संगीत-परिचय भाग १/१७: भजन
पाठ १७
भजन
भजन नं. १
- पितु मातु सहायक स्वामी सखा, तुम ही इक नाथ हमारे हो।
- जिनके कछु और अधार नहीं, तिनके तुम ही रखवारे हो ।
- प्रतिपाल करो सगरे जग को, अतिशय करुणा उर धारे हो ।
- भूलि हैं हम ही तुम को, तुम तो हमरो सुधि नांहि विसारे हो ।
- उपकारन को कछु अन्त नहीं, छिन ही छिन जो विस्तारे हो।
- महाराज महा महिमा तुमरी, समझें बिरले बुद्धवारे हो।
- शुभ शांति निकेतन प्रेम निधे, मन मन्दिर के उजियारे हो।
- इस जीवन के तुम जीवन हो, इन प्राणन के तुम प्यारे हो ।
- तुम सों प्रभु पायें "प्रताप हरी" केहि के अब और सहारे हो ।
भजन तीन ताल
- तुम सों प्रभु पायें "प्रताप हरी" केहि के अब और सहारे हो ।
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अन्तरा
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भजन नं० २
( सरगम देखो भजन नं० १)
- उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
- अब रैन कहां जो सोवत है।
- जो जागत है, सो पावत है,
- जो सोवत है सो खोवत है।
- टुक नींद से अखियां खोल जरा,
- और अपने प्रभू से ध्यान लगा।
- यह प्रीत करन की रीत नहीं,
- प्रभु जागत है, तू सोवत है।
- जो कल करना सो, आज कर ले,
- जो आज करना सो, अब कर ले।
- जब चिड़ियन ने चुग खेत लिया,
- फिर पछताये क्या होवत है।
- नादान भुगत करनी अपनी,
- ऐ पापी ! पाप में चैन कहां ?
- जब पाप की गठरी सीस धरी,
- फिर सीस पकड़ क्यों रोवत है ?
भजन नं.३
सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना ।।
धूए' से तुम सारे सीखो, ऊँची मंजिल जाना ।
वायु के झोकों से सीखो, हरकत में ले आना।
वृक्षों की डाली से सीखो, फल पाकर झुक जाना।
मेंहदी के पत्तों से सीखो, पिस-पिस कर रङ्ग लाना॥
पत्ते और पेड़ों से सीखो, दुःख में धीर बंधाना ।
धागे और सुई से सीखो, बिछुड़े गले लगाना।।
मुर्गे की बोली से सीखो, प्रातः प्रभु गुण गाना।
पानी की मछली से सीखो, धर्म के हित मर जाना ।।
भजन नं.३
ताल कहरवा
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भजन नं.४
- तेरे पूजन को भगवान, बना मन मन्दिर आलीशान
- किसने देखी तेरी माया
- किसने भेद तेरा है पाया
- हारे ऋषि -मुनि कर ध्यान ।। बना ...
- यह संसार है तेरा मन्दिर
- तू ही रमा है इसके अन्दर
- करते ऋषि-मुनि सब गान ।। बना ...
- तू हर गुल में,तू बुल-बुल में
- तू हर शाख में हर पातन में
- तू हर दिल में है भगवान ।। बना ...
- तू ही बन में, तू ही मन में
- तू ही रमा है इक कण-कण में
- तेरा रूप अनूप महान ।। वना ...
- तूने राजा रंक बनाये
- तूने भिक्षुक राज बिठाये
- तेरी लीला ईश महान !! बना ...
भजन नं.४
स्थाई
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अन्तरा
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