संगीत विशारद
संगीत विशारद
इन्टरमीजियेट तथा बी. म्यूज़ (सङ्गीत विशारद
के विद्यार्थियों के लिये
लेखक––
'वसन्त'
सम्पादक––
लक्ष्मीनारायण गर्ग
प्रकाशक––
प्रभूलाल गर्ग
संगीत कार्यालय, हाथरस ( उ. प्र.)
(सर्वाधिकार प्रकाशक द्वारा सुरक्षित)
Published by Prabhulal Garg
and Printed by Th Bharat Singh
AT THE
"SANGEET PRESS"
HATHRAS (U P)
प्राक्कथन
सङ्गीत का विद्यार्थी वर्ग बहुत दिनों से एक ऐसी पुस्तक की मांग कर रहा था, जिसमें इन्टर तथा विशारद की परीक्षाओं में आने वाली थ्योरी (शास्त्रीय विवेचन) हो। वास्तव में उनकी यह मांग उचित भी थी; क्योंकि सरल हिन्दी भाषा में अभी तक कोई ऐसी पुस्तक प्राप्य नहीं थी, जिसमें ऐसे परीक्षार्थियों को मनवांछित सामग्री प्राप्त हो सके। विद्यार्थियों की यह कठिनाई प्रकाशक की दृष्टि में भी थी और वह चाहता था कि इसे तुरन्त दूर कर दिया जाय; किन्तु किसी भी निर्माण कार्य की योजना को क्रियात्मक रूप देने में समय तो लगता ही है। फलस्वरूप 'सङ्गीत विशारद' के प्रकाशन में भी वर्षो का समय लग गया।
भातखण्डे सङ्गीत महाविद्यालव, गांधर्व महाविद्यालय मंडल, माधव सङ्गीत महाविद्यालय, प्रयाग सङ्गीत समिति आदि शिक्षण केन्द्रों के पाठ्यक्रमों के आधार पर इस ग्रंथ की रचना की गई है, अतः विभिन्न केन्द्रों में परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को इससे यथेष्ट सहायता प्राप्त होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
इस पुस्तक में प्रयुक्त स्वर और ताल चिन्ह यद्यपि भातखंडे पद्धति के अनुसार ही हैं तथापि विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिये विष्णु दिगम्बर पद्धति के स्वर-ताल चिन्हों का, स्पष्टीकरण भी यथा स्थान कर दिया गया है। राग और तालों का विवरण देते समय इस बात की पूर्ण चेष्टा की गई है कि शिक्षण केन्द्रों के पाठ्यक्रमानुसार (प्रथम वर्ष से पंचम वर्ष तक) सभी राग और तालों का इस पुस्तक में समावेश हो जाय। इस प्रकार यह पुस्तक विशेषतः 'सङ्गीत विशारद' के विद्यार्थियों के लिये मां सरस्वती का वरदान स्वरूप बन गई है। इस पुस्तक के अध्ययन के बाद परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने की पूर्ण आशा है ही, साथ ही भारतीय सङ्गीत के शास्त्रीय ज्ञान का एक विशाल कोष भी विद्यार्थियों को प्राप्त हो सकता है, जिसकी उन्हें अपने सांगीतिक जीवन में पग-पग पर आवश्यकता पड़ेगी।
पुस्तक के प्रकाशन के उपरान्त मेरा परिश्रम पूर्ण तो हो गया, किन्तु इसकी सफलता अभी शेष है। यदि विद्यार्थी वर्ग को इस पुस्तक के अध्ययन से यथोचित लाभ होता है और वे इसे हृदय से अपनाते हैं तो वह सफलता भी दूर नहीं।
अन्त में उन लेखक महानुभावों के प्रति भारी कृतज्ञता प्रकट करते हुए मैं उन्हें अपना हार्दिक धन्यवाद प्रेषित करता हूँ। जिन विद्वानों के विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों का अवलोकन और मन्थन करने के पश्चात इस पुस्तक की रचना की गई है उन ग्रन्थ और ग्रन्थकारों के नाम इस प्रकार है:––
