"पृष्ठ:बिहारी-सतसई.djvu/२८५": अवतरणों में अंतर
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ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात॥६६४॥</poem>}} |
ज्यौं-ज्यौं सुरझि भज्यौ चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात॥६६४॥</poem>}} |
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'''अन्वय'''––इहिं जाल परि को |
'''अन्वय'''––इहिं जाल परि को छूट्यो, कुरंग कत अकुलात, ज्यों-ज्यों सुरभि भज्यो |
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चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात। |
चहत त्यौं-त्यौं उरझत जात। |
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