुमुद देखि ससि-रेखा। भै तहँ ओप जहाँ जोइ देखा॥
पावा रूप रूप जस चहा। ससि-मुख जनु दरपन होइ रहा॥
नयन जो देखा कवल भा, निरमल नीर सरीर।
हँसत जो देखा हंस भा, दसन-जोति नग हीर॥

2."बानबेध समय" का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए। (14)

अथवा

"बानबेध समय" के काव्य-सौन्दर्य की समीक्षा कीजिए।  
3.विद्यापति भक्त अथवा शृंगारिक कवि हैं, तर्क सहित उत्तर दीजिये।
(14)

अथवा

विद्यापति की काव्य-भाषा पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
 
4.कबीर का काव्य आँखिन देखी पर आधारित है, कागद लेखी पर नहीं, इस कथन के आलोक में कबीर-काव्य की समीक्षा कीजिए।
(14)

अथवा

कबीर की सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
5."जायसी प्रेम की पीर के कवि हैं", इस कथन के आधार पर जायसी की प्रेम भावना का विवेचन कीजिए
(14)

अथवा

सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिये।
 
6.किसी एक विषय पर टिप्पणी लिखिए:
(7)
(क) विद्यापति का राधा-रूप वर्णन  
(ख) "गुरुदेव को अंग" का प्रतिपाद्य  
(ग) "मानसरोदक" खंड का काव्य-सौंदर्य  

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