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रगड़कर जान देना, दरिन्दों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर भागना, ऐसा हौलनाक सीन दिलफ़िगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में करीब से कराहने की आवाज़ आयी। दिलफ़िगार उस तरफ़ फिरा तो देखा कि एक लम्बा-तगड़ा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकलने की कमजोरी से पीला हो गया है, ज़मीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से ख़ून का फ़व्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफिग़ार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुंह पर रख दिया ताकि खून रुक जाये और बोला––ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोली और वीरों की तरह बोला––क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तू ने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यह कहते-कहते उसकी त्योरियों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफ़िगार समझ गया कि यह इस वक्त मुझे दुश्मन समझ रहा है, नरमी से बोला––ऐ जवाँमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक ग़रीब मुसाफ़िर हूँ। इधर भूलता-भटकता आ निकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफ़ियत बयान कर।
दुनिया का सबसे अनमोल रतन

रगड़कर जान देना, दरिन्दों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला––अगर तू मुसाफ़िर है तो आ और मेरे ख़ून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल ज़मीन है जो मेरे पास बाक़ी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस है कि तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब हम तेरा आतिथ्य सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक़्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत अपने देश के लिए कैसी बहादुरी से जान देता है। यह आस-पास जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गो कि मैं बेवतन हूँ, मगर गनीमत है कि दुश्मन की ज़मीन पर मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फ़ायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए ज़िन्दा रहूँ? नहीं, ऐसी जिन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं!
भागना, ऐसा होलनाक सीन दिलफ़िगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख्याल
आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में
करीब से कराहने की आवाज़ आयी। दिलफ़िगार उस तरफ़ फिरा तो देखा कि एक
लम्बा तगड़ा आदमी, जिसका मदीना चेहरा जान निकलने की कमजोरी से पीला
हो गया है, जमीन पर सर झुकायें पड़ा हुआ है। सोने से खून का फ़वारा जारी है,
मगर आब्दार तलवार की मुंठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफियार ने एक चीथड़ा
लेकर घाव के मुंह पर रख दिया ताकि खून रुक जाये और बोला--ऐ जवाँमर्द,
तु कौन है ? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोली और वीरों की तरह बोला--क्या
तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तू ने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं
अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यह कहते-कहते उसको त्योरियों
पर बल पड़ गये । पोला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आवदार शमशीर
फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफ़िगार समझ गया कि यह
इस वक्त मुझे दुश्मन समझ रहा है, नरमी से बोला-ऐ जवाँमर्द, मैं तेरा दुश्मन
नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफ़िर हूँ। इधर भूलता-
भटकता आ निकला । बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफियत' बयान
कर।
यह सुनते ही वायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला----अगर तू मुसाफ़िर
है तो आ और मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल जमीन है जो
मेरे पास बाकी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस
है कि तू यहाँ ऐसे वक्त में आया जब हम तेरा आतिथ्य-सत्कार करने के योग्य नहीं।
हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक्त हम वतन
हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत
अपने देश के लिए कैसी बहादुरी से जान देता है। यह आस-पास जो लाशें तू देख
रहा है, यह उन लोगों को हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर)
और गो कि मैं देवतन हूँ, मगर ग़नीमत है कि दुश्मन की ज़मीन पर मर रहा हूँ।
(सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर)क्या तूने यह मरहम रख दिया ? खून निकलने
दे, इसे रोकने से क्या फ़ायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए
जिन्दा रहूँ ? नहीं, ऐसी जिन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत
मुमकिन नहीं।