वेनिस का बाँका/एकविंशति परिच्छेद

वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ १२८ से – १३३ तक

 

एकविंशति परिच्छेद।

द्वितीय दिवस अरुणोदय काल ही से महाराज के प्रासाद में आमंत्रण का आयोजन आरम्भ हुआ। अंड्रि- यास को रात भर आतङ्क से निद्रा न आई, जैसे ही ऊषाकाल हुआ वह पर्यक से उठ खड़े हुये। रोजाबिलाने अपनी रात अत्यन्त उद्विग्नता के साथ समाप्त की, तमाम रात फ्लोडोआर्डो को ही स्वप्न में देखा की, चौंकने पर भी उसका स्वरूप उसकी दृष्टि के सम्मुख घूमता रहा। कामिला भी जिसने रोजाबिला को अपनी दुहिता समान पालन किया था, इसी चिन्ता में कि प्रातःकाल क्या हो क्या न हो बराबर जागती रही। वह भली भाँति जानती थी कि आज ही के दिवस पर रोजाबिला का भविष्यत निर्भर है। मुँह हाथ धोने उपरान्त कुछ काल पर्यन्त रोजाबिला अत्यन्त प्रसन्न बदन थी। कभी वह आला- पिनी बजाकर अपना चित्त प्रसन्न करती, और बहलाती कभी मैरवी का गान करके हृदय की व्यग्रता को निवारण करती, परन्तु जब मध्यान्ह का समय समीप आया, रोजाबिलो ने गाना बजाना त्याग कर आयतन में टहलना प्रारम्भ किया। ज्यों ज्यों दिन ढलता जाता रोजाबिला की व्यग्रता वृद्धि लाभ करती। तनिक तनिक सी ध्वनि उसके हृदय पर बाण का सा प्रभाव करती और बार बार उसे चौंका देती थी।

इस अवसर पर महाराज के प्रशस्त और विस्तृत प्रासाद में वेनिस के समस्त विख्यात व्यक्ति पाकर एकत्र होते जाते थे, यहाँ तक कि तृतीय प्रहर के समीप सम्पूर्ण स्थान पूर्ण हो गया। उस समय महाराज ने कामिला को आज्ञा दी कि वह रोजाबिला व्यक्ति चकित और चमत्कृतसा होकर एक द्वितीय का मुख अवलोकन करता था, पर यह कोई न कह सकता था कि पदा- तियों से और निमन्त्रण से क्या सम्बन्ध। सब से अधिक बुरी गति उन बिद्रोहियों की थी, कलेजाबल्लियों उछलता था मुख- पर हवाइयाँ छूट रही थीं, निर्जीव शरीर समान परिचालना हीन होकर वे शिर नीचा किये चुप चाप खड़े थे। कुछ देर बाद महाराज अपने स्थान से उठे और आयतन के बीचों बीच जाकर खड़े हुये, प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि उन्हीं पर थी।

अंड्रियास―'आपलोग हमारे इतने संरक्षण, और चौकसी पर आश्चर्य्य न करें क्योंकि यह निमन्त्रण से सम्बन्ध नहीं रखता। इसका कारण दूसरा है जिसको मैं आपलोगों के सामने वर्णन करता हूँ―आप लोगों ने अबिलाइनो का नाम सुना है, वही अबिलाइनो जिसने कुनारी का नाश किया, जिसने मेरे परमहितैषी मन्त्रदाताओं मानफरोन और लोमेलाइनो को ठिकाने लगाया, और अभी अल्प दिवस हुये कि मोनाल्डस्ची के राज- कुमार को जो हमारे यहाँ मेहमान आये थे मारा। वही अबि- लाइनो जिससे वेनिस के प्रत्येक निवासियों को घृणा है, जिसके निकट महत्व और मर्यादा कोई नहीं रखता, जो वृद्ध और युवा सब पर हाथ उठाने को उद्यत है। जिसने अद्यावधि वेनिस के विख्यात पुलीस को भी रास्ता बताया है-एक घण्टे के भीतर इसी आयतन में आप लोगों के सम्मुख आकर उपस्थित होगा।