१––सङ्गीत रत्नाकर (शार्ङ्गदेव)
२––सङ्गीत दर्पण (दामोदर)
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- सङ्गीत विशारद *
४-सगीत सीकर, (बी० एन० भट्ट) ५-सङ्गीत पारिजात (अहोनल) . '६-क्रमिक पुस्तक मालिका (भातसण्डे ) ७- विज्ञान (पटवर्धन) ८-सङ्गीत कौमुदी (नी० एम० निगम) -सगीत शास्त्र (एम० एन० सम्मना) १०–सङ्गीत शास्त्र विज्ञान (बद्री प्रसाद शुक्ल) ११-मगीत वीथिका (प्रजेश वन्धोपाध्याय) १२-सङ्गीत प्रदीप (कु. बुलबुल मित्रा) १३-अप्रकाशित राग (ज० दे० पसी) १४-सगीत कला विहार (मासिक) १५-सगीत ( मामिक) १६-भातग्पण्डे सगीत शास्त्र (मातरयण्टे) १७-ताल अक (विशेपाक सद्गीत) १०- सगोत मागर (विशेषाफ सहीत) १६-मारिफुल्लगमात (राजा ननाच अली) २०-वाद्य सङ्गीत अक (विशेषाक "मगीत") -~-आदि-आदि-- t विजया दशमी पम्वत् २०११ वि० विनीत - 'वसन्त' ________________
জ্বলজছঞ্জাখিলছি। لع لل श्रुति म ८ः सफल संगीतज्ञ बनने के उपकरण ... दस थाटों के सांकेतिक चिन्ह ... ६५ भारतीय संगीत का इतिहास ... १७ ७२ थाट कैसे बनते हैं ... ... ६५ संगीत के इतिहास का काल विभाजन ... १८पूर्वाद्ध और उत्तराद्ध के ३६ थाट ... ६६ अति प्राचीन ( वैदिक काल ), प्राचीनकाल १६ व्यंकटमखी पं० के कल्पित स्वरों के पूर्वार्ध ६७ मध्यकाल (मुस्लिम काल) __... २१ उत्तरी संगीत पद्धति के १२ स्वरों से ३२ थाट ६८ आधुनिककाल (अंग्रेजी राज्य) ... २७ हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के दस थाट औरसंगीत प्रचार का अाधुनिककाल २८ उनसे उत्पन्न कुछ राग ... .. ७१ स्वतन्त्र भारत में संगीत .. ३० व्यंकटमखी के ७२ मेल . ... ७३ संगीत, स्वर, तीव्र और कोमल ... ३१ व्यंकटमखी पं० के १६ थाट और उनके स्वर ७४ शुद्ध और विकृत स्वर, दक्षिणी उत्तरी सङ्गीत पं० व्यंकटमखी के जनकमेल तथा जन्य राग - के भेद ... ... ... ३२ । रोगलक्षणम् के ७२ कर्नाटकी मेल उत्तरी और दक्षिणी स्वरों की तुलना .:: ३३ स्थान, सप्तक ... नाद ... ... ... ३५ वर्ण .. ... ... .. ... ३६ अलंकार, राग .. ... स्वरों में श्रुतियों को बांटने का नियम ... ३७/ रागों की जाति - ... श्रुति और स्वर तुलना... ... ३८ ग्राम श्रुति स्वरूप .. .. ... ३६ प्राचीन ग्रन्थों में २२ श्रुतियों पर तीन ग्राम प्राचीन तथा मध्यकालीन ग्रन्थकारों की श्रुतियां ४० अाधुनिक ग्राम चक्र • अाधुनिक ग्रन्थकारों की श्रुतियां ... ४२ मूर्च्छना ... ? प्राचीन व आधुनिक श्रुति स्वर विभाजन ४३ षड़ज ग्राम की मूर्च्छना २२ श्रुतियों पर अाधुनिक पद्धति के १२ मध्यम ग्राम की मूर्च्छना " स्वरों की स्थापना .. ... ४४ गंधार ग्राम की मूर्च्छना तुलनात्मक विवेचन ... . ... ४५ मूर्च्छनाओं की तुलनात्मक परिभाषा स्वर स्थान और आन्दोलन संख्या ... ४७ राग के दस लक्षण /स्वरों की आन्दोलन