सङ्कलन/९ जापान के स्कूलों में जीवन-चरित शिक्षा

काशी: भारतीय भंडार, पृष्ठ ५७ से – ५८ तक

 
जापान के स्कूलों में जीवन-चरित शिक्षा

जापान के स्कूलों में जो किताबें जारी होती हैं, उनमें प्रसिद्ध प्रसिद्ध जापानियों के सचित्र जीवन-चरित्र रहते हैं। उनको पढ़ा कर चरित-नायकों के उदाहरणों के द्वारा लड़कों को यह सिखलाया जाता है कि "अच्छा जापानी" होने के लिए कौन कौन से गुण दरकार होते हैं। अच्छे जापानी के कुछ लक्षण सुनिए -- अच्छा या आदर्श जापानी वह है जो अपने माता-पिता, भाई-बहन और कुटुम्बियों से सम्बन्ध रखनेवाले सब कर्तव्यों का मन लगा कर पालन करता है; जो कभी इस बात को नहीं भूलता कि अपने पूर्वजों को भक्ति-पूर्ण दृष्टि से देखना उसका धर्म्म है; जो मालिक होकर अपने आश्रितों पर कृपा रखता है; जो आश्रित होकर अपने मालिक का हितचिन्तन करता है। आदर्श जापानी अपने ऊपर किये गये एहसान को कभी नहीं भूलता; जो कुछ वह करता है, सचाई के साथ करता है; जिस बात का वह वादा करता है, उसे पूरा करता है; दूसरों के साथ वह हमेशा उदारता का व्यवहार करता है। दया और दाक्षिण्य को अच्छा जापानी कभी नहीं भूलता; जो बात सच है, उसका वह जी-जान से पक्ष लेता है; जो दीन-दुखिया हैं, उनको वह दया-दृष्टि से देखता है; सामाजिक नियमों की वह सबसे अधिक इज्जत करता है; समाज की अधिकाधिक उन्नति के

लिए वह हमेशा यत्नशील रहता है; विदेशियों के साथ भी वह कभी बुरा बर्ताव नहीं करता। आदर्श जापानी अपनी शारीरिक शक्ति को हमेशा बढ़ाता रहता है; लाभदायक विद्या और कला- कौशल का ज्ञान प्राप्त करने में हमेशा तत्पर रहता है; शौर्य्य, सहनशीलता, आत्मनिग्रह, मिताचार, विनीत भाव की वह हमेशा वृद्धि करता रहता है। उसे हमेशा इस बात का ध्यान रहता है कि काम-काज में, व्यापार में, प्रतियोगिता, अर्थात् दूसरों के साथ चढ़ा-ऊपरी करने में, रुपया कमाने में और दूसरों के दिल में अपना विश्वास जमाने में उसे किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। वह अच्छे काम करने की आदत डालता है; वह नेकी करना सीखता है; विद्या पढ़ कर उससे व्यावहारिक लाभ उठाने का वह अभ्यास करता है; और आत्मोन्नति करने की वह नई नई तजवीजें सोचता रहता है। आदर्श जापानी अपने देश का हृदय से आदर करता है और राजभक्ति तथा स्वदेश-प्रीति की वृद्धि करके अच्छे नाग- रिक होने के फर्ज को अदा करता है। अच्छा जापानी इसी तरह के व्यवहार से अपनी और अपने कुटुम्ब की उन्नति करता है; और अपने देशवालों ही के लिए नहीं, किन्तु सारे संसार के फायदे के लिए, जो कुछ वह कर सकता है, हमेशा करने के लिए तैयार रहता है।

सदाचार और सुनीति की शिक्षा में जापानी हिन्दुओं से कम नहीं।

[ फरवरी १९०६.