"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/६८": अवतरणों में अंतर
पन्ने की स्थिति | पन्ने की स्थिति | ||
- | + | प्रमाणित | |
पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | पन्ने का मुख्य पाठ (जो इस्तेमाल में आयेगा): | ||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
तुरुही नहीं बजती थी, आज इतनी रात को क्या बात है मार्ग का व्यापार सब स्मरण करके मनमें अमङ्गल का अनुभव करने लगीं और खिड़की की राह अमराई की ओर देखने लगी। फिर घबरा कर कोठरी के बाहर निकल आई और आंगन में होकर सोपान द्वारा अटारी पर चढ़ इधर उधर देखने लगी किन्तु पेड़ों की छाया और अंधेरी रात के कारण कुछ देख न पड़ा, |
तुरुही नहीं बजती थी, आज इतनी रात को क्या बात है मार्ग का व्यापार सब स्मरण करके मनमें अमङ्गल का अनुभव करने लगीं और खिड़की की राह अमराई की ओर देखने लगी। फिर घबरा कर कोठरी के बाहर निकल आई और आंगन में होकर सोपान द्वारा अटारी पर चढ़ इधर उधर देखने लगी किन्तु पेड़ों की छाया और अंधेरी रात के कारण कुछ देख न पड़ा, मुंडे़रे के नीचे झांक कर देखा परन्तु कहीं कुछ दिखाई न दिया। अमराई में बड़ा अंधेरा था,। उदास होकर नीचे उतरना चाहती थी कि अकस्मात किसी ने आकर उसके पीछे से उसको स्पर्श किया, उलट कर देखा कि शस्त्र बांधे एक मनुष्य खड़ा है उसको देखतेही हाथ पैर ढ़ीले हो गए और पुतली सी खड़ी रह गई। |
||
शस्त्रधारी ने कहा "सावधान" चिल्लाना न, नहीं तो उठा कर छत के नीच फेंक दूंगा।" |
शस्त्रधारी ने कहा "सावधान" चिल्लाना न, नहीं तो उठा कर छत के नीच फेंक दूंगा।" |