संख्या निकालना ... ४७/ राग भेद स्वरों का गुणान्तर ... ४७ आश्रय राग आन्दोलन संख्या से लम्बाई निकालना ... ४८ दस आश्रय राग वीणा के तार पर श्रीनिवास के स्वर ... ४६ राग गाने का समय विभाजन । श्रीनिवास के विकृत स्वर ... ५३८ रागों के तीन वर्ग श्रीनिवास के ५ विकृत स्वर - ५५ सन्धिप्रकाश राग मञ्जरीकार के १२ स्वर स्थान ५७ रे ध शुद्ध वाले राग वीणा के तार पर .." . .. ५८ कोमल ग, नि वाले राग ... ., १०० • मतैक्य ... ... ... ५८ तीव्र में वाले राग .... १०१ मतभेद ... ... .... ५६ सङ्गीत के दिन रात । ... १०३ भारतीय तथा योरोपीय स्वर सम्वाद ... ६० अध्वदर्शक स्वर का महत्व ... ... १०४ थाट पद्धति का विकास ... ... ६२ हिं० सं० प० के ४० सिद्धान्त ... १०६ وہ لہ لہ » WWW عر عر م ६७ 0 Udd० ० 0 ० ० ________________
- सङ्गीत विशारद *
१५८ १३० १३२ राग में विवादी स्वर का प्रयोग . ११० प्राचीन मिद्धान्त १४४ राग रागिनी पद्धति ११२ वाटत, जिगर, हिमाय १४६ गायकों के गुण अवगुण .. . १५५ स्वरलिपि पद्धति १४७ नायक, गायक, क्लावन्त, गाधर्व १२० विष्णुदिगवर पद्धति के स्वरलिपि चिन्ह पहित,सगीत शास्त्रकार, संगीत शिक्षक,कबाल १२० मातरसटे पद्धति के स्वरलिपि चिन्ह १४६ अताई गायक, कत्यक, उत्तम वाग्गेयकार १२१/मनीत पोर रस १५० मध्यम और अधम वामोयकार १२३ प्रथम वर्ष से पचम वर्ष तक के ६० रागी गीत, गाधर्व, गान तथा मार्ग देशी सगीत १२४ का वर्णनग्रह, यश और न्यास १२५ बिलावल, अल्हैयापिलावल, समाज , १५४ गायन शैलिया-ध्रुवपट ] यमन, काफी १५५ ध्रुवपद की चार वाणी ૬ भैरवी, भूपाली, सारग (शुद्ध) १५६ चार वाणियों के प्रधान लक्षण १२७ रिहाग, हमीर १५७ १२८ देश, मैरव टप्पा, ठुमरी १२६ भीमपलासी, वागेश्री १५६ तराना, निवट, होरो-धमार, गजल तिलक्कामोद, श्रासापरी, केदार १६० कव्वाली, दादरा, सादरा, खमसा । १३१ देशकार, तिलग १६१ लाग्नी, चतुरग १३१ हिडोल, मारवा, सोहनी २६२ सरगम, रागमाला, लक्षण गीत जौनपुरी, मालकोंस १६३ मजन गीत, कीर्तन, गौत, कजली १३२ छायानट, कामोट, बसन्त १६४ चिती, लोक गीत शक्रा, दुर्गा (समाज याद) १६५ श्राल्हा, बारहमासी, सावनी, माड १३४ दुर्गा (विलाल थाट ), शुद्धकल्याण १६६ संगीतात्मक रचनाओं के नियम- ) गौड सारग, जयजयवन्ती १६७ स्वर स्यान, रूपकालाप पूर्वी, पूरियाधनाश्री 'बालति, आविर्मान-तिरोभाव, स्याय, परज, पूरिया, सिदूरा १६६ मुख चालन, श्रातिप्तिका, निबद्ध ! १३६ कालिगडा, बहार २७० । अनिबद्ध गान अडाना, धानी १७१ विदारी, अल्पत्व, बहुत्व १३७ माड, गौडमल्लार, मिझोटी १७२ पकड, मींड, सूत, अान्दोलन, गमक, कण १३८ श्री राग, ललित तान, शुद्धतान, क्टतान, मिश्रतान, १३६ मिया मल्लार, दर्बारी कानडा १७४ सटके की तान, भटके की तान, वक्रतान १३६ तोडी, मुल्तानी १७५ अचरक्तान, सरोकतान, लहततान, सपाटतान १३६ रामकली, विमास (भैरव याट) १७६ गिटकरी तान, जबड़े की तान, हलक तान १४० पीलू , अासा, पटदीप १७७ पलट तान, बोलवान, अालाप, बदत १४०, रागेश्री, पहाडी १७८ आधुनिक अालाप गान-स्थायी १४१ जोगिया, मेघमल्लार १७६ अन्तरा, सचारी, आमोग, पालाप में ताल, मात्रा, विलम्बितलय, मध्यलय द् तलय १८० लय की गत १४२ ठेका, दुगुन, तिगुन, चौगुन गमक के प्रकार १४३ अाडी, कुवाडी, वियाडी, सम १५१ रागो का टस विभागों में वर्गीकरण करने का साली, मरी, यति, श्रावृति ... १८२ १३३ १३५ १६८ १८१ ________________
