सौ अजान और एक सुजान
बालकृष्ण भट्ट

पृष्ठ १०६ से – ११० तक

 

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अठारहवाँ प्रस्ताव

पानी में पानी मिलै, मिलै कीच में कीच।

सवेरे की नमाज से फारिरा हो अफीम के नशे के झोंक में ऊॅघते हुए कोतवाल साहब कुर्सी पर बैठे सोच रहे हैं "कोतवाली का भी क्या ही नाजक काम है। उधर शहर के आवारा और बदमाशों को दाव में रखना, और उनके जरिए मतलव भी निकालना, इधर रईसों पर भी चाप चढ़ाए रहना, ऐसा कि जिसमें कोई उभड़ने न पावे। जट से मैजिस्ट्रेट तक सबको अपनी कारगुजारी से खुश रखना और उनके खयाल में सुखरुई हासिल किए रहना कितना मुश्किल काम है। सुबह से शाम तक ऐसे-ऐसे पेचीदह झगड़े आ पड़ते है कि कुछ कहा नहीं जाता। उस दिन उस जौहरी के दस हजार के जवाहिरात उड़ गए। मुझे मालूम है, जिन लोगो का यह काम है। पता भी मैने लगा लिया है, पर जौहरी मरदूद बड़ा कजाक काइयाँ है, एक झझी नहीं गलाना चाहता और बातों- ही-बात मे काम निकालना चाहता है। मैने सोच रक्खा है, आधे पर मामिला तय करेगा, तो खैर बेहतर, नही बचा कुल से हाथ धो बैठेगे। ५०० रुपए रोज विना पैदा किए दातुन करना हरान है। अच्छा, फिर हमारा गुजारा भी तो किसी तरह होना चाहिए। बड़े-बड़े नबाबो का जो खर्च न होगा, वह हम अपने जिम्मे बाँधे हैं। १० रुपए रोज बी बन्नो को ज़रूर हो चाहिए ; किले-सी बड़ी भारी इमारत जुदा छेड़े हुए हैं. जिसमे लक्खों रुपए सोख गए। हमनिवाले दस-पाँच दोस्त दस्तरखान के शरीक न हों, तो नाम में फर्क पडे । चार- चार फिटन, कोतल सवारी के घोडे वगैरा का सब खर्च कहाँ से आवे,आखिर अल्लाहताला को हमारी भी तो फिकिर है। रोज नया शिकार न भेजे तो इतना बड़ा अटाला कैसे पार हो–(पीनक से जग) कोई है। अवे ओ फहमुआ ! (थोड़ा ठहर ) अवे ओ फहमुआ ! (थोड़ा ठहर ) अवे ओ फहमुआ ! मर गया क्या ?

फहमुआ–हॉ साहब हे आएऊ (ऑख मीजता हुआ नीद में भरा आता है) कोतवाल–हरामजादा अभी तक पड़ा-पड़ा सोता ही था; तू अपनी इस आदत से बाज न आएगा। बीसों मरतबा कह चुके। तुझे होश नहीं आता, समझेरह, खाल खिचवा लूॅगा।

फहमुआ–हुजूर माफ करे, कसूर भा, अब आगे से ऐसा न करिहौ। (हुक्का भर सामने लाय रख देता है )

(कोतवाल हुक्के की निगाली होठों के नीचे दाब पीनक में आय फिर मन में) इसमें कुछ शक नही, कोतवाली का ओहदा भी एक छोटी-सी बादशाहत है, मगर हुक्काम जिला अपने चंगुल में हों, तब। पहले जो साहब थे, उन्हें तो मैने खूब सॉट रक्खा था। शहर के इंतजाम का कुल दारमदार, साहब ने मुझ पर छोड़ रक्खा था; जो चाहता था, सो करता था। क्या कहें, साहब हमारे बड़े खूबी के आदमी थे। लोगों ने बहुतेरा मेरे खिलाफ कान भरा, पर उन्होंने एक न सुना। जो याफ्त मुझे उनके जमाने में हो गई, वह अब काहे को होना है । नया कलट्टर बड़ा सख्त-मिज़ाज मालूम होता है, आदमी यह बेलौस जरूर है, मुझे उम्मीद नहीं होती कि यह किसी तरह मेरे चंगुल में आ सकेगा। बेलौस और बड़ा मुंसिफ-मिजाज है ; रैयत की भलाई का भी उसे बहुत ख्याल है । खैर, देखा जायगा। कल से एक नया शिकार हाथ आया है, तीन वारेटगिरफ्तारी अदालत से, मेरे पास आए हैं; इस वारेट में सेठ हीराचंद के घराने के लोग शामिल हैं। मुकद्दमा यह ऐसा हाथ आया है कि खूब ही पाकेट गरम होने का मौका मिलेगा, ५ तोड़े भी हाथ न आए, तो कुछ न हुआ। इधर कई दिनों से बिलकुल खाली जाता था, अल्लाह ने एक साथ भारी रकम भेज दो। कल रात बी बन्नी कड़कविजली और झूमड़ के लिये झगड़ रही थी, यह रकम गोया उसी के नसीव से हाथ आवेगी। दारोगा सुजानसिह और नक़ीअली कास्टेबिल को मैने इसके लिये तनात किया है, मालूम नहीं क्या हुआ। (पीनक से जग एक फूॅक हुक्के की ले)–अबे फहमुआ, नामाकूल कैसी तंबाकू भर लाया है, कलेजा तक झुलस गया। अहमक तुझसे हजार मरतबा कहा गया, तू अपनी आदतों से बाज न आएगा। आठ रुपए सेरवाली तबाकू जो अभी कल मिट्ठू तबाकूवाला नजर दे गया, उसे क्या किया, क्यों नहीं भरा ?

फहमुआ–साहब, भूल गएउॅ हं, भरे लावत हो।

(नकीअली सलाम कर नदू को सामने हाजिर कर)

'हुज़ूर, यह तो मिले हैं, बाकी दोनो की फिक्र मे दारोगा साहब गए हैं।"

कोतवाल–आहा !आप हैं कहिए आप तो बाबू साहब के बड़े दोस्त हैं। (मन में ) खैर, पहले इसी मूॅजी से निपट ले। यह बड़ा बदमाश और चालाक है। अच्छा, आज चगुल में आया। (प्रकाश ) आप लोग देखने ही के सुफेदपोश हैं, पर काम जो आप लोगों से बन पड़ता है, वह एक हकीर छोटे-सेछोटा आदमी भी न करेगा। उस जाली दस्तावेज़ में आप का भी दस्तखत है। सच वतलाओ, तुमने किस तरह उस पर दस्तखत किया। आप तो कानून से भी वाकिफ हैं, अदालत की बातों को अच्छी तरह समझते हैं, तब, मालूम होता है, इसमें कुल शरारत आप ही की है।

नंदू–हुजूर, जब वह दस्तावेज़ जाली है, तब मेरा दस्तखत भी जाल से बना लिया गया, तो इसमें अचरज क्या है।

कोतवात–खैर, तुमने भी यकरार किया कि दस्तावेज जाली है, और यही तो मेरा मतलब है। (नकीअली से) अच्छा, इसे ले जाओ, पहरे में रक्खो। उन दोनो को भी आ जाने दो, तो जो कुछ कार्रवाई होगी की जायगी।