"पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/५१": अवतरणों में अंतर

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रसिकदास चुप रहे, फिर कुछ काल में ठंढी सांस लेकर बोले बर्तन रह गया।
रसिकदास चुप रहे, फिर कुछ काल में ठंढी सांस लेकर बोले बर्तन रह गया।
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<center>{{xxx-larger|'''तेरहवां परिच्छेद।'''}}</center>
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