- सङ्गीत विशारद *
- - ..... २०३ २०६ २०७ २०७ ढंग .... २१० २ पर्ब, कायदा, टुकड़ा ... ... १८२ वाद्य यन्त्र परिचय, वाद्यों के प्रकारपल्लू , चौपल्ली, पल्टा, तीया .. १८३ सितार, संक्षिप्त इतिहास मुखड़ा, मौहरा, लग्गी, लड़ी, पेशकारा। १८३ सितार के सात तार, अङ्ग वर्णन ... २०४ श्रामद, बोल, उठान, नवहक्का, रेला | सितार मिलाना ... २०५ परन, ताल के दस प्राण, काल ... १८४ चलथाट और अचल ताल ....... २०६ क्रिया, सशब्द क्रिया, निशब्द क्रिया ... १८४ सितार के बोल कला, मार्ग, अंग, प्रस्तार और जाति... १८४ गत, मसीदखानी, रजाखानी ग्रह, लय विवरण ... ... १८५ जोड़ बालाप, ज़मज़मा, झाला लय की व्याख्या और उसे लिपिबद्ध करने का ... कृन्तन, मींड, सूत, तबला ... ... १८५ तबले के घराने २०८ मध्यलय, विलम्बितलय और अति दाहिना और बांया, तबला मिलाना २०६ विलम्बितलय तबला के दस वर्ण दुगुनलय, तिगुनलय ... ... मृदङ्ग (पखावज) उत्पत्ति, बनावट ... चौगुन, अठगुन, क्वाड़ी, ... ... १८८ बोल, खुले बोल, बंद बोल, थाप ... प्राडीलय, वियाड़ीलय ... ... १८६ तानपूरा, अंग वर्णन, तार मिलाना ... २१३ तानपूरा छेड़ना, बैठक ... उत्तरी सङ्गीत पद्धति की मुख्य ताले ... २१३ वॉयलिन, बेला उत्पत्ति, बेला के विभिन्न भाग २१४ कहरवा, दादरा, झपताल, चौताल ... १६० तार मिलाना ... ... ... २१५ त्रिताल, आड़ा चौताल, तीव्रा इसराज, मुख्य अंग, तार, परदे, बांसुरी २१५-२१६ सूलताल, धमार, रूपक, इकताला ... यन्त्र वादकों के गुण दोष " २१८ दीपचंदी, पंजाबी, मत्तताल तिलवाड़ा, धीमा इकताला, झूमरा ... सङ्गीत विद्वानों का संक्षिप्त परिचय १६२ ब्रह्मताल, गणेशताल, विक्रमताल ... गजझपा, शिखरताल, यति शेखर शाङ्ग देव, अमीर खुसरो .. ... २२० चित्रा, वसंत ताल, विष्णुताल गोपाल नायक .. मणिताल, झपाताल, रुद्रताल ... १६४ स्वामी हरिदास ... ... । ठेका टप्पा, अद्धा त्रिताल, सवारी ... १६४ तानसेन लक्ष्मीताल, पश्तो, कव्वाली, शूलफाक्ता. १६५ बैजूबावरा, सदारंग-अदारंग बालकृष्ण बुवा (इचलकरंजीकर ) ... २२६ दक्षिण (कर्नाटकी) ताल पद्धति ... १६६ रामकृष्ण वझे ... ... २२७ सात तालों के पंचजाति भेदानुसार ३५ प्रकार १९७ अब्दुल करीमखां, २२८ अठताल के २५ प्रकार ... .. १६४ इनायतखां ... ... • कर्नाटकी पद्धति की सात तालों को ... - भातखंडे, विष्णुदिगम्बर ... ... । हिन्दुस्थानी पद्धतिमें लिखने का कायदा... २०१ २०० रागों का शास्त्रीय विवरण १६० १६१ १६१ . १६२ जयदेव سه سه २२१ २२२ २२३ २२५ २२६ २२६ २३०