वेनिस का बाँका/षोड़श परिच्छेद

वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १०१ से – १०३ तक

 

षोड़श परिच्छेद।

इस समय जब कि वेनिस में प्रति दिन एक नवीन घटना घटित होती थी रोजाविला की माँदगी में कुछ भी न्यूनता न थी बरन वह दिन दूनी रात चौगुनी होती थी। उसके रोग की वास्तवता से कोई अभिज्ञ न था परन्तु प्रगट में सब लोग देखते थे कि उसकी दशा हीन होती जाती है, और वह नवयौवन, वह सुन्दर स्वरूप, और वह माधुर्य्य सब बिनष्ट हुआ जाता है! प्रेम महाशय की सहायता से अब उसकी यहाँ तक दशा पहुँची थी कि जीवन भारी था। फ्लोडोआर्डो का सजीला डील, हास्य-विशिष्ट मुख और तिरछी चितवन उसकी दृष्टि में वेढंग समा गई थी और वह प्रत्येक समय उसकी दृष्टियों में फिरा करता था। परन्तु यदि रोजाविला की यह दशा थी तो फ्लोडोआर्डो की दशा इससे कब उत्तम हो सकती थी। उसने सकल सहवासों से विरक्ति ग्रहण की थी, केवल निजायतन से सम्बन्ध रखता था और अपने विचारोंके सटीक अथवा यथावत् रखने के लिये दूर दूर का अटन करता था, परन्तु जहाँ जाता था दुष्ट प्रेम छाया की भाँति पीछा न छोड़ता था। इस वार उसे गये हुये तीन सप्ताह हो चुके थे परन्तु किसी को यह न ज्ञात था कि वह किस नगर में है। उसकी अनुपस्थिति में मोनाल्डश्ची का राजकु- मार जिसका विवाह रोजाबिला के साथ निश्चित हो चुका था अपना परिणय करने के लिये वेनिस में आया परन्तु एक मास प्रथम महाराज को उसके आने का समाचार श्रवण कर जितना हर्ष होता अब वह शेष न था। इसके अतिरिक्त रोजाबिला भी रोगाक्रांत होने के कारण उस समागत से समागम नहीं कर सकती थी, और न उसको इतना समय प्राप्त हुआ कि वह निरोग हो जाने के उपरांत उसकी अभ्यर्थना करे क्योंकि वेनिस में आनेके छठे दिवस उसे लोगों ने एक मुख्य राज्योपवन में मृतक पाया। उसकी करवाल लहू भरी पड़ी थी और उसकी नोटबुक गुम थी, उसका केवल एक पत्र हस्तगत हुआ, जिसे किसीने उक्त पुस्तक से निकाल कर शोणित द्वारा यह लिख कर उसके वक्षस्थल पर लगा दिया था "जो पुरुष रोज़ाबिला के साथ पाणिग्रहण करने की आकांक्षो करेगा उसके लिये यही दण्ड उचित होगा" अबिलाइनो बांका"।

जब यह समाचार महाराज के कर्णगत हुआ तो उनकी संज्ञा नष्टप्राय हो गई, और वह शोकसे विह्वल होकर कहने लगे "हाय! अब मैं कहाँ पलायित हो कर जाऊँ, ऐसे दुस्समय में फ्लोआर्डो भी नहीं है, कि मेरा समाधान तो करता"। अब महाराज को अहर्निशि यही ध्यान था, कि किसी प्रकार फ्लोडोआर्डो यहाँ आजाता तो अतीवोत्तम होता, इसलिये कि ऐसी आपदो में उनकी सहायता करता। बारे परमेश्वर की अनुकंपा से उनकी मनोकामना सफल हुई, और फ्लोडोआर्डो यात्रा समाप्त करके फिर आया।

अंड्रियास―"प्रियवर! धन्य! अच्छे अवसर पर तुम आये, अगत्या तुम कभी मेरी दृष्टि से दूर न होना, मैं इस समय बिना आत्मरक्षक और सहायक का हो रहा हूँ, तुमने सुना होगा कि लोमेलाइनो और मान्फरोन"।

फ्लोडोआर्डो―(शोकितों कासा स्वरूप बनाकर) "मैं सब जानता हूँ"।

अंड्रियास―ऐसा ज्ञात होता है कि किसी महाराक्षस ने पुनर्जन्म ग्रहण किया है और अब वेनिसमें अबिलाइनो नाम रखकर मेरे सत्यानाश के लिये बद्धपरिकर है। अथवा प्रेत (शैतान) श्रृंखल तुड़ाकर पलायित हुआ है, और अब वेनिस में अविलाइनो कहलाकर मेरे उत्पीड़न में निरत है। परमेश्वर के लिये फ्लोडोआर्डो तुम सावधान रहना तुमारे पीछे मुझे प्रायः विचार हुआ है कि ऐसा न हो कि वह दुष्टात्मा मुझको तुमारे वियोग के संताप से संतप्त करे मुझे अभी तुमसे बहुत सी बातें करनी हैं इसलिये तुमको सन्ध्या समय तक ठहरना होगा। इस समय एक प्रदेश से एक माननीय व्यक्ति आये है उनसे समागम करने का मैंने यही समय नियत किया है, अतएव मैं समागम के कमरे में जाता हूँ परन्तु सन्ध्या को-"॥

वह अपनी बात समाप्त न करने पाये थे कि रोजाबिला निर्बलता के कारण शनैः शनैः पद रखती हुई आई! उसका जाज्वल्यमान मुख पीतवर्ण हो रहा था, और दुर्बलतासे नेत्रोंके आस पास गर्त्त से पड़ गये थे, परन्तु जब उसने फ्लोडोआर्डो को देखा तो आनन्द उद्रक की अधिकता से पाटलकुसुम कलिका समान विकसित हो गई। फ्लोडोआर्डो ने अपने स्थान से उठ कर अत्यन्त औचित्य के साथ उसकी वन्दना की और पुनः बैठ गया॥

अंड्रियास―"देखो तुम अभी न जाना, कदाचित् मुझे दो घड़ी में अवकाश मिलजाय, इस बीच में तुम मेरी प्राणोपम पुत्री रोजा बिला का जी वहलाओ, तुम्हारे पीछे वह वेचारी बहुत बीमार थी, और अभी गतदिवस पलँग पर से उठी है, मेरा बिचार है कि रोजाबिला को अभी इतनी शीघ्रता करनी उचित न थी।

यह कहकर महाराज तो आयतन के बाहर सुशोभित हुये और वह दोनों प्रेमी और प्रेयसी उक्त आयतन में एकाकी रह गये। रोज़ाबिला एक गवाक्ष के समीप जाकर खड़ी हुई कुछ कालोपरांत फ्लोडोआर्डो भी वहीं जा पहुँचा।