सङ्कलन/१५ पानी के भीतर चलनेवाले धूम्रपोत
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पानी के भीतर चलनेवाले धूम्रपोत
युद्ध के लिए पश्चिमी देशों की तैयारियों का वर्णन पढ़ते समय "सब-मरीन" नाम के धूम्रपोतों का जगह जगह पर उल्लेख मिलता है। ये धूम्रपोत पानी के ऊपर ही नहीं, भीतर भी चलते हैं। यों तो और धूम्रपोतों की तरह ये सदा समुद्र के ऊपर ही रहते हैं, परन्तु आवश्यकता होने पर, पानी के भीतर इन्हें डुबो कर, बिना किसी की नज़र पड़े, नीचे ही नीचे, जहाँ इच्छा होती है, ले जाते हैं।
बीच में ये मोटे होते हैं। बीच की मुटाई दोनों तरफ को धीरे धीरे कम होती जाती है। अन्त को दोनों छोरों पर बहुत ही कम हो जाती है। ये सौ डेढ़ सौ फीट लम्बे होते हैं! वजन इनका तीन हजार से ले कर पाँच हजार मन तक होता है। इनके ऊपर सब तरफ लोहे की मोटी चादर जड़ी रहती है। ये पोत सब तरफ से बन्द रहते हैं। केवल बीच में एक द्वार रहता है; उसी से आदमी भीतर बाहर जाते आते हैं। जब इन पोतों को पानी के भीतर डुबकी लगाने की ज़रूरत पड़ती है, तब यह दरवाज़ा भी बन्द कर दिया जाता है। वह इतना
पक्का बैठ जाता है कि पानी का एक बूँद भी भीतर नहीं
जा सकता।
पानी के भीतर ले जाने के पहले इन धूम्रपोतों का वज़न अधिक करने की ज़रूरत पड़ती है। बिना उनका भारीपन अधिक हुए वे पानी के भीतर नहीं ठहर सकते। इस कारण इनके भीतर एक खास जगह में कुछ छेद रक्खे जाते हैं। वे बन्द रहते हैं। ज़रूरत पड़ते ही वे सब खोल दिये जाते हैं। उनकी राह से समुद्र का पानी भीतर आ जाता है और जहाज का वज़न बढ़ जाता है। यह पानी लोहे के बड़े बड़े पीपों में भरता है, जो इसी काम के लिए रहते हैं। इसके सिवा और भी कुछ ऐसा प्रबन्ध रहता है जिससे ये पोत नीचे को और भी अधिक गहरे पानी में पहुँचाये जा सकते हैं; अथवा आवश्यकता होने पर ऊपर उठाये जा सकते हैं।
जैसे एंजिन मोटर-गाड़ियों में लगते हैं, वैसे ही इनमें भी लगते हैं। इनमें भी पेट्रोलियम नाम का तेल जलाया जाता है। उसी से वे चलते हैं। पानी काटने के लिए मामूली अग्नि- बोटों में जैसे पंखे रहते हैं, वैसे ही इनमें भी पीछे की ओर रहते हैं।
पाठकों को यह सन्देह हो सकता है कि यदि ये पोत सब
तरफ से बन्द रहते हैं तो पानी के भीतर आदमी, बिना हवा
के, जी कैसे सकता है ? परन्तु अर्वाचीन विज्ञान ने इस तरह
की विघ्न-बाधाआ को दूर कर दिया है। प्रत्येक धूम्रपोत में कोई
बारह आदमी रहते हैं। उनके श्वासोच्छ्वास के लिए निर्मल
वायु दरकार होती है। ऐसी वायु बड़े बड़े पात्रों में खूब दबाकर
भरी जाती है। वे पात्र पोत के भीतर एक स्थान-विशेष में
रक्खे रहते हैं । उन्हीं से थोड़ी थोड़ी वायु बाहर निकला करती
है। वही श्वासोच्छ्वास के काम आती है। जो वायु श्वास से
