"पृष्ठ:जयशंकर प्रसाद की श्रेष्ठ कहानियाँ.pdf/२९": अवतरणों में अंतर

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इसी समय महाराज को सुन्दरी पहचान गई, और फिर चरण धरकर बोली-पिताजी, क्षमा करना और शीघ्रतापूर्वक रसिया के कर-स्थित पात्र को लेकर अवशेष पी गई और गिर पड़ी। केवल उसके मुख से इतना निकला—"पिताजी, क्षमा करना।" महाराज देख रहे थे!
इसी समय महाराज को सुन्दरी पहचान गई, और फिर चरण धरकर बोली-पिताजी, क्षमा करना और शीघ्रतापूर्वक रसिया के कर-स्थित पात्र को लेकर अवशेष पी गई और गिर पड़ी। केवल उसके मुख से इतना निकला—"पिताजी, क्षमा करना।" महाराज देख रहे थे!