सब लोग―(आश्चर्य्य से) 'ऐं' अबिलाइनो? अबिला- इनो बाँका?।

गानज़ेगा―(क्या अपने मन से)।

अंड्रियास―नहीं वह अपने मन से आने वाला पुरुष नहीं है। यह काम फ्लोडोआर्डो ने अपने ऊपर लिया है, चाहे जो कुछ हो वह अबिलाइनो को यहाँ लाकर अवश्य उपस्थित करेगा। एक उच्चकर्मचारी―मैं समझता हूँ कि फ्लोडोआर्डो अपनी प्रतिज्ञा कदापि पूरी न कर सकेगा, अबिलाइनो का पकड़ना तनिक टेढ़ी खीर है'।

द्वितीय कर्मचारी―'परन्तु कल्पना कीजिये कि उसने इस कार्य को सिद्ध किया, तो फ्लोडोआर्डो वेनिस पर बहुत बड़ा उपकार होगा।

तृतीय कर्मचारी―'उपकार' धन्य! इतना बड़ा उपकार होगा कि हम सब उसके बोझसे दब जाँयगे मैं नहीं जानता कि उसका प्रतिकार क्योंकर किया जायगा'।

अंड्रियास―'इस कार्य का भार मेरे ऊपर है, फ्लोडोआर्डो ने रोजाबिला से विवाह करने की प्रार्थना की है अतएव यदि उसने प्रतिज्ञा पालन कर दिखायी, तो रोजाबिला उसकी है।'

इस पर सब लोग एक दूसरे को देखने लगे, कोई तो हृदय में अत्यंत प्रसन्न हुआ और किसी को आवश्यकता से अधिक इस बात का संताप हुआ।

फलीरी―(धीरे से) 'परोज़ी देखो क्या होता है।

मिमो―'हे परमेश्वर रक्षा कीजियो केवल इतना सुन कर ही मुझे तप चढ़ आया है।'

परोजी―(तुच्छता से मुसकान पूर्वक) 'जी यह भी संभव ही तो है कि अबिलाइनो अपने को आप पकड़वा देगा।'

काण्टेराइनो 'क्यों महाशयो तनिक यह तो कथन कीजिये कि किसी ने अबिलाइनो को अवलोकन भी किया है, कई व्यक्ति अचाञ्चक बोल उठे 'नहीं महाशय मैंने तो नहीं देखा है।

एक कर्मचारी―'अजी उसे मनुष्य क्या राक्षस समझना चाहिये क्योंकि जब उसकी आशा नहीं होती तब वह आकर उपस्थित होता है।

अंड्रियास―'और जब मेरे सामने वह आया उस समय की बातों से तो आप लोग पूर्णतया अभिज्ञ हैं।'

मिमो―'मैंने इस दुष्टात्मा के विषय में नाना प्रकार के उपाख्यान सुने हैं, जो एक से एक अधिकतर विचित्र हैं, मैं तो समझता हूँ कि वह पुरुष नहीं है वरन किसी दुष्टात्मा असुर ने लोगों को संतप्त करने के लिये मनुष्य का स्वरूप ग्रहण किया है, मेरे विचारानुसार तो उसका यहाँ लाना कभी उचित नहीं क्योंकि वह हम सबको एक साथ ग्रीवा दबा कर नाश कर सकता है॥

स्त्रियाँ―'ऐ कृपालु जगदीश्वर तू कृपा कर! क्या सत्य कहते हो? वह इसी आयतन में हम लोगों का नाश कर देगा॥'

काण्टेराइनों―'अच्छा पहले मुख्य बात के विषय में तो विचार कर लीजिये अर्थात् यह कि फ्लोडोआर्डो उस पर विजयी रहेगा अथवा वह फ्लोडोआर्डो पर! मैं प्रण करके कहता हूँ कि अबिलाइनों के सम्मुख फ्लोडोआर्डो की एक युक्ति भी कार्यकर न हो सकेगी॥'

एक माननीय कर्मचारी। और मैं कहता हूँ कि यदि वेनिस में कोई व्यक्ति अविलाइनो को परास्त कर पकड़ सकता है तो वह फ्लोडोआर्डो है। पहले ही जब वह मुझसे मिला मैंने भविष्यत् कहा था कि एक न एक दिन वह कोई ऐसा कार्य करेगा जिससे उसका नाम चिरस्मरणीय होगा॥'

दूसरा कर्मचारी―मैं भी आपसे सहमत हूँ और आप ने जो कहा है उसका अनुमोदन करता हूँ क्योंकि फ्लोडोआर्डो का स्वरूप ही साक्षी देता है कि वह यशस्वी होगा।

काण्टेराइनों―'मैं एक सहस्र स्वर्ण मुद्रा की बाजी लगाता हूँ, कभी फ्लोडोआर्डो अबिलाइनों को पकड़ न सकेगा, हाँ मृत्यु ने उसको प्रथम ही से अपने हस्तगत किया हो तो दूसरी बात है'॥ पहला कर्मचारी―'और मैं भी सहस्त्र स्वर्णमुद्रा प्रदान करने के लिये शपथ करता हूँ और कहता हूँ कि फ्लोडोआर्डो उसको अवश्य पकड़ लावेगा'॥

अंड्रियास―'और उसे जीवित अथवा उसका शिर मेरे सम्मुख लाकर उपस्थित करेगा॥"

कारटेराइनो―'महाशयो! आप लोग इस के साक्षी हैं- आइये महाशय हाथ मारिये, एक सहस्र स्वर्णमुद्रा'॥

पहला कर्मचारी―(हाथ मार कर) 'हों चुकी॥"

काण्टेराइनों―'मैं आपकी इस कृपा और वदान्यता को देखकर आप को धन्यबाद प्रदान करता हूँ―कि आपने एक सहस्र स्वर्णमुद्रायें व्यर्थ मुझको प्रदान कीं, अब लियाजाती कहाँ हैं, मेरी हो चुकीं। इसमें संदेह नहीं कि फ्लोडोआर्डो बहुत सावधान और पटुव्यक्ति है परन्तु अविलाइनों का पक- ड़ना खेल नहीं वह ऐसा धूर्त और काइयाँ है कि परमेश्वर पनाह! महाशय के छक्के छोड़ा देगा, देखिये यह आपही कुछ काल में ज्ञात हो जाता है॥

पादरीगाञ्जेगा―'अंड्रियास से और पृथ्वीनाथ क्या आप यह भी बतला सकते हैं कि फ्लोडोआर्डो के साथ पुलीस के युवक जन भी हैं?॥'

अंड्रियास―'नहीं, वह अकला है, लगभग चौवीस घंटे होते है कि वह अविलाइनो को ढूँढने के लिये गया हुआ है।'

गाञ्जेगा―(काण्टेराइनों से मंद मुसकान पूर्वक) महोदय! ये सहस्त्र स्वर्णमुद्रायें आपको मुबारक।

काण्टेराइनों―'सादर प्रणिपात पूर्वक जब आपके मुखार- बिन्द से ऐसा निकला है तो मुझे अपने सफल अथवा कृत कार्य होने में तनिक भी संशय नहीं॥'

मिमो―'अब तनिक मुझे स्थिरता प्राप्त हुई, और मेरी बुद्धि ठिकाने आई, अच्छा देखिये आगे क्या क्या होता है॥' फ्लोडोआर्डो को प्रस्थान किये हुये तेईस घण्टे व्यतीत हो चुके थे, और अब चौबीसवां भी समाप्त होने को था परन्तु अब तक उसका पता न था॥