खराब हो जाती है, उसे पम्पों में भर कर बाहर समुद्र के पानी
में निकाल देते हैं। यह व्यवस्था बड़ी चतुरता और खूब समझ
बूझ कर की जाती है। तथापि ऐसी बन्द जगह में रहने की
आदत डालने के लिए खलासियों को बहुत दिन तक वहाँ
रहना पड़ता है।
पानी के भीतर चलनेवाले इन धूम्रपोतों का मुख्य काम
यह होता है कि लड़ाई के समय शत्रु के लड़ाकू जहाज़ों पर
टारपीडो नामक एक भयङ्कर नौका की टक्कर मार कर ये उन्हें
उड़ा देते हैं। अच्छा, तो ये धूम्रपोत लड़ाई के समय पानी के
भीतर चलते हैं और लड़ाकू जहाज़ पानी के ऊपर। फिर इन
को यह कैसे मालूम हो जाता है कि शत्रु का जहाज कहाँ पर
है ? इसके लिए एक बड़ी ही विलक्षण युक्ति निकाली गई है।
वह युक्ति पेंरिओस्कोप नामक एक यंत्र का आविष्कार है।
धूम्रपोत की पीठ पर एक लम्बी नली रहती है। वह खड़ी लगी
रहती है। उसके ऊपर एक काँच रहता है। पानी के भीतर
धूम्रपोत के चले जाने पर भी इस नली का अग्र भाग पानी के
ऊपर निकला रहता है। आस-पास के पदार्थ-समुदाय के
ऊपर से आनेवाले प्रकाश-किरण इस नली के अग्र भागवाले
काँच पर प्रतिफलित हो कर नली की राह से पोत के भीतर
चले जाते हैं। वहाँ कागज़ का एक तख्ता फैला रहता है।
उस पर समुद्र-तल के आसमंतद्भाग का प्रतिबिम्ब पड़ता है।
उससे यह साफ मालूम हो जाता है कि जिस जहाज़ पर टार-
पीडो मारना है, वह कहाँ पर है। यह पेरिओस्कोप मानों इस
धूम्रपोत की आँख है। टारपीडो मारने का काम भी दबा कर
रखी गई हवा से किया जाता है। टारपीडो छोड़ने के बाद,
अथवा आवश्यकता होने पर यो भी, धूम्रपोत को पानी के
ऊपर लाने के लिए, भीतर भरे हुए पानी के पीपों को खाली
करना पड़ता है। वह सारा पानी पम्पों से बाहर निकाल दिया
जाता है। यह काम भी दबा कर रक्खी गई हवा की सहायता
से होता है।
लड़ाकू जहाज़ पानी के ऊपर रहता है, सब-मरीन धूम्र-
पोत पानी के भीतर। इस दशा में टारपीडो को इस तरह
छोड़ना कि वह ठीक निशाने पर लगे, बड़ा कठिन काम है।
बहुत सोच समझ कर और हिसाब लगा कर भीतर से टार-
पीडो की वार की जाती है। पेरिओस्कोप से जहाज़ का
स्थान तो जरूर मालूम हो जाता है, परन्तु ठीक उसी जगह
पर टारपीडो मारने से वह जहाज पर नहीं लगती। जहाज़
समुद्र के ऊपर रहता है और चलता जाता है। उसका वेग
समुद्रान्तर्गामिनी सब-मरीन के वेग की अपेक्षा कहीं अधिक
होता है। अतएव जहाज़ और सब-मरीन के वेग, तथा टार
पीडो के वेग का भी हिसाब लगा कर, जहाज़ के कुछ दूर
आगे लक्ष्य बाँध कर निशाना लगाया जाता है। हिसाब ठीक
होने से टारपीडो की ठोकर जहाज़ पर लगती है। ठोकर
लगते ही टारपीडो का स्फोट होता है और जहाज़ के टुकड़े
टुकड़े होकर वह डूब जाता है। निशाना चूकने से टारपीडो
का प्रहार व्यर्थ जाता है।
इस सब-मरीन धूम्रपोत का अन्तर्भाग मनुष्य की कल्पना-
शक्ति का बड़ा ही उत्कृष्ट उदाहरण है। पर खेद इस बात का
है कि यह शक्ति युद्ध में मनुष्यों का संहार करने के काम में
लाई जाती है। इस पोत के भीतर वायु-परीक्षक यन्त्र रहते
हैं। पानी के भीतर पोत के जाने पर यन्त्रों की सहायता से
वायु की परीक्षा की जाती है कि वह श्वासोच्छ्वास के लिए
यथेष्ट शुद्ध है या नहीं। तिस पर भी अनेक दुर्घटनायें होती
हैं। ऐसे पोत यदि कदाचित् समुद्र के ठेठ तल-प्रदेश तक
पहुँच जाते हैं, तो फिर उनको ऊपर उठाना कठिन हो जाता
है। वे जहाँ के तहाँ ही पड़े रह जाते हैं और तद्भत मनुष्यों
के प्राण गये बिना प्रायः नहीं रहते। उनको ऊपर निकालने
के लिए एक विशेष प्रकार की अलग ही नौकायें बनाई गई
हैं। तथापि उनकी सहायता से भी मनुष्यों के प्राण बहुत कम
बचते हैं। ऐसा प्रसङ्ग पड़ने पर इन सब-मरीन धूम्रपोतों के
भीतर के मनुष्यों की प्राण-रक्षा के लिए एक विलक्षण शिरस्त्राण
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तैयार किया गया है। उसमें श्वास से अशुद्ध हुई हवा आप-ही- आप शुद्ध हो कर फिर श्वासोपयोगिनी होजाती है। यदि किसी
दुर्घटना के कारण यह धूम्रपोत समुद्र की तह पर बैठ जाता है तो इसके भीतर के ख़लासी इस शिरस्त्राण को सिर पर बाँधते हैं । उस पर “लाइफ-बेल्ट" नाम का एक पट्टा लगा रहता है। वह कभी डूबता नहीं, सदा पानी पर तैरा ही करता है। शिरस्त्राण को सिर पर रख कर ख़लासी इस पट्टे को बाँधते हैं। फिर वे सब-मरीन का दरवाज़ा खोल देते हैं। ऐसा करने से वे आप ही आप ऊपर को उठते हैं और पानी की सतह पर आ जाते हैं।
आज तक इन सब-मरीन पोतों पर ऐसे तारयंत्र न थे जिनके द्वारा समुद्र-तट पर रहनेवाले अधिकारियों, अथवा अपनी गवर्नमेंट के अन्यान्य जहाज़ों के अफसरों, से बातचीत की जा सके। परन्तु अब यह बाधा भी दूर हो गई है। अब बिना तार की तार-बर्की के यंत्र ऐसे पोतों पर भी रक्खे जाने लगे हैं। सब-मरीन की पीठ पर दो-दो तीन-तीन लकड़ियों को एकत्र कर के दो तीन जगह उन्हें बाँध कर खड़ा कर देते हैं। उन्हीं के ऊपर तार खींच कर लगा देते हैं। तार-यन्त्र पोत के भीतर रहते हैं । इस प्रबन्ध से सब-मरीन समुद्र के तल तक जा कर डूब ही क्यों न गई हो, उसके अधिकारी किनारे के अधिकारियों अथवा अन्य धूम्रपोतों से बात-चीत कर सकते हैं।
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के होते हैं। उनकी रचना गुप्त रक्खी जाती है। तथापि यहाँ पर उनका जो वर्णन किया गया है, उससे उनकी रचना आदि का बहुत नहीं, तो थोड़ा सा ही अन्दाजा अवश्य किया जा सकेगा।
कुछ समय से इस बात का विचार हो रहा है कि ऐसे धूम्रपोतों का उपयोग समुद्र के तल-देश की परीक्षा के लिए करना चाहिये। यदि ऐसा हो तो बहुत लाभ होने की सम्भा- वना है।
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