पृष्ठ:काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध.pdf/९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( २ )


इस कवि, नाटककार, उपन्यासकार और निबन्धकार के कृति-रूपी पात्रों से प्रकाशमान है और चिरकाल तक रहेगा ।

भारती-भण्डार का प्रसादजी के साथ बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। उनकी सभी कृतियों को प्रकाशित करने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जिसके लिए वह अपने को विशेष रूप से भाग्य-वान समझता है । प्रसादजी के साहित्यिक निबन्धों के इस संग्रह को साहित्य-प्रेमियों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए जहाँ उस सन्तोष का अनुभव हो रहा है, वहाँ इस विचार से दु:ख होना भी स्वाभाविक ही है कि प्रसादजी आप इस संसार में नहीं रहे । सान्त्वना के लिए उसके पास इस विचार के अतिरिक्त और क्या हैं कि उनके भौतिक शरीर का भले ही अन्त हो गया हो परन्तु उनके यशःशरीर के लिए तो जरा-मृत्यु आदि किसी आपत्ति की आर्शका नहीं हो सकती। सब जानते हैं कि अपने किसी आत्मीय के विछोह में इस प्रकार की भावनाओं से मन को वास्तविक सन्तोष तो प्राप्त नहीं हो सकता, फिर भी किसी न किसी प्रकार दुःख में धैर्य-धारण तो करना ही पड़ता है |

श्री नन्ददुलारे वाजपेयी जी से तथा उनकी साहित्य-मर्मज्ञा से हिन्दी संसार भलीभांति परिचित है। निबन्धों के इस संग्रह के लिए एक योग्यतापूर्ण तथा अमसाध्य भूमिका लिख कर उन्होंने पाठकों का साधारणतः, और विद्यार्थियों की विशेषतः, जो उपकार किया है, उसके लिए हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
[[श्रेणी:काव्य और कला तथा अन्य निबन्

――प्रकाशक