सेवासदन
प्रेमचंद

इलाहाबाद: हंस प्रकाशन, पृष्ठ १४ से – १६ तक

 

कृष्णचन्द्र अपने कस्बे में सर्वप्रिय थे। यह खबर फैलते ही सारी बस्ती में हलचल मच गई। कई भले आदमी उनकी जमानत करने आये लेकिन साहब ने जमानत न ली।

इसके एक सप्ताह बाद कृष्णचन्द्र पर रिश्वत लेने का अभियोग चलाया गया। महन्त रामदास भी गिरफ्तार हुए।

दोनों मुकदमे महीने भरतक चलते रहे। हाकिम ने उन्हें दीरे सुपुर्द कर दिया।

वहाँ भी एक महीना लगा। अन्त मे कृष्णचन्द्र को पाँच वर्ष की कैद हुई। महन्तजी सात वर्ष के लिए गये और दोनों चेलो को कालेपानी का दण्ड मिला।

गंगाजली के एक सगे भाई पण्डित उमानाथ थे। कृष्णचन्द्र की उनसे जरा भी न बनती थी। वह उन्हें धूर्त और पाखंडी कहा करते, उनके लम्बे तिलककी चुटकी लेते। इसलिए उमानाथ उनके यहाँ बहुत कम आते थे।

लेकिन इस दुर्घटना का समाचार पाकर उमानाथ से न रहा गया। वह आकर अपनी बहन और भांजियों को अपने घर ले गए। कृष्णचन्द्र को सगा भाई न था। चाचा के दो लड़के थे, पर वह अलग रहते थे। उन्होने बात तक न पूछी।

कृष्णचन्द्र ने चलते-चलते गंगाजली को मना किया था कि रामदास के रुपयों में से एक कौडी भी मुकदमे मे न खर्च करना। उन्हें निश्चय था कि मेरी सजा अवश्य होगी। लेकिन गंगाजली का जी न माना। उसने दिल खोलकर रुपये खर्च किए। वकील लोग अन्त समय तक यही कहते रहे कि वे छूट जायेंगे।

जज के फैसले की हाईकोर्ट मे अपील हुई। महन्तजी की सजा मे कमी न हुई। पर कृष्णचन्द्र जी की सजा घट गई। पाँच के चार वर्ष रह गए।

गंगाजली आने को तो मैके आई, पर अपनी भूल पर पछताया करती थी। यह वह मैका न था जहाँ उसने अपनी बालकपन की गुडियाँ खेली थीं, मिट्टी के घरौदे बनाये थे, माता पिताकी गोद मे पली थी। माता पिता का स्वर्गवास हो चुका था, गाँव मे वह आदमी न दिखाई देते थे। यहाँ तक कि पेडो़ की जगह खेत और खेतो की जगह पेड़ लगे हुए थे। वह अपना घर भी मुश्किल से पहचान सकी और सबसे दुःखकी बात यह थी कि वहाँ उसका प्रेम या आदर न था। उसकी भावज जाह्नवी उससे मुंह फुलाये रहती। जाह्नवी अब अपने घर बहुत कम रहती। पड़ोसियो के यहाँ बैठी हुई गंगाजली का दुखडा़ रोया करती। उसके दो लड़कियाँ थीं। वह भी सुमन और शान्ता से दूर-दूर रहतीं।

गंगाजली के पास रामदास के रुपयो मे से कुछ न बचा था। यही चार पाँच सौ रुपये रह गये थे जो उसने पहले काट कपटकर जमा किए थे। इसलिए वह उमानाथ से सुमन के विवाह के विषय में कुछ न कहती। यहाँ सदा बहार होती है। वही हँसी-दिल्लगी, वही तेल फुलेलका शौक। लोग जवान ही रहते है और, जवान ही मर जाते है।

गंगा-कुल कैसा है?

उमा-बहुत ऊँचा। हमसे भी दो विश्वे बडा है। पसन्द है न? गगाजलीने उदासीनभाव से कहा, जब तुम्हें पसन्द है तो मुझे भी पसन्द ही है।