संग्राम  (1939) 
द्वारा प्रेमचंद

[ २९१ ]


दूसरा दृश्य
(स्थान—शहरकी एक, गली, समय—३ बजे रात, इन्स्पेक्टर
और थानेदारकी चेतनदाससे मुठभेड़।)

इन्स्पेक्टर—महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखानेकी तरफ जा रहा था। लाइये दूधके धुले हुए पूरे एक हजार कमीकी गुञ्जाइश नहीं,बेशीकी हद नहीं।

थानेदार—आपने जमानत न कर ली होती तो उधर भी हजार-पांच सौपर हाथ साफ करता।

चेतनदास—इस वक्त मैं दूसरी फिक्रमें हूं। फिर कभी आना।

इन्स्पेक्टर—जनाव, हम आपके गुलाम नहीं हैं जो बार-बार सलाम करनेको हाजिर हों। आपने आजका वादा किया था। वादा पूरा कीजिये। कील व कालकी जरूरत नहीं।

चेतन—कह दिया मैं इस समय दूसरी चिन्तामें हूँ। फिर इस सम्बन्धमें बातें होंगी। [ २९२ ]इन्स०—आपका क्या एतबार, इसी वक्तकी गाड़ीसे हरद्वारकी राह लें। पुलिस के मुआमिले नकद होते हैं।

एक सिपाही—लाओ नगद नारायन निकालो। पुलुससे ईफेरफार न चल पइ है। तुमरे ऐसे साधुनका इहाँ रोज चराइत है।

इन्स्पेक्टर—आप हैं किस गुमानमें। यह चालें अपने भोले भाले चेले चापड़ोंके लिये रहने दीजिये जिन्हें आप नजात देते हैं। हमारी नजातके लिये आपके रुपये काफी हैं। उससे हम फरिश्तोंको भी राहपर लगा लेंगे। दारोगाजी, वह शेर आपको याद है।

दारोगाजी—हां, ऐ जर तू खुदा नई, बलेकिन बखुदा
हाशा रब्बी व फाज़िउल हाजाती।

इन्सपेक्टर—मतलब यह है कि रुपया खुदा नहीं है लेकिन खुदाके दो सबसे बड़े औसाफ उसमें मौजूद हैं। परवरिश करना और इन्सानकी जरूरतोंको रफ़ा करना।

चेतनदास—कल किसी वक्त़ आइयेगा।

इन्स्पेक्टर—(रास्तेमें खड़े होकर) कल आनेवालेपर लानत है। एक भले आदमीकी इज्ज़त खाकमें मिलवाकर अब आप यों झांसा देना चाहते हैं। कहीं साहब बहादुर ताड़ जाते तो नौकरीके लाले पड़ जाते। [ २९३ ]चेतनदास—रास्तेसे हटो (आगे बढ़ना चाहता है)

इन्स्पेक्टर—(हाथ पकड़कर) इधर आइये, इस सीनाजोरीसे काम न चलेगा।

(चेतनदास हाथ झटककर छुड़ा लेता है और इन्स्पेक्टरको
जोरसे धक्का मारकर गिरा देता है)

दारोगा—गिरफ्तार कर लो। रहजन है।

चेतन—अगर कोई मेरे निकट आया तो गर्दन उड़ा दूँगा।

(दारोगा पिस्तौल उठाता है, लेकिन पिस्तौल नहीं चलती,

चेतनदास उसके हाथसे पिस्तौल छीनकर उसकी

छातीपर निशाना लगाता है)

दारोगा—स्वामीजी खुदाके वास्ते रहम कीजिये। ताज़ीस्त आपका गुलाम रहूँगा।

चेतनदास—मुझे तुझ जैसे दुष्टोंकी गुलामीकी जरूरत नहीं। (दोनों सिपाही भाग जाते हैं। थानेदार चेतनदासके पैरोंपर गिर पड़ता है) बोल कितना रुपये लेगा।

थानेदार—महाराज, मेरो जो बख्श दीजिये। जिन्दा रहूँगा तो आपके एकबालसे बहुत रुपये मिलेंगे।

चेतनदास—अभी गरीबोंको सतानेकी इच्छा बनी हुई है। तुझे मार क्यों न डालूं। कमसे कम एक अत्याचारीका भार तो पृथ्वीपर कम हो जाय। [ २९४ ]थानेदार—नहीं महाराज, खुदाके लिये रहम कीजिये। बाल बच्चे दाने बगैर मर जायंगे। अब कभी किसी को न सताऊँगा। अगर एक कौड़ी भी रिश्वत लूं तो मेरे अस्लमें फर्क समझियेगा। कभी हरामके मालके करीब न जाऊंगा।

चेतन—अच्छा तुम इस इन्स्पेक्टरके सिरपर पचास जूते गिनकर लगावो तो छोड़ दूं।

थाने०—महाराज, वह मेरे अफ़सर हैं। मैं उनकी शानमें ऐसी बेअदबी क्योंकर कर सकता हूँ। रिपोर्ट कर दें तो बर्खास्त हो जाऊं।

चेतन—तो फिर आंखें बन्द कर लो और खुदाको याद करो, घोड़ा गिरता है।

थाने—हजूर जरा ठहर जायं, हुक्मकी तामील करता हूं। कितने जूते लगाऊं?

चेतन—५० से कम न ज्यादा।

थाने०—इतने जूते पड़ेंगे तो चांद खुल जायगी। नाल नगी हुई है।

चेतन—कोई परवा नहीं। उतार लो जूते।

(थानेदार जूते पैरसे निकाल कर इन्स्पेक्टरके सिरपर लगाता है,
इन्स्पेक्टर चौंककर उठ बैठता है, दूसरा जूता फिर पड़ता है)

इन्स्पेक्टर-शैतान कहींका, मलऊन। [ २९५ ]थाने०—मैं क्या करूं? बैठ जाइये ५० लगा लूं। इतनी इनायत कीजिये! जान तो बचे।

(इन्स्पेक्टर उठकर थानेदारसे हाथापाई करने लगता है, दोनों
एक दूसरे को गालियां देते हैं, दांत काटते हैं)

चेतनदास—जो जीतेगा उसे इनाम दूंगा। मेरी कुटीपर आना। खूब लड़ो, देखें कौन बाजी ले जाता है।

(प्रस्थान)

इन्स०—तुम्हारी इतनी मजाल! बर्खास्त न करा दिया तो कहना।

थाने०—क्या करता, सीनेपर पिस्तौलका निशान लगाये तो खड़ा था।

इन्स०—यहां कोई सिपाही तो नहीं है?

थाने०—वह दोनों तो पहले ही भाग गये।

इन्स०—अच्छा, खैरियत चाहो तो चुपकेसे बैठ जाओ और मुझे गिनकर सौ जूते लगाने दो, वरना कहे देता हूँ कि सुबहको तुम थाने में न रहोगे। पगड़ी उतार लो।

थाने०—मैंने तो आपकी पगड़ी नहीं उतारी थी।

इन्स०—उस बदमाश साधुको यह सूझी ही नहीं।

थाने०—आप तो दूसरे हाथपर उठ खड़े हुए थे।

इन्स०—खबरदार, जो यह कलमा फिर मुँहसे निकला। [ २९६ ]दोके दस तो तुम्हें जरूर लगाऊंगा। बाकी फ़ी पापोश एक रुपयेके हिसाबसे माफ़ कर सकता हूँ।

(दोनों सिपाही आ जाते हैं, दारोगा सिरपर साफा रख लेता है,

इन्स्पेक्टर क्रोधपूर्ण नेत्रोंसे उसे देखता है और सब

गश्तपर निकल जाते